दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला
बंतो अपने पति संता से बोली: आज मैंने दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला को देखा.
संता: अच्छा.
बंतो: वह इतनी सुंदर लग रही थी कि मैं बता नहीं सकती.
संता: फिर क्या हुआ?
बंतो - फिर क्या? नज़र लग जाती इसलिए मैं शीशे के सामने से हट गई.
बच्चों की मासिक पत्रिका भोपाल से प्रकाशित , सम्पादक -अरुण बंछोर, उपसंपादक -ओमप्रकाश बंछोर
रविवार, 8 जुलाई 2012
रविवार, 1 जुलाई 2012
महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?
.भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद नील के बाद धृष्टकेतु थे। धृष्टकेतु के साथ चेदि, काशि और करूष एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहां ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रोपदी के पांच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान थे। इसके बाद युद्ध आरंभ हुआ। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गए। कौरवों ने एकाग्रचित्त होकर ऐसा युद्ध किया की पांडव सेना के पैर उखड़ गए। पांडव सेना में भगदड़ मच गई
भीष्म ने अपने बाणों की वर्षा तेज कर दी।सारी पांडव सेना बिखरने लगी। पांडव सेना का ऐसा हाल देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अगर इस तरह मोह वश धीरे-धीरे युद्ध करोगे तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर अर्जुन ने कहा केशव आप मेरा रथ पितामह के रथ के पास ले चलिए। कृष्ण रथ को हांकते हुए भीष्म के पास ले गए। अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म का धनुष काट दिया।
भीष्मजी फिर नया धनुष लेकर युद्ध करने लगे। यह देखकर भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को बाणों की वर्षा करके खूब घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब देखा कि सब पाण्डवसेना कि सब प्रधान राजा भाग खड़े हुए हैं और अर्जुन भी युद्ध में ठंडे पढ़ रहे हैं तो तब श्रीकृष्ण नेकहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा।
जब कृष्ण कूद पड़े महाभारत के युद्ध में तो...
श्रीकृष्ण ने कहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा
इतना कहकर कृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। उसके किनारे का भाग छूरे के समान तीक्ष्ण था। भगवान कृष्ण बहुत वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी कांपने लगी। वे भीष्म की ओर बढ़े। वे हाथ में चक्र उठाए बहुत जोर से गरजे। उन्हें क्रोध में भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे।
उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्मजी बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं। भगवान को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। जैसे आंधी किसी वृक्ष को खींच लिए चली जाए, उसी प्रकार वे अर्जुन को घसीटते हुए आगे बढऩे लगे।अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए , आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए।
उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्मजी बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं। भगवान को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। जैसे आंधी किसी वृक्ष को खींच लिए चली जाए, उसी प्रकार वे अर्जुन को घसीटते हुए आगे बढऩे लगे।अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए , आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए।
शिव पूजा के इन 2 आसान उपायों से बरसती है शनि कृपा
पौराणिक प्रसंगों के मुताबिक शनि, शिव भक्ति से नवग्रहों में ऊंचा पद पाया। मान्यता यह भी है कि शनि, महादेव के आदेश का पालन कर प्राणियों को उनके कर्मों के मुताबिक दण्ड देते हैं।
यही कारण है कि शास्त्रों में बताए शिव उपासना के कुछ आसान उपाय कुण्डली में शनि दशा या दोष से जीवन में आ रही तमाम परेशानियों से राहत व मुक्ति पाने में भी अचूक माने गए हैं। जानिए शिव भक्ति का ऐसा ही एक सरल उपाय -
- शनिवार या सोमवार के दिन भगवान शिव को शिव षड़ाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय बोलते हुए जल से अभिषेक कर गंध, अक्षत, फूल चढ़ाएं। साथ ही खासतौर पर काले तिल अर्पित करें। शिव को सफेद मिठाई का भोग लगाकर घी के दीप से आरती कर शनि दशा के बुरे प्रभाव से मुक्ति की कामना करें।
- इसी तरह दूसरा उपाय है कि ऊपर बताए तरीके से शिव की पूजा कर पूजा में पंचाक्षरी या कोई भी शिव मंत्र या स्तुति बोलकर 108 आंकडे के फूल हर रोज अर्पित करें। खासतौर पर शनिवार और सोमवार का दिन न चूकें।
धार्मिक महत्व की दृष्टि से शनि दोष शांति का यह उपाय न केवल कलह और विवाद से मुक्त रखता है, बल्कि मानसिक सुख-शांति और सफलता की बाधाओं को दूर करने वाला है।
शिव पूजा के 3 खास संयोग!
हिन्दू धर्म के मुताबिक पूरी प्रकृति ही शिव का रूप है। वेदों में प्रकृति और मानव का गहरा संबंध बताया गया है। हिन्दू कैलेण्डर के पांचवे माह श्रावण यानी सावन माह में भी शिव आराधना का विशेष महत्व है। इस माह में खास तौर पर वर्षा के मौसम यानी जल तत्व की अधिकता होती है। इसलिए इस काल में शिव का जल से अभिषेक सुख, समृद्धि, संतान, धन, ज्ञान और लंबी उम्र के साथ तमाम भौतिक सुख देने वाला माना गया है। व्यावहारिक रूप से श्रावण या सावन माह में शिव की पूजा के रूप में प्रकृति की पूजा हो जाती है।
यही नहीं, सावन माह में शिव भक्ति के पीछे खास धार्मिक और ज्योतिषीय पहलू भी बताए गए हैं। जहां धार्मिक दृष्टि से देवभक्ति के अहम काल चातुर्मास के चार माहों का पहला माह सावन होता है। वहीं, पुराण प्रसंगों में अनेक शिव लीलाओं का संबंध इस माह से बताया गया है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक इस माह में श्रवण नक्षत्र का शुभ योग बनता है, जिसके कारण यह माह सावन भी पुकारा जाता है।
शिव भक्ति की इस अचूक घड़ी यानी सावन माह की शुरुआत इस बार 4 जुलाई से होगी। किंतु इस बार 4 जुलाई से पहले यानी 1 जुलाई से ही शिव भक्ति के 3 खास संयोग बने हैं। इससे 4 जुलाई से शुरू हो रहे सावन माह के पहले ही शिव भक्ति का रंग भक्तों पर चढ़ेगा। जानिए क्या बने हैं यह तीन शुभ संयोग -
- आज (1 जुलाई) प्रदोष तिथि है। प्रदोष तिथि पर शाम को शिव भक्ति व पूजा तमाम सांसारिक सुखों को देने वाली व हर दोष व कलह मिटाने वाली मानी गई है।
- 2 जुलाई चतुर्दशी तिथि भी शिव भक्ति को समर्पित है। इस दिन रात्रि में शिव भक्ति जीवन के हर दु:ख व कष्ट को दूर कर कामना पूरी करने वाली मानी गई है।
- 3 जुलाई यानी आषाढ़ पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के रूप में गुरु पूजा व सेवा को समर्पित है। भगवान शिव जगतगुरु पुकारे जाते हैं। शिव ही साक्षात ज्ञान स्वरूप देवता माने गए हैं। इनकी उपासना से मिलने वाला ज्ञान, विवेक व बुद्धि जीवन की तमाम मुश्किलों का अंत करती है। इसलिए गुरु पूर्णिमा शिव के महागुरु के स्वरूप की पूजा की अचूक घड़ी है।
इस तरह शिव भक्ति के पुण्य काल सावन माह के पहले बने इन 3 विशेष संयोगों में पूरी श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना, अभिषेक, जलाभिषेक व बिल्वपत्र चढ़ाने सहित उपासना के अनेक उपाय करना तमाम भौतिक सुखों को देने वाले साबित होंगे। इसलिए आज से ही शिव को मनाने के ये शुभ संयोग न चूक कर शिव भक्ति में रम सावन माह की शुरुआत करें।
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बुधवार, 27 जून 2012
इतनी मुरादें पूरी करे दे यह 1 ही चमत्कारी मंगल मंत्र!
हिन्दू धर्म में ग्रह-नक्षत्र भी देवता के रूप में पूजनीय है। खासतौर पर ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक कुण्डली में ग्रहों के अच्छे या बुरे प्रभाव इंसान के सुख-दु:ख नियत करते हैं। इसलिए देव उपासना की परंपराओं में हर दिन अलग-अलग ग्रहों की पूजा से ग्रहदोष शांति का महत्व बताया गया है।
इसी परंपरा में मंगलवार के दिन मंगल देव की पूजा से जीवन में आने वाली अनेक परेशानियों को दूर करने का महत्व है। क्रूर ग्रह मंगल की पूजा का शुभ प्रभाव व्यक्ति को साहसी बनाता है, वहीं रोग, शोक, बाधाओं को भी दूर कर देता है।
मंगलवार के दिन मंगल पूजा या ग्रह दोष शांति के उपायों में यहां बताया जा रहा मंगल मंत्र नीचे लिखी कामनाओं की पूर्ति या परेशानियों को दूर करने के लिए बहुत की शुभ माना गया है -
- भूमि या घर प्राप्ति
- विवाह में विलंब
- पुत्र कामना
- धन प्राप्ति
- लंबी आयु
- कर्ज से छुटकारा
- शत्रु बाधा
- योग्य जीवनसाथी की कामना
- सम्मान और प्रसिद्धि की कामना
- मंगल दोष शांति
- बीमारियों से छुटकारा
- ग्रह दोष से छुटकारा
- ऐश्वर्य की कामना
- मनचाही कामना सिद्धि
- विद्या प्राप्ति
- विघ्र-बाधाओं से छुटकारा
- नवग्रह दोष शांति
- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को पाने की कामना
मंगल मंत्र - ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
शास्त्रों में मंगल ग्रह की प्रतिमा की लाल सामग्रियों (लाल चंदन, लाल अक्षत, लाल वस्त्र, लाल अनाज, लाल रंग की फल या मिठाई का भोग आदि) से पूजा के बाद इस मंत्र का लाल आसन पर बैठ 40000 हजार संख्या में रुद्राक्ष माला से जप कामनासिद्धि करने वाला बताया गया है।
मुल्तानी मिट्टी से ऐसे निखारे चेहरे की रंगत
कहा जाता है कि मुल्तानी मिट्टी सौन्दर्य का खजाना है। ये नेचुरल कंडीशनर भी है और ब्लीच भी। ये सौन्दर्य निखारने का सबसे सस्ता और आयुर्वेदिक नुस्खा है आइए आज हम आपको बताते हैं मुल्तानी मिट्टी के कुछ ऐसे प्रयोग जो आपकी खूबसूरती को ओर ज्यादा निखार देंगे।
- आधा चम्मच संतरे का रस लेकर उसमें 4-5 बूंद नींबू का रस, आधा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, आधा चम्मच चंदन पाउडर और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिलाकर कर थोड़ी देर के लिए फ्रिज में रख दें। इसे चेहरे पर लगा कर 15-20 मिनट तक रखें। इसके बाद पानी से इसे धो दें। यह तैलीय त्वचा का सबसे अच्छा उपाय है। - अगर आपकी त्वचा ड्राई है तो काजू को रात भर दूध में भिगो दें और सुबह बारीक पीसकर इसमें मुल्तानी मिट्टी और शहद की कुछ बूंदें मिलाकर स्क्रब करें। - मुंहासों की समस्या से परेशान लोगों के लिए तो मुल्तानी मिट्टी सबसे कारगर इलाज है, क्योंकि मुल्तानी मिट्टी चेहरे का तेल सोख लेती है, जिससे मुहांसे सूख जाते हैं। - तैलीय त्वचा के लिए मुल्तानी मिट्टी में दही और पुदीने की पत्तियों का पाउडर मिला कर उसे आधे घंटे तक रखा रहने दें, फिर अच्छे से मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएं। सूखने पर हल्के गर्म पानी से धो दें। यह तैलीय त्वचा को चिकनाई रहित रखने का कारगर नुस्खा है। - मुल्तानी मिट्टी को एक कटोरे पानी में भिगो दें। दो घन्टे बाद जब मुल्तानी मिट्टी पूरी तरह घुल जाए तो इस घोल को सूखे बालों में लगा कर हल्के हाथ से बालों को रगड़े। पाँच मिनट तक ऐसा ही करें। अगर सर्दियां हैं तो गुनगुने पानी में और गर्मियों में ठन्डे पानी से सिर को धो लें। बाल मुलायम और चमकदार हो जाएंगे।
- आधा चम्मच संतरे का रस लेकर उसमें 4-5 बूंद नींबू का रस, आधा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, आधा चम्मच चंदन पाउडर और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिलाकर कर थोड़ी देर के लिए फ्रिज में रख दें। इसे चेहरे पर लगा कर 15-20 मिनट तक रखें। इसके बाद पानी से इसे धो दें। यह तैलीय त्वचा का सबसे अच्छा उपाय है। - अगर आपकी त्वचा ड्राई है तो काजू को रात भर दूध में भिगो दें और सुबह बारीक पीसकर इसमें मुल्तानी मिट्टी और शहद की कुछ बूंदें मिलाकर स्क्रब करें। - मुंहासों की समस्या से परेशान लोगों के लिए तो मुल्तानी मिट्टी सबसे कारगर इलाज है, क्योंकि मुल्तानी मिट्टी चेहरे का तेल सोख लेती है, जिससे मुहांसे सूख जाते हैं। - तैलीय त्वचा के लिए मुल्तानी मिट्टी में दही और पुदीने की पत्तियों का पाउडर मिला कर उसे आधे घंटे तक रखा रहने दें, फिर अच्छे से मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएं। सूखने पर हल्के गर्म पानी से धो दें। यह तैलीय त्वचा को चिकनाई रहित रखने का कारगर नुस्खा है। - मुल्तानी मिट्टी को एक कटोरे पानी में भिगो दें। दो घन्टे बाद जब मुल्तानी मिट्टी पूरी तरह घुल जाए तो इस घोल को सूखे बालों में लगा कर हल्के हाथ से बालों को रगड़े। पाँच मिनट तक ऐसा ही करें। अगर सर्दियां हैं तो गुनगुने पानी में और गर्मियों में ठन्डे पानी से सिर को धो लें। बाल मुलायम और चमकदार हो जाएंगे।
भगवान की पूजा में रखनी चाहिए ये सावधानियां
सामान्यत: पूजा हम सभी करते हैं परंतु पूजा के दौरान कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना और उनका पालन करना अतिआवश्यक है। इन छोटी-छोटी बातों का पालन करने से भगवान जल्द ही प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। यह बातें इस प्रकार हैं-
देवताओं पर बासी फूल और जल कभी नहीं चढ़ाएं।
- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु- यह पंचदेव कहे गए हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिए।
घर में मूर्तियों की चल प्रतिष्ठा करनी चाहिए और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा।
मूर्ति, लकड़ी, पत्थर या धातु की स्थापित की जानी चाहिए।
- फूल चढ़ाते समय पुष्प का मुख ऊपर की ओर रखना चाहिए।
रविवार, 27 मई 2012
गुदगुदी
विक्की स्कूल जाते हुए बहुत रो रहा था।
पिता- चुप हो जा, शेर के बच्चे कभी रोते हैं!
विक्की- पापा शेर के बच्चे स्कूल भी नही जाते..?
एक मरीज डॉक्टर के पास गया।
मरीज-डॉक्टर साहब मेरे कान में मटर का पौधा उग आया है।
डॉक्टर- यह तो बड़ी हैरानी की बात है!
मरीज-जी हां डॉक्टर साहब हैरानी की बात तो है ही क्योंकि मैंने तो अपने कान में भिन्डी के बीज डाले थे!!!
प्रश्न- बताओ शादी के वक्त दूल्हा घोड़ी के बजाय गधे पर बैठकर क्यों नहीं जाता?
उत्तर- इसलिये कि दुलहन कहीं दो गधों को एक साथ देखकर डर न जाए।
रामू- तुमने इतने छोटे-छोटे बाल क्यों कटवाए..?
चंपकलाल- दरअसल नाई के पास 3 रुपये छुट्टे नही थे तो मैंने कहा कि 3 रुपये के और काट दे..!!
पत्नी (पति से)- मैं ड्राइवर को नौकरी से निकाल रही हूं क्योंकि आज मैं दूसरी बार मरते-मरते बची हूं।
पति (पत्नी से)- प्लीज डार्लिंग ! उसे एक मौका तो और दो. प्लीज!
एक दंपत्ति की शादी को साठ वर्ष हो चुके थे। उनकी आपसी समझ इतनी अच्छी थी कि इन साठ वषरें में उनमें कभी झगड़ा तक नहीं हुआ। वे एक दूजे से कभी कुछ भी छिपाते नहीं थे। हां, पत्नी के पास उसके मायके से लाया हुआ एक डिब्बा था जो उसने अपने पति के सामने कभी खोला नहीं था। उस डिब्बे में क्या है वह नहीं जानता था। कभी उसने जानने की कोशिश भी की तो पत्नी ने यह कह कर टाल दिया कि सही समय आने पर बता दूंगी।
आखिर एक दिन बुढि़या बहुत बीमार हो गई और उसके बचने की आशा न रही। उसके पति को तभी खयाल आया कि उस डिब्बे का रहस्य जाना जाये। बुढि़या बताने को राजी हो गई। पति ने जब उस डिब्बे को खोला तो उसमें हाथ से बुने हुये दो रूमाल और 50,000 रूपये निकले। उसने पत्नी से पूछा, यह सब क्या है। पत्नी ने बताया कि जब उसकी शादी हुई थी तो उसकी दादी मां ने उससे कहा था कि ससुराल में कभी किसी से झगड़ना नहीं । यदि कभी किसी पर क्त्रोध आये तो अपने हाथ से एक रूमाल बुनना और इस डिब्बे में रखना।
बूढ़े की आंखों में यह सोचकर खुशी के मारे आंसू आ गये कि उसकी पत्नी को साठ वषरें के लम्बे वैवाहिक जीवन के दौरान सिर्फ दो बार ही क्त्रोध आया था। उसे अपनी पत्नी पर सचमुच गर्व हुआ।
खुद को संभाल कर उसने रूपयों के बारे में पूछा । इतनी बड़ी रकम तो उसने अपनी पत्नी को कभी दी ही नहीं थी, फिर ये कहां से आये?
रूपये! वे तो मैंने रूमाल बेच बेच कर इकठ्ठे किये हैं।
पत्नी ने मासूमियत से जवाब दिया।
डॉक्टर- इस दुनिया में डॉक्टरों के दुश्मन बहुत कम हैं।
रोगी- मगर उस दुनिया में बहुत हैं।
भगवान जब दुनिया बना रहे थे तो उन्होंने कहा- कि दुनिया के हर कोने में अच्छी बीवी मिलेगी।
लेकिन दुनिया को गोल बना दिया।
संता (ज्योतिषी से)- महाराज, बताइए मेरी शादी कब होगी?
ज्योतिषी- कभी नहीं होगी।
संता- क्यों?
ज्योतिषी- कैसे होगी? तुम्हारे भाग्य में तो सुख ही सुख लिखा है!
डॉक्टर (रोगी महिला से)- आप बिलकुल मेरी तीसरी पत्नी की तरह हो !
महिला- आपकी कितनी पत्िनयां हैं?
डॉक्टर- दो!
बुधवार, 18 अप्रैल 2012
"बेटियां हमारी धरोहर"
बेटियों को संस्कारवान बनाएं
आज मां ही बच्चों की शत्रु बन रही है। हमें विकसित देशों की नकल बंद करनी होगी नहीं तो हम भी उनके जैसे ह्यूमन एनिमल बन जाएंगे। सबसे ज्यादा भ्रूण हत्याओं में शिक्षित और शहरी वर्ग के लोग शामिल हैं। इनसे गांव के लोगों का लेना-देना नहीं है। कन्या शब्द छोटा नहीं है। सृष्टि का 50 प्रतिशत हिस्सा इसमें समाया है। एक पुरूष से स्त्री की शक्ति तीन गुना अधिक है, इसलिए कन्या को देवी का दर्जा दिया गया है।
माता-पिता कहते हैं कि वे लड़के-लड़की में भेद नहीं करते। यह किसी भी दृष्टि से समानता नहीं है बल्कि विध्वंस है। समस्या यह है कि हम पीछे की बात नहीं समझते। हमें शरीर दिख रहे हैं कि यह स्त्री है और यह पुरूष। सोचिए कि प्रकृति गर्भ में कैसे तय करती है कि पुरूष कौन होगा और स्त्री कौन? दोनों के अलग-अलग गुण हैं। स्त्री और पुरूष को अलग-अलग रास्तों से गुजरना है।
परंपरा में ऎसी कई चीजें आई जिसे हम अंधविश्वास कहने लगे। मां का यह कर्तव्य है कि वह बेटी को अच्छी स्त्री बनना सिखाए। बच्ची के पास ज्ञान नहीं पहुंचता कि किन गुणों के कारण स्त्री है। नतीजा यह है कि दिनों-दिन तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। वह शरीर से तो स्त्री है पर उसके गुण स्त्रयों जैसे नहीं है। वह पुरूष बन रही है और पुरूष तो पुरूष है ही।
आज लड़कियां कॅरियर की लड़ाई में प्रतियोगी हो गई हैं। वे लड़कों की तरह सोचने लगी हैं। पुरूष सूरज है तो महिला चंद्रमा। महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए। चंद्रमा के यही गुण हैं लेकिन समस्या यह है कि लड़कियों का इमोशनल लेवल कम हो रहा है। स्थिति यह है कि आज लड़कियां, स्त्री होने के गुण को नहीं समझ रही हैं क्योंकि उनकी माताएं उन्हें इसकी शिक्षा ही नहीं दे रही हैं।
आज मां ही बच्चों की शत्रु बन रही है। हमें विकसित देशों की नकल बंद करनी होगी नहीं तो हम भी उनके जैसे ह्यूमन एनिमल बन जाएंगे। सबसे ज्यादा भ्रूण हत्याओं में शिक्षित और शहरी वर्ग के लोग शामिल हैं। इनसे गांव के लोगों का लेना-देना नहीं है। कन्या शब्द छोटा नहीं है। सृष्टि का 50 प्रतिशत हिस्सा इसमें समाया है। एक पुरूष से स्त्री की शक्ति तीन गुना अधिक है, इसलिए कन्या को देवी का दर्जा दिया गया है।
माता-पिता कहते हैं कि वे लड़के-लड़की में भेद नहीं करते। यह किसी भी दृष्टि से समानता नहीं है बल्कि विध्वंस है। समस्या यह है कि हम पीछे की बात नहीं समझते। हमें शरीर दिख रहे हैं कि यह स्त्री है और यह पुरूष। सोचिए कि प्रकृति गर्भ में कैसे तय करती है कि पुरूष कौन होगा और स्त्री कौन? दोनों के अलग-अलग गुण हैं। स्त्री और पुरूष को अलग-अलग रास्तों से गुजरना है।
परंपरा में ऎसी कई चीजें आई जिसे हम अंधविश्वास कहने लगे। मां का यह कर्तव्य है कि वह बेटी को अच्छी स्त्री बनना सिखाए। बच्ची के पास ज्ञान नहीं पहुंचता कि किन गुणों के कारण स्त्री है। नतीजा यह है कि दिनों-दिन तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। वह शरीर से तो स्त्री है पर उसके गुण स्त्रयों जैसे नहीं है। वह पुरूष बन रही है और पुरूष तो पुरूष है ही।
आज लड़कियां कॅरियर की लड़ाई में प्रतियोगी हो गई हैं। वे लड़कों की तरह सोचने लगी हैं। पुरूष सूरज है तो महिला चंद्रमा। महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए। चंद्रमा के यही गुण हैं लेकिन समस्या यह है कि लड़कियों का इमोशनल लेवल कम हो रहा है। स्थिति यह है कि आज लड़कियां, स्त्री होने के गुण को नहीं समझ रही हैं क्योंकि उनकी माताएं उन्हें इसकी शिक्षा ही नहीं दे रही हैं।
मंगलवार, 17 अप्रैल 2012
रविवार, 15 अप्रैल 2012
श्री बजरंग बाण का पाठ
हनुमान को करें प्रसन्न
दोहा :
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई :
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
दोहा :
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥
सोमवार, 9 अप्रैल 2012
मेघनाद ने चलाया ये बाण तो लक्ष्मणजी बेहोश हो गए...
...नल, नील, द्विविद, सुग्रीव और अंगद हनुमान कहां हैं? यह सुनकर रीछ वानर सब भाग गए। सब युद्ध की इच्छा भूल गए। सारी सेना बेहाल हो गई। हनुमानजी ने गुस्से में आकर पहाड़ उखाड़ लिया। बड़े ही क्रोध के साथ उस पहाड़ को उन्होंने मेघनाद के ऊपर फेंक दिया। मेघनाद पहाड़ को आते देख आकाश में उड़ गया। मेघनाद रामजी के पास आ गया। उसने उन पर अस्त्र-शस्त्र और हथियार चलाए। रामजी ने उसके सारे अस्त्र व्यर्थ कर दिए
रामजी का ऐसा प्रभाव देखकर मेघनाद को बहुत आश्चर्य हुआ वह अनेकों तरह की लीलाएं करने लगा। वह ऊंचे स्थान पर चढ़कर अंगारे बरसाने लगा। उसकी माया देखकर सारे वानर सोचने लगे कि अब सबका मरण आ गया है। तब रामजी ने एक ही बाण से सारी माया काट डाली। श्रीरामजी से आज्ञा मांगकर वानर आदि हाथों में धनुष बाण लेकर लक्ष्मणजी के साथ आगे बड़े। रामचंद्रजी की जय-जयकार कर सारे वानरों ने राक्षसों पर हमला कर दिया। वानर उनकों घूंसों व लातों से मारते हैं। दांतों से काटते हैं।
लक्ष्मणजी ने एक बाण से रथ तोड़ डाला और सारथि के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। तब मेघनाद को लगा कि उसके प्राण संकट में आ गए। मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह लक्ष्मणजी की छाती पर लगी। शक्ति के लगने से वे बेहोश हो गए। मेघनाद डर छोड़कर उनके पास गया। मेघनाद के समान सौ करोड़ योद्धा लक्ष्मणजी को उठाने का प्रयास करने लगे। लेकिन वे सभी मिलकर भी लक्ष्मणजी को वहां से न हटा पाए। हनुमान ने उन्हें उठाया और रामजी के पास ले आए। जाम्बवान ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है, उसे ले आने के लिए किसे भेजा जाए।
हनुमान छोटा रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर सहित उठा लाए। सुषेण ने हनुमानजी को ओषधि ले आने को कहा। उधर एक गुप्तचर ने रावण को इस रहस्य की खबर दी। तब रावण कालनेमि के घर आया। रावण ने उसे अपना सारा दुख बताया। कालनेमि ने सारी बात सुनी और उसने कहा तुम्हारे देखते ही देखते उसने सारा नगर जला डाला, उसका रास्ता कौन रोक सकता है। उसने रावण को रामजी की भक्ति करने की सलाह दी। रावण यह सुनकर गुस्से में आ गया। तब कालनेमि ने मन ही मन विचार किया कि इस दुष्ट के हाथों मरने से अच्छा है मैं राम जी के हाथों मरूं। वह मन ही मन ऐसा सोचकर चल दिया। उसने मार्ग में माया रची उसने सुंदर तालाब, मंदिर और बगीचा बनाया। हनुमानजी ने सुंदर आश्रम देखकर सोचा कि मुनि से पूछकर जल पी लूं।
रामजी का ऐसा प्रभाव देखकर मेघनाद को बहुत आश्चर्य हुआ वह अनेकों तरह की लीलाएं करने लगा। वह ऊंचे स्थान पर चढ़कर अंगारे बरसाने लगा। उसकी माया देखकर सारे वानर सोचने लगे कि अब सबका मरण आ गया है। तब रामजी ने एक ही बाण से सारी माया काट डाली। श्रीरामजी से आज्ञा मांगकर वानर आदि हाथों में धनुष बाण लेकर लक्ष्मणजी के साथ आगे बड़े। रामचंद्रजी की जय-जयकार कर सारे वानरों ने राक्षसों पर हमला कर दिया। वानर उनकों घूंसों व लातों से मारते हैं। दांतों से काटते हैं।
लक्ष्मणजी ने एक बाण से रथ तोड़ डाला और सारथि के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। तब मेघनाद को लगा कि उसके प्राण संकट में आ गए। मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह लक्ष्मणजी की छाती पर लगी। शक्ति के लगने से वे बेहोश हो गए। मेघनाद डर छोड़कर उनके पास गया। मेघनाद के समान सौ करोड़ योद्धा लक्ष्मणजी को उठाने का प्रयास करने लगे। लेकिन वे सभी मिलकर भी लक्ष्मणजी को वहां से न हटा पाए। हनुमान ने उन्हें उठाया और रामजी के पास ले आए। जाम्बवान ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है, उसे ले आने के लिए किसे भेजा जाए।
हनुमान छोटा रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर सहित उठा लाए। सुषेण ने हनुमानजी को ओषधि ले आने को कहा। उधर एक गुप्तचर ने रावण को इस रहस्य की खबर दी। तब रावण कालनेमि के घर आया। रावण ने उसे अपना सारा दुख बताया। कालनेमि ने सारी बात सुनी और उसने कहा तुम्हारे देखते ही देखते उसने सारा नगर जला डाला, उसका रास्ता कौन रोक सकता है। उसने रावण को रामजी की भक्ति करने की सलाह दी। रावण यह सुनकर गुस्से में आ गया। तब कालनेमि ने मन ही मन विचार किया कि इस दुष्ट के हाथों मरने से अच्छा है मैं राम जी के हाथों मरूं। वह मन ही मन ऐसा सोचकर चल दिया। उसने मार्ग में माया रची उसने सुंदर तालाब, मंदिर और बगीचा बनाया। हनुमानजी ने सुंदर आश्रम देखकर सोचा कि मुनि से पूछकर जल पी लूं।
कृष्ण ने पांडवों के ओर से ऐसे की थी शांति की पहल....
श्रीकृष्ण ने कहा कौरव और पांडवों के मिल जाने से आप समस्त लोकों का आधिपत्य प्राप्त कर सकेंगे। महाराज युद्ध करने में मुझे बहुत संहार दिखाई दे रहा है। इस प्रकार दोनों पक्षों का नाश कराने में आपको क्या धर्म दिखाई देता है। आप इस लोक की रक्षा कीजिए और ऐसा कीजिए, जिसमें आपकी प्रजा का नाश न हो। यदि आप सत्वगुण धारण कर लेंगे तो सबकी रक्षा हो जाएगी कृष्णजी ने आगे कहा मैं अब आपको पांडवों का संदेश सुनाता हूं। महाराज!पाण्डवों ने आपको प्रणाम कहा है और आपकी प्रसन्नता चाहते हुए, यह प्रार्थना की है कि हमने अपने साथियों के सहित आपकी आज्ञा से ही इतने दिनों तक दुख भोगा है। हम बाहर वर्ष तक वन में रहे हैं और फिर तेहरवां वर्ष जनसमूह में अज्ञातरूप से रहकर बिताया है।
वनवास की शर्त होने के समय हमारा यही निश्चय था कि जब हम लौटेंगे तो आप हमारे ऊपर पिता की तरह रहेंगे। हमने उस शर्त का पूरी पालन किया है, इसलिए अब आप भी जैसा वादा था, वैसा ही निभाइए। हमें अब अपने राज्य का भाग मिल जाना चाहिए। आप धर्म और अर्थ का स्वरूप जानते हैं। इसलिए आपको हमारी रक्षा करनी चाहिए। गुरु के प्रति शिष्य का जैसा गौरवयुक्त व्यवहार होना चाहिए।
आपके साथ हमारा वैसा ही बर्ताव है। इसलिए आप भी हमारे प्रति गुरु का सा आचरण कीजिए। हम लोग यदि मार्गभ्रष्ट हो रहे हैं तो आप हमें ठीक रास्ते पर लाइए और खुद भी सन्मार्ग पर स्थित हो जाइए। इसके अलावा आपके उन पुत्रों ने सभासद् से कहलाया है कि जहां धर्मज्ञ सभासद् हों, वहां कोई अनुचित बात नहीं होनी चाहिए। यदि सभासदो के देखते हुए अधर्म से धर्म का और असत्य से सत्य का नाश हो तो उनका भी नाश हो जाता है। इस समय पांडव लोग धर्म पर दृष्टि लगाए बैठे हैं। उन्होंने धर्म के अनुसार सत्य और न्याययुक्त बात ही कही है। राजन् आप पाण्डवों को राज्य दे दीजिए- इसके सिवा आपसे और क्या कहा जा सकता है? इस सभा में जो राजालोग बैठे हैं। उन्हें कोई और बात कहनी हो तो कहें। यदि धर्म और अर्थ का विचार करके मैं सच्ची बात कहूं तो यही कहना होगा कि इन क्षत्रियों को आप मृत्यु के फंदे से छुड़ा दीजिए। ऐसा करके आप अपने पुत्रों के सहित आनन्द से भोग भोगिए।
इस समय आपने अर्थ को अनर्थ और अनर्थ को अर्थ मान रखा है। आपके पुत्रों पर लोभ ने अधिकार जमा रखा है।पाण्डव तो आपकी सेवा के लिए भी तैयार है। युद्ध करने के लिए भी तैयार हैं इन दिनों में आपको जो बात अधिक हितकर जान पड़े, उसी पर डट जाइए। जब भगवान कृष्ण ने ये सब बातें कहीं तो सभी सभासदों को रोमांच हो आया और वे चकित से हो गए। वे मन ही मन तरह से तरह से विचार करने लगे। उनके मुंह से कोई भी उत्तर नहीं निकला। सब राजाओं को इस प्रकार मौन हुआ देख सभा में उपस्थित परशुरामजी कहने लगे। तुम सब प्रकार का संदेह छोड़कर मेरी एक सत्य सुनो.
वनवास की शर्त होने के समय हमारा यही निश्चय था कि जब हम लौटेंगे तो आप हमारे ऊपर पिता की तरह रहेंगे। हमने उस शर्त का पूरी पालन किया है, इसलिए अब आप भी जैसा वादा था, वैसा ही निभाइए। हमें अब अपने राज्य का भाग मिल जाना चाहिए। आप धर्म और अर्थ का स्वरूप जानते हैं। इसलिए आपको हमारी रक्षा करनी चाहिए। गुरु के प्रति शिष्य का जैसा गौरवयुक्त व्यवहार होना चाहिए।
आपके साथ हमारा वैसा ही बर्ताव है। इसलिए आप भी हमारे प्रति गुरु का सा आचरण कीजिए। हम लोग यदि मार्गभ्रष्ट हो रहे हैं तो आप हमें ठीक रास्ते पर लाइए और खुद भी सन्मार्ग पर स्थित हो जाइए। इसके अलावा आपके उन पुत्रों ने सभासद् से कहलाया है कि जहां धर्मज्ञ सभासद् हों, वहां कोई अनुचित बात नहीं होनी चाहिए। यदि सभासदो के देखते हुए अधर्म से धर्म का और असत्य से सत्य का नाश हो तो उनका भी नाश हो जाता है। इस समय पांडव लोग धर्म पर दृष्टि लगाए बैठे हैं। उन्होंने धर्म के अनुसार सत्य और न्याययुक्त बात ही कही है। राजन् आप पाण्डवों को राज्य दे दीजिए- इसके सिवा आपसे और क्या कहा जा सकता है? इस सभा में जो राजालोग बैठे हैं। उन्हें कोई और बात कहनी हो तो कहें। यदि धर्म और अर्थ का विचार करके मैं सच्ची बात कहूं तो यही कहना होगा कि इन क्षत्रियों को आप मृत्यु के फंदे से छुड़ा दीजिए। ऐसा करके आप अपने पुत्रों के सहित आनन्द से भोग भोगिए।
इस समय आपने अर्थ को अनर्थ और अनर्थ को अर्थ मान रखा है। आपके पुत्रों पर लोभ ने अधिकार जमा रखा है।पाण्डव तो आपकी सेवा के लिए भी तैयार है। युद्ध करने के लिए भी तैयार हैं इन दिनों में आपको जो बात अधिक हितकर जान पड़े, उसी पर डट जाइए। जब भगवान कृष्ण ने ये सब बातें कहीं तो सभी सभासदों को रोमांच हो आया और वे चकित से हो गए। वे मन ही मन तरह से तरह से विचार करने लगे। उनके मुंह से कोई भी उत्तर नहीं निकला। सब राजाओं को इस प्रकार मौन हुआ देख सभा में उपस्थित परशुरामजी कहने लगे। तुम सब प्रकार का संदेह छोड़कर मेरी एक सत्य सुनो.
द्रोपदी के आंसुओं को देखकर श्रीकृष्ण ने क्या प्रतिज्ञा की?
द्रोपदी ने सहदेव और सात्य की प्रशंसा कर रोते हुए कहा- धर्मज्ञ मधुसूदन! दुर्योधन ने जिस क्रुरता से पांडवों को राजसुख से वंचित किया है वह तो आपको मालूम ही है। संजय को राजा धृतराष्ट्र ने एकांत में आपको जो अपना विचार सुनाया है वो भी आप अच्छी तरह जानते हैं। पांडव लोग दुर्योधन का रण में ही अच्छे से मुकाबला कर सकते हैं
इसके बाद द्रोपदी अपने बालों को बाएं हाथ में लिए कृष्ण के पास आई। नेत्रों में जल भरकर उनसे कहने लगी- कमलनयन श्रीकृष्ण! शत्रुओं से संधि करने की तो इच्छा है, लेकिन अपने इस सारे प्रयत्न में आप दु:शासन के हाथों से खींचे हुए इन बालों को याद रखें। अगर भीम और अर्जुन और कायर होकर आज की संधि के लिए ही उत्सुक हैं तो अपने महारथी सहित मेरे वृद्ध पिता और पुत्र कौरवों से संग्राम करेंगे। मैंने दु:शासन को अगर मरते न देखा तो मेरी छाती ठंडी कैसे होगी। इतना कहते हुए द्रोपदी का गला भर आया। तब श्रीकृष्ण ने कहा तुम शीघ्र ही कौरव की स्त्रियों को रुदन करते देखोगी। आज जिन पर तुम्हारा क्रोध है। उनकी स्त्रियां भी इसी तरह रोएंगी।
महाराज युधिष्ठिर की आज्ञा से भीम, अर्जुन और नकुल-सहदेव के सहित मैं भी ऐसा ही काम करुंगा। यदि काल के वश में पड़े धृतराष्ट्रपुत्र मेरी बात नहीं सुनेंगे तो निश्चय ही मानों की चाहे प्रलय आ जाए लेकिन मेरी कोई बात झूठी नहीं हो सकती। तुम अपने आसुंओं को रोको, मैं सच्ची प्रतिज्ञा करके कहता हूं अगर धृतराष्ट्र ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम शीघ्र ही शत्रुओं के मारे जाने से अपने पतियों को श्री सम्पन्न देखोगी। अर्जुन ने कहा- श्रीकृष्ण इस समय सभी कुरूवंशियों के आप ही सबसे बड़े सहृदय हैं। आप दोनों ही पक्षों के संबंधी और प्रिय हैं। इसलिए पांडवों के साथ कौरवों की संधि आप ही करा सकते हैं।
इसके बाद द्रोपदी अपने बालों को बाएं हाथ में लिए कृष्ण के पास आई। नेत्रों में जल भरकर उनसे कहने लगी- कमलनयन श्रीकृष्ण! शत्रुओं से संधि करने की तो इच्छा है, लेकिन अपने इस सारे प्रयत्न में आप दु:शासन के हाथों से खींचे हुए इन बालों को याद रखें। अगर भीम और अर्जुन और कायर होकर आज की संधि के लिए ही उत्सुक हैं तो अपने महारथी सहित मेरे वृद्ध पिता और पुत्र कौरवों से संग्राम करेंगे। मैंने दु:शासन को अगर मरते न देखा तो मेरी छाती ठंडी कैसे होगी। इतना कहते हुए द्रोपदी का गला भर आया। तब श्रीकृष्ण ने कहा तुम शीघ्र ही कौरव की स्त्रियों को रुदन करते देखोगी। आज जिन पर तुम्हारा क्रोध है। उनकी स्त्रियां भी इसी तरह रोएंगी।
महाराज युधिष्ठिर की आज्ञा से भीम, अर्जुन और नकुल-सहदेव के सहित मैं भी ऐसा ही काम करुंगा। यदि काल के वश में पड़े धृतराष्ट्रपुत्र मेरी बात नहीं सुनेंगे तो निश्चय ही मानों की चाहे प्रलय आ जाए लेकिन मेरी कोई बात झूठी नहीं हो सकती। तुम अपने आसुंओं को रोको, मैं सच्ची प्रतिज्ञा करके कहता हूं अगर धृतराष्ट्र ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम शीघ्र ही शत्रुओं के मारे जाने से अपने पतियों को श्री सम्पन्न देखोगी। अर्जुन ने कहा- श्रीकृष्ण इस समय सभी कुरूवंशियों के आप ही सबसे बड़े सहृदय हैं। आप दोनों ही पक्षों के संबंधी और प्रिय हैं। इसलिए पांडवों के साथ कौरवों की संधि आप ही करा सकते हैं।
दुर्योधन श्रीकृष्ण को कैद कर लेना चाहता था?
सभी उनके स्वागत की तैयारियां पूरी करने में लग गए। दुर्योधन से सभी तैयारियां पूर्ण होने की सुचना मिलने पर धृतराष्ट्र ने विदुर से कहा श्रीकृष्ण कल सुबह हस्तिनापुर आ जाएंगे। तुम जानते हो की कृष्ण के दर्शन सैकड़ों सूर्य के दर्शन के समान है।इसलिए जितनी भी प्रजा है उन्हें श्रीकृष्ण के दर्शन करने चाहिए। विदुर ने कहा मैं श्रीकृष्ण की महिमा जानता हूं, उन्हे पांडवों से बहुत अनुराग है।
आप किसी भी तरह कृष्ण को अपनी ओर नहीं कर पाएंगे। दुर्योधन बोला- पिताजी विदुरजी ने जो कुछ कहा है ठीक ही कहा है। श्रीकृष्ण का पांडवों की प्रति बहुत प्रेम है। उन्हें उनके विपक्ष मे कोई नहीं ला सकता। इसलिए आपके सारे प्रयास व्यर्थ हैं। भीष्म बोले श्रीकृष्ण ने अपने मन में जो भी निर्णय ले लिया है। उसे आप और मैं कभी नहीं बदल सकते हैं। दुर्योधन ने कहा- पितामह जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं तब तक मैं इस राजलक्ष्मी को पांडवों के साथ बांटकर नही भोग सकता।
मैंने विचार किया है कि मैं पाण्डवों के पक्षपाती कृष्ण को कैद कर लूं। उन्हें कैद करने से समस्त यादव और सारी पृथ्वी के साथ ही पांडव भी मेरे अधीन हो जाएंगे। यह बात सुनकर धृतराष्ट्र और उनके मंत्रियों को भयंकर झटका लगा। उन्होंने दुर्योधन से कहा-बेटा तू अपने मुंह से ऐसी बातें ना निकाल। यह सनातन धर्म के विरूद्ध है। कृष्णजी यहां दूत बनकर आ रहे हैं और दूत को कैद नहीं किया जाता है।
आप किसी भी तरह कृष्ण को अपनी ओर नहीं कर पाएंगे। दुर्योधन बोला- पिताजी विदुरजी ने जो कुछ कहा है ठीक ही कहा है। श्रीकृष्ण का पांडवों की प्रति बहुत प्रेम है। उन्हें उनके विपक्ष मे कोई नहीं ला सकता। इसलिए आपके सारे प्रयास व्यर्थ हैं। भीष्म बोले श्रीकृष्ण ने अपने मन में जो भी निर्णय ले लिया है। उसे आप और मैं कभी नहीं बदल सकते हैं। दुर्योधन ने कहा- पितामह जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं तब तक मैं इस राजलक्ष्मी को पांडवों के साथ बांटकर नही भोग सकता।
मैंने विचार किया है कि मैं पाण्डवों के पक्षपाती कृष्ण को कैद कर लूं। उन्हें कैद करने से समस्त यादव और सारी पृथ्वी के साथ ही पांडव भी मेरे अधीन हो जाएंगे। यह बात सुनकर धृतराष्ट्र और उनके मंत्रियों को भयंकर झटका लगा। उन्होंने दुर्योधन से कहा-बेटा तू अपने मुंह से ऐसी बातें ना निकाल। यह सनातन धर्म के विरूद्ध है। कृष्णजी यहां दूत बनकर आ रहे हैं और दूत को कैद नहीं किया जाता है।
रविवार, 8 अप्रैल 2012
शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012
जानिए कब चमकेंगे आपकी किस्मत के सितारे
हनुमान प्रश्नावली चक्र:
हर व्यक्ति के मन में अपने भविष्य के प्रति कई प्रश्न होते हैं। वह हमेशा उन प्रश्नों के उत्तर की खोज में लगा रहता है लेकिन उन प्रश्नों का उत्तर मिलना बहुत कठिन होता है। ऐसे में हनुमान ज्योतिष के माध्यम से हर प्रश्न का उत्तर आसानी से जाना जा सकता है। इस आर्टिकल के साथ हनुमान प्रश्नावली चक्र प्रकाशित किया जा रहा है। इसमें आपके हर प्रश्न का उत्तर छिपा है।
उपयोग विधि
जिसे भी अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए वे स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करे और पांच बार ऊँ रां रामाय नम:मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ हनुमते नम:मंत्र का जप करे। इसके बाद आंखें बंद हनुमानजी का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक को देखकर अपने प्रश्न का उत्तर देखें।
कोष्ठकों के अंकों के अनुसार फलादेश
1- आपका कार्य शीघ्र पूरा होगा।
2- आपके कार्य में समय लेगगा। मंगलवार का व्रत करें।
3- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तो कार्य शीघ्र पूरा होगा।
4- कार्य पूर्ण नहीं होगा।
5- कार्य शीघ्र होगा, किंतु अन्य व्यक्ति की सहायता लेनी पड़ेगी।
6- कोई व्यक्ति आपके कार्यों में रोड़े अटका रहा है, बजरंग बाण का पाठ करें।
7- आपके कार्य में किसी स्त्री की सहायता अपेक्षित है।
8- आपका कार्य नहीं होगा, कोई अन्य कार्य करें।
9- कार्यसिद्धि के लिए यात्रा करनी पड़ेगी।
10- मंगलवार का व्रत रखें और हनुमानजी को चोला चढ़ाएं, तो मनोकामना पूर्ण होगी।
11- आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी। सुंदरकांड का पाठ करें।
12- आपके शत्रु बहुत हैं। कार्य नहीं होने देंगे।
13- पीपल के वृक्ष की पूजा करें। एक माह बाद कार्य सिद्ध होगा।
14- आपको शीघ्र लाभ होने वाला है। मंगलवार को गाय को गुड़-चना खिलाएं।
15- शरीर स्वस्थ रहेगा, चिंताएं दूर होंगी।
16- परिवार में वृद्धि होगी। माता-पिता की सेवा करें और रामचरितमानस के बालकाण्ड का पाठ करें।
17- कुछ दिन चिंता रहेगी। ऊँ हनुमते नम: मंत्र की प्रतिदिन एक माला का जप करें।
18- हनुमानजी के पूजन एवं दर्शन से मनोकामना पूर्ण होगी।
19- आपको व्यवसाय द्वारा लाभ होगा। दक्षिण दिशा में व्यापारिक संबंध बढ़ाएं।
20- ऋण से छुटकारा, धन की प्राप्ति तथा सुख की उपलब्धि शीघ्र होने वाली है। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
21- श्रीरामचंद्रजी की कृपा से धन मिलेगा। श्रीसीताराम के नाम की पांच माला रोज करें।
22- अभी कठिनाइयों का सामाना करना पड़ेगा पर अंत में विजय आपकी होगी।
23- आपके दिन ठीक नहीं है। रोजाना हनुमानजी का पूजन करें। मंगलवार को चोला चढ़ाएं। संकटों से मुक्ति मिलेगी।
24- आपके घर वाले ही विरोध में हैं। उन्हें अनुकूल बनाने के लिए पूर्णिमा का व्रत करें।
25- आपको शीघ्र शुभ समाचार मिलेगा।
26- हर काम सोच-समझकर करें।
27- स्त्री पक्ष से आपको लाभ होगा। दुर्गासप्तशती का पाठ करें।
28- अभी कुछ महीनों तक परेशानी है।
29- अभी आपके कार्य की सिद्धि में विलंब है।
30- आपके मित्र ही आपको धोखा देंगे। सोमवार का व्रत करें।
31- संतान का सुख प्राप्त होगा। शिव की आराधना करें व शिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ करें।
32- आपके दुश्मन आपको परेशान कर रहे हैं। रोज पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर शिव ताण्डवस्तोत्र का पाठ करें। सोमवार को ब्राह्मण को भोजन कराएं।
33- कोई स्त्री आपको धोखा देना चाहती है, सावधान रहें।
34- आपके भाई-बंधु विरोध कर रहे हैं। गुरुवार को व्रत रखें।
35- नौकरी से आपको लाभ होगा। पदोन्नति संभव है, पूर्णिमा को व्रत रख कथा कराएं।
36- आपके लिए यात्रा शुभदायक रहेगी। आपके अच्छे दिन आ गए हैं।
37- पुत्र आपकी चिंता का कारण बनेगा। रोज राम नाम की पांच माला का जप करें।
38- आपको अभी कुछ दिन और परेशानी रहेगी। यथाशक्ति दान-पुण्य और कीर्तन करें।
39- आपको राजकार्य और मुकद्मे में सफलता मिलेगी। श्रीसीताराम का पूजन करने से लाभ मिलेगा।
40- अतिशीघ्र आपको यश प्राप्त होगा। हनुमानजी की उपासना करें और रामनाम का जप करें।
41- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
42- समय अभी अच्छा नहीं है।
43- आपको आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ेगा।
44- आपको धन की प्राप्ति होगी।
45- दाम्पत्य सुख मिलेगा।
46- संतान सुख की प्राप्ति होने वाली है।
47- अभी दुर्भाग्य समाप्त नहीं हुआ है। विदेश यात्रा से अवश्य लाभ होगा।
48- आपका अच्छा समय आने वाला है। सामाजिक और व्यवसायिक क्षेत्र में लाभ मिलेगा।
49- आपका समय बहुत अच्छा आ रहा है। आपकी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होगी।
हर व्यक्ति के मन में अपने भविष्य के प्रति कई प्रश्न होते हैं। वह हमेशा उन प्रश्नों के उत्तर की खोज में लगा रहता है लेकिन उन प्रश्नों का उत्तर मिलना बहुत कठिन होता है। ऐसे में हनुमान ज्योतिष के माध्यम से हर प्रश्न का उत्तर आसानी से जाना जा सकता है। इस आर्टिकल के साथ हनुमान प्रश्नावली चक्र प्रकाशित किया जा रहा है। इसमें आपके हर प्रश्न का उत्तर छिपा है।
उपयोग विधि
जिसे भी अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए वे स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करे और पांच बार ऊँ रां रामाय नम:मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ हनुमते नम:मंत्र का जप करे। इसके बाद आंखें बंद हनुमानजी का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक को देखकर अपने प्रश्न का उत्तर देखें।
कोष्ठकों के अंकों के अनुसार फलादेश
1- आपका कार्य शीघ्र पूरा होगा।
2- आपके कार्य में समय लेगगा। मंगलवार का व्रत करें।
3- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तो कार्य शीघ्र पूरा होगा।
4- कार्य पूर्ण नहीं होगा।
5- कार्य शीघ्र होगा, किंतु अन्य व्यक्ति की सहायता लेनी पड़ेगी।
6- कोई व्यक्ति आपके कार्यों में रोड़े अटका रहा है, बजरंग बाण का पाठ करें।
7- आपके कार्य में किसी स्त्री की सहायता अपेक्षित है।
8- आपका कार्य नहीं होगा, कोई अन्य कार्य करें।
9- कार्यसिद्धि के लिए यात्रा करनी पड़ेगी।
10- मंगलवार का व्रत रखें और हनुमानजी को चोला चढ़ाएं, तो मनोकामना पूर्ण होगी।
11- आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी। सुंदरकांड का पाठ करें।
12- आपके शत्रु बहुत हैं। कार्य नहीं होने देंगे।
13- पीपल के वृक्ष की पूजा करें। एक माह बाद कार्य सिद्ध होगा।
14- आपको शीघ्र लाभ होने वाला है। मंगलवार को गाय को गुड़-चना खिलाएं।
15- शरीर स्वस्थ रहेगा, चिंताएं दूर होंगी।
16- परिवार में वृद्धि होगी। माता-पिता की सेवा करें और रामचरितमानस के बालकाण्ड का पाठ करें।
17- कुछ दिन चिंता रहेगी। ऊँ हनुमते नम: मंत्र की प्रतिदिन एक माला का जप करें।
18- हनुमानजी के पूजन एवं दर्शन से मनोकामना पूर्ण होगी।
19- आपको व्यवसाय द्वारा लाभ होगा। दक्षिण दिशा में व्यापारिक संबंध बढ़ाएं।
20- ऋण से छुटकारा, धन की प्राप्ति तथा सुख की उपलब्धि शीघ्र होने वाली है। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
21- श्रीरामचंद्रजी की कृपा से धन मिलेगा। श्रीसीताराम के नाम की पांच माला रोज करें।
22- अभी कठिनाइयों का सामाना करना पड़ेगा पर अंत में विजय आपकी होगी।
23- आपके दिन ठीक नहीं है। रोजाना हनुमानजी का पूजन करें। मंगलवार को चोला चढ़ाएं। संकटों से मुक्ति मिलेगी।
24- आपके घर वाले ही विरोध में हैं। उन्हें अनुकूल बनाने के लिए पूर्णिमा का व्रत करें।
25- आपको शीघ्र शुभ समाचार मिलेगा।
26- हर काम सोच-समझकर करें।
27- स्त्री पक्ष से आपको लाभ होगा। दुर्गासप्तशती का पाठ करें।
28- अभी कुछ महीनों तक परेशानी है।
29- अभी आपके कार्य की सिद्धि में विलंब है।
30- आपके मित्र ही आपको धोखा देंगे। सोमवार का व्रत करें।
31- संतान का सुख प्राप्त होगा। शिव की आराधना करें व शिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ करें।
32- आपके दुश्मन आपको परेशान कर रहे हैं। रोज पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर शिव ताण्डवस्तोत्र का पाठ करें। सोमवार को ब्राह्मण को भोजन कराएं।
33- कोई स्त्री आपको धोखा देना चाहती है, सावधान रहें।
34- आपके भाई-बंधु विरोध कर रहे हैं। गुरुवार को व्रत रखें।
35- नौकरी से आपको लाभ होगा। पदोन्नति संभव है, पूर्णिमा को व्रत रख कथा कराएं।
36- आपके लिए यात्रा शुभदायक रहेगी। आपके अच्छे दिन आ गए हैं।
37- पुत्र आपकी चिंता का कारण बनेगा। रोज राम नाम की पांच माला का जप करें।
38- आपको अभी कुछ दिन और परेशानी रहेगी। यथाशक्ति दान-पुण्य और कीर्तन करें।
39- आपको राजकार्य और मुकद्मे में सफलता मिलेगी। श्रीसीताराम का पूजन करने से लाभ मिलेगा।
40- अतिशीघ्र आपको यश प्राप्त होगा। हनुमानजी की उपासना करें और रामनाम का जप करें।
41- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
42- समय अभी अच्छा नहीं है।
43- आपको आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ेगा।
44- आपको धन की प्राप्ति होगी।
45- दाम्पत्य सुख मिलेगा।
46- संतान सुख की प्राप्ति होने वाली है।
47- अभी दुर्भाग्य समाप्त नहीं हुआ है। विदेश यात्रा से अवश्य लाभ होगा।
48- आपका अच्छा समय आने वाला है। सामाजिक और व्यवसायिक क्षेत्र में लाभ मिलेगा।
49- आपका समय बहुत अच्छा आ रहा है। आपकी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होगी।
।। श्री हनुमान चालीसा ।।
दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥
दोहा :
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥
दोहा :
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
गुरुवार, 5 अप्रैल 2012
भागवत ३४१ से ३४३
ऐसे व्यक्ति से कभी मदद लेने की न सोचें क्योंकि....
भगवान का श्रीविग्रह उपासकों के ध्यान और धारणा का मंगलमय आधार और समस्त लोकों के लिए परम रमणीय आश्रय है।इसलिए तय कर लें, आश्रय किसका रखें। प्रभु ने सृष्टि की संरचना बड़े सुन्दर ढंग से की है। उसने जीवन के दु:खों-क्लेशों की पृष्ठभूमि में आनन्द एवं प्रेम का अथाह एवं अनन्त समुद्र छुपा कर रखा है।
यह मनुष्य के ऊपर ही छोड़ दिया है कि चाहे तो वह जगत विषयों के पीछे लग कर, जीवन में दु:ख एवं अशांति को भोगता रहे तथा चाहे तो आनन्द समुद्र में गोते लगाकर परम शान्ति को प्राप्त करे। भक्ति जगत विषयों की गंदी नालियों से निकालकर, अन्दर में ही विद्यमान प्रेम एवं आनन्द समुद्र की ओर अग्रसर करने का मार्ग है।
आवश्यकता है केवल मनुष्य के चेत जाने की। पहले तो उसे इस बात का आभास होना चाहिए कि वह विषय के दलदल में फंसकर रह गया है, उसे इसमें से बाहर निकलना है। वह निकलने का प्रयत्न भी करता है, मन को नियंत्रित करने का यत्न करता है, जप तप करता है तथा शास्त्रों में शान्ति को खोजता है, परन्तु सफल हो पाना कठिन है। दलदल से निकलने के लिए ऐसे व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता है जो स्वयं दलदल से बाहर खड़ा हो। दलदल में फंसा दूसरा व्यक्ति भी सहायता नहीं कर सकता, क्योंकि वह तो स्वयं धंसता चला जा रहा है। मुख्यस्तु महत्कृपैव महापुरुषों, महानुभावों की कृपा प्राप्त करो, क्योंकि वह स्वयं जगत में रहकर भी जगत के बाहर हैं।
परम-प्रेम के निरन्तर प्रवाह का नाम ही भक्ति है। कभी भक्ति की, कभी उधर से उदासीन होकर जगत व्यवहार में लग गए। यह तो भक्ति नहीं, जिस प्रकार नदी की स्वाभाविक जल धारा रात-दिन, प्रतिक्षण बहती रहती है, उसी प्रकार हृदय भी परम-प्रेम से हरदम ढका रहे। वासना, कामना तथा जगत विषयों को हृदय में प्रवेश का अवसर ही प्राप्त न हो। प्रियतम प्रभु हर दम अभिमुख बना रहे। उसकी रासलीला चौबीसों घण्टे चलती रहे तथा भक्त उसके आनन्द तथा मधुरता में ही डूबा रहे, यही परम-प्रेम-रूपा भक्ति का स्वरूप है।
भागवत में लिखा है, कलयुग आएगा तो ऐसे मिलेंगे संकेत...
यदुवंश के मृत व्यक्तियों का श्राद्ध अर्जुन ने विधिपूर्वक करवाया। भगवान के न रहने पर समुद्र ने एकमात्र भगवान श्रीकृष्ण का निवास स्थान छोड़कर एक ही क्षण में सारी द्वारिका डुबो दी।पिण्डदान के पश्चात स्त्रियों, बच्चों और बूढ़ों को लेकर अर्जुन इन्द्रप्रस्थ आए। वहां सबको यथायोग्य बसाकर अनिरुद्ध के पुत्र वज्र का राज्याभिषेक कर दिया। हे परीक्षित्! तुम्हारे दादा युधिष्ठिर आदि पाण्डवों को अर्जुन से ही यह बात मालूम हुई कि यदुवंशियों का संहार हो गया है। तब उन्होंने अपने वंशधर तुम्हें राज्यपद पर अभिषिक्त करके हिमालय की वीरयात्रा की।
परीक्षित ने शापित होने के कारण शुकदेवजी से जो कथा सुनी थी उसके नायक भगवान श्रीकृष्ण थे। नायक अपनी लीला समेट कर जा चुके हैं और परीक्षित के मन में अनेक छोटे-बड़े प्रश्न पुन: तैयार हो गए हैं। शुकदेवजी परीक्षित को समझा चुके हैं कि मैंने विस्तार से कृष्ण चरित्र सुनाया है और तुम जान गए होंगे कि धर्म क्या है? जीवन का आरंभ, मध्य और समापन कैसे होता है? इस प्रकार ग्यारहवें स्कंध का समापन होता है।
आइए, इसी के साथ भागवत की कथा अब बारहवें स्कंध में प्रवेश कर रही है। यहां कलयुग का वर्णन आएगा। शुकदेवजी ने जिस बारीकी से और विस्तार के साथ कलयुग का वर्णन किया है हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। अब जो चित्रण आएगा उससे हम अच्छी तरह से परिचित हैं, लेकिन हमें अब उससे सीखना है कि कलयुग की घटनाएं हमारे भीतर न जन्म लेने लगे। बाहर के दुनियादारी के जीवन में कलयुग का होना स्वाभाविक है। बारहवें स्कंध से हम यह सीखें कि हमारे भीतर कलयुग की स्थिति न बन जाए।
कलयुग तो प्रतीक्षा ही कर रहा था कि भगवान जाएं और मैं आऊं। जब-जब जीवन से भगवान गए, कलयुग आया। भगवान कह रहे हैं अब मैं जा रहा हूं, आप कलयुग को पहचानिए, जानिए। द्वादश स्कंध के आरंभ में शुकदेवजी कलयुग के बारे में जानकारी दे रहे हैं। कलयुग आएगा तो हमको दिखेगा जीवन का विपरीत घट रहा है। कलयुग में वो लोग जो नीचे बैठे हुए, ऊपर नजर आएंगे। कलयुग जब आएगा तो पापी व्यक्ति जो हैं वे पूजे जाएंगे। कलयुग जब आएगा तो अयोग्य लोग समर्थों पर राज करेंगे। कलयुग जब आएगा तो जो चोर होगा वह साहूकार के रूप में पूजा जाने लगेगा। जो जोर से बोलेगा उसकी बात सुनी जाएगी। भगवान कलयुग का लम्बा-चौड़ा वर्णन करते हैं और हम तो कलयुग को अच्छी तरह से परिचित हैं।
'समय-समय की बात है और समय-समय का योग, लाखों में बिकने लगे दो कौड़ी के लोग।कलयुग में ऐसा होता है। जो पतीत है, जो चरित्र से गिरा है वह ऊपर चला जाता है। 'गिरने वाला तो छू गया बुलंदी आसमान की और जो संभलकर चल रहे थे वो रेंगते नजर आए इसका नाम कलयुग है। कलयुग में कौन किसकी मदद कर रहा है यह पता ही नहीं लगता। आपको जो सहयोगी दिख रहा है वह पीछे षडयंत्र कर रहा होगा। कलयुग में कौन आपसे प्रेम से बात कर रहा है यह ज्ञात ही नहीं होता। कलयुग में आपका शत्रु है या मित्र है यह भान ही नहीं होता। कलयुग में मनुष्य प्रेम प्रदर्शन के, एक-दूसरे से हिसाब-किताब चुकाने के नए-नए तरीके ढूंढ लेता है।
मौत से डरने वालों का ऐसा होता है हाल...
सूतजी शौनकादिजी से बोल रहे हैं- सुनो अब समापन होने जा रहा है। मैं जो कथा तुम्हें सुना रहा था, शुकदेवजी परीक्षित को सुना रहे थे अब दृश्य ऐसा हो गया शुकदेवजी गए। परीक्षित अकेले हैं, मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं। परीक्षितजी ध्यान में बैठ गए। आंखें बंद की, अपनी ऊर्जा को ऊपर लिया, अपने प्राणों को नियंत्रण में किया। आज्ञा चक्र से उठकर ऊर्जा सहस्त्रार पर हैं और आदेश दिया अपने प्राण को मुक्त हो एकदम से प्राण मुक्त हुए, अब केवल देह रह गई। परीक्षितजी दूर खड़े अपनी देह को देख रहे हैं।
ये दृश्य बहुत कम लोग देख पाते हैं। कोई शांत मन से अपनी देह का मोह छोड़े मृत्यु के स्वागत में बैठा है। वो राजा परीक्षित सात दिन पहले जो चक्रवर्ती सम्राट थे। भगवान श्रीकृष्ण ने खुद जिन्हें जीवन दान दिया था। मृत्यु के मुख से बचाकर लाए थे। महान पांडवों का वो वंशज था। दुनियाभर के वैभव, सुख और जिसने भोग किया। परमपराक्रमी और धर्म के तत्व को जानने वाला राजा परीक्षित आज सब कुछ छोड़कर अपनी मृत्यु के इंतजार में बैठ गया है। बिना डरे, बिना किसी असमंजस के। दुनिया में कई शूरवीरों को धूल चटा देने वाला योद्धा आज खाली हाथ मौत से मिलने के लिए बैठा है।आइए उस दृश्य को देखें। तक्षक ने जैसे ही प्रवेश किया, तकक्ष यानी मृत्यु आई है। आज तक्षक के रूप मृत्यु पहली बार अपने जीवन में शरमा गई। मृत्यु ने कहा- यह क्या हुआ मेरा तो सारा आतंक, मेरा सारा अभिमान, भय है और जिस व्यक्ति को मैं मारने आई हूं यह तो निर्भय खड़ा है, दूर खड़ा देख रहा है इसको कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और मुस्कुराते हुए स्वागत किया जा रहा है।
आज मृत्यु शरमा गई। मौत का सारा आतंक किसमें है, भय में है। दुनिया में सारा आतंक भय के कारण है अगर आपके मन से भय दूर हो जाए तो सारा आतंक खुद-ब-खुद दूर हो जाएगा।एक गांव में हैजा फैला तो हजार लोग मर गए। गांव के बाहर एक फकीर बैठा था उसने देखा रात को त्राही-त्राही मची और छम-छम करती हुई एक काली सी औरत जा रही है। उसने पूछा देवी आप कौन हैं? वह बोली- मैं मृत्यु की देवी हूं। इस गांव में हजार लोग मारने आई थी कल फिर आऊंगी, क्योंकि हजार और मारना है।
फकीर ने कहा - कल देखेंगे। कल हुआ, पर मर गए दो हजार। जब वो जा रही थी तो फकीर ने उसको रोककर पूछा- तुमने तो कहा था हजार लोग मारने आओगी, पर संख्या तो दो हजार की हो गई। जिंदगी झूठ बोलती है यह तो सुना था पर मौत भी झूठ बोलती है यह आज देखा मैंने। तुमने हजार की जगह दो हजार मार दिए। मौत ने बड़ा सुंदर जवाब दिया- मैं तो हजार ही मारने आई थी और हजार का ही विधान था, बाकी जो एक्स्ट्रा एक हजार मरे वो मेरे डर के मारे मर गए। आदमी डर के मारे ही मर जाता है।
भगवान का श्रीविग्रह उपासकों के ध्यान और धारणा का मंगलमय आधार और समस्त लोकों के लिए परम रमणीय आश्रय है।इसलिए तय कर लें, आश्रय किसका रखें। प्रभु ने सृष्टि की संरचना बड़े सुन्दर ढंग से की है। उसने जीवन के दु:खों-क्लेशों की पृष्ठभूमि में आनन्द एवं प्रेम का अथाह एवं अनन्त समुद्र छुपा कर रखा है।
यह मनुष्य के ऊपर ही छोड़ दिया है कि चाहे तो वह जगत विषयों के पीछे लग कर, जीवन में दु:ख एवं अशांति को भोगता रहे तथा चाहे तो आनन्द समुद्र में गोते लगाकर परम शान्ति को प्राप्त करे। भक्ति जगत विषयों की गंदी नालियों से निकालकर, अन्दर में ही विद्यमान प्रेम एवं आनन्द समुद्र की ओर अग्रसर करने का मार्ग है।
आवश्यकता है केवल मनुष्य के चेत जाने की। पहले तो उसे इस बात का आभास होना चाहिए कि वह विषय के दलदल में फंसकर रह गया है, उसे इसमें से बाहर निकलना है। वह निकलने का प्रयत्न भी करता है, मन को नियंत्रित करने का यत्न करता है, जप तप करता है तथा शास्त्रों में शान्ति को खोजता है, परन्तु सफल हो पाना कठिन है। दलदल से निकलने के लिए ऐसे व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता है जो स्वयं दलदल से बाहर खड़ा हो। दलदल में फंसा दूसरा व्यक्ति भी सहायता नहीं कर सकता, क्योंकि वह तो स्वयं धंसता चला जा रहा है। मुख्यस्तु महत्कृपैव महापुरुषों, महानुभावों की कृपा प्राप्त करो, क्योंकि वह स्वयं जगत में रहकर भी जगत के बाहर हैं।
परम-प्रेम के निरन्तर प्रवाह का नाम ही भक्ति है। कभी भक्ति की, कभी उधर से उदासीन होकर जगत व्यवहार में लग गए। यह तो भक्ति नहीं, जिस प्रकार नदी की स्वाभाविक जल धारा रात-दिन, प्रतिक्षण बहती रहती है, उसी प्रकार हृदय भी परम-प्रेम से हरदम ढका रहे। वासना, कामना तथा जगत विषयों को हृदय में प्रवेश का अवसर ही प्राप्त न हो। प्रियतम प्रभु हर दम अभिमुख बना रहे। उसकी रासलीला चौबीसों घण्टे चलती रहे तथा भक्त उसके आनन्द तथा मधुरता में ही डूबा रहे, यही परम-प्रेम-रूपा भक्ति का स्वरूप है।
भागवत में लिखा है, कलयुग आएगा तो ऐसे मिलेंगे संकेत...
यदुवंश के मृत व्यक्तियों का श्राद्ध अर्जुन ने विधिपूर्वक करवाया। भगवान के न रहने पर समुद्र ने एकमात्र भगवान श्रीकृष्ण का निवास स्थान छोड़कर एक ही क्षण में सारी द्वारिका डुबो दी।पिण्डदान के पश्चात स्त्रियों, बच्चों और बूढ़ों को लेकर अर्जुन इन्द्रप्रस्थ आए। वहां सबको यथायोग्य बसाकर अनिरुद्ध के पुत्र वज्र का राज्याभिषेक कर दिया। हे परीक्षित्! तुम्हारे दादा युधिष्ठिर आदि पाण्डवों को अर्जुन से ही यह बात मालूम हुई कि यदुवंशियों का संहार हो गया है। तब उन्होंने अपने वंशधर तुम्हें राज्यपद पर अभिषिक्त करके हिमालय की वीरयात्रा की।
परीक्षित ने शापित होने के कारण शुकदेवजी से जो कथा सुनी थी उसके नायक भगवान श्रीकृष्ण थे। नायक अपनी लीला समेट कर जा चुके हैं और परीक्षित के मन में अनेक छोटे-बड़े प्रश्न पुन: तैयार हो गए हैं। शुकदेवजी परीक्षित को समझा चुके हैं कि मैंने विस्तार से कृष्ण चरित्र सुनाया है और तुम जान गए होंगे कि धर्म क्या है? जीवन का आरंभ, मध्य और समापन कैसे होता है? इस प्रकार ग्यारहवें स्कंध का समापन होता है।
आइए, इसी के साथ भागवत की कथा अब बारहवें स्कंध में प्रवेश कर रही है। यहां कलयुग का वर्णन आएगा। शुकदेवजी ने जिस बारीकी से और विस्तार के साथ कलयुग का वर्णन किया है हमारी आंखें खोलने के लिए काफी है। अब जो चित्रण आएगा उससे हम अच्छी तरह से परिचित हैं, लेकिन हमें अब उससे सीखना है कि कलयुग की घटनाएं हमारे भीतर न जन्म लेने लगे। बाहर के दुनियादारी के जीवन में कलयुग का होना स्वाभाविक है। बारहवें स्कंध से हम यह सीखें कि हमारे भीतर कलयुग की स्थिति न बन जाए।
कलयुग तो प्रतीक्षा ही कर रहा था कि भगवान जाएं और मैं आऊं। जब-जब जीवन से भगवान गए, कलयुग आया। भगवान कह रहे हैं अब मैं जा रहा हूं, आप कलयुग को पहचानिए, जानिए। द्वादश स्कंध के आरंभ में शुकदेवजी कलयुग के बारे में जानकारी दे रहे हैं। कलयुग आएगा तो हमको दिखेगा जीवन का विपरीत घट रहा है। कलयुग में वो लोग जो नीचे बैठे हुए, ऊपर नजर आएंगे। कलयुग जब आएगा तो पापी व्यक्ति जो हैं वे पूजे जाएंगे। कलयुग जब आएगा तो अयोग्य लोग समर्थों पर राज करेंगे। कलयुग जब आएगा तो जो चोर होगा वह साहूकार के रूप में पूजा जाने लगेगा। जो जोर से बोलेगा उसकी बात सुनी जाएगी। भगवान कलयुग का लम्बा-चौड़ा वर्णन करते हैं और हम तो कलयुग को अच्छी तरह से परिचित हैं।
'समय-समय की बात है और समय-समय का योग, लाखों में बिकने लगे दो कौड़ी के लोग।कलयुग में ऐसा होता है। जो पतीत है, जो चरित्र से गिरा है वह ऊपर चला जाता है। 'गिरने वाला तो छू गया बुलंदी आसमान की और जो संभलकर चल रहे थे वो रेंगते नजर आए इसका नाम कलयुग है। कलयुग में कौन किसकी मदद कर रहा है यह पता ही नहीं लगता। आपको जो सहयोगी दिख रहा है वह पीछे षडयंत्र कर रहा होगा। कलयुग में कौन आपसे प्रेम से बात कर रहा है यह ज्ञात ही नहीं होता। कलयुग में आपका शत्रु है या मित्र है यह भान ही नहीं होता। कलयुग में मनुष्य प्रेम प्रदर्शन के, एक-दूसरे से हिसाब-किताब चुकाने के नए-नए तरीके ढूंढ लेता है।
मौत से डरने वालों का ऐसा होता है हाल...
सूतजी शौनकादिजी से बोल रहे हैं- सुनो अब समापन होने जा रहा है। मैं जो कथा तुम्हें सुना रहा था, शुकदेवजी परीक्षित को सुना रहे थे अब दृश्य ऐसा हो गया शुकदेवजी गए। परीक्षित अकेले हैं, मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं। परीक्षितजी ध्यान में बैठ गए। आंखें बंद की, अपनी ऊर्जा को ऊपर लिया, अपने प्राणों को नियंत्रण में किया। आज्ञा चक्र से उठकर ऊर्जा सहस्त्रार पर हैं और आदेश दिया अपने प्राण को मुक्त हो एकदम से प्राण मुक्त हुए, अब केवल देह रह गई। परीक्षितजी दूर खड़े अपनी देह को देख रहे हैं।
ये दृश्य बहुत कम लोग देख पाते हैं। कोई शांत मन से अपनी देह का मोह छोड़े मृत्यु के स्वागत में बैठा है। वो राजा परीक्षित सात दिन पहले जो चक्रवर्ती सम्राट थे। भगवान श्रीकृष्ण ने खुद जिन्हें जीवन दान दिया था। मृत्यु के मुख से बचाकर लाए थे। महान पांडवों का वो वंशज था। दुनियाभर के वैभव, सुख और जिसने भोग किया। परमपराक्रमी और धर्म के तत्व को जानने वाला राजा परीक्षित आज सब कुछ छोड़कर अपनी मृत्यु के इंतजार में बैठ गया है। बिना डरे, बिना किसी असमंजस के। दुनिया में कई शूरवीरों को धूल चटा देने वाला योद्धा आज खाली हाथ मौत से मिलने के लिए बैठा है।आइए उस दृश्य को देखें। तक्षक ने जैसे ही प्रवेश किया, तकक्ष यानी मृत्यु आई है। आज तक्षक के रूप मृत्यु पहली बार अपने जीवन में शरमा गई। मृत्यु ने कहा- यह क्या हुआ मेरा तो सारा आतंक, मेरा सारा अभिमान, भय है और जिस व्यक्ति को मैं मारने आई हूं यह तो निर्भय खड़ा है, दूर खड़ा देख रहा है इसको कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और मुस्कुराते हुए स्वागत किया जा रहा है।
आज मृत्यु शरमा गई। मौत का सारा आतंक किसमें है, भय में है। दुनिया में सारा आतंक भय के कारण है अगर आपके मन से भय दूर हो जाए तो सारा आतंक खुद-ब-खुद दूर हो जाएगा।एक गांव में हैजा फैला तो हजार लोग मर गए। गांव के बाहर एक फकीर बैठा था उसने देखा रात को त्राही-त्राही मची और छम-छम करती हुई एक काली सी औरत जा रही है। उसने पूछा देवी आप कौन हैं? वह बोली- मैं मृत्यु की देवी हूं। इस गांव में हजार लोग मारने आई थी कल फिर आऊंगी, क्योंकि हजार और मारना है।
फकीर ने कहा - कल देखेंगे। कल हुआ, पर मर गए दो हजार। जब वो जा रही थी तो फकीर ने उसको रोककर पूछा- तुमने तो कहा था हजार लोग मारने आओगी, पर संख्या तो दो हजार की हो गई। जिंदगी झूठ बोलती है यह तो सुना था पर मौत भी झूठ बोलती है यह आज देखा मैंने। तुमने हजार की जगह दो हजार मार दिए। मौत ने बड़ा सुंदर जवाब दिया- मैं तो हजार ही मारने आई थी और हजार का ही विधान था, बाकी जो एक्स्ट्रा एक हजार मरे वो मेरे डर के मारे मर गए। आदमी डर के मारे ही मर जाता है।
बुधवार, 4 अप्रैल 2012
जानें, हनुमान मूर्तिं की पूजा का क्या होता है प्रभाव?
श्री हनुमान भक्ति धर्म, गुण, आचरण, विचार, मर्यादा, बल और संस्कार से जोड़ देती है। श्री हनुमान के इस दिव्य चरित्र के कारण भी चिरंजीवी और कालजयी है। यही कारण है कि हर युग और काल में श्री हनुमान का स्मरण सुखदायी और संकटनाशक माना गया है। श्री हनुमान के प्रति ऐसी आस्था और विश्वास के साथ उनके अलग-अलग रूप पूजनीय है।
हनुमान जयंती के पुण्य अवसर पर हम यहां बता रहें हैं श्री हनुमान की कुछ विशेष मूर्तियों की उपासना से कौन-सी कामनाओं की पूर्ति और शक्तियां प्राप्त होती है?
वीर हनुमान - वीर हनुमान की प्रतिमा की पूजा साहस, बल, पराक्रम, आत्मविश्वास देकर कार्य की बाधाओं को दूर करती है।
भक्त हनुमान - राम भक्ति में लीन भक्त हनुमान की उपासना जीवन के लक्ष्य को पाने में आ रहीं अड़चनों को दूर करती है। साथ ही भक्ति की तरह वह मकसद पाने के लिए जरूरी एकाग्रता, लगन देने वाली होती है।
दास हनुमान - दास हनुमान की उपासना सेवा और समर्पण के भाव से जोड़ती है। धर्म, कार्य और रिश्तों के प्रति समर्पण और सेवा की कामना से दास हनुमान को पूजें।
सूर्यमुखी हनुमान - शास्त्रों के मुताबिक सूर्यदेव श्री हनुमान के गुरु हैं। सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर जगत को प्रकाशित करता है। सूर्य व प्रकाश क्रमश: गति और ज्ञान के भी प्रतीक हैं। इस तरह सूर्यमुखी हनुमान की उपासना ज्ञान, विद्या, ख्याति, उन्नति और सम्मान की कामना पूरी करती है।
दक्षिणामुखी हनुमान - दक्षिण दिशा काल की दिशा मानी जाती है। वहीं श्री हनुमान रुद्र अवतार माने जाते हैं, जो काल के नियंत्रक है। इसलिए दक्षिणामुखी हनुमान की साधना काल, भय, संकट और चिंता का नाश करने वाली होती है।
उत्तरामुखी हनुमान - उत्तर दिशा देवताओं की मानी जाती है। यही कारण है कि शुभ और मंगल की कामना उत्तरामुखी हनुमान की उपासना से पूरी होती है।
हनुमान जयंती के पुण्य अवसर पर हम यहां बता रहें हैं श्री हनुमान की कुछ विशेष मूर्तियों की उपासना से कौन-सी कामनाओं की पूर्ति और शक्तियां प्राप्त होती है?
वीर हनुमान - वीर हनुमान की प्रतिमा की पूजा साहस, बल, पराक्रम, आत्मविश्वास देकर कार्य की बाधाओं को दूर करती है।
भक्त हनुमान - राम भक्ति में लीन भक्त हनुमान की उपासना जीवन के लक्ष्य को पाने में आ रहीं अड़चनों को दूर करती है। साथ ही भक्ति की तरह वह मकसद पाने के लिए जरूरी एकाग्रता, लगन देने वाली होती है।
दास हनुमान - दास हनुमान की उपासना सेवा और समर्पण के भाव से जोड़ती है। धर्म, कार्य और रिश्तों के प्रति समर्पण और सेवा की कामना से दास हनुमान को पूजें।
सूर्यमुखी हनुमान - शास्त्रों के मुताबिक सूर्यदेव श्री हनुमान के गुरु हैं। सूर्य पूर्व दिशा से उदय होकर जगत को प्रकाशित करता है। सूर्य व प्रकाश क्रमश: गति और ज्ञान के भी प्रतीक हैं। इस तरह सूर्यमुखी हनुमान की उपासना ज्ञान, विद्या, ख्याति, उन्नति और सम्मान की कामना पूरी करती है।
दक्षिणामुखी हनुमान - दक्षिण दिशा काल की दिशा मानी जाती है। वहीं श्री हनुमान रुद्र अवतार माने जाते हैं, जो काल के नियंत्रक है। इसलिए दक्षिणामुखी हनुमान की साधना काल, भय, संकट और चिंता का नाश करने वाली होती है।
उत्तरामुखी हनुमान - उत्तर दिशा देवताओं की मानी जाती है। यही कारण है कि शुभ और मंगल की कामना उत्तरामुखी हनुमान की उपासना से पूरी होती है।
हर सुबह बोलें यह हनुमान मंत्र..
अशुभ बातों से बचेंगे
सांसारिक जीवन की आपाधापी में हर इंसान जीवन से जुड़े हर काम में अच्छे नतीजे ही चाहता है। लेकिन जीवन ही कैसे अच्छा बना लें? इस बारे में बिरले लोग ही विचार कर पाते हैं। अगर जीवन को ही अच्छे आचरण, अनुशासन और संकल्पों से जोड़ लिया जाए तो फिर किसी भी कार्य की सफलता में भय, संशय पैदा नहीं होता।
हनुमान भक्ति जीवन में अच्छे आचरण को अपनाने के लिये सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। शास्त्रों में हनुमान का स्मरण किसी भी वक्त अच्छे कामों व सोच की प्रेरणा ही देता है। इसलिए शास्त्रों में बताया गया विशेष हनुमान मंत्र हर रोज सुबह खासतौर पर हनुमान जयंती यानी चैत्र शुक्ल पूर्णिमा पर स्मरण किया जाए तो लक्ष्य की सफलता को लेकर पैदा होने वाले भय-संशय व बाधाएं खत्म हो जाते हैं। साथ ही अशुभ बातों से हमेशा रक्षा होती है। जानिए हैं यह मंत्र -
- स्नान के बाद श्री हनुमान प्रतिमा को पवित्र जल से स्नान कराने अष्टगंध, लाल चंदन, तिल का तेल और सिंदूर, सुपारी, नारियल, लाल फूलों की माला व गुड़ अर्पित करे।
- यथासंभव लाल वस्त्र पहन उत्तर दिशा की ओर मुख कर लाल आसन पर बैठ सामने श्री हनुमान की तस्वीर रख नीचे लिखे मंत्र हनुमान स्वरूप का ध्यान कर सुखी, समृद्ध व संकटमुक्त जीवन की कामना से करें -
उद्यन्मार्तण्ड कोटि प्रकटरूचियुक्तंचारूवीरासनस्थं।
मौंजीयज्ञोपवीतारूण रूचिर शिखा शोभितं कुंडलांकम्।
भक्तानामिष्टदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनाद प्रमोदं।
ध्यायेद्नित्यं विधेयं प्लवगकुलपतिगोष्पदी भूतवारिम्।।
- मंत्र स्मरण के बाद मिठाई का भोग लगा धूप, दीप व कर्पूर आरती करें व क्षमा प्रार्थना करे।
सांसारिक जीवन की आपाधापी में हर इंसान जीवन से जुड़े हर काम में अच्छे नतीजे ही चाहता है। लेकिन जीवन ही कैसे अच्छा बना लें? इस बारे में बिरले लोग ही विचार कर पाते हैं। अगर जीवन को ही अच्छे आचरण, अनुशासन और संकल्पों से जोड़ लिया जाए तो फिर किसी भी कार्य की सफलता में भय, संशय पैदा नहीं होता।
हनुमान भक्ति जीवन में अच्छे आचरण को अपनाने के लिये सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। शास्त्रों में हनुमान का स्मरण किसी भी वक्त अच्छे कामों व सोच की प्रेरणा ही देता है। इसलिए शास्त्रों में बताया गया विशेष हनुमान मंत्र हर रोज सुबह खासतौर पर हनुमान जयंती यानी चैत्र शुक्ल पूर्णिमा पर स्मरण किया जाए तो लक्ष्य की सफलता को लेकर पैदा होने वाले भय-संशय व बाधाएं खत्म हो जाते हैं। साथ ही अशुभ बातों से हमेशा रक्षा होती है। जानिए हैं यह मंत्र -
- स्नान के बाद श्री हनुमान प्रतिमा को पवित्र जल से स्नान कराने अष्टगंध, लाल चंदन, तिल का तेल और सिंदूर, सुपारी, नारियल, लाल फूलों की माला व गुड़ अर्पित करे।
- यथासंभव लाल वस्त्र पहन उत्तर दिशा की ओर मुख कर लाल आसन पर बैठ सामने श्री हनुमान की तस्वीर रख नीचे लिखे मंत्र हनुमान स्वरूप का ध्यान कर सुखी, समृद्ध व संकटमुक्त जीवन की कामना से करें -
उद्यन्मार्तण्ड कोटि प्रकटरूचियुक्तंचारूवीरासनस्थं।
मौंजीयज्ञोपवीतारूण रूचिर शिखा शोभितं कुंडलांकम्।
भक्तानामिष्टदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनाद प्रमोदं।
ध्यायेद्नित्यं विधेयं प्लवगकुलपतिगोष्पदी भूतवारिम्।।
- मंत्र स्मरण के बाद मिठाई का भोग लगा धूप, दीप व कर्पूर आरती करें व क्षमा प्रार्थना करे।
संकटों को दूर करता है यह हनुमान मंत्र
जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी कोई विरोधी परेशान करता है तो कभी घर के किसी सदस्य को बीमार घेर लेती है। इनके अलावा भी जीवन में परेशानियों का आना-जाना लगा ही रहता है। ऐसे में हनुमानजी की आराधना करना ही सबसे श्रेष्ठ है। इस बार 6 अप्रैल, शुक्रवार को हनुमान जयंती है। हनुमानजी की कृपा पाने का यह बहुत ही उचित अवसर है। यदि आप चाहते हैं कि आपके जीवन में कोई संकट न आए तो नीचे लिखे मंत्र का जप हनुमान जयंती के दिन करें। प्रति मंगलवार को भी इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
मंत्र
ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा
जप विधि
- सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें।
- इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुल देवता को नमन कर कुश का आसन ग्रहण करें।
- पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जप करेंगे तो विशेष फल मिलता है।
+
- जप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें।
मंत्र
ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा
जप विधि
- सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें।
- इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुल देवता को नमन कर कुश का आसन ग्रहण करें।
- पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जप करेंगे तो विशेष फल मिलता है।
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- जप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें।
हनुमान जयंती पर विशेष
जानिए कैसे हुआ हनुमान का जन्म
भगवान शंकर के हनुमान अवतार की पूजा पुरातन काल से ही शक्ति के प्रतीक के रूप में की जा रही है। हनुमान के जन्म के संबंध में धर्मग्रंथों में कई कथाएं प्रचलित हैं। उसी के अनुसार-
भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए। हनुमान जी सब विद्याओं का अध्ययन कर पत्नी वियोग से व्याकुल रहने वाले सुग्रीव के मंत्री बन गए।
उन्होंने पत्नीहरण से खिन्न व भटकते रामचंद्रजी की सुग्रीव से मित्रता कराई। सीता की खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए। हनुमान ने राम-रावण युद्ध ने भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए। अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया। इस प्रकार हनुमान अवतार लेकर भगवान शिव ने अपने परम भक्त श्रीराम की सहायता की।
भगवान शंकर के हनुमान अवतार की पूजा पुरातन काल से ही शक्ति के प्रतीक के रूप में की जा रही है। हनुमान के जन्म के संबंध में धर्मग्रंथों में कई कथाएं प्रचलित हैं। उसी के अनुसार-
भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए। हनुमान जी सब विद्याओं का अध्ययन कर पत्नी वियोग से व्याकुल रहने वाले सुग्रीव के मंत्री बन गए।
उन्होंने पत्नीहरण से खिन्न व भटकते रामचंद्रजी की सुग्रीव से मित्रता कराई। सीता की खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए। हनुमान ने राम-रावण युद्ध ने भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए। अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया। इस प्रकार हनुमान अवतार लेकर भगवान शिव ने अपने परम भक्त श्रीराम की सहायता की।
हनुमान की पूंछ से लंका जलने की वजह!
श्री हनुमान रामायण रूपी माला के रत्न पुकारे गए हैं, क्योंकि श्री हनुमान की लीला और किए गए कार्य अतुलनीय और कल्याणकारी रहे। श्री हनुमान ने जहां राम और माता सीता की सेवा कर भक्ति के आदर्श स्थापित किए, वहीं राक्षसों का मर्दन किया, लक्ष्मण के प्राणदाता बने, देवताओं के भी संकटमोचक बने और भक्तों के लिए कल्याणकारी बने। रामायण में आए श्री हनुमान से जुड़े ऐसे ही अद्भुत संकटमोचन करने वाले प्रसंगों में लंकादहन भी प्रसिद्ध है।
सामान्यत: लंकादहन के संबंध में यही माना जाता है कि सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे और रावण के पुत्र सहित अनेक राक्षसों का अंत कर दिया। तब रावण के पुत्र मेघनाद ने श्री हनुमान को ब्रह्मास्त्र छोड़कर काबू किया और रावण ने श्री हनुमान की पूंछ में आग लगाने का दण्ड दिया। तब उसी जलती पूंछ से श्री हनुमान ने लंका में आग लगा रावण का दंभ चूर किया। किंतु पुराणों में लंकादहन के पीछे भी एक और रोचक बात जुड़ी है, जिसके कारण श्री हनुमान ने पूंछ से लंका में आग लगाई। जानते हैं वह रोचक बात -
दरअसल, श्री हनुमान शिव अवतार है। शिव से ही जुड़ा है यह रोचक प्रसंग। एक बार माता पार्वती की इच्छा पर शिव ने कुबेर से सोने का सुंदर महल का निर्माण करवाया। किंतु रावण इस महल की सुंदरता पर मोहित हो गया। वह ब्राह्मण का वेश रखकर शिव के पास गया। उसने महल में प्रवेश के लिए शिव-पार्वती से पूजा कराकर दक्षिणा के रूप में वह महल ही मांग लिया। भक्त को पहचान शिव ने प्रसन्न होकर वह महल दान दे दिया।
दान में महल प्राप्त करने के बाद रावण के मन में विचार आया कि यह महल असल में माता पार्वती के कहने पर बनाया गया। इसलिए उनकी सहमति के बिना यह शुभ नहीं होगा। तब उसने शिवजी से माता पार्वती को भी मांग लिया और भोलेभंडारी शिव ने इसे भी स्वीकार कर लिया। जब रावण उस सोने के महल सहित मां पार्वती को ले जाना लगा। तब अचंभित और दु:खी माता पार्वती ने विष्णु को स्मरण किया और उन्होंने आकर माता की रक्षा की।
जब माता पार्वती अप्रसन्न हो गई तो शिव ने अपनी गलती को मानते हुए मां पार्वती को वचन दिया कि त्रेतायुग में मैं वानर रूप हनुमान का अवतार लूंगा उस समय तुम मेरी पूंछ बन जाना। जब मैं माता सीता की खोज में इसी सोने के महल यानी लंका जाऊंगा तो तुम पूंछ के रूप में लंका को आग लगाकर रावण को दण्डित करना।
यही प्रसंग भी शिव के श्री हनुमान अवतार और लंकादहन का एक कारण माना जाता है।
सामान्यत: लंकादहन के संबंध में यही माना जाता है कि सीता की खोज करते हुए लंका पहुंचे और रावण के पुत्र सहित अनेक राक्षसों का अंत कर दिया। तब रावण के पुत्र मेघनाद ने श्री हनुमान को ब्रह्मास्त्र छोड़कर काबू किया और रावण ने श्री हनुमान की पूंछ में आग लगाने का दण्ड दिया। तब उसी जलती पूंछ से श्री हनुमान ने लंका में आग लगा रावण का दंभ चूर किया। किंतु पुराणों में लंकादहन के पीछे भी एक और रोचक बात जुड़ी है, जिसके कारण श्री हनुमान ने पूंछ से लंका में आग लगाई। जानते हैं वह रोचक बात -
दरअसल, श्री हनुमान शिव अवतार है। शिव से ही जुड़ा है यह रोचक प्रसंग। एक बार माता पार्वती की इच्छा पर शिव ने कुबेर से सोने का सुंदर महल का निर्माण करवाया। किंतु रावण इस महल की सुंदरता पर मोहित हो गया। वह ब्राह्मण का वेश रखकर शिव के पास गया। उसने महल में प्रवेश के लिए शिव-पार्वती से पूजा कराकर दक्षिणा के रूप में वह महल ही मांग लिया। भक्त को पहचान शिव ने प्रसन्न होकर वह महल दान दे दिया।
दान में महल प्राप्त करने के बाद रावण के मन में विचार आया कि यह महल असल में माता पार्वती के कहने पर बनाया गया। इसलिए उनकी सहमति के बिना यह शुभ नहीं होगा। तब उसने शिवजी से माता पार्वती को भी मांग लिया और भोलेभंडारी शिव ने इसे भी स्वीकार कर लिया। जब रावण उस सोने के महल सहित मां पार्वती को ले जाना लगा। तब अचंभित और दु:खी माता पार्वती ने विष्णु को स्मरण किया और उन्होंने आकर माता की रक्षा की।
जब माता पार्वती अप्रसन्न हो गई तो शिव ने अपनी गलती को मानते हुए मां पार्वती को वचन दिया कि त्रेतायुग में मैं वानर रूप हनुमान का अवतार लूंगा उस समय तुम मेरी पूंछ बन जाना। जब मैं माता सीता की खोज में इसी सोने के महल यानी लंका जाऊंगा तो तुम पूंछ के रूप में लंका को आग लगाकर रावण को दण्डित करना।
यही प्रसंग भी शिव के श्री हनुमान अवतार और लंकादहन का एक कारण माना जाता है।
हनुमान पूजा का संकटमोचक उपाय
श्री हनुमान रुद्र के ग्यारहवें अवतार माने गए हैं। रुद्र यानी दु:खों का नाश करने वाले देवता। शिव का यह रूप कल्याणकारी माना गया है। शास्त्र भी कहते हैं कि शिव ही परब्रह्म है, जो अलग-अलग रूपों में जगत की रचना, पालन और संहार शक्तियों का नियंत्रण करते हैं ।
शिव के प्रति इस भाव व आस्था से ही श्री हनुमान की पूजा भी दोष, कष्ट, बाधाओं व संकट को शांत करने वाली मानी गई है।
ऐसी ही मंगल की कामना से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा यानी हनुमान जयंती को हनुमान पूजा में अपनाए एक ऐसा अचूक उपाय जो न केवल आसान है, बल्कि संकटमोचक भी है। यह उपाय है तेल का दीप लगाकर मंत्र विशेष का ध्यान। जानिए यह सरल विधि व मंत्र -
- श्री हनुमानजी की पूजा सिंदूर, अक्षत, फूल अर्पित करें और धूप व दीप से पूजा करें।
- पूजा में सरसों या तिल के तेल का दीप लगाएं। दीपक लगाते वक्त यह दीप मंत्र बोलें -
साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहन्तु देवेशास्त्रैलौक्यतिमिरापहम्।।
- दीप लगाने के बाद इस हनुमान मंत्र का यथाशक्ति जप करने के बाद इस दीप से आरती करें -
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्
- आरती के बाद मंत्र जप, पूजा या आरती में हुई गलती के लिए क्षमा मांगे और अनिष्ट शांति की कामना करें।
शिव के प्रति इस भाव व आस्था से ही श्री हनुमान की पूजा भी दोष, कष्ट, बाधाओं व संकट को शांत करने वाली मानी गई है।
ऐसी ही मंगल की कामना से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा यानी हनुमान जयंती को हनुमान पूजा में अपनाए एक ऐसा अचूक उपाय जो न केवल आसान है, बल्कि संकटमोचक भी है। यह उपाय है तेल का दीप लगाकर मंत्र विशेष का ध्यान। जानिए यह सरल विधि व मंत्र -
- श्री हनुमानजी की पूजा सिंदूर, अक्षत, फूल अर्पित करें और धूप व दीप से पूजा करें।
- पूजा में सरसों या तिल के तेल का दीप लगाएं। दीपक लगाते वक्त यह दीप मंत्र बोलें -
साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहन्तु देवेशास्त्रैलौक्यतिमिरापहम्।।
- दीप लगाने के बाद इस हनुमान मंत्र का यथाशक्ति जप करने के बाद इस दीप से आरती करें -
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्
- आरती के बाद मंत्र जप, पूजा या आरती में हुई गलती के लिए क्षमा मांगे और अनिष्ट शांति की कामना करें।
रविवार, 1 अप्रैल 2012
जानिए निर्मल बाबा को
39 चैनलों पर 25 घंटे चलता है 'दरबार'
लाखों भक्त होने और उनकी समस्याओं को चुटकियों में हल सुझाने का दावा करने वाले निर्मल बाबा को लेकर लोगों का कौतूहल लगातार बढ़ रहा है। सोशल साइट्स पर बाबा को लेकर खूब टिप्पणियां चल रही हैं। इनमें से कई उन पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो कई उनका वंदन भी कर रहे हैं।
निर्मल बाबा को लेकर लोगों का सस्पेंस इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि उनके बारे में कोई भी जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है। इंटरनेट या मीडिया में भी उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं छपा है, लेकिन उनकी चर्चा जबरदस्त है। गूगल पर अंग्रेजी में निर्मल बाबा टाइप करने पर आधे मिनट में करीब 29 लाख सर्च रिजल्ट्स सामने आते हैं। पर गूगल न्यूज में यही टाइप करने पर मात्र आठ सर्च रिजल्ट्स ही दिखाई देते हैं। और, इन आठ में से एक में भी निर्मल बाबा के बारे में कोई खबर नहीं होती।
निर्मल बाबा ने लोगों तक पहुंचने के लिए सोशल साइट्स का भरपूर सहारा लिया है। फेसबुक पर निर्मल बाबा के प्रशंसकों का पेज है, जिसे करीब 318100 लोग पसंद करते हैं। इस पेज पर निर्मल बाबा के टीवी कार्यक्रमों का समय और उनकी तारीफ से जुड़ी टिप्पणियां हैं। ट्विटर पर 1 अप्रैल सुबह दस बजे तक उन्हें 39244 लोग फॉलो कर रहे हैं। लेकिन इन सोशल साइट्स पर निर्मल बाबा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। केवल व्यावसायिक जानकारियां ही साझा की गई हैं।
निर्मल बाबा के जीवन या उनकी पृष्ठभूमि के बारे में उनकी आधिकारिक वेबसाइट निर्मलबाबा. कॉम पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस वेबसाइट पर उनके कार्यक्रमों, उनके समागम में हिस्सा लेने के तरीकों के बारे में बताया गया है और उनसे जुड़ी प्रचार प्रसार की सामग्री उपलब्ध है। लेकिन एक अन्य वेबसाइट निर्मलबाबा.नेट.इन उनके बारे में कई दावे करती है। हालांकि, निर्मलबाबा.कॉम में बताया गया है कि निर्मलबाबा.नेट.इन एक फर्जी वेबसाइट है।
निर्मलबाबा.नेट.इन वेबसाइट के मुताबिक निर्मल बाबा आध्यात्मिक गुरु हैं और भारत में वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इस वेबसाइट पर उन्हें दैवीय मनुष्य बताया गया है। उनकी शान में कसीदे गढ़ते हुए बताया गया है कि किसी भी इंसान का सबसे बड़ा गुण 'देना' होता है और निर्मल बाबा लंबे समय से लोगों को खुशियां दे रहे हैं। निर्मलबाबा.नेट.इन के मुताबिक निर्मल बाबा के पास छठी इंद्रिय (सिक्स्थ सेंस) है। कई लोग मानते हैं कि रहस्यमयी छठी इंद्रिय विकसित होने से मनुष्य को भविष्य में होने वाली घटना के बारे में पहले से ही पता चल जाता है। निर्मलबाबा.नेट.इन के मुताबिक निर्मल बाबा की छठी इंद्रिय विकसित है। शायद इसलिए उनके समागम का शीर्षक ही 'थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा' होता है।
निर्मलबाबा.नेट.इन के अनुसार, 'निर्मल बाबा नई दिल्ली में रहने वाले आध्यात्मिक गुरु हैं। वे 10 साल पहले साधारण व्यक्ति थे। लेकिन बाद में उन्होंने ईश्वर के प्रति समर्पण से अपने भीतर अद्वितीय शक्तियों का विकास किया। ध्यान के बल पर वह ट्रांस (भौतिक संसार से परे किसी और दुनिया में) में चले जाते हैं। ऐसा करने पर वह ईश्वर से मार्गदर्शन ग्रहण करते हैं, जिससे उन्हें लोगों के दुख दूर करने में मदद मिलती है। निर्मल बाबा के पास मुश्किलों का इलाज करने की शक्ति है। वे किसी भी मनुष्य के बारे में टेलीफोन पर बात करके पूरी जानकारी दे सकते हैं। यहां तक कि सिर्फ फोन पर बात करके वह किसी भी व्यक्ति की आलमारी में क्या रखा है, बता सकते हैं। उनकी रहस्मय शक्ति ने कई लोगों को कष्ट से मुक्ति दिलाई है।' जब दैनिकभास्कर.कॉम ने निर्मल बाबा के बारे में जानने के लिए उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर दिए गए नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की तो नंबर लगातार व्यस्त रहे।
टीवी और इंटरनेट के जरिए निर्मल बाबा पूरे भारत ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में भी रोज लोगों तक पहुंचते हैं। निर्मल बाबा के समागम का प्रसारण देश-विदेश के तकरीबन 39 टीवी चैनलों पर सुबह से लेकर शाम तक रोजाना करीब 25 घंटे का प्रसारण अलग-अलग समय पर किया जा रहा है। भारत में विभिन्न समाचार, मनोरंजन और आध्यात्मिक चैनलों के अलावा विदेशों में टीवी एशिया, एएक्सएन जैसे चैनलों पर मध्य पूर्व, यूरोप से लेकर अमेरिका तक उनके समागम का प्रसारण हो रहा है।
सोशल साइटों पर टिप्पणियों की भरमार
बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचने वाली शख्सीयत के बारे में सार्वजनिक तौर पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होने से यह स्वाभाविक है कि लोग उनके बारे में चर्चा करें। झारखंड के एक प्रतिष्ठित अखबार के स्थानीय संपादक ने फेसबुक पर निर्मल बाबा की तस्वीर के साथ यह टिप्पणी की, 'ये निर्मल बाबा हैं। पहली बार टीवी पर उन्हें देखा। भक्तों की बात भी सुनी। पता चला..यह विज्ञापन है. आखिर बाबाओं को विज्ञापन देने की जरूरत क्यों पड़ती है? सुनने में आया है...ये बाबा पहले डाल्टनगंज (झारखंड) में ठेकेदारी करते थे?'
इस टिप्पणी पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएं भी हैं। एक शख्स धर्मेंद्र सिंह बघेल ने फेसबुक पर टिप्पणी करते हुए निर्मल बाबा को पैसे लेने वाला बाबा बताया है। जुगनू शार्देय ने लिखा है, 'सिंपली फ्रॉड।' अनुराधा झा ने लिखा, 'बहुत चालाक आदमी है...आपको हाथ दिखाएगा तो आप पर ऊपर वाले की कृपा हो जाएगी...सिर्फ टीवी देखने से भी भला होता है।' वहीं, अरुण साठी ने लिखा, 'महाठग जो बुद्धू लोगों को चूना लगा रहा है और लोग हंस रहे है..पता नहीं लोग कब समझेंगे भगवान और आदमी का फर्क..?' केपी चौहान ने लिखा, 'निर्मल बाबा की दुकान बहुत जोर से चल रही है। जनता जिनके दरबार में जाकर सब भूल जाती है क्योंकि माया का ड्राफ्ट तो वे पहले ही ले लेते हैं।' दीपाली सांगवान ने निर्मल बाबा द्वारा समागम में लिए जाने वाले शुल्क के बारे में जानकारी दी है, 'निर्मल बाबा का प्रति व्यक्ति रजिस्ट्रेशन चार्ज 2 हजार रुपये है और 2 साल की उम्र से ज़्यादा के बच्चों को भी रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है।'
उठ रहे हैं सवाल
निर्मल बाबा के दावों पर इंडीजॉब्स. हबपेजेस.कॉम वेबसाइट पर भी सवाल उठाया गया है। हबपेजेस.कॉम पर कोई भी व्यक्ति अपनी पसंद के आर्टिकल प्रकाशित कर सकता है और क्लिक के आधार पर पैसे भी कमा सकता है। इस वेबसाइट पर प्रकाशित लेख 'इज निर्मल बाबा अ फ्रॉड' में कहा गया है कि उनके इतिहास के बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है।
इस लेख में निर्मल बाबा को सवालों के घेरे में लाते हुए कहा गया है, 'वे वर्तमान में समागम के अलावा क्या करते हैं और अपने भक्तों से मिलने वाली करोड़ों रुपये की राशि से वे क्या कर रहे हैं, इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर प्रकृति ने उन्हें दैवीय शक्ति दी है, तो वे लोगों से पैसे लेकर क्यों उनका भला कर रहे हैं? निर्मल बाबा के समागम में जाने के लिए किसी भी शख्स को बैंक चालान कटवाना पड़ता है। इसके बाद कई प्रक्रियाओं से गुजरते हुए अंत में उसे चालान की एक प्रति अपने फोटो पहचान पत्र के साथ ले जाने पर उसे समागम में जाने के लिए प्रवेश मिलता है। सवाल उठता है कि बड़े-बड़े दावे करने वाले किसी आध्यात्मिक गुरु को अपने भक्त को पहचानने के लिए क्या किसी फोटो पहचान पत्र की जरूरत है?' लेख के मुताबिक अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो निर्मल बाबा आपका चेहरा तक नहीं देखेंगे।
यह एक तथ्य है कि बाबा के समागम में जाने के लिए रजिस्ट्रेशन फीस दो हजार रुपये प्रति व्यक्ति है। दो साल से ज्यादा उम्र के बच्चों से भी यह फीस वसूली जाती है। टीवी पर दिखाए जाने वाले समागमों में लोगों की जो भीड़ दिखाई जाती है, उसके आधार पर मोटा आकलन लगाया जाए तो हर समागम से करीब 20-25 लाख की रकम तो रजिस्ट्रेशन के तौर पर ही मिल जाती होगी। निर्मल बाबा के समागमों की मांग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कि नई दिल्ली में 26 अगस्त तक समागम के लिए उनकी बुकिंग बंद है। निर्मल बाबा की आधिकारिक वेबसाइट पर यह जानकारी दी गई है। साथ में यह भी बताया गया है कि बाबा जी से निजी या फोन पर अप्वॉइंटमेंट बंद कर दिया गया है।
लाखों भक्त होने और उनकी समस्याओं को चुटकियों में हल सुझाने का दावा करने वाले निर्मल बाबा को लेकर लोगों का कौतूहल लगातार बढ़ रहा है। सोशल साइट्स पर बाबा को लेकर खूब टिप्पणियां चल रही हैं। इनमें से कई उन पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो कई उनका वंदन भी कर रहे हैं।
निर्मल बाबा को लेकर लोगों का सस्पेंस इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि उनके बारे में कोई भी जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है। इंटरनेट या मीडिया में भी उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं छपा है, लेकिन उनकी चर्चा जबरदस्त है। गूगल पर अंग्रेजी में निर्मल बाबा टाइप करने पर आधे मिनट में करीब 29 लाख सर्च रिजल्ट्स सामने आते हैं। पर गूगल न्यूज में यही टाइप करने पर मात्र आठ सर्च रिजल्ट्स ही दिखाई देते हैं। और, इन आठ में से एक में भी निर्मल बाबा के बारे में कोई खबर नहीं होती।
निर्मल बाबा ने लोगों तक पहुंचने के लिए सोशल साइट्स का भरपूर सहारा लिया है। फेसबुक पर निर्मल बाबा के प्रशंसकों का पेज है, जिसे करीब 318100 लोग पसंद करते हैं। इस पेज पर निर्मल बाबा के टीवी कार्यक्रमों का समय और उनकी तारीफ से जुड़ी टिप्पणियां हैं। ट्विटर पर 1 अप्रैल सुबह दस बजे तक उन्हें 39244 लोग फॉलो कर रहे हैं। लेकिन इन सोशल साइट्स पर निर्मल बाबा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। केवल व्यावसायिक जानकारियां ही साझा की गई हैं।
निर्मल बाबा के जीवन या उनकी पृष्ठभूमि के बारे में उनकी आधिकारिक वेबसाइट निर्मलबाबा. कॉम पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस वेबसाइट पर उनके कार्यक्रमों, उनके समागम में हिस्सा लेने के तरीकों के बारे में बताया गया है और उनसे जुड़ी प्रचार प्रसार की सामग्री उपलब्ध है। लेकिन एक अन्य वेबसाइट निर्मलबाबा.नेट.इन उनके बारे में कई दावे करती है। हालांकि, निर्मलबाबा.कॉम में बताया गया है कि निर्मलबाबा.नेट.इन एक फर्जी वेबसाइट है।
निर्मलबाबा.नेट.इन वेबसाइट के मुताबिक निर्मल बाबा आध्यात्मिक गुरु हैं और भारत में वे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इस वेबसाइट पर उन्हें दैवीय मनुष्य बताया गया है। उनकी शान में कसीदे गढ़ते हुए बताया गया है कि किसी भी इंसान का सबसे बड़ा गुण 'देना' होता है और निर्मल बाबा लंबे समय से लोगों को खुशियां दे रहे हैं। निर्मलबाबा.नेट.इन के मुताबिक निर्मल बाबा के पास छठी इंद्रिय (सिक्स्थ सेंस) है। कई लोग मानते हैं कि रहस्यमयी छठी इंद्रिय विकसित होने से मनुष्य को भविष्य में होने वाली घटना के बारे में पहले से ही पता चल जाता है। निर्मलबाबा.नेट.इन के मुताबिक निर्मल बाबा की छठी इंद्रिय विकसित है। शायद इसलिए उनके समागम का शीर्षक ही 'थर्ड आई ऑफ निर्मल बाबा' होता है।
निर्मलबाबा.नेट.इन के अनुसार, 'निर्मल बाबा नई दिल्ली में रहने वाले आध्यात्मिक गुरु हैं। वे 10 साल पहले साधारण व्यक्ति थे। लेकिन बाद में उन्होंने ईश्वर के प्रति समर्पण से अपने भीतर अद्वितीय शक्तियों का विकास किया। ध्यान के बल पर वह ट्रांस (भौतिक संसार से परे किसी और दुनिया में) में चले जाते हैं। ऐसा करने पर वह ईश्वर से मार्गदर्शन ग्रहण करते हैं, जिससे उन्हें लोगों के दुख दूर करने में मदद मिलती है। निर्मल बाबा के पास मुश्किलों का इलाज करने की शक्ति है। वे किसी भी मनुष्य के बारे में टेलीफोन पर बात करके पूरी जानकारी दे सकते हैं। यहां तक कि सिर्फ फोन पर बात करके वह किसी भी व्यक्ति की आलमारी में क्या रखा है, बता सकते हैं। उनकी रहस्मय शक्ति ने कई लोगों को कष्ट से मुक्ति दिलाई है।' जब दैनिकभास्कर.कॉम ने निर्मल बाबा के बारे में जानने के लिए उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर दिए गए नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की तो नंबर लगातार व्यस्त रहे।
टीवी और इंटरनेट के जरिए निर्मल बाबा पूरे भारत ही नहीं, बल्कि दूसरे देशों में भी रोज लोगों तक पहुंचते हैं। निर्मल बाबा के समागम का प्रसारण देश-विदेश के तकरीबन 39 टीवी चैनलों पर सुबह से लेकर शाम तक रोजाना करीब 25 घंटे का प्रसारण अलग-अलग समय पर किया जा रहा है। भारत में विभिन्न समाचार, मनोरंजन और आध्यात्मिक चैनलों के अलावा विदेशों में टीवी एशिया, एएक्सएन जैसे चैनलों पर मध्य पूर्व, यूरोप से लेकर अमेरिका तक उनके समागम का प्रसारण हो रहा है।
सोशल साइटों पर टिप्पणियों की भरमार
बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचने वाली शख्सीयत के बारे में सार्वजनिक तौर पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होने से यह स्वाभाविक है कि लोग उनके बारे में चर्चा करें। झारखंड के एक प्रतिष्ठित अखबार के स्थानीय संपादक ने फेसबुक पर निर्मल बाबा की तस्वीर के साथ यह टिप्पणी की, 'ये निर्मल बाबा हैं। पहली बार टीवी पर उन्हें देखा। भक्तों की बात भी सुनी। पता चला..यह विज्ञापन है. आखिर बाबाओं को विज्ञापन देने की जरूरत क्यों पड़ती है? सुनने में आया है...ये बाबा पहले डाल्टनगंज (झारखंड) में ठेकेदारी करते थे?'
इस टिप्पणी पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएं भी हैं। एक शख्स धर्मेंद्र सिंह बघेल ने फेसबुक पर टिप्पणी करते हुए निर्मल बाबा को पैसे लेने वाला बाबा बताया है। जुगनू शार्देय ने लिखा है, 'सिंपली फ्रॉड।' अनुराधा झा ने लिखा, 'बहुत चालाक आदमी है...आपको हाथ दिखाएगा तो आप पर ऊपर वाले की कृपा हो जाएगी...सिर्फ टीवी देखने से भी भला होता है।' वहीं, अरुण साठी ने लिखा, 'महाठग जो बुद्धू लोगों को चूना लगा रहा है और लोग हंस रहे है..पता नहीं लोग कब समझेंगे भगवान और आदमी का फर्क..?' केपी चौहान ने लिखा, 'निर्मल बाबा की दुकान बहुत जोर से चल रही है। जनता जिनके दरबार में जाकर सब भूल जाती है क्योंकि माया का ड्राफ्ट तो वे पहले ही ले लेते हैं।' दीपाली सांगवान ने निर्मल बाबा द्वारा समागम में लिए जाने वाले शुल्क के बारे में जानकारी दी है, 'निर्मल बाबा का प्रति व्यक्ति रजिस्ट्रेशन चार्ज 2 हजार रुपये है और 2 साल की उम्र से ज़्यादा के बच्चों को भी रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है।'
उठ रहे हैं सवाल
निर्मल बाबा के दावों पर इंडीजॉब्स. हबपेजेस.कॉम वेबसाइट पर भी सवाल उठाया गया है। हबपेजेस.कॉम पर कोई भी व्यक्ति अपनी पसंद के आर्टिकल प्रकाशित कर सकता है और क्लिक के आधार पर पैसे भी कमा सकता है। इस वेबसाइट पर प्रकाशित लेख 'इज निर्मल बाबा अ फ्रॉड' में कहा गया है कि उनके इतिहास के बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है।
इस लेख में निर्मल बाबा को सवालों के घेरे में लाते हुए कहा गया है, 'वे वर्तमान में समागम के अलावा क्या करते हैं और अपने भक्तों से मिलने वाली करोड़ों रुपये की राशि से वे क्या कर रहे हैं, इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। अगर प्रकृति ने उन्हें दैवीय शक्ति दी है, तो वे लोगों से पैसे लेकर क्यों उनका भला कर रहे हैं? निर्मल बाबा के समागम में जाने के लिए किसी भी शख्स को बैंक चालान कटवाना पड़ता है। इसके बाद कई प्रक्रियाओं से गुजरते हुए अंत में उसे चालान की एक प्रति अपने फोटो पहचान पत्र के साथ ले जाने पर उसे समागम में जाने के लिए प्रवेश मिलता है। सवाल उठता है कि बड़े-बड़े दावे करने वाले किसी आध्यात्मिक गुरु को अपने भक्त को पहचानने के लिए क्या किसी फोटो पहचान पत्र की जरूरत है?' लेख के मुताबिक अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो निर्मल बाबा आपका चेहरा तक नहीं देखेंगे।
यह एक तथ्य है कि बाबा के समागम में जाने के लिए रजिस्ट्रेशन फीस दो हजार रुपये प्रति व्यक्ति है। दो साल से ज्यादा उम्र के बच्चों से भी यह फीस वसूली जाती है। टीवी पर दिखाए जाने वाले समागमों में लोगों की जो भीड़ दिखाई जाती है, उसके आधार पर मोटा आकलन लगाया जाए तो हर समागम से करीब 20-25 लाख की रकम तो रजिस्ट्रेशन के तौर पर ही मिल जाती होगी। निर्मल बाबा के समागमों की मांग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कि नई दिल्ली में 26 अगस्त तक समागम के लिए उनकी बुकिंग बंद है। निर्मल बाबा की आधिकारिक वेबसाइट पर यह जानकारी दी गई है। साथ में यह भी बताया गया है कि बाबा जी से निजी या फोन पर अप्वॉइंटमेंट बंद कर दिया गया है।
जानिए डिम्पल कपाडिया को
डिम्पल कापडिया: युवाओं की सपनों की रानी
डिम्पल कापडिया का जीवन किसी रोचक फिल्म स्क्रिप्ट से कम नहीं है। 16 वर्ष की उम्र में देश के सबसे बड़े फिल्मकार द्वारा साइन किया जाना। पहली फिल्म का ब्लॉकबस्टर होना। रातों-रात युवाओं की सपनों की रानी हो जाना। अचानक फिल्मों को अलविदा कह कर देश के सुपरस्टार से शादी रचा लेना। फिर बच्चे, पति से मनमुटाव, बारह वर्ष बाद फिल्मों में सफल वापसी, प्रसिद्धी और पुरस्कार। डिम्पल के जीवन के इस सफर में कई अच्छे और बुरे उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं।
1970 में शो-मैन राज कपूर की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ टिकट खिड़की पर असफल रही। वितरकों सहित राज कपूर को भारी घाटा हुआ। इसकी भरपाई के लिए राज कपूर ने एक विशुद्ध कमर्शियल फिल्म बनाने की सोची और ‘बॉबी’ का जन्म हुआ। राज कपूर ने अपने बेटे ऋषि कपूर की नायिका डिम्पल कापड़िया को बनाया।
स्क्रीन टेस्ट के जरिये डिम्पल को जब चुना गया तब वे लगभग पन्द्रह वर्ष की थी। इतने कम उम्र के हीरो-हीरोइनों को लेकर प्रेम कहानी बनाना उस दौर में एक अनोखी बात थी। किशोर अवस्था के प्रेम को राज कपूर ने परदे पर इतनी त्रीवता के साथ पेश किया कि दर्शक बॉबी के दीवाने हो गए। पूरी फिल्म डिम्पल के इर्दगिर्द घूमती है।
डिम्पल ने वही किया जैसा निर्देशक ने उन्हें बताया। अल्हड़ डिम्पल ने नैसर्गिक अभिनय किया। तंग और छोटी ड्रेसेस पहनने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं हुआ। परदे पर इस तरह की प्रेम कथा पहले कभी नहीं आई थी और युवा मन पर बॉबी का गहरा असर हुआ।
डिम्पल का फिल्मी करियर दो भागों में बंटा हुआ है। एक हिस्से में बॉबी है तो दूसरे में शेष फिल्में। एक बॉबी ही उनकी तमाम फिल्मों पर भारी पड़ती है और बॉबी वाली छवि को तोड़ना डिम्पल के लिए बेहद मुश्किल रहा है। उनकी पहली और दूसरी फिल्म की रिलीज में बारह वर्ष का अंतर है क्योंकि ग्लैमर वर्ल्ड को छोड़ वे गृहस्थ जीवन में आ गई थीं।
1983 में डिम्पल ने पति राजेश खन्ना का घर छोड़ दिया। बॉबी रिलीज हुए दस साल हो गए थे, लेकिन कई फिल्मकारों का मानना था कि उनकी इस छवि को भुनाया जा सकता है। डिम्पल पहले से और ज्यादा सुंदर नजर आने लगी थीं। राज कपूर उस वक्त ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए नायिका ढूंढ रहे थे। डिम्पल का उन्होंने स्क्रीन टेस्ट भी लिया, लेकिन उन्हें लगा कि डिम्पल उस भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाएंगी।
दरअसल डिम्पल उस समय बुरे दौर से गुजर रही थीं। राजेश से ब्रेक-अप, साथ में दो छोटी बच्चियां, उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। उनका आत्मविश्वास हिल चुका था। ‘सागर’ के लिए जब रमेश सिप्पी ने डिम्पल का स्क्रीन टेस्ट लिया तो वे बुरी तरह कांप रही थीं। डिम्पल को लगा कि यह फिल्म भी उनके हाथ से निकल जाएगी, लेकिन तमाम सलाह के खिलाफ जाते हुए रमेश सिप्पी ने डिम्पल को साइन किया और फिल्मों में उनकी वापसी हुई।
हैरत की बात यह थी कि डिम्पल की वापसी को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े किए गए थे कि दो बच्चों की मां को हीरोइन के रूप में कौन स्वीकारेगा? क्या वे बॉबी जैसा जादू जगा पाएंगी? तो दूसरी ओर उन्हें साइन करने के लिए निर्माताओं की लाइन भी लगी थी। शोले के निर्देशक द्वारा साइन किए जाने से डिम्पल में निर्माताओं का विश्वास जागा। सागर के रिलीज होने के पहले उनकी इक्का-दुक्का फिल्म रिलीज होकर पिट गईं, लेकिन सागर में मोना के किरदार में उनकी खूबसूरती और अभिनय को काफी सराहा गया।
सागर को उम्मीद के मुताबिक सफलता तो नहीं मिली, लेकिन डिम्पल की वापसी को सफल माना गया। असुरक्षित डिम्पल को जो भी फिल्में मिली वे साइन करती गईं और बच्चों को लेकर एक सेट से दूसरे सेट भागती रहीं।
एक और डिम्पल ने जख्मी शेर, इंसानियत के दुश्मन, मेरा शिकार, महावीरा, जख्मी औरत, साजिश जैसी घटिया फिल्में कीं तो दूसरी ओर ऐतबार, लावा, काश, कब्जा, इंसाफ जैसी फिल्मों के जरिये साबित किया कि मौका मिलने पर वे अच्छा अभिनय भी कर सकती हैं।
डिम्पल का इस बारे में कहना है कि उस दौर में ज्यादातर फिल्में ऐसी बनती थीं जिनमें हीरोइन के हिस्से में चंद दृश्य आते थे। साथ ही उनकी पोजीशन ऐसी नहीं थी कि वे फिल्में चूज़ करें लिहाजा उन्हें सभी तरह की फिल्में करना पड़ी। अब डिम्पल उन फिल्मों को देख हंसती हैं।
कुछ फिल्म निर्देशकों का कहना है कि डिम्पल का खूबसूरत चेहरा ही उनके करियर में बाधा बना। इस चेहरे की वजह से उन्हें ग्लैमरस रोल ही मिलें जबकि वे अपनी खूबसूरती के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रतिभाशाली हैं। कुछ वर्षों बाद डिम्पल ने समानांतर फिल्मों में रूचि दिखाई और उन्होंने दृष्टि, प्रहार, लेकिन, रूदाली जैसी फिल्में की जिनमें उनकी अभिनय प्रतिभा निखर कर सामने आई। मृणाल सेन के साथ उन्होंने बंगला फिल्म अंतरीन की और मृणाल दा ने डिम्पल की तुलना सोफिया लारां से की। रूदाली के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
शादी ने की शांति भंग
डिम्पल की पर्सनल लाइफ काफी उथल-पुथल भरी रही। चांदनी रात में समुंदर के किनारे चहलकदमी करते हुए राजेश खन्ना ने डिम्पल को प्रपोज कर दिया। कहा जाता है उस समय डिम्पल अपने पहले को-स्टार ऋषि कपूर की तरफ आकर्षित थी, लेकिन सुपरस्टार के अचानक मिले शादी के प्रस्ताव को वे ठुकरा नहीं सकी। राजेश का आकर्षण इतना था कि उन्हें अपने सुनहरे करियर की चमक भी फीकी लगी।
डिम्पल-राजेश की शादी की फिल्म देश भर के सिनेमाघरों में दिखाई गई। डिम्पल और राजेश के रिश्ते ज्यादा दिनों तक मधुर नहीं रहे। डिम्पल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी शांति तभी भंग हो गई थी जिस दिन उन्होंने शादी की थी।
राजेश और डिम्पल के बीच पटरी नहीं बैठने को लेकर पत्र -पत्रिकाओं ने खूब स्याही खर्च की गई। दोनों के बीच पन्द्रह वर्ष की उम्र का अंतर, डिम्पल पर फिल्म ना करने की पाबंदी, राजेश खन्ना का असफलता के कारण चिडचिड़ा हो जाना जैसे अनेक कारण गिनाए गए।
राजेश से अलग होने के बाद डिम्पल ने फिल्मों में अपना स्थान फिर से बनाया। दूर रहने के कारण पति-पत्नी के बीच तनाव कम हुआ और वे मिलने-जुलने लगे। राजेश ने अपनी फिल्म ‘जय शिव शंकर’ में डिम्पल को नायिका के रूप में भी लिया, हालांकि ये फिल्म अधूरी रह गई। डिम्पल ने राजेश का चुनाव प्रचार किया। पिछले दिनों जब राजेश खन्ना बीमार हुए तो डिम्पल ने उनकी देखभाल की। हालांकि सनी देओल से डिम्पल की नजदीकियों को लेकर भी काफी बातें हुईं।
जब नायिका बनने की उम्र निकल गई तो डिम्पल ने कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में दिल चाहता है, प्यार में ट्विस्ट, बीइंग साइसर, बनारस और दबंग जैसी फिल्में की। आज भी डिम्पल को फिल्मों के ऑफर मिलते हैं, लेकिन वे ट्विंकल के बेटे अराव के साथ समय गुजारना ज्यादा पसंद करती हैं। वे कहती हैं कि मैं बहुत आलसी और मूडी हूं इसलिए कई अच्छे मौके मेरे हाथ से निकल गए। डिम्पल की दोनों बेटियां ट्विंकल और रिंकी शादी कर लाइफ में सैटल हो चुकी हैं। डिम्पल 54 वर्ष की हो चुकी हैं, लेकिन अभी भी उन्हें बॉबी गर्ल के रूप में याद किया जाता है।
प्रमुख फिल्में
बॉबी (1973), ऐतबार (1985), सागर (1985), जांबाज (1986), काश (1987), जख्मी औरत (1988), बीस साल बाद (1989), दृष्टि (1991), प्रहार (1991), लेकिन (1991), रूदाली (1992), गर्दिश (1993), क्रांतवीर (1994), दिल चाहता है (2001), प्यार में ट्विस्ट (2005), बीइंग साइरस (2006), बनारस (2006), दबंग (2010)
डिम्पल कापडिया का जीवन किसी रोचक फिल्म स्क्रिप्ट से कम नहीं है। 16 वर्ष की उम्र में देश के सबसे बड़े फिल्मकार द्वारा साइन किया जाना। पहली फिल्म का ब्लॉकबस्टर होना। रातों-रात युवाओं की सपनों की रानी हो जाना। अचानक फिल्मों को अलविदा कह कर देश के सुपरस्टार से शादी रचा लेना। फिर बच्चे, पति से मनमुटाव, बारह वर्ष बाद फिल्मों में सफल वापसी, प्रसिद्धी और पुरस्कार। डिम्पल के जीवन के इस सफर में कई अच्छे और बुरे उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं।
1970 में शो-मैन राज कपूर की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ टिकट खिड़की पर असफल रही। वितरकों सहित राज कपूर को भारी घाटा हुआ। इसकी भरपाई के लिए राज कपूर ने एक विशुद्ध कमर्शियल फिल्म बनाने की सोची और ‘बॉबी’ का जन्म हुआ। राज कपूर ने अपने बेटे ऋषि कपूर की नायिका डिम्पल कापड़िया को बनाया।
स्क्रीन टेस्ट के जरिये डिम्पल को जब चुना गया तब वे लगभग पन्द्रह वर्ष की थी। इतने कम उम्र के हीरो-हीरोइनों को लेकर प्रेम कहानी बनाना उस दौर में एक अनोखी बात थी। किशोर अवस्था के प्रेम को राज कपूर ने परदे पर इतनी त्रीवता के साथ पेश किया कि दर्शक बॉबी के दीवाने हो गए। पूरी फिल्म डिम्पल के इर्दगिर्द घूमती है।
डिम्पल ने वही किया जैसा निर्देशक ने उन्हें बताया। अल्हड़ डिम्पल ने नैसर्गिक अभिनय किया। तंग और छोटी ड्रेसेस पहनने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं हुआ। परदे पर इस तरह की प्रेम कथा पहले कभी नहीं आई थी और युवा मन पर बॉबी का गहरा असर हुआ।
डिम्पल का फिल्मी करियर दो भागों में बंटा हुआ है। एक हिस्से में बॉबी है तो दूसरे में शेष फिल्में। एक बॉबी ही उनकी तमाम फिल्मों पर भारी पड़ती है और बॉबी वाली छवि को तोड़ना डिम्पल के लिए बेहद मुश्किल रहा है। उनकी पहली और दूसरी फिल्म की रिलीज में बारह वर्ष का अंतर है क्योंकि ग्लैमर वर्ल्ड को छोड़ वे गृहस्थ जीवन में आ गई थीं।
1983 में डिम्पल ने पति राजेश खन्ना का घर छोड़ दिया। बॉबी रिलीज हुए दस साल हो गए थे, लेकिन कई फिल्मकारों का मानना था कि उनकी इस छवि को भुनाया जा सकता है। डिम्पल पहले से और ज्यादा सुंदर नजर आने लगी थीं। राज कपूर उस वक्त ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए नायिका ढूंढ रहे थे। डिम्पल का उन्होंने स्क्रीन टेस्ट भी लिया, लेकिन उन्हें लगा कि डिम्पल उस भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाएंगी।
दरअसल डिम्पल उस समय बुरे दौर से गुजर रही थीं। राजेश से ब्रेक-अप, साथ में दो छोटी बच्चियां, उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। उनका आत्मविश्वास हिल चुका था। ‘सागर’ के लिए जब रमेश सिप्पी ने डिम्पल का स्क्रीन टेस्ट लिया तो वे बुरी तरह कांप रही थीं। डिम्पल को लगा कि यह फिल्म भी उनके हाथ से निकल जाएगी, लेकिन तमाम सलाह के खिलाफ जाते हुए रमेश सिप्पी ने डिम्पल को साइन किया और फिल्मों में उनकी वापसी हुई।
हैरत की बात यह थी कि डिम्पल की वापसी को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े किए गए थे कि दो बच्चों की मां को हीरोइन के रूप में कौन स्वीकारेगा? क्या वे बॉबी जैसा जादू जगा पाएंगी? तो दूसरी ओर उन्हें साइन करने के लिए निर्माताओं की लाइन भी लगी थी। शोले के निर्देशक द्वारा साइन किए जाने से डिम्पल में निर्माताओं का विश्वास जागा। सागर के रिलीज होने के पहले उनकी इक्का-दुक्का फिल्म रिलीज होकर पिट गईं, लेकिन सागर में मोना के किरदार में उनकी खूबसूरती और अभिनय को काफी सराहा गया।
सागर को उम्मीद के मुताबिक सफलता तो नहीं मिली, लेकिन डिम्पल की वापसी को सफल माना गया। असुरक्षित डिम्पल को जो भी फिल्में मिली वे साइन करती गईं और बच्चों को लेकर एक सेट से दूसरे सेट भागती रहीं।
एक और डिम्पल ने जख्मी शेर, इंसानियत के दुश्मन, मेरा शिकार, महावीरा, जख्मी औरत, साजिश जैसी घटिया फिल्में कीं तो दूसरी ओर ऐतबार, लावा, काश, कब्जा, इंसाफ जैसी फिल्मों के जरिये साबित किया कि मौका मिलने पर वे अच्छा अभिनय भी कर सकती हैं।
डिम्पल का इस बारे में कहना है कि उस दौर में ज्यादातर फिल्में ऐसी बनती थीं जिनमें हीरोइन के हिस्से में चंद दृश्य आते थे। साथ ही उनकी पोजीशन ऐसी नहीं थी कि वे फिल्में चूज़ करें लिहाजा उन्हें सभी तरह की फिल्में करना पड़ी। अब डिम्पल उन फिल्मों को देख हंसती हैं।
कुछ फिल्म निर्देशकों का कहना है कि डिम्पल का खूबसूरत चेहरा ही उनके करियर में बाधा बना। इस चेहरे की वजह से उन्हें ग्लैमरस रोल ही मिलें जबकि वे अपनी खूबसूरती के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रतिभाशाली हैं। कुछ वर्षों बाद डिम्पल ने समानांतर फिल्मों में रूचि दिखाई और उन्होंने दृष्टि, प्रहार, लेकिन, रूदाली जैसी फिल्में की जिनमें उनकी अभिनय प्रतिभा निखर कर सामने आई। मृणाल सेन के साथ उन्होंने बंगला फिल्म अंतरीन की और मृणाल दा ने डिम्पल की तुलना सोफिया लारां से की। रूदाली के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
शादी ने की शांति भंग
डिम्पल की पर्सनल लाइफ काफी उथल-पुथल भरी रही। चांदनी रात में समुंदर के किनारे चहलकदमी करते हुए राजेश खन्ना ने डिम्पल को प्रपोज कर दिया। कहा जाता है उस समय डिम्पल अपने पहले को-स्टार ऋषि कपूर की तरफ आकर्षित थी, लेकिन सुपरस्टार के अचानक मिले शादी के प्रस्ताव को वे ठुकरा नहीं सकी। राजेश का आकर्षण इतना था कि उन्हें अपने सुनहरे करियर की चमक भी फीकी लगी।
डिम्पल-राजेश की शादी की फिल्म देश भर के सिनेमाघरों में दिखाई गई। डिम्पल और राजेश के रिश्ते ज्यादा दिनों तक मधुर नहीं रहे। डिम्पल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी शांति तभी भंग हो गई थी जिस दिन उन्होंने शादी की थी।
राजेश और डिम्पल के बीच पटरी नहीं बैठने को लेकर पत्र -पत्रिकाओं ने खूब स्याही खर्च की गई। दोनों के बीच पन्द्रह वर्ष की उम्र का अंतर, डिम्पल पर फिल्म ना करने की पाबंदी, राजेश खन्ना का असफलता के कारण चिडचिड़ा हो जाना जैसे अनेक कारण गिनाए गए।
राजेश से अलग होने के बाद डिम्पल ने फिल्मों में अपना स्थान फिर से बनाया। दूर रहने के कारण पति-पत्नी के बीच तनाव कम हुआ और वे मिलने-जुलने लगे। राजेश ने अपनी फिल्म ‘जय शिव शंकर’ में डिम्पल को नायिका के रूप में भी लिया, हालांकि ये फिल्म अधूरी रह गई। डिम्पल ने राजेश का चुनाव प्रचार किया। पिछले दिनों जब राजेश खन्ना बीमार हुए तो डिम्पल ने उनकी देखभाल की। हालांकि सनी देओल से डिम्पल की नजदीकियों को लेकर भी काफी बातें हुईं।
जब नायिका बनने की उम्र निकल गई तो डिम्पल ने कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में दिल चाहता है, प्यार में ट्विस्ट, बीइंग साइसर, बनारस और दबंग जैसी फिल्में की। आज भी डिम्पल को फिल्मों के ऑफर मिलते हैं, लेकिन वे ट्विंकल के बेटे अराव के साथ समय गुजारना ज्यादा पसंद करती हैं। वे कहती हैं कि मैं बहुत आलसी और मूडी हूं इसलिए कई अच्छे मौके मेरे हाथ से निकल गए। डिम्पल की दोनों बेटियां ट्विंकल और रिंकी शादी कर लाइफ में सैटल हो चुकी हैं। डिम्पल 54 वर्ष की हो चुकी हैं, लेकिन अभी भी उन्हें बॉबी गर्ल के रूप में याद किया जाता है।
प्रमुख फिल्में
बॉबी (1973), ऐतबार (1985), सागर (1985), जांबाज (1986), काश (1987), जख्मी औरत (1988), बीस साल बाद (1989), दृष्टि (1991), प्रहार (1991), लेकिन (1991), रूदाली (1992), गर्दिश (1993), क्रांतवीर (1994), दिल चाहता है (2001), प्यार में ट्विस्ट (2005), बीइंग साइरस (2006), बनारस (2006), दबंग (2010)
शनिवार, 31 मार्च 2012
भागवत ३३८ से ३४०
गांधारी ने भगवान कृष्ण को क्यों और क्या शाप दिया?
कृष्णजी ने गांधारी के पैर को स्पर्श किया गांधारी बोलीं दूर हटो तुम्हारे कारण आज मेरा वंश समाप्त हो गया। कृष्ण मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूं, मैं तुम्हें शाप देना चाहती हूं। मैं जानती हूं तुम्हारी प्रतिभा और प्रभाव को। तुम चाहते तो यह युद्ध रोक सकते थे। यह युद्ध तुमने करवाया। मेरे बेटों ने नहीं लड़ा, तुमने लड़वाया है। तुमने मेरा वंश नाश कर दिया। तुम चाहते तो अपने तर्क से, अपने ज्ञान से, अपनी समझाईश, अपनी प्रभाव से, अपने पौरूष से इस युद्ध को रोक सकते थे। तुमने अच्छा नहीं किया, एक मां से सौ बेटे छीने हैं। गांधारी रोते-रोते कहती है- कृष्ण सुनो! जैसा मेरा भरापूरा कुल समाप्त हो गया, ऐसे ही तुम्हारा वंश तुम्हारे ही सामने समाप्त होगाऔर तुम देखोगे इसे।
इसके बाद गांधारी यहीं नहीं रूकती, बड़े क्रोध और आवेश में बोलती है कि आज हम दोनों कितने अकेले हो गए हैं। देखो तो इस महल में कोई नहीं है। जिस महल में इंसान ही इंसान हुआ करते थे, मेरे बच्चे, मेरे परिवार के सदस्य मेरे पास थे कितने अकेले हो गए हैं आज हम। तुम्हारे जीवन का जब अंतकाल आएगा तुम संसार में सबसे अकेले पड़ जाओगे। तुम्हे मरता हुआ कोई देख भी नहीं पाएगा जो शाप है तुमको।भगवान तो भगवान हैं, प्रणाम किया और कहते हैं मां गांधारी मुझे आपसे इसी आशीर्वाद की प्रतीक्षा थी। मैं आपके शाप को ग्रहण करता हूं मस्तक पर।
आपका शुभ हो, आपने बड़ी दया की है। कृष्ण पलटे तब तक गांधारी को ग्लानि हुई। कृष्ण पलटे और पांडवों ने देखा कृष्णजी के चेहरे पर शापित होने का कोई भाव ही नहीं था। भगवान मुस्कुराए और पांडवों से कहा- चलो। बड़ा अजीब लगा। भगवान अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर कहते हैं अर्जुन लीला तो देखो मेरे यदुवंश को यह वरदान था कि उन्हें कोई दूसरा नहीं मार सकेगा, मरेंगे तो आपस में ही मरेंगे। देखो इस वृद्धा ने शाप दे दिया तो यह व्यवस्था भी हो गई।
कृष्ण का है ये फंडा, जीना है तो जीओ ऐसे
भगवान ने कहा अर्जुन मेरी मृत्यु के लिए जो कुछ भी उसने कहा है मुझे स्वीकार है। कोई तो माध्यम होगा और भगवान मुस्कुराते हुए पांडव से कहते है चलो आज वही भगवान अपने दाएं पैर को बाएं पैर पर रखकर अपनी गर्दन को वृक्ष से टिकाकर बैठे प्रतीक्षा कर रहे थे अपनी मृत्यु की।जिसने मृत्यु का इतना बड़ा महायज्ञ किया था महाभारत वह ऋषि देखते ही देखते इस संसार से चला गया। यूं चले जाएंगे ऐसा भरोसा नहीं था। एक महान अभियान का महानायक यूं छोड़कर चला गया कृष्ण एक बात कहा करते थे कि जब मैं संसार से जाऊं तो कोई रोना मत।
कृष्ण को रोना पसंद नही। कृष्ण कहते हैं रूदन मत करिए आंसू बड़ी कीमती चीज है। मुझे आंसू का अभिषेक तो अच्छा लगता है पर रोना हो तो मेरे लिए रोओ, मुझे पाने के लिए रोओ। मेरी देह पर मत रोओ, यह निष्प्राण देह पर भगवान ने कहा था कि मेरे अंतिम समय में रोना मत, क्योंकि कृष्ण का एक सिद्धांत था मैं जीवनभर खुश रहा हूं और मैंने जीवनभर लोगों को खुश रखा है। इसलिए रोना मत, दु:खी मत होना।
कृष्ण तो भगवान थे, फिर गांधारी का शाप उन्हें क्यों लग गया?
पीताम्बर वो था, जिसने अनेक लोगों की लज्जा बचाई, जिनसे इतने लोग सुरक्षित हुए, जो पीताम्बर द्रौपदी के ऊपर ओढ़ाया गया था, जिस पीताम्बर ने लोगों को ममता का आश्वासन दिया, जिस पीताम्बर में लोगों ने छिप-छिपकर पता नहीं क्या-क्या कर लिया था वह पीताम्बर आज रक्त रंजित हो गया था।
उसका रंग पहचान में नहीं आ रहा था। चारों ओर रक्त बिखरा पड़ा है। भगवान कहते हैं यहां का रक्त यहीं छोड़कर जा रहा हूं।भगवान ने अपने स्वधाम गमन से संदेश दिया कि जाना सभी को है। जिसका भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होगी ही। जन्म और मृत्यु तय है। सारा खेल बीच का है। हम इस बात को समझ लें कि जिसकी मृत्यु दिव्य है समझ लो उसी ने जीवन का अर्थ समझा है।
शुकदेवजी परीक्षित को समझा रहे हैं और अब धीरे-धीरे कथा ग्यारहवें स्कंध के समापन की ओर जा रही है।शुकदेवजी कहते हैं-राजा परीक्षित्! दारुक के चले जाने पर ब्रह्माजी, शिव-पार्वती, इन्द्रादि लोकपाल, मरीचि आदि प्रजापति, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, पितर-सिद्ध, गन्धर्व-विद्याधर, नाग-चारण, यक्ष-राक्षस, किन्नर-अप्सराएं तथा गरुडलोक के विभिन्न पक्षी अथवा मैत्रेय आदि ब्राह्मण भगवान श्रीकृष्ण के परमधाम प्रस्थान को देखने के लिए बड़ी उत्सुकता से वहां आए थे।
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