गुरुवार, 6 मई 2010

चुनें समंदर से मोती


नोबेल अवार्ड विजेता दिग्गज अर्थशास्त्री अम‌र्त्य सेन, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, आरबीआई के गवर्नर डी. सुब्बाराव, पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम..। क्या समानता है इन नामों में? दरअसल, ये वे महारथी हैं, जो किसी परिचय के मोहताज नहीं। ये दिग्गज अपने-अपने विषय के विशेषज्ञ हैं ही, इन्होंने देश-दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया है। इन्होंने शुरू से ही एकेडमिक फील्ड का रास्ता अख्तियार किया और इसी राह पर चलकर आज इस मुकाम पर हैं। यदि आपकी ख्वाहिश भी इन्हीं महारथियों की सूची में जुडने की है, तो अभी से इस मिशन पर जुट जाना होगा।


इसमें कोई दो राय नहीं कि आज का जॉब सिनारियो तेजी से बदल रहा है। इन दिनों किसी खास जॉब में फिट बैठने के लिए प्रोफेशनल कोर्स करना समय की मांग बन गई है, लेकिन यदि आप एकेडमिक फील्ड में जाना चाहते हैं, तो आइए एक-एक कर जानें उन जरूरी बिंदुओं के बारे में, जिनकी मदद से आपको बुलंदियां छूने में मदद मिलेगी..

कम नहीं संभावनाएं

एकेडमिक फील्ड बेहतर है या प्रोफेशनल, अक्सर स्टूडेंट्स इसी उधेडबुन में रहते हैं। वे सोचते हैं कि इसमें बेहतर अवसर नहीं हैं। इस संबंध में करियर काउंसलर परवीन मल्होत्रा कहती हैं, एकेडमिक फील्ड चुनने वाले कैंडिडेट्स के लिए अवसरों की कमी नहीं है। बस जरूरत है जानकारी की। इन दिनों कुछ स्टूडेंट्स को यह भी लगता है कि बीए प्रोग्राम या पास की प्रासंगिकता खत्म हो गई है और ऑनर्स कोर्स ही सही है। करियर विशेषज्ञों की मानें तो ऑनर्स एक विषय विशेष में स्पेशलाइजेशन कराता है और अधिकांश विश्वविद्यालय अब प्रोग्राम की बजाय ऑनर्स को ही प्राथमिकता देते हैं। इसके बावजूद बीए प्रोग्राम को कम करके इसलिए नहीं आंका जा सकता, क्योंकि इसमें स्टूडेंट्स के लिए ऑप्शंस ज्यादा होते हैं। इसलिए दोनों ही कोर्सेज का महत्व है।

पॉपुलर कोर्स

एकेडमिक अंडरग्रेजुएट कोर्सो में बीए-ऑनर्स, बीए-प्रोग्राम, बीएससी-मैथ, बीएससी-बॉयो, बीएससी-एग्रीकल्चर इत्यादि तीन वर्षीय कोर्स उपलब्ध हैं। इसके बाद दो वर्षीय एमए, एमएससी और आगे एमफिल, पीएचडी भी किया जा सकता है। बीए-ऑनर्स और प्रोग्राम में भी विभिन्न विषयों के विकल्प मौजूद हैं। बीकॉम करने के बाद कई नई राहें खुल सकती हैं। फिर चाहें, तो आगे एमकॉम भी कर सकते हैं। इसी तरह, बारहवीं के बाद पांच वर्षीय एकीकृत लॉ कोर्स करके एडवोकेट या लीगल एडवाइजर के रूप में करियर की शुरुआत की जा सकती है। वैसे, इसमें भी एलएलएम कर योग्यता बढाई जा सकती है या फिर लॉ टीचर के रूप में करियर का द्वार खोला जा सकता है।

पहली सीढी

अंडरग्रेजुएट कोर्स आपके करियर की नींव निर्धारित करते हैं। ग्रेजुएशन के बाद ही आप एमए, एमफिल, रिसर्च या आगे की पढाई में बेहतर कर सकते हैं। इसलिए जिस विषय में खास रुचि हो, उसे ही चुनें तो बेहतर होगा।

रखें विकल्प

इन दिनों इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, टीचिंग जैसे परंपरागत विषयों के साथ-साथ सैकडों नए विकल्प भी सामने आ गए हैं। ऐसे में एक या दो विषय में ही उच्च शिक्षा हासिल करने की जो मजबूरी पहले थी, वह अब नहीं है। इस कारण विषय के चयन में इस बात का अवश्य ध्यान रखें। इससे बेहतर विकल्प मिलेंगे। जैसे, यदि इंग्लिश ऑनर्स में दाखिला लेने का मन बना रहे हैं, तो रुचि के अनुरूप इकोनॉमिक्स या एकाउंटेंसी ले सकते हैं। इससे फायदा यह होगा कि यदि इंग्लिश ऑनर्स में दाखिला न भी मिल पाए, तो दूसरे विषयों में दाखिला मिल सकता है। इसी तरह, साइंस की फील्ड भाती है, तो यहां भी आपको इसी फार्मूले पर अमल करना चाहिए। यदि साइंस से बीएससी करते हैं, तो उस विषय को वरीयता दें, जिसमें बीएससी के बाद बेहतर विकल्प हों। उदाहरण के लिए यदि आप न्यूक्लियर साइंस, नैनो-टेक्नोलॉजी, इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री आदि में से किसी में बीएससी करते हैं, तो बिना बीटेक किए सीधे एमटेक कर सकते हैं। इसके अलावा, इन दिनों कम्प्यूटर साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स, बॉयोटेक्नोलॉजी, फूड टेक्नोलॉजी और फिशरीज से संबंधित विषय भी काफी पॉपुलर हो रहे हैं। आप करियर चुनते समय इन बातों का ध्यान रखेंगे, तो आगे बढने में परेशानी नहीं होगी। आप जिस फील्ड में करियर बनाना चाहते हैं, सुनिश्चित करें कि संबंधित योग्यता आपमें है या नहीं! कहने का आशय यह है कि यदि स्टूडेंट्स अपनी योग्यता को दूसरे करियर विकल्पों के मुताबिक खंगालना शुरू करें, तो यकीनन वे दूसरे बेहतरीन करियर में फिट हो सकते हैं।

मार्गदर्शक की लें मदद

12वीं के बाद आप एक ऐसे चौराहे पर खडे होते हैं, जहां आकर अक्सर दुविधा सामने होती है। क्या करें, क्या नहीं, किस विषय को चुनें, क्या बेहतर है और कितना स्कोप? अगर आपको ऐसे तमाम सवाल परेशान करते हैं, तो आपको काउंसलर की मदद जरूर लेनी चाहिए। मार्गदर्शन न मिलने के कारण हो सकता है कि आप गलत दिशा में कदम बढा लें और बाद में रिकवरी का भी मौका न मिले। ऐसी हालत में कुछ स्टूडेंट्स अपने मित्रों की देखादेखी कोर्स का चुनाव कर लेते हैं या फिर अपने अभिभावक की इच्छा को अनमने ढंग से स्वीकार कर लेते हैं। काउंसलर की मदद से आप इस तरह की परेशानी से बच सकते हैं।

मौके को समझें

किसी एकेडमिक कोर्स में एडमिशन लेने से पहले किन बातों का ख्याल रखना है जरूरी है? इस बारे में डीयू के अदिति महाविद्यालय की वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ. तृप्ता शर्मा से बातचीत की गई। पेश हैं इसके प्रमुख अंश..

एकेडमिक कोर्स में कितना स्कोप है?

जिन कैंडिडेट्स की एकेडमिक फील्ड में रुचि है, पढाई का शौक है, विषय को गहराई से समझने की भूख है, उनके लिए अवसरों की कोई कमी नहीं है। क्योंकि किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए आपकी रुचि, योग्यता और ईमानदार कोशिश ही रंग लाती है। बेहतर एकेडमिक कोर्स के चयन में परेशानी कहां आती है और क्यों?

अक्सर स्टूडेंट्स तय नहीं कर पाते कि किस क्षेत्र में जाना बेहतर होगा। यही सबसे बडी समस्या है। स्टूडेंट्स को चाहिए कि सबसे पहले पेरेंट्स, काउंसलर आदि से मिलकर अपना लक्ष्य निर्धारित कर लें। कुछ स्टूडेंट्स सिर्फ इसलिए कोर्स का चयन करते हैं कि इसका फ्यूचर अच्छा होगा, जबकि उनकी रुचि इसमें नहीं होती। यदि लंबी पढाई करना चाहते हैं, तभी एकेडमिक कोर्स को वरीयता दें। भीड का हिस्सा बनने से बचने की कोशिश करें, तभी बेहतर कर पाएंगे।

स्टूडेंट्स को आप क्या सुझाव देना चाहेंगी?

बेहतर होगा इस समय जो स्टूडेंट्स रिजल्ट के इंतजार में वक्त जाया कर रहे हैं, वे मौके को समझें और इस समय मिले खाली समय का भरपूर इस्तेमाल करें। वे एक सूची बना लें कि उन्हें क्या-क्या प्रमुख काम करने हैं या डायरी में उन बातों का जिक्र करें, जो पूरे करने हैं। मसलन, रुचि के क्षेत्र कौन-कौन से हैं, किस विषय में दाखिला लेना है और क्यों? क्या है स्कोप? सूचनाओं के लिए इंटरनेट की मदद भी ले सकते हैं। एक पैनी नजर पत्र-पत्रिकाओं पर भी होनी चाहिए, जहां इस संबंध में तमाम तरह की जानकारियां बिखरी पडी रहती हैं।

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