शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है : डॉ अजय सहाय

0 विदेशों में शिविर लगाकर करते हैं इलाज , मिलता है प्यार
0 हर रोज नया इतिहास बनता है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में
0 इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ
0 झोला छाप डाकटरों पर होना चाहिए कार्रवाई

सक्षिप्त परिचय
नाम       -अजय मोहन सहाय
पेशा         मधुमेह ,ह्रदय रोग विशेषज्ञ
संस्थान    सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल
योग्यता    एमबीबीएस , एमडी सहित 18 डिगी
अवार्ड       शैक्षणिक साहित्य , डाक्टर में 50 से अधिक अवार्ड
            सीबी राय अवार्ड सीएम के हाथों
            हेल्थ केयर एक्सीलेंस अवार्ड
            दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान

मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है। डाकटरों को भगवान का दूत माना जाता है जो मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मरीज ठीक होकर हँसते हुए जाते है अगर मरीज की मौत हो जाए तो परिजनों का व्यवहार बदल जाता इससे काफी दुख होता है ,क्योकि डाक्टर अपना धर्म निभाता है। यह कहना है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल के संचालक एवं मधुमेह ,हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ अजय मोहन सहाय का। वे
कहते है कि इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ है। डॉ सहाय जितने अच्छे विशेषज्ञ है उतने ही अच्छे समाजसेवक भी है। गरीब मरीजों को भी ठीक कर दुआ बटोरते है। पैसा उनके लिए मायने नहीं रखता, सेवा को डॉ सहाय कर्म मानते हैं। सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में हर रोज नया इतिहास बनता है। देश विदेश से मरीज आते है और हँसते हुए घर को लौटते हैं। पाकिस्तान में शिविर लगाकर इलाज करने वाले डॉ सहाय कहते हैं कि सुनने और देखने में फर्क होता है। पाकिस्तान के लोगो से उन्हें बहुत प्यार मिला और भाईचारा भी देखने को मिला। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की।
0 डाकटरों को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है। मौजूदा परिवेश में डाकटर इसे कितना साकार कर पाते हैं ?
00 डाकटर मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मेरे लिए मरीजों का प्यार और भगवान का आशीर्वाद सच्ची दौलत है। मरीज अच्छा होकर हँसते हुए घर लौटे यही हम चाहतें है ,पैसा कोई मायने नहीं रखता।
0 कभी- कभी मरीजों के परिजनों के बिना वजह गुस्से का शिकार भी होना पड़ता?
00 हाँ , यह तो सहना पड़ता है। मरीज इलाज के लिए आता है और जब केस ज्यादा बिगड़ा हुआ होता है । चाह कर भी डाकटर उन्हें नहीं बचा पातेतो मरीज की मौत के बाद परिजनों का व्यवहार अचानक बदल जाता है। तब बहुत दुख होता है। हम अपना सेवा धर्म पूरी ईमानदारी से निभाते हैं । मौत शाश्वत सत्य है। एक चूक से बददुआ मिलाने लगती है जो तीर की तरह चुभती है।
0 क्या आप इस बात से सहमत है कि अस्पताल अब व्यवसाय का रूप ले लिया है?
00 डाक्टर तो भगवान का दूत होता है। आजकल डाक्टर सेवा देने वाले हो गए हैं और मरीज उपभोक्ता। यही कारण है कि डाक्टर और मरीज का रिश्ता कमजोर हो गया है। झोला छाप डाक्टरों के कारण यह स्थिति बनी है।
0 झोला छाप डाक्टरों पर शिकायतों के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती?
00 सरकार का मापदंड अलग अलग है। अच्छे और रजिस्टर्ड डाक्टरों पर जऱा सी चूक में कार्रवाई हो जाती है और सरकार झोला छाप डाकटरों पर कोई कार्रवाई नहीं करती क्योकि उनके खिलाफ कोई सबूत बही होता फिर वो रजिस्टर्ड भी नहीं होते। करोडो रुपया फूंककर डाक्टर बनने वाले पर तो सरकार की नजऱ हमेशा दुनिया भर के क़ानून लाड दिए गए है। उपभोक्ता फोरम भी जुर्माना ठोकने में पीछे नहीं होता।
0 मुख्यमंत्री बीमा योजना अस्पताल और मरीजों के लिए कितना कारगर है?
00 योजना सही है पर क्रियान्वयन गलत है। जागरूकता की कमी है। प्रक्रिया इत्तनी जटिल है कि अस्पताल को नुकसान उठाना पड़ता है। मरीज तो पूरा इलाज कराने के बाद कार्ड बता देते है पर उन्हें प्रक्रिया के बारे में पता नहीं होता है। कार्ड ना लो तो दुष्प्रचार करते हैं।
0 आपके अस्पताल में गरीबों के लिए क्या क्या सुविधाएं हैं?
00 गरीबों के लिए हमारे यहां कोई केश काउंटर नहीं है, उनके इलाज में हम देर नहीं करते। हमारी मंशा है कि गरीब मरीज ठीक होकर हँसते हुए घर जाए। उनकी दुआ ही मेरे लिए सबसे बड़ी दौलत है।
0 आप विदेशो में भी शिविर लगाकर मधुमेह की इलाज करते है। उसके बारे में बताएं?
00 हाँ मैंने नेपाल में भूकम्प पीडि़तों के लिए काम किया है। पाकिस्तान में 12 जगहों पर शिविर लगाकर इलाज किया। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 6 गरीब बच्चों का सफल इलाज किया है। काफी दुआ मिला।
0 पाकिस्तान के लोगो के मन में भारत के प्रति कैसा रवैया देखने को मिला?
00 देखने और सुनने में बहुत ही अंतर है। पाकिस्तान के लोगो के मन में भाई चारा है। सुनाने के विपरीत दिलों से भारत के लोगो से अलग नहीं है। बहुत ही यादगार पल रहा है पाकिस्तान का शिविर।
0 गाँवों में कोई डाकटर जाना नहीं चाहते इसके कारण क्या  है?
00 सरकार की व्यवस्था ठीक नहीं है। बिना साधन के डाकटर वहां कैसे जाकर अपना काम करेंगे। तनखा भी कम है और असुविधाएं नहीं है। पढ़े लिखे डाक्टरों पर बंदिश बहुत है लेकिन उनकी सुविधाओं की किसी को चिंता नहीं है।

मौत के मुंह से वापस लाया 
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ग्राम बेलहरी की 21 वर्षीय उमा कुर्रे को सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल से ना केवल जीवनदान मिली बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे भी सकुशल है। उमा को गंभीर अवस्था में जब अस्पताल लाया गया तब उसके तमाम अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। सारे डाक्टर जवाब दे चुके थे। सबके मना करने के बाद भी अ डॉ सहाय ने इलाज किया और उमा हँसते हुए घर के लिए विदा हुई और अस्पताल को दे गयी ढेर सारी दुआएं।

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