गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

ऐसे हुआ शिव का नंदी अवतार

शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर अयोनिज एवं मृत्युहीन पुत्र का वरदान मांगा। इंद्र ने इसमें असर्मथता प्रकट की तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा।

तब शिलाद ने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया उनके ही समान मृत्युहीन तथा अयोनिज पुत्र की मांग की।
भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। एक दिन भगवान शंकर द्वारा भेजे गये मित्रा-वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आए। उन्होंने नंदी को देखकर कहा कि नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए व दर्शन देकर कहा- वत्स नंदी! तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? तुम अजर-अमर, अदु:खी हो।
मेरे अनुग्रह से तुम्हे जरा, जन्म और मृत्यु किसी से भी भय नहीं होगा। भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों व गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर की प्रतिज्ञा है कि जहां पर नंदी का निवास होगा वहां उनका भी निवास होगा।

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