छत्तीसगढ़ी फिल्मों के भीष्म पितामह एवं गुलशन कुमार के नाम से मशहूर मोहनचंद सुंदरानी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। छत्तीसगढ़ के कलाकारों को खोज-खोजकर तराशना और आगे बढ़ाना उनके जीवन का मकसद है। वे कहते हैं कि छोटे-छोटे कलाकारों को आगे बढ़ाने में उन्हें एक सुखद अनुभूति का एहसास होता है। आज भी वे गांव-गांव, गली-गली में कलाकारों की तलाश में भटकते रहते हैं। उन्हें मंच देते है उनका उत्साह बढ़ाते है। इसी कड़ी में मोहन सुंदरानी ने 2006, 10 अगस्त से 2008 दिसम्बर तक लगभग 6000 गांवों से अधिक गांवों में लोक कलाकार रथयात्रा का आयोजन कर भ्रमण किया। सुंदरानी हमेशा गरीब व जरुरत मंद लोक कलाकारों की समय-समय पर आर्थिक मदद करने में भी कभी संकोच नहीं करते। वहीं पर्यावरण संरक्षण के लिए चिंतित भी नजर आते है। इसी तारतम्य में मोहन सुंदरानी ने राज्य में हरियाली को बढ़ावा देने और प्रदूषण मुक्ति के लिए प्रदेश भर में 1 लाख से अधिक वृक्षारोपण किये हैं। ऐसी कोई जगह नहीं है जहां सेवा की जरूरत हो और वे न पहुंचे। ''हो जिनका हौसला बुलंद, भला कौन रोक सकता है उनको बुलंदियों से कुछ इन्हीं पंक्तियों के साथ छत्तीसगढ़ के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने वाले श्री सुंदरानी जो अपने धर्म, कर्म और सेवा के बलबूतों पर प्रेरणा के उदाहरण बन गये हैं। जो बिना रूके, बिना थके लगातार अपने कदम अनवरत रूप से गांव-गांव, शहर-शहर और गली-गली में बढ़ा रहे हैं। चाहे लोक कला का क्षेत्र हो, फिल्म हो, सार्वजनिक समारोह हो, कोई सामाजिक गतिविधियां हो, किसी कलाकार की सहायता हो, किसी गिरते हुए को उठाना हो, किसी प्रतिभा सम्पन्न कलाकार को मंच देना हो या फिर वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या कन्या भ्रूण हत्या के विरूद्ध बेटी बटाओ अभियान हो। हर जगह पूरी तन्मता और कर्तव्य निष्ठता के साथ दृढ़ता पूर्वक बढ़ते नजर आते हैं। पर्यावरण की पीड़ा तो मानो उनके रग-रग में है। जो माटी की समस्या से जुड़कर माटी का सोंधी महक को सहसूस करता हो भला कौन ऐसे व्यक्तित्व के बार में जानना नहीं चाहेगा।
कला के पुरोधा है
मोहन सुंदरानी ने, उन्होंने सिर्फ नाचा गम्मत को उठाने का काम किया बल्कि उसमें अभिनय भी किया। नाचा गम्मत के साथ-साथ फिल्मों व रंग मंचों में भी अभिनय किया। मोहन सुंदरानी ने सदैव कला और आस्था से पूरी निष्पक्षता के साथ गीत-संगीत भजनों का निर्माण भी किया है। इसी कड़ी में उन्होंने 200 से अधिक सतनाम समाज के गुरूघासी दास बाबा के जीवन पर कथाएं, पंथी गीत भजनों के ऑडियों कैसेट का निर्माण किया है। जिसमें सतनाम समाज के कलाकारों को प्रोत्साहन व मंच मिला है। वहीं साहू समाज की पूज्यनीय संत माता कर्मा व राजीम माता के ऑडियो कैसेट का निर्माण कर इन भक्ति गीतों को जन-जन तक पहुंचाया है। 500 वर्ष पुरानी छत्तीसगढ़ी की लोक कथा लोरिक चंदा का निर्माण कर पारम्परिक बिहाव गीत जो रितिरिवाजों पर आधारित है उनको वीडियो सीडी के माध्यम से जारी कर जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। आदिवासी क्षेत्रों के लिए गौरा-गौरी, सुवा डंडा गीतों को वीडियों सीडी के रूप में निर्माण कर इन पारम्परिक कलाओं का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
बाल कलाकारों को आगे बढ़ाया
मोहन सुंदरानी ने कई वर्षों से बाल कलाकारों को प्रोत्साहन देने, उनके अभिनय एवं कला पर आधारित धार्मिक, लोक संस्कृति व देश भक्ति वीडियो सीडी का प्रसारण मंचन प्रदेश व देश कोने-कोने में कर रहे हैं जो वास्तव में बाल कलाकारों की कला और प्रतिभा के विकास में सुनहरा कदम है।
बेबी श्रेया मिश्रा उम्र 18 वर्ष-जय हिन्द देश भक्ति गीत। बेबी शैली बिड़वईकर-वन्दे मातरम। बेबी स्तुति तिवारी- राम बनवास हिन्दी धार्मिक, राजा हरिश्चन्द्र हिन्दी धार्मिक। बेबी दिव्यांशी शुक्ला-मेरी लाज रखो मां कोराड़ी हिन्दी, मेरी लाज रखो मां महामाया हिन्दी, मां बम्लेश्वरी चालिसा हिन्दी, मेरी लाज रखो मां शारदा हिन्दी। बेबी ज्योति चंचल- भरत मिलाप छत्तीसगढ़ी, राम जन्म छत्तीसगढ़ी बेबी हेमलता साहू-नारी धरम छत्तीसगढ़ी, दानवीर राजा हरिश्चन्द्र छत्तीसगढ़ी। बेबी रिंकल सुंदरानी- गणेश मंत्र हिन्दी, गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र हिन्दी संस्कृत। मास्चर चंदन व्यास- मेरा दोस्त गणेश हिन्दी। बेबी गुरप्रीत कौन- मुठा भर लाई छत्तीसगढ़ी देवी गीत। बेबी दीप्ति बघेल- सीता राम जी का लिफाका बुंदेलखण्डी। बेबी स्वर्णा दिवाकर- ओ मेरी मईया छत्तीसगढ़ी देवी गीत, ओ मेरे सीया राम छत्तीसगढ़ी रामायण, घट घट म बसे सतनाम (पूज्यनीय गुरूघासीदास बाबा), 18 दिसम्बर महान (पूज्यनीय गुरूघासीदास बाबा), सुवा गौरा गौरी महिमा (छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति पर आधारित), मुसवा के सवारी छत्तीसगढ़ी धार्मिक इत्यादि...
कला पथ का ऐसा पथिक और कहां-
मोहन सुंदरानी इतने जिज्ञासु और दृष्टा हैं कि वो लगातार कुछ न कुछ खोजने में लगे रहते हैं। कुछ खास बात और भी है और वो बातें छत्तीसगढ़ की पुरानी लोकगाथा लोरिक चंदा व छत्तीसगढ़ी में रामायण प्रसंगों को सीडी के माध्यम से प्रसारित करने की है। छत्तीसगढ़ी भाषा में फिल्में जय मां बम्लेश्वरी, लेडग़ा ममा, हमर माई बाप, झन भूलव बहिनी ला, बदला नागीन के, लोरिक चंदा, मया के चिटठी, संग मा जीबो संग मा मरबो, मयारू भौजी, जय महामाया, तोर मया म जादू हे, हीरो नं.-1 व गोलमाल के निर्माण के साथ प्रदेश भर में अन्य निर्माताओं के 80 से अधिक बनी फिल्मों को देश प्रदेश में वीडियो व डीवीडी के माध्यम से प्रचारित प्रसारित किये। मोहन सुंदरानी ने छत्तीसगढ़ के दूरदर्शन केन्द्र से 500 से अधिक प्रायोजित कार्यक्रमों का प्रसारण भी करवाए।
बेटी बचाओ अभियान में भी कूदे- देश- प्रदेश में बेटियों की दूर्दशा देखकर मोहन सुंदरानी ने कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में विगत कई महिनों से लगातार इस अभियान से जुडऩे के लिए शहरों गांव और गलियों में बेटियों की सुरक्षा के लिए बेटी बचाओ अभियान में काफी सक्रिय दिख रहे हैं। इस अभियान में उनके साथ हजारों ग्रामीणों, शहरियों के साथ अनेक बुद्धिजीवी लोग भी कदम से कदम मिला के चल रहें हैं और उनके इस कार्य में तमाम लोक कलाकार भी उनका साथ दे रहे हैं। मोहन सुंदरानी कन्या स्कूलों और कॉलेजो में जाकर कन्याओं को नि:शुल्क कापी वितरण की भी तैयारी कर रहें हैं। इस कार्यक्रम में लगभग 1 लाख कापी का वितरण होना है। मोहन सुंदरानी बेटियों की सुरक्षा हेतु इस बड़े मुहिम से जुड़कर निश्चित रूप से समाज के लिए प्रेरणाश्रोत बन गये हैं।
कलाकारों के लिए उनका योगदान
मनोरंजन के नये साधन आने के बाद गम्मत नाचा की परियां, जोकर अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए जुझ रहे थे। उन्होंने ऐसे लोगों को लगातार मंच दिया, सम्मान दिया। स्व. झुमुकदास बघेल, नाईकदास मानिकपुरी, स्व. बरसन नाचा जोकर, जेठुराम नाचा जोकर, पकला आदि अनेक कलाकारों के कार्यक्रम गांवों में ही करवाये। नाचा गम्मत के 100 से भी अधिक आडियो वीडियो कैसेट बनायें और हमेंशा इस बात की सतर्कता रखी की इन कलाओं के मूल तत्व बरकरार रहे। इन कलाकारों को राज्य में मंच तो दिये ही राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री के सामने भी प्रदर्शन के लिए अवसर सुनिश्चित कराये। उन्होंने बांसगीत, गोड़ी नाच जैसी विधाओं की कलाकारों की तलाश 2006 में शुरू की जो अब तक जारी है।
ऐसे कलाकारों के गांवों और निवास तक पहुंच कर उन्हें आर्थिक और सामाजिक सहायता मुहैया करायी। इसके साथ ही साथ अस्पतालों में भर्ती कलाकारों की भी मदद की। सरगुजिया कर्मा नृत्य, बस्तरीय नृत्य, लेझा कर्मा आदि का प्रचा-प्रसार किया बुढ़ा देव गौरी-गौरा पर आधारित आडियो वीडियो सीडी का निर्माण किया। निषाद समाज में पूज्यनीय केवट राज पर अनेक आडियो वीडियो सीडी का निर्माण किया।
जसगीत की समृद्ध परम्परा जो छत्तीसगढ़ में व्याप्त है इस दिशा में उन्होंने बहुत प्रयास किया। पारम्परिक जस गीत जवांरा, सेवा, सांगा, बाना पर आधारित 1200 से अधिक गीतों तलाश कर उन्हें दुकालीू यादव, दिलीप षडंग़ी, संतोष थापा, अलका चन्द्राकर, स्व. पंचराम मिर्झा, कुलेश्वर ताम्रकार, नीलकमम वैष्णव, रामू यादव, कविता वासनिक जैसे ख्याति लब्ध कलाकारों से गवाया। इन गीतों की सीडी अनेक लोक कलाकारों की आवाजों में प्रदेश के कोने-कोने के साथ-साथ अन्य प्रदेशों में भी पहुंचवाई। उन्होंने लोक वाद्यों जैसे मांदर, झांज, तबला, झुमका, ढोलक बैन्जो, घुंघरू से संगीत के मूल रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जिसे लोग वास्तव में पसंद करते हैं।
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