छत्तीसगढ़ी फिल्मो की चर्चित माँ एक नजर में
व्यक्ति के जीवन रुपी ईमारत की बुनियाद माँ है 7 ईमारत चाहे जैसी भी बने लेकिन सबसे पहले बुनियाद डालनी ही पड़ती है, उसी प्रकार किसी भी जीवन की उत्पत्ति के लिए माँ जैसी बुनियाद आवश्यक है माँ को शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है किन्तु अगर मैं माँ को परिभाषित करने की असफल कोशिश करता हूँ तो
पाता हूँ की माँ वो है जो सिर्फ और सिर्फ देना जानती है7 जब जीवन के हर क्षेत्र में मां का स्थान इतना अहम है तो भला हमारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा इससे कैसे वंचित रह सकता था। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में भी छह ऐसी चर्चित अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने मां के किरदार को सिनेमा में अहम बनाया है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जब भी मां के किरदार को सशक्त करने की बात आती है तो उपासना वैष्णव ,पुष्पांजली शर्मा , श्वेता शर्मा ,उर्वशी साहू , उषा विश्वकर्मा और भानुमति कोसरे का नाम आता है जिन्होंने अपनी बेमिसाल अदायगी से मां के किरदार को छत्तीसगढ़ी सिनेमा में टॉप पर पहुंचाया। वैसे तो कई और अभिनेत्रियां है जिन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ का किरदार निभाया है पर परदे पर इन छह को ज्यादा सराहा गया। आज हम जिन छह अभिनेत्रियों की बात कर रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ फिल्म एसोसिएशन ने बेस्ट अभिनेत्री के एवार्ड से सम्मानित कर चुके हैं।
पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खींच लाया
अभिनेत्री पुष्पांजली ने मां की भूमिका निभाकर एक अलग अध्याय रचा है। उन्हें प्रकाश अवस्थी, अनुज शर्मा,
करण खान, चन्द्रशेखर चकोर जैसे तमाम बड़े नायको की माँ की भूमिका निभाने की वजह से ही छत्तीसगढ़ की निरुपा राय भी कहा जाता है। पुष्पांजली ने 71 फिल्मों में माँ की भूमिका निभाई है। मया के घरौंदा में उनकी भूमिका वाकई गजब थी। मां के रूप में जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया। पहुना, टूरी नंबर वन आदि में उनकी भूमिका दमदार थी। लेकिन पुष्पांजली खुद विदाई और मया 2 में अपनी भूमिका को सबसे अच्छी मानती है। पुष्पांजली को आज छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है। फिल्मों में उनकी एंट्री बड़े ही निराले ढंग से हुई। कभी अभिनय न तो की थी और ना ही कभी सोची थी। डायरेक्टर एजाज वारसी इन्हे फिल्मो में लेकर आये और डॉ अजय सहाय ने इनका हौसला अफजाई किया, जिसकी वजह से ही आज वे इस मुकाम को पा सकी है। वे कहती है कि मां के चरित्न को फिल्म में जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ। 80 से अधिक फिल्मो में काम कर चुकी पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खिंच लाया। माँ की भूमिका निभाना उन्हें बेहद पसंद है वैसे पुष्पांजली कई फिल्मो में भाभी की भूमिका भी निभा चुकी है। उनकी तमन्ना इस भूमिका को लगातार आगे भी जीते रहने की है।
अच्छे कामों से मिला श्वेता को मुकाम
बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री राखी की तरह अदा बिखेरने के कारण ही श्वेता शर्मा को छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कहा जाने लगा है। श्वेता हर तरह की भूमिका निभाने में माहिर है। करीब 15 माँ फिल्मो में माँ की भूमिका निभा चुकी श्वेता कहती है कि मन में लगन और दृढ़ इच्छा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। टीवी देख- देखकर मैंने भी फिल्मो में काम करने की सोची थी और आज सबके सामने हूँ। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उनकी एंट्री भी नाटकीय ढंग से हुई थी। कोरियोग्राफर मनोजदीप ने उन्हें मंच दिया और फिल्मो में काम करने को प्रोत्साहित किया ,बस फिर क्या था फिल्मो में आ गयी । कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद श्वेता ने अपने अभिनय को ऐसे निभाया कि हर तरफ उनके कामों की तारीफ़ होने लगी और उन्हें छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कही जाने लगा। निर्देशक एजाज वारसी ने ही पुष्पांजली की तरह इन्हें भी ब्रेक दिया और आज एक सफल अभिनेत्री है। श्वेता की भूमिका को लोगो ने कई फिल्मो में सराहा लेकिन श्वेता को खुद राजा छत्तीसगढिय़ा में अपनी भूमिका बहुत पसंद है। वो बताती है कि बिना तैयारी के शूटिंग में गयी थी और बेहतर ढंग से भूमिका निभा पाई।
लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति
राष्ट्रीय सम्मान से नवाजी जा चुकी छत्तीसगढ़ की लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति कोसरे छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ और भाभी की भूमिका निभाती है। वे सम्मान की भूखी है , कहती है कि कलाकार को सम्मान चाहिए। उनका कहना है कि सरकार के नुमाईंदे राज्य के कलाकारों का सम्मान करना सीखे क्योकि वे सम्मान के ही भूखे होते है। दूरदर्शन रायपुर,भोपाल के लिए लोकगीत गा चुकी भानुमति बताती है कि परिवार वालों के विरोध के बाद भी वे इस क्षेत्र में बनाई है। 15 छत्तीसगढ़ी फि़ल्में, कई एल्बम और स्टेज शो कर चुकी भानुमति लोकगायिका के लिए राष्ट्रीय एवार्ड से सम्मानित हो चुकी है। कारी, ऐसे होते प्रीत, पठौनी के चक्कर, भुला झन देबे, सजना मोर, छलिया, मया 2, सिधवा सजन उनकी चर्चित फिल्मे हैं। भानुमति अपनी हर भूमिका में ऐसे रम जाती है जैसे वे असल जिंदगी हो। उनकी इसी कला के चलते निर्माता उन्हें पसंद करते है।
उपासना को निगेटिव रोल पसंद है
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की सबसे सीनियर अदाकारा उपासना वैष्णव ने अब तक 85 फिल्मे की है जिसमे अधिकाँश फिल्मों में वे माँ की भूमिका में ही है। उसने हिन्दी,तेलुगु और भोजपुरी फिल्मे भी की है। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उपासना बच्चों पर प्यार लुटाती हुई नजर आती है पर उसे खुद निगेटिव रोल पसंद है। मया फिल्म
में उन्होंने निगेटिव किरदार किया है जिसे दर्शकों ने खूब पसंद कियायह भूमिका उन्हें भी पसंद है। तँहू दीवाना महू दीवाना से वह खलनायिका के नाम से चर्चित हुई ,लकिन मोर डौकी के बिहाव में वह नायिका के रूप में सामने आई। क्षमानिधि मिश्रा ने इस रोल में उन्हें आजमाया और सफल रहे। उपासना कहती है कि रोल कोई भी हो उसे जीवंत बनाना ही उनका शौक है। अब वह कुछ हटकर रोल करना चाहती है। वे कहती है कि हमारी इमेज एक साफ सुथरी और आदर्श नायिका की होती है जिसे पूरी तरह भुला कर हमें एक ऐसा किरदार निभाना पड़ता है जो खलनायिका के गुण भी दिखा दें और दर्शक भी उसे पसंद करें ।
माँ की भूमिका पसंद है उर्वशी को
`छत्तीसगढ़ी फिल्मो की चर्चित नाम है उर्वशी साहू जिन्होंने 19 फिल्मों में माँ और भाभी की भूमिका निभाई है। झन भुलाहू माँ-बाप ला उनकी एक बेहतरीन फिल्म है जिसमे उन्हें दर्शकों ने खूब सराहा। मोर डौकी के बिहाव में तो उन्होंने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। इस फिल के लिए उन्हें बेस्ट चरित्र अभिनेत्री का एवार्ड भी मिला। उर्वशी कहती है कि उसे सभी तरह के रोल पसंद है।
आदरणीय होती है माँ की भूमिका : उषा
छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ की भूमिका निभाने वाली उषा विश्वकर्मा कहती है कि माँ की जो भूमिका होती है,
उसकी अकसर कदर नहीं की जाती और कभी-कभी तो उसे नीची नजऱों से देखा जाता है। उनका मानना था कि नौकरी-पेशा, बच्चे से ज़्यादा ज़रूरी है और यह भी कि बच्चों को सँभालना किसी सज़ा से कम नहीं। उषा 9 फिल्मे कर चुकी है जिसमे दगाबाज को वह अपनी सबसे बेहतर फिल्म मानती है। वे कहती है कि माँ की भूमिका बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है और आगे भी वह इस प्रकार की चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी।
व्यक्ति के जीवन रुपी ईमारत की बुनियाद माँ है 7 ईमारत चाहे जैसी भी बने लेकिन सबसे पहले बुनियाद डालनी ही पड़ती है, उसी प्रकार किसी भी जीवन की उत्पत्ति के लिए माँ जैसी बुनियाद आवश्यक है माँ को शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है किन्तु अगर मैं माँ को परिभाषित करने की असफल कोशिश करता हूँ तो
पाता हूँ की माँ वो है जो सिर्फ और सिर्फ देना जानती है7 जब जीवन के हर क्षेत्र में मां का स्थान इतना अहम है तो भला हमारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा इससे कैसे वंचित रह सकता था। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में भी छह ऐसी चर्चित अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने मां के किरदार को सिनेमा में अहम बनाया है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जब भी मां के किरदार को सशक्त करने की बात आती है तो उपासना वैष्णव ,पुष्पांजली शर्मा , श्वेता शर्मा ,उर्वशी साहू , उषा विश्वकर्मा और भानुमति कोसरे का नाम आता है जिन्होंने अपनी बेमिसाल अदायगी से मां के किरदार को छत्तीसगढ़ी सिनेमा में टॉप पर पहुंचाया। वैसे तो कई और अभिनेत्रियां है जिन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ का किरदार निभाया है पर परदे पर इन छह को ज्यादा सराहा गया। आज हम जिन छह अभिनेत्रियों की बात कर रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ फिल्म एसोसिएशन ने बेस्ट अभिनेत्री के एवार्ड से सम्मानित कर चुके हैं।
पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खींच लाया
अभिनेत्री पुष्पांजली ने मां की भूमिका निभाकर एक अलग अध्याय रचा है। उन्हें प्रकाश अवस्थी, अनुज शर्मा,
करण खान, चन्द्रशेखर चकोर जैसे तमाम बड़े नायको की माँ की भूमिका निभाने की वजह से ही छत्तीसगढ़ की निरुपा राय भी कहा जाता है। पुष्पांजली ने 71 फिल्मों में माँ की भूमिका निभाई है। मया के घरौंदा में उनकी भूमिका वाकई गजब थी। मां के रूप में जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया। पहुना, टूरी नंबर वन आदि में उनकी भूमिका दमदार थी। लेकिन पुष्पांजली खुद विदाई और मया 2 में अपनी भूमिका को सबसे अच्छी मानती है। पुष्पांजली को आज छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है। फिल्मों में उनकी एंट्री बड़े ही निराले ढंग से हुई। कभी अभिनय न तो की थी और ना ही कभी सोची थी। डायरेक्टर एजाज वारसी इन्हे फिल्मो में लेकर आये और डॉ अजय सहाय ने इनका हौसला अफजाई किया, जिसकी वजह से ही आज वे इस मुकाम को पा सकी है। वे कहती है कि मां के चरित्न को फिल्म में जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ। 80 से अधिक फिल्मो में काम कर चुकी पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खिंच लाया। माँ की भूमिका निभाना उन्हें बेहद पसंद है वैसे पुष्पांजली कई फिल्मो में भाभी की भूमिका भी निभा चुकी है। उनकी तमन्ना इस भूमिका को लगातार आगे भी जीते रहने की है।
अच्छे कामों से मिला श्वेता को मुकाम
बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री राखी की तरह अदा बिखेरने के कारण ही श्वेता शर्मा को छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कहा जाने लगा है। श्वेता हर तरह की भूमिका निभाने में माहिर है। करीब 15 माँ फिल्मो में माँ की भूमिका निभा चुकी श्वेता कहती है कि मन में लगन और दृढ़ इच्छा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। टीवी देख- देखकर मैंने भी फिल्मो में काम करने की सोची थी और आज सबके सामने हूँ। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उनकी एंट्री भी नाटकीय ढंग से हुई थी। कोरियोग्राफर मनोजदीप ने उन्हें मंच दिया और फिल्मो में काम करने को प्रोत्साहित किया ,बस फिर क्या था फिल्मो में आ गयी । कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद श्वेता ने अपने अभिनय को ऐसे निभाया कि हर तरफ उनके कामों की तारीफ़ होने लगी और उन्हें छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कही जाने लगा। निर्देशक एजाज वारसी ने ही पुष्पांजली की तरह इन्हें भी ब्रेक दिया और आज एक सफल अभिनेत्री है। श्वेता की भूमिका को लोगो ने कई फिल्मो में सराहा लेकिन श्वेता को खुद राजा छत्तीसगढिय़ा में अपनी भूमिका बहुत पसंद है। वो बताती है कि बिना तैयारी के शूटिंग में गयी थी और बेहतर ढंग से भूमिका निभा पाई।
लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति
राष्ट्रीय सम्मान से नवाजी जा चुकी छत्तीसगढ़ की लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति कोसरे छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ और भाभी की भूमिका निभाती है। वे सम्मान की भूखी है , कहती है कि कलाकार को सम्मान चाहिए। उनका कहना है कि सरकार के नुमाईंदे राज्य के कलाकारों का सम्मान करना सीखे क्योकि वे सम्मान के ही भूखे होते है। दूरदर्शन रायपुर,भोपाल के लिए लोकगीत गा चुकी भानुमति बताती है कि परिवार वालों के विरोध के बाद भी वे इस क्षेत्र में बनाई है। 15 छत्तीसगढ़ी फि़ल्में, कई एल्बम और स्टेज शो कर चुकी भानुमति लोकगायिका के लिए राष्ट्रीय एवार्ड से सम्मानित हो चुकी है। कारी, ऐसे होते प्रीत, पठौनी के चक्कर, भुला झन देबे, सजना मोर, छलिया, मया 2, सिधवा सजन उनकी चर्चित फिल्मे हैं। भानुमति अपनी हर भूमिका में ऐसे रम जाती है जैसे वे असल जिंदगी हो। उनकी इसी कला के चलते निर्माता उन्हें पसंद करते है।
उपासना को निगेटिव रोल पसंद है
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की सबसे सीनियर अदाकारा उपासना वैष्णव ने अब तक 85 फिल्मे की है जिसमे अधिकाँश फिल्मों में वे माँ की भूमिका में ही है। उसने हिन्दी,तेलुगु और भोजपुरी फिल्मे भी की है। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उपासना बच्चों पर प्यार लुटाती हुई नजर आती है पर उसे खुद निगेटिव रोल पसंद है। मया फिल्म
में उन्होंने निगेटिव किरदार किया है जिसे दर्शकों ने खूब पसंद कियायह भूमिका उन्हें भी पसंद है। तँहू दीवाना महू दीवाना से वह खलनायिका के नाम से चर्चित हुई ,लकिन मोर डौकी के बिहाव में वह नायिका के रूप में सामने आई। क्षमानिधि मिश्रा ने इस रोल में उन्हें आजमाया और सफल रहे। उपासना कहती है कि रोल कोई भी हो उसे जीवंत बनाना ही उनका शौक है। अब वह कुछ हटकर रोल करना चाहती है। वे कहती है कि हमारी इमेज एक साफ सुथरी और आदर्श नायिका की होती है जिसे पूरी तरह भुला कर हमें एक ऐसा किरदार निभाना पड़ता है जो खलनायिका के गुण भी दिखा दें और दर्शक भी उसे पसंद करें ।
माँ की भूमिका पसंद है उर्वशी को
`छत्तीसगढ़ी फिल्मो की चर्चित नाम है उर्वशी साहू जिन्होंने 19 फिल्मों में माँ और भाभी की भूमिका निभाई है। झन भुलाहू माँ-बाप ला उनकी एक बेहतरीन फिल्म है जिसमे उन्हें दर्शकों ने खूब सराहा। मोर डौकी के बिहाव में तो उन्होंने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। इस फिल के लिए उन्हें बेस्ट चरित्र अभिनेत्री का एवार्ड भी मिला। उर्वशी कहती है कि उसे सभी तरह के रोल पसंद है।
आदरणीय होती है माँ की भूमिका : उषा
छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ की भूमिका निभाने वाली उषा विश्वकर्मा कहती है कि माँ की जो भूमिका होती है,
उसकी अकसर कदर नहीं की जाती और कभी-कभी तो उसे नीची नजऱों से देखा जाता है। उनका मानना था कि नौकरी-पेशा, बच्चे से ज़्यादा ज़रूरी है और यह भी कि बच्चों को सँभालना किसी सज़ा से कम नहीं। उषा 9 फिल्मे कर चुकी है जिसमे दगाबाज को वह अपनी सबसे बेहतर फिल्म मानती है। वे कहती है कि माँ की भूमिका बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है और आगे भी वह इस प्रकार की चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी।
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