मंगलवार, 28 जून 2011

क्या आप जानते हैं-

इंसान का सबसे बड़ा शिक्षक कौन है?
दुखों की पाठशाला में पढ़ा-लिखा और पका व्यक्ति अनायास ही सर्वश्रेष्ठ बन जाता है। मनुष्य जितना सुविधाओं और सुख-साधनों में रहकर नहीं सीखता उससे अधिक कठिनाइयां और अभाव ही उसे तराशती और मांजती और सुयोग्य बनाती हैं। इस बात को और भी आसानी से समझने के लिये आइये चलते हैं महाभारत की एक रोचक घटना की ओर...
द्रोणाचार्य कौरव सेना के सेनापति बने। पहले दिन का युद्ध वे बड़े कोशल के साथ लड़े, फिर भी उस दिन की विजय अर्जुन के हाथ ही लगी। यह देखकर दुर्योधन बड़ा निराश हुआ। हताशा और क्रोध से भरी मन:स्थिति के साथ वह गुरु द्रोण के पास गया और बोला - गुरुदेव! अर्जुन तो आपका शिष्य है, आप तो उसे एक क्षण में परास्त कर सकते हैं। फिर ऐसा कैसे हुआ? द्रोणाचार्य गंभीर मुद्रा में बोले- तुम ठीक कहते हो पर एक तथ्य नहीं जानते। अर्जुन मेरा शिष्य अवश्य है, पर उसका सारा जीवन कठिनाइयों से सघंर्षो में, वनवास में, अज्ञातवास में बीता है। मैनें राजसी सुख में जीवन बिताया है। कुधान्य खाया है। विपत्ति ने ही उसे मुझसे भी अधिक योग्य बना दिया है।
सबक यह कि जीवन में आने वाली कठिनाइयों या मुसीबतों को तप या व्यायाम समझकर सदा हंसकर सामना करना चाहिये। ऐसा करने से व्यक्ति बेहद शक्तिशाली और अजैय यौद्धा बन जाता है। सुख नहीं दु:ख ही हमारा सबसे बड़ा शिक्षक है।

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