मां के चरित्र को जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ – पुष्पांजली
मां दुनिया की सबसे अनमोल धरोहर है. मां जहां भी होती है खुशियों से हमारी झोली भर ही देती है. जब जीवन के हर क्षेत्र में मां का स्थान इतना अहम है तो भला हमारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा इससे कैसे वंचित रह सकता था। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में भी ऐसी कई अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने मां के किरदार को सिनेमा में अहम बनाया है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जब भी मां के किरदार को सशक्त करने की बात आती है तो सबसे पहला नाम पुष्पांजली शर्मा का आता है जिन्होंने अपनी बेमिसाल अदायगी से मां के किरदार को छत्तीसगढ़ी सिनेमा में टॉप पर पहुंचाया। पुष्पांजली ने मां की भूमिका को निभाकर एक अलग अध्याय रचा। वे प्रकाश अवस्थी, अनुज शर्मा, करण खान, चन्द्रशेखर चकोर जैसे तमाम बड़े नायको की माँ की भूमिका निभाने की वजह से ही उन्हें छत्तीसगढ़ की निरुपा राय भी कहा जाता है।
‘मया के घरौंदा’ में उनकी भूमिका वाकई गजब थी। मां के रूप में जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया। पहुना, टूरी नंबर वन आदि में उनकी भूमिका दमदार थी। पुष्पांजली को आज छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है। फिल्मों में उनकी एंट्री बड़े ही निराले ढंग से हुई। कभी अभिनय न तो की थी और ना ही कभी सोची थी। निर्माता एजाज वारसी इन्हे फिल्मो में लेकर आये और डॉ अजय सहाय ने इनका होसला अफजाई किया, जिसकी वजह से ही आज वे इस मुकाम को पा सकी है। वे कहती है कि मां के चरित्र को फिल्म में जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ । 50 से अधिक फिल्मो में काम कर चुकी पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खिंच लाया। माँ की भूमिका निभाना उन्हें बेहद पसंद है वैसे पुष्पांजली कई फिल्मो में भाभी की भूमिका भी निभा चुकी है। हमने उनसे हर पहलू पर बेबाक बात की है -
प्र. आपको एक्टिंग का शौक कब से है?
उ. बचपन से है, पर फिल्मो में काम करने के बारे में नहीं सोची थी। मौका मिला तो आ गयी। या यूं कहूँ किस्मत ने खिंच लाया।
प्र. मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है?
उ. निर्माता एजाज वारसी मुझे फिल्मो में लेकर आये थे , लेकिन मेरे प्रेरणाश्रोत डॉ अजय सहाय है ,जिन्होंने मुझे प्रेरणा दी और मेरा हौसला अफजाई किया। मेरे पीछे मेरी ताकत बनकर हमेशा खड़े रहे।
प्र. आप फिल्मो में माँ और भाभी की भूमिका निभाती है, तो आपको कैसा महसूस होता है?
उ. मुझे कोई भी रोल मिले मैं पूरी तरह डूबकर काम करती हूँ। माँ की भूमिका निभाते समय जीवंत अभिनय करती हूँ , ताकि अपनी भूमिका के साथ न्याय कर सकूँ।
प्र. आपकी तुलना हिन्दी फिल्मो की निरुपा राय से की जाती है, क्यों?
उ. ये तो दर्शकों का प्यार है जो मुझे इस लायक समझा। निरुपा जी तो एक महान हस्ती रही हैं। जब मै माँ की भूमिका निभाती हूँ तो उसमे पूरी तरह से डूब जाती हूँ। उस समय अपने किरदार में पूरी तरह से रम जाती हूँ।
प्र. आपने 50 से अधिक फिल्मो में काम किया है। सबसे अच्छी फिल्म कौन सा लगी?
उ. अपने फिल्मो की तुलना करना तो मुश्किल है पर मया के घरौंदा में मै अपने किरदार में पूरा जीवन जिया है। इस फिल्म में मुझे बहुत शाबाशी मिली। और मै भी अपने अभिनय से संतुष्ट थी।
प्र. कोई ऐसा अवसर आया हो , जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
उ. हाँ जब मया के घरौंदा में मुझे जब बहुत शाबाशी और तारीफ़ मिली तो मै बहुत रोमांचित हुई थी। उससे मेरा हौसला और बढ़ा ।
प्र. ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
उ. ऐसा अवसर कभी नहीं आया। मुझे जो किरदार मिला, मैंने जी-जान लगाकर किया । मेरे कामो की हमेशा तारीफ़ ही हुई है। मै भी अपनी भूमिका से खूश रही।
प्र. रील लाइफ और रीयल लाइफ में क्या अंतर है?
उ. दोनों अलग-अलग चीज है। रियल लाइफ को रील लाइफ से नहीं जोड़ सकते।
प्र. फिल्मो में जो चारित्रिक भूमिका निभाते है तो क्या उसे अपने वास्तविक जिंदगी में भी अपनाते है?
उ. हाँ जरूर ! घर की मै बड़ी बहू हूँ , अपने परिवार को बांधकर रखने की पूरी कोशिश करती हूँ। कभी किसी का दिल ना दुखे , भले ही मुझे दुःख सहन करना पड़े, ये मेरा प्रयास होता है। मै एक माँ की तरह अपने परिवार को वही स्नेह देती हूं जो फिल्मो में करती हूँ।
अरुण कुमार बंछोर
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