स्थानीय कलाकारों को लेकर सुखद अनुभव हुआ है
नायक ,खलनायक ,लेखक ,निर्देशक साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, पटकथा जैसे अनेक कला किसी एक व्यक्ति में हो ऐसे बिरले ही होते है और यह सब कला है डॉ अजय मोहन सहाय में। छत्तीसगढ़ी फिल्मो का वे एक आधार स्तम्भ है। उन्होंने एक नहीं कई भाषाओं की फिल्मो में अभिनय कर सबके सामने एक चुनौती पेश की है। पांच भाषाओं में अभिनय करना भी एक रिकार्ड है। जितने अच्छे वे मधुमेह व् हृदयरोग विशेषज्ञ है उतने ही बेहतर कलाकार है। डॉ सहाय को कला विरासत में मिली है। माँ से कला मिली है तो पिता से शिक्षा। छालीवुड में डॉ सहाय एक ऐसे नायक खलनायक लेखक ,निर्देशक है जिन्होंने फिल्म उद्योग पर हर भूमिका में एकछत्र राज कर रहे हैं और अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। उनके स्वाभाविक अभिनय और प्रतिभा की
पराकाष्ठा ही थी कि लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं।
उन्होंने जितने भी फिल्मों में रोल किया उसे देखकर ऐसा लगता है कि उनके द्वारा अभिनीत पात्रों का किरदार केवल वे ही निभा सकते थे। उनकी अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जितनी भी फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। रूपहले पर्दे पर डॉ सहाय ने जितने रोल किए उनमें वह हर बार नए तरीके से संवाद बोलते नजर आए। अभिनय करते समय वे उस रोल में पूरी तरह डूब जाते हैं। परिवर्तन धारावाहिक में स्थानीय कलाकारों को लेना वे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी मानते है। समय की कदर नहीं करने वालों से डॉ सहाय काफी निराश होते हैं। वे कहते है कि जूनून से अच्छी फिल्म नहीं बनती। कहानी, संवाद, निर्देशन, सब कुछ फिल्मो में होनी चाहिए। पैसों से ज्यादा समय की कीमत होती है। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है। पेश है बातचीत के संपादित अंश।
आपको फिल्मो में रुचि कैसे हुई
बचपन से ही रुचि रही है। स्कूलों में ड्रामा, नौटंकी देखकर मैंने भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया। ढेरों पुरूस्कार जीते। और आज सबके सामने हूँ।
कला से लगाव का कारण क्या है
कला मुझे विरासत में मिली है। माँ अच्छी गायिका रही है और पिता स्वर्गीय आनंद मोहन सहाय से शिक्षा मिली है। साफ है मुझमे कला कूट कूट कर भरा हुआ है।
आप अपनी भूमिका में जान कैसे डालते है
मैं अपनी भूमिका को जीवंत बनाकर निभाता हूँ। नायक हो या खलनायक हर भूमिका में मैंने पूरी तरह से डूबकर किया है। मेरी कोशिश रहती है की मेरी हर कला को दर्शक पसंद करें।
अब तक की भूमिका में आपको सबसे बड़ी चूनौती कौन सी लगी?
विलेन की भूमिका निभाना शुरू में मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। बाप बड़े ना भैया सबसे बड़े रुपैया में जब मुझे विलेन की भूमिका मिली तो वो मेरे लिए एक कड़ी परीक्षा थी और मैंने स्वीकारा। उसमे सब कुछ था घृणा से प्रेम तक। मैंने पूरी तन्मयता से अभिनय किया। मुझे खुशी है लोगो ने बेहद पसंद किया।
आगे क्या विलेन की भूमिका ही निभाते रहेंगे।
नहीं वो तो एक पड़ाव है ,आगे मंजिल तो बहुत है।
आपने कई प्रकार का अभिनय किया है। पहले नायक थे फिर खलनायक की भूमिका नजर आये। आपका पसंदीदा रोल
हर कला मुझे पसंद है। चाहे नायक हो या खलनायक। लेखन हो या निर्देशन। समय के साथ साथ सब अच्छा है। मैं हर भूमिका को पसंद करता हूँ।
कभी आपको इस क्षेत्र में निराशा हुई है
हुई है , समय की कदर नहीं करने वालों से मुझे घोर निराशा होती है। मुझे काम का नशा है और लोग जहां भी बुलाते है मै समय पर पंहुच जाता हूँ। और जब दिन भर बैठे होते है और सीन नहीं होता है तो बहुत ही दुख होता है । क्योकि मैं मधुमेह और हृदयरोग विशेषज्ञ हूँ। अपना कीमती समय छोड़कर जब लोकेशन पर जाता हूँ और डायरेक्टर समय की कीमत नहीं जानता तो निराशा होती है।
और आप बहुत उत्साहित कब महसूस किये हैं
विलेन की भूमिका में अपने आप को देखकर मैं बहुत ही रोमांचित हुआ था। जब अपना काम देखा तो मुझे लगा की विलेन की ही भूमिका करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ी फिल्मे थियेटरों में क्यों नहीं टिक पाती
पैसे और जूनून से अच्छी फिल्मे नहीं बनती। कहानी अच्छी हो ,फिल्मांकन अच्छा हो, निर्देशन अच्छा हो तो फिल्मे जरूर चलेंगी। फिल्म नहीं चलने के लिए आप दर्शकों को दोष नहीं दे सकते। थियेटर नहीं है यह कहना गलत ,है अच्छी फिल्मे दे ,जनता जानती है सब कुछ। चंदा लेकर फिल्म बनाने वाले कभी सफल नहीं हो सकते।
रील लाइफ और रियल लाइफ में आप क्या अंतर पाते हैं?
रिफ्लेक्ट होता है। कही ना कही परछाई आ ही जाती है।
आपकी कोई ऐसी तमन्ना हो जो आप पूरा होते हुए देखना चाहते हैं?
एक बार अच्छी फिल्म बनाना चाहता हूँ। उसमे सभी लोकल कलाकार होंगे। यही तमन्ना है । फिल्म चली तो आगे भी बनाता रहूंगा। स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान करने की ख्वाहिश है।
नायक ,खलनायक ,लेखक ,निर्देशक साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, पटकथा जैसे अनेक कला किसी एक व्यक्ति में हो ऐसे बिरले ही होते है और यह सब कला है डॉ अजय मोहन सहाय में। छत्तीसगढ़ी फिल्मो का वे एक आधार स्तम्भ है। उन्होंने एक नहीं कई भाषाओं की फिल्मो में अभिनय कर सबके सामने एक चुनौती पेश की है। पांच भाषाओं में अभिनय करना भी एक रिकार्ड है। जितने अच्छे वे मधुमेह व् हृदयरोग विशेषज्ञ है उतने ही बेहतर कलाकार है। डॉ सहाय को कला विरासत में मिली है। माँ से कला मिली है तो पिता से शिक्षा। छालीवुड में डॉ सहाय एक ऐसे नायक खलनायक लेखक ,निर्देशक है जिन्होंने फिल्म उद्योग पर हर भूमिका में एकछत्र राज कर रहे हैं और अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। उनके स्वाभाविक अभिनय और प्रतिभा की
पराकाष्ठा ही थी कि लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं।
उन्होंने जितने भी फिल्मों में रोल किया उसे देखकर ऐसा लगता है कि उनके द्वारा अभिनीत पात्रों का किरदार केवल वे ही निभा सकते थे। उनकी अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जितनी भी फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। रूपहले पर्दे पर डॉ सहाय ने जितने रोल किए उनमें वह हर बार नए तरीके से संवाद बोलते नजर आए। अभिनय करते समय वे उस रोल में पूरी तरह डूब जाते हैं। परिवर्तन धारावाहिक में स्थानीय कलाकारों को लेना वे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी मानते है। समय की कदर नहीं करने वालों से डॉ सहाय काफी निराश होते हैं। वे कहते है कि जूनून से अच्छी फिल्म नहीं बनती। कहानी, संवाद, निर्देशन, सब कुछ फिल्मो में होनी चाहिए। पैसों से ज्यादा समय की कीमत होती है। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है। पेश है बातचीत के संपादित अंश।
आपको फिल्मो में रुचि कैसे हुई
बचपन से ही रुचि रही है। स्कूलों में ड्रामा, नौटंकी देखकर मैंने भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया। ढेरों पुरूस्कार जीते। और आज सबके सामने हूँ।
कला से लगाव का कारण क्या है
कला मुझे विरासत में मिली है। माँ अच्छी गायिका रही है और पिता स्वर्गीय आनंद मोहन सहाय से शिक्षा मिली है। साफ है मुझमे कला कूट कूट कर भरा हुआ है।
आप अपनी भूमिका में जान कैसे डालते है
मैं अपनी भूमिका को जीवंत बनाकर निभाता हूँ। नायक हो या खलनायक हर भूमिका में मैंने पूरी तरह से डूबकर किया है। मेरी कोशिश रहती है की मेरी हर कला को दर्शक पसंद करें।
अब तक की भूमिका में आपको सबसे बड़ी चूनौती कौन सी लगी?
विलेन की भूमिका निभाना शुरू में मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। बाप बड़े ना भैया सबसे बड़े रुपैया में जब मुझे विलेन की भूमिका मिली तो वो मेरे लिए एक कड़ी परीक्षा थी और मैंने स्वीकारा। उसमे सब कुछ था घृणा से प्रेम तक। मैंने पूरी तन्मयता से अभिनय किया। मुझे खुशी है लोगो ने बेहद पसंद किया।
आगे क्या विलेन की भूमिका ही निभाते रहेंगे।
नहीं वो तो एक पड़ाव है ,आगे मंजिल तो बहुत है।
आपने कई प्रकार का अभिनय किया है। पहले नायक थे फिर खलनायक की भूमिका नजर आये। आपका पसंदीदा रोल
हर कला मुझे पसंद है। चाहे नायक हो या खलनायक। लेखन हो या निर्देशन। समय के साथ साथ सब अच्छा है। मैं हर भूमिका को पसंद करता हूँ।
कभी आपको इस क्षेत्र में निराशा हुई है
हुई है , समय की कदर नहीं करने वालों से मुझे घोर निराशा होती है। मुझे काम का नशा है और लोग जहां भी बुलाते है मै समय पर पंहुच जाता हूँ। और जब दिन भर बैठे होते है और सीन नहीं होता है तो बहुत ही दुख होता है । क्योकि मैं मधुमेह और हृदयरोग विशेषज्ञ हूँ। अपना कीमती समय छोड़कर जब लोकेशन पर जाता हूँ और डायरेक्टर समय की कीमत नहीं जानता तो निराशा होती है।
और आप बहुत उत्साहित कब महसूस किये हैं
विलेन की भूमिका में अपने आप को देखकर मैं बहुत ही रोमांचित हुआ था। जब अपना काम देखा तो मुझे लगा की विलेन की ही भूमिका करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ी फिल्मे थियेटरों में क्यों नहीं टिक पाती
पैसे और जूनून से अच्छी फिल्मे नहीं बनती। कहानी अच्छी हो ,फिल्मांकन अच्छा हो, निर्देशन अच्छा हो तो फिल्मे जरूर चलेंगी। फिल्म नहीं चलने के लिए आप दर्शकों को दोष नहीं दे सकते। थियेटर नहीं है यह कहना गलत ,है अच्छी फिल्मे दे ,जनता जानती है सब कुछ। चंदा लेकर फिल्म बनाने वाले कभी सफल नहीं हो सकते।
रील लाइफ और रियल लाइफ में आप क्या अंतर पाते हैं?
रिफ्लेक्ट होता है। कही ना कही परछाई आ ही जाती है।
आपकी कोई ऐसी तमन्ना हो जो आप पूरा होते हुए देखना चाहते हैं?
एक बार अच्छी फिल्म बनाना चाहता हूँ। उसमे सभी लोकल कलाकार होंगे। यही तमन्ना है । फिल्म चली तो आगे भी बनाता रहूंगा। स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान करने की ख्वाहिश है।
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