शनिवार, 18 जून 2011

...और पांडवों ने शुरू की तीर्थयात्रा

युधिष्ठिर व अन्य भाइयों ने सारे तीर्थों का महत्व सुनने के बाद। युधिष्ठिर व सभी पाण्डव जहां रहने लगे वहां एक दिन लोमेश मुनि आए। लोमेश मुनि के आने पर सारे पांडव उनकी आवभगत में जुट गए। सेवा व सत्कार हो जाने के बाद युधिष्ठिर ने पूछा मुनि किस उद्देश्य से आपका आगमन कैसे हुआ है? लोमेश मुनि ने कहा मैं सब लोकों में घूमता रहता हूं। एक बार में इन्द्रलोक पहुंचा। वहां मैंने देखा कि देवसभा मे देवराज इन्द्र के आधे सिंहासन पर बैठे हुए हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। देवराज इन्द्र ने अर्जुन की ओर देखकर मुझसे कहा कि देवर्षे तुम पांडवों के पास जाओ। उन्हें अर्जुन का कुशल-मंगल सुनाओ। इसीलिए मैं तुम लोगों के पास आया हूं।
मैं तुम लोगों की हित बात करता हूं। तुम सब ध्यान से सुनों। तुम लोगों की अनुमति लेकर अर्जुन जिस अस्त्र विद्या को प्राप्त करने गए थे। वह उन्होंने शिवजी से प्राप्त कर ली थी। उसके प्रयोग की विधि भी अर्जुन ने सीख ली है। इन्द्र ने तुमसे कहने के लिए यह संदेश दिया है कि युधिष्ठिर तुम्हारा भाई अस्त्र विद्या में निपुण हो गया है और अब उसे यहां निवातकवच नामक असुरों को मारना है। यह काम इतना कठिन है कि बड़े-बड़े देवता भी नहीं कर सकते। यह काम करके अर्जुन तुम्हारे पास चला जाएगा। तुम तपस्या करके आत्मबल प्राप्त करो। तुम जाओ और तप करों क्योकि तप से बड़ी कोई वस्तु नहीं है। युधिष्ठिर ने उनसे कहा आपकी बात सुनकर मुझे बहुत सुख मिला। देवराज इन्द्र ने आपके द्वारा जो मुझे तीर्थ यात्रा करने का आदेश दिया है। मैं उसका पालन करना चाहता हूं। अब आज्ञा हो तो मैं आपके साथ-साथ तीर्थयात्रा करने के लिए चलूंगा। उसके बाद वे लोग तीर्थ यात्रा पर चल पड़े।

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