शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

इस तरह करें सीता नवमी का पूजन

वैशाख शुक्ल नवमी को माता सीता का प्राकट्य हुआ था। इस दिन उनके निमित्त व्रत व पूजन करना चाहिए। पूजन की विधि इस प्रकार है-
सीता नवमी के दिन व्रती (व्रत करने वाला) को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर माता जानकी के निमित्त व्रत व पूजन का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद उसे एक चौकी पर सीतारामजी सहित जनकजी, माता सुनयना, कुल पुरोहित शतानंदजी, हल और पृथ्वी माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके उनका पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश एवं माता अंबिका का पूजन करके माता जानकी का पूजन करना चाहिए। पूजन में सर्वप्रथम इन ध्यान मंत्रों को उच्चारण करना चाहिए-

माता जानकी का ध्यान-

ताटम मण्डलविभूषितगण्डभागां,

चूडामणिप्रभृतिमण्डनमण्डिताम्।

कौशेयवस्त्रमणिमौक्तिकहारयुक्तां,

ध्यायेद् विदेहतनयां शशिगौरवर्णाम्।।

पिता जनक का ध्यान-

देवी पद्मालया साक्षादवतीर्णा यदालये।

मिथिलापतये तस्मै जनकाय नमो नम:।।

माता सुनयना का ध्यान-

सीताया: जननी मातर्महिषी जनकस्य च।

पूजां गृहाण मद्दतां महाबुद्धे नमोस्तु ते।।

कुल पुरोहित शतानंदजी का ध्यान-

निधानं सर्वविद्यानां विद्वत्कुलविभूषणम्।

जनकस्य पुरोधास्त्वं शतानन्दाय ते नम:।।

हल का ध्यान

जीवनस्यखिलं विश्वं चालयन् वसुधातलम्।

प्रादुर्भावयसे सीतां सीत तुभ्यं नमोस्तु ते।।

पृथ्वी का ध्यान

त्वयैवोत्पदितं सर्वं जगतेतच्चराचरम्।

त्वमेवासि महामाया मुनीनामपि मोहिनी।।

त्वदायत्ता इमे लोका: श्रीसीतावल्लभा परा।

वंदनीयासि देजवानां सुभगे त्वां नमाम्यहम्।।

तदुपरांत पंचोपचार से सभी का पूजन करना चाहिए। अंत में इस मंत्र से आरती करना चाहिए-

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्।

आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदा भव।।

परिकरसहित श्रीजानकीरामाभ्यां नम:।

कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।।

अंत में पुष्पांजलि अर्पित कर और क्षमायाचना करके जानकी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

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