क्या आप कल्पना कर सकते हो कि समुद्र में रहना कैसा लगता होगा? समुद्र में रहने वाले प्राणी हमेशा गतिशील रहते होंगे। तूफान आदि के दौरान जब समुद्र की लहरें बहुत तेज़ होती हैं, तब इन प्राणियों का या होता होगा? मछलियां और अन्य जीव किस तरह ज़िंदा रह पाते होंगे?
मोटे तौर पर यह माना जाता है कि एक समय (4 अरब, 5 करोड़ से भी •यादा साल पहले) जीवन सिर्फ समुद्र और ताज़े पानी में ही था। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पृथ्वी की अपेक्षा समुद्र में अभी भी अधिक जीव निवास करते हैं। समुद्र में जीव-जंतुओं की दो लाख से भी •यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। समुद्री जीव अधिकतर हल्के या उथले पानी में पाया जाता है, जहां कि प्रकाश पहुंच पाता है और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हो पाती है।
फिर भी अधिकांश समुद्र में बहुत कम ही जीवन होता है। कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही भरपूर जीवन होता है और इन क्षेत्रों में मानव ने पहले से ही मत्स्य-क्षेत्र (मछली पकड़ने की जगह) बना रखे हैं। लहरों का उतार-चढ़ाव विश्व के कई हिस्सों में अलग-अलग होता है और संभवत: यही कारण है कि कई वर्ष मत्स्य उत्पादन अच्छा होता है, तो कई वर्ष कम।
समुद्री जीव और पौधे तरंगित जल में जीवित रहने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते हैं। गहरे समुद्र में रहने वाले जीव अपना संपूर्ण जीवन पानी में गति करते हुए बिताते हैं। तैरते रहने से ही वे अंधेरी गहराई में धंसने से बचे रहते हैं।
यह ज्ञात हुआ है कि कई प्रजातियां प्रकाश की बदलती स्थिति के चलते कई सौ फुट ऊध्र्वाधर तैरती रहती हैं, जबकि कई अन्य प्रजातियां गहरे दिपावली के दिन कुश को आतिशबाज़ी करने में विशेष आनंद आ रहा था। अचानक ऊपर पेड़ से एक चिड़िया घायल होकर उसके पास आकर गिर गई, शायद पटाखों की किसी िचंगारी ने उसके पंख झुलसा दिए थे।
कुश ने आहिस्ता से चिड़िया को उठाकर अपने हथेली पर रखा और हौले-हौले सहलाने लगा। देखते ही देखते वह चिड़िया स्वस्थ होकर हाथ से फिसली और एक खूबसूरत परी के रूप में बदल गई। ‘तुमने मेरी जान बचाई है बोलो क्या चकहते हो!’- परी ने पूछा। इस अप्रत्याशित कृपा से कुश दुविधा में पड़ गया कि वह क्या मांगे? ‘चलो मैं तुम्हारी मदद करती हूं, बोलो क्या चाहिए... पटाखों का ढेर, मिठाई का पहाड़ या नए वस्त्रों का खज़ाना??’-परी ने पूछा। नहीं इनमें से कुछ नहीं’- कुश ने स्पष्ट इंकार किया।
परी अचरज में पड़ गई, ‘फिर?’ कुश ने सकुचाते हुए कह दिया, ‘मैं भूतों की दीपावली देखना चाहता हूं।’ परी के आश्चर्य में और वृद्धि हो गई। ‘यह कैसी मांग हुई कुश, तुम डरोगे नहीं??’ ‘नहीं.’- कुश बोला। ‘ठीक है, तुम्हारी मर्ज़ी।’- कहते हुए कुछ ही देर में परी ने उसे भूतलोक में पहुंचा दिया। वहां का अद्भुत नज़ारा देख कुश स्तध रह गया।
आशा के अनुरूप वहां पटाखों का जखीरा था। बड़े-बड़े ड्रम के बराबर बने हुए बम, भीमकाय रस्सीबम, विशालकाय फुलझड़ियां और फुटबॉल के समान अनार.. उनके आकार-प्रकार देखकर कुश की आंखें फटी की फटी रह गईं।
कुश जिस विशाल पीपल के पेड़ पर बैठकर यह दृश्य देख रहा था, उसके ठीक नीचे ही आतिशबाज़ी का कार्यक्रम संपन्न होना था। नीचे भूतराजा के नेतृत्व में अनेक भूतगण आतिशबाज़ी करने को उत्सुक दिखाई दे रहे थे। अचनाक कुश के हाथ की पकड़ ढीली हो गई और वह धड़धड़ाते हुए भूतराज के पैरों पर गिर पड़ा। उसे आसमान से गिरते देख सभी भूतगण चौंक गए।
भूतराज ने हंसते हुए कहा, ‘हम सबको डराते हैं और आज इस जीवित प्राणी ने हमें डरा दिया।’ कुश ने साहस जुटाकर कहा, ‘मैं आप सभी को दीपावली की बधाई देने और आपकी दिवाली देखने यहां आया था।’‘यह तो खुशी की बात है जीवित प्राणी, तुम सही समय पर आए। हमारा कार्यक्रम शुरू होने वाला है’- भूतराज बोले।
‘एक बात का डर लग रहा है भूत अंकल, आपके इतने बड़े-बड़े पटाखों की कानफोड़ू आवाज़ मेरे छोटे-छोटे कान कैसे सहन कर पाएंगे? कहीं कान के पर्दे फट तो नहीं जाएंगे।’- कुश ने आशंका व्यक्त की। ‘कानों में रुई ठूंस लो’- एक भूत ने सलाह दी।
कुश सोच में पड़ गया, तो भूतराज खिलखिलाते हुए बोला, ‘हम तो मज़ाक कर रहे थे।’ ‘मज़ाक!!! मैं कुछ समझा नहीं’- कुश ने पूछना चाहा। भूतराज फिर खिलखिला पड़े, ‘अरे बेटे, ये सारे पटाखे नकली हैं या यूं समझ लो कि पर्यावरण-मित्र हैं, केवल ऊपर से इतने बड़े और विकराल दिखाई दे रहे हैं लेकिन अंदर से खाली और फुसफुसे हैं।’कुश को समझ में नहीं आया,
‘पर्यावरण-मित्र पटाखे...किस प्रकार के?’ ‘ये पटाखे कागज़ के बने हैं और इनके अंदर बारूद के स्थान पर सूखी घासफूस और कचरा भरा हुआ है.. जलने पर उसमें सिर्फ रोशनी होगी, धमाके नहीं।’ कुश की आंखों में कौतूहल बढ़ता जा रहा था। ‘विश्वास नहीं हो रहा हो, तो जलाकर दिखाऊं?’- भूतराज ने कहा, तो कुश ने दोनों कानों में उंगलियां डाल लीं।
‘एक राज़ की बात बताऊं, हमें भी पटाखों की कर्कश आवाज़ अच्छी नहीं लगती, उनसे डर लगता है’- भूतराज ने कहा। कुश हैरान हो गया- ‘भूत होकर डर!!’‘यहां पर जितने भी भूत देख रहे हो ये सभी पटाखों से हुई दुर्घटना में मारे गए थे।’- भूतराज ने रहस्य उजागर किया।‘हैं..!!’ कुश का मुंह खुला रह गया।
‘हम सब या तो आतिशबाज़ी से हुई दुर्घटना में मारे गए हैं या पटाखों के कारखानों में काम करते हुए और उसी का फल भुगत रहे हैं.. साथ ही पर्यावरण की क्षति का ध्यान रख रहे हैं’- भूतराज ने भावुक स्वर में कहा। कुश को यकीन हो गया कि ये भूतगण सच बोल रहे हैं। उसका भय कम होने लगा।
वह सोचने लगा.. अब मैं भी अपने घर पर्यावरण के लिए अच्छे पटाखे छोडूंगा और दोस्तों को भी कहूंगा। क्या सोचने लगे, मिठाई खाओगे?’- भूतराज ने पूछा। ‘कहीं आपकी मिठाई भी पटाखों की तरह.!!’, कहते हुए कुश ने वाय अधूरा छोड़ दिया। ‘नहीं भाई हमारी मिठाई बिल्कुल अच्छी है। ठीक वैसी ही जैसी तुम लोग खाते हो’- कहते हुए भूतराज ने एक भूत को मिठाई लाने भेज दिया।
मोटे तौर पर यह माना जाता है कि एक समय (4 अरब, 5 करोड़ से भी •यादा साल पहले) जीवन सिर्फ समुद्र और ताज़े पानी में ही था। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पृथ्वी की अपेक्षा समुद्र में अभी भी अधिक जीव निवास करते हैं। समुद्र में जीव-जंतुओं की दो लाख से भी •यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। समुद्री जीव अधिकतर हल्के या उथले पानी में पाया जाता है, जहां कि प्रकाश पहुंच पाता है और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हो पाती है।
फिर भी अधिकांश समुद्र में बहुत कम ही जीवन होता है। कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही भरपूर जीवन होता है और इन क्षेत्रों में मानव ने पहले से ही मत्स्य-क्षेत्र (मछली पकड़ने की जगह) बना रखे हैं। लहरों का उतार-चढ़ाव विश्व के कई हिस्सों में अलग-अलग होता है और संभवत: यही कारण है कि कई वर्ष मत्स्य उत्पादन अच्छा होता है, तो कई वर्ष कम।
समुद्री जीव और पौधे तरंगित जल में जीवित रहने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते हैं। गहरे समुद्र में रहने वाले जीव अपना संपूर्ण जीवन पानी में गति करते हुए बिताते हैं। तैरते रहने से ही वे अंधेरी गहराई में धंसने से बचे रहते हैं।
यह ज्ञात हुआ है कि कई प्रजातियां प्रकाश की बदलती स्थिति के चलते कई सौ फुट ऊध्र्वाधर तैरती रहती हैं, जबकि कई अन्य प्रजातियां गहरे दिपावली के दिन कुश को आतिशबाज़ी करने में विशेष आनंद आ रहा था। अचानक ऊपर पेड़ से एक चिड़िया घायल होकर उसके पास आकर गिर गई, शायद पटाखों की किसी िचंगारी ने उसके पंख झुलसा दिए थे।
कुश ने आहिस्ता से चिड़िया को उठाकर अपने हथेली पर रखा और हौले-हौले सहलाने लगा। देखते ही देखते वह चिड़िया स्वस्थ होकर हाथ से फिसली और एक खूबसूरत परी के रूप में बदल गई। ‘तुमने मेरी जान बचाई है बोलो क्या चकहते हो!’- परी ने पूछा। इस अप्रत्याशित कृपा से कुश दुविधा में पड़ गया कि वह क्या मांगे? ‘चलो मैं तुम्हारी मदद करती हूं, बोलो क्या चाहिए... पटाखों का ढेर, मिठाई का पहाड़ या नए वस्त्रों का खज़ाना??’-परी ने पूछा। नहीं इनमें से कुछ नहीं’- कुश ने स्पष्ट इंकार किया।
परी अचरज में पड़ गई, ‘फिर?’ कुश ने सकुचाते हुए कह दिया, ‘मैं भूतों की दीपावली देखना चाहता हूं।’ परी के आश्चर्य में और वृद्धि हो गई। ‘यह कैसी मांग हुई कुश, तुम डरोगे नहीं??’ ‘नहीं.’- कुश बोला। ‘ठीक है, तुम्हारी मर्ज़ी।’- कहते हुए कुछ ही देर में परी ने उसे भूतलोक में पहुंचा दिया। वहां का अद्भुत नज़ारा देख कुश स्तध रह गया।
आशा के अनुरूप वहां पटाखों का जखीरा था। बड़े-बड़े ड्रम के बराबर बने हुए बम, भीमकाय रस्सीबम, विशालकाय फुलझड़ियां और फुटबॉल के समान अनार.. उनके आकार-प्रकार देखकर कुश की आंखें फटी की फटी रह गईं।
कुश जिस विशाल पीपल के पेड़ पर बैठकर यह दृश्य देख रहा था, उसके ठीक नीचे ही आतिशबाज़ी का कार्यक्रम संपन्न होना था। नीचे भूतराजा के नेतृत्व में अनेक भूतगण आतिशबाज़ी करने को उत्सुक दिखाई दे रहे थे। अचनाक कुश के हाथ की पकड़ ढीली हो गई और वह धड़धड़ाते हुए भूतराज के पैरों पर गिर पड़ा। उसे आसमान से गिरते देख सभी भूतगण चौंक गए।
भूतराज ने हंसते हुए कहा, ‘हम सबको डराते हैं और आज इस जीवित प्राणी ने हमें डरा दिया।’ कुश ने साहस जुटाकर कहा, ‘मैं आप सभी को दीपावली की बधाई देने और आपकी दिवाली देखने यहां आया था।’‘यह तो खुशी की बात है जीवित प्राणी, तुम सही समय पर आए। हमारा कार्यक्रम शुरू होने वाला है’- भूतराज बोले।
‘एक बात का डर लग रहा है भूत अंकल, आपके इतने बड़े-बड़े पटाखों की कानफोड़ू आवाज़ मेरे छोटे-छोटे कान कैसे सहन कर पाएंगे? कहीं कान के पर्दे फट तो नहीं जाएंगे।’- कुश ने आशंका व्यक्त की। ‘कानों में रुई ठूंस लो’- एक भूत ने सलाह दी।
कुश सोच में पड़ गया, तो भूतराज खिलखिलाते हुए बोला, ‘हम तो मज़ाक कर रहे थे।’ ‘मज़ाक!!! मैं कुछ समझा नहीं’- कुश ने पूछना चाहा। भूतराज फिर खिलखिला पड़े, ‘अरे बेटे, ये सारे पटाखे नकली हैं या यूं समझ लो कि पर्यावरण-मित्र हैं, केवल ऊपर से इतने बड़े और विकराल दिखाई दे रहे हैं लेकिन अंदर से खाली और फुसफुसे हैं।’कुश को समझ में नहीं आया,
‘पर्यावरण-मित्र पटाखे...किस प्रकार के?’ ‘ये पटाखे कागज़ के बने हैं और इनके अंदर बारूद के स्थान पर सूखी घासफूस और कचरा भरा हुआ है.. जलने पर उसमें सिर्फ रोशनी होगी, धमाके नहीं।’ कुश की आंखों में कौतूहल बढ़ता जा रहा था। ‘विश्वास नहीं हो रहा हो, तो जलाकर दिखाऊं?’- भूतराज ने कहा, तो कुश ने दोनों कानों में उंगलियां डाल लीं।
‘एक राज़ की बात बताऊं, हमें भी पटाखों की कर्कश आवाज़ अच्छी नहीं लगती, उनसे डर लगता है’- भूतराज ने कहा। कुश हैरान हो गया- ‘भूत होकर डर!!’‘यहां पर जितने भी भूत देख रहे हो ये सभी पटाखों से हुई दुर्घटना में मारे गए थे।’- भूतराज ने रहस्य उजागर किया।‘हैं..!!’ कुश का मुंह खुला रह गया।
‘हम सब या तो आतिशबाज़ी से हुई दुर्घटना में मारे गए हैं या पटाखों के कारखानों में काम करते हुए और उसी का फल भुगत रहे हैं.. साथ ही पर्यावरण की क्षति का ध्यान रख रहे हैं’- भूतराज ने भावुक स्वर में कहा। कुश को यकीन हो गया कि ये भूतगण सच बोल रहे हैं। उसका भय कम होने लगा।
वह सोचने लगा.. अब मैं भी अपने घर पर्यावरण के लिए अच्छे पटाखे छोडूंगा और दोस्तों को भी कहूंगा। क्या सोचने लगे, मिठाई खाओगे?’- भूतराज ने पूछा। ‘कहीं आपकी मिठाई भी पटाखों की तरह.!!’, कहते हुए कुश ने वाय अधूरा छोड़ दिया। ‘नहीं भाई हमारी मिठाई बिल्कुल अच्छी है। ठीक वैसी ही जैसी तुम लोग खाते हो’- कहते हुए भूतराज ने एक भूत को मिठाई लाने भेज दिया।
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