मंगलवार, 26 नवंबर 2013

भाई-बहन का रिश्ता

भाई-बहन का रिश्ता बचपन से जुड़ा होता है। दोनों खेलते-कूदते बड़े होते है और उनका रिश्ता भी उतना ही स्नेहभरा और विश्वास से भरा होता है। आपके लिए पेश है रक्षाबंधन के त्योहार पर भाई-बहन से जुड़े महत्वपूर्ण विचार :- बहन के लि‍ए, बहन एक ऐसी मि‍त्र है जि‍ससे आप बच नहीं सकते। आप जो करते हैं वो सब बहनों को पता रहता है। - एमी ली बहन बचपन की यादों की साझेदार होती है। - पाम ब्राउन ऊंघती हुई आलसी और नाजुक बहन तब शेरनी बन जाती है जब उसका भाई मुश्कि‍ल में हो। -क्‍लेरा ऑर्टेगा बहन बचपन का वो प्‍यारा हि‍स्‍सा है जो कभी खो नहीं सकता। - मेरि‍ऑन सी गैरेटी

कब हुई महिला क्रिकेट विश्वकप की शुरुआत?

महिला क्रिकेट विश्वकप की शुरुआत 1973 में इंग्लैंड में हुई थी। पहला विश्वकप इंग्लैंड की महिला टीम ने जीता था। यह बात ध्यान देने योग्य है कि पहला महिला क्रिकेट का विश्वकप पुरुषों की विश्वकप प्रतियोगिता के भी दो साल पहले हुआ था। हाल में हुई 9वीं महिला विश्वकप क्रिकेट प्रतियोगिता में इंग्लैंड की महिला टीम ने विजेता का खिताब जीता। भारत इस प्रतियोगिता में तीसरे क्रम पर रहा। अगली महिला विश्वकप क्रिकेट प्रतियोगिता 2013 में भारत में ही आयोजित की जाना है।

सूरज में इतनी आग क्यों है?

गर्मियों में सूरज की तमतमाती धूप को देखकर, उसे महसूस कर आपने जरूर यह सोचा होगा कि आखिर सूरज इतना गर्म क्यों है? तो चलिए हम बताते हैं आपको इसका कारण। हमारे सौर मंडल में सूर्य सबसे बड़ा है जो हाइड्रोजन और कुछ मात्रा में हीलियम गैसों से बना है। सूर्य हमारी पृथ्वी से तीन लाख गुना भारी है। सूर्य के केन्द्र में एक विशाल दबाव और इसके बड़े आकार के कारण बहुत बड़ा गुरुत्वाकर्षण बल है। जब सूर्य की उत्पत्ति हुई तब यह दबाव एक बड़ी मात्रा की ऊष्मा का कारण बना और हाइड्रोजन ने जलना शुरू कर दिया। हाइड्रोजन का जलना एक न्यूक्लियर रिएक्शन है इस कारण यह क्रिया फ्यूजन रिएक्शन कहलाई क्योंकि इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन के नाभिक आपस में संलयित होते हैं, और इनके बनने के कारण ही हीलियम गैस का निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया में ऊष्मा, प्रकाश और विकिरण (रेडिएशन) के रूप में ऊर्जा की एक बड़ी भारी मात्रा निकलती है जो सूर्य के चमकने के लिए जिम्मेदार है। इस क्रिया में हर सेकेंड 600 टन हाइड्रोजन जलती है, और इस दर पर जलने के बावजूद भी सूर्य में अभी इतनी हाइड्रोजन है कि वह अगले 5,000 मिलियन सालों तक इसी प्रकार जगमगाता रहेगा। इसी हाइड्रोजन के जलने से पैदा हुई ऊष्मा की वजह से ही सूर्य इतना गर्म है।

शनिवार, 2 नवंबर 2013

सच्ची दोस्ती... (बच्चों के लिए कहानी)


टीना नवीं कक्षा में पढ़ती थी, वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी और हमेशा ही अपनी कक्षा में अव्वल आती थी। टीना में वैसे तो सभी आदतें अच्छी थीं किन्तु पढ़ाई को लेकर वह बहुत असुरक्षित महसूस करती थी। उसे हमेशा डर रहता था कि पढ़ाई में कहीं कोई उससे आगे न निकल जाए। अपने असुरक्षा बोध के कारण वह अपनी पढ़ाई को कभी किसी के साथ भी शेयर नहीं करती थी। टीना की एक सहेली थी रितु, रितु भी टीना के साथ ही पढ़ती थी और पढ़ाई में भी टीना के लगभग बराबर ही थी। टीना रितु के साथ वैसे तो अपनी सभी बातें शेयर करती किन्तु जैसे ही पढ़ाई की बात आती वह या तो बात बदल देती या पढ़ाई न हो पाने का रोना रोती, परीक्षा आने से पहले तक टीना को यह कहते सुना जा सकता था कि उसकी पढ़ाई अच्छी नहीं चल रही है। कई बार जब उसकी सहेली रितु किसी कारण से क्लास वर्क न कर पाने के कारण अथवा स्कूल में अनुपस्थिति की वजह से काम न कर पाती और टीना से उसकी कॉपी या नोट्स मांगती तो टीना हमेशा ही यह बहाना बना देती कि उसका काम पूरा नहीं हुआ है। टीना को डर था कि कहीं उसके नोट्स पढ़कर कोई उससे ज्यादा नंबर न ले आए। रितु टीना की इस आदत को समझने लगी थी कि टीना यह झूठ बोल रही है परन्तु वह टीना को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानती थी, वह उसकी बात उसके सामने बताकर उसे झूठा नहीं ठहरा सकती थी। एक बार की बात है टीना बहुत बीमार थी, बीमारी की वजह से वह कई दिनों सें स्कूल भी नहीं जा पा रही थी। परीक्षाएं नजदीक थीं और कई दिनों से स्कूल न जा पाने के कारण टीना परीक्षाओं का सिलेबस भी पूरा नहीं कर पाई थी। टीना बहुत दुः.खी थी। एक दिन अचानक रितु टीना के घर उसकी तबियत के बारे में पूछने आई। टीना ने बताया कि तबियत तो अब कुछ ठीक है किन्तु डॉक्टर ने उसे अभी और कुछ दिन तक आराम करने को कहा है। टीना ने रितु को बताया कि इतने दिनों से स्कूल न जा पाने की वजह से उसका स्कूल का सारा काम बाकी है और परीक्षाएं भी सिर पर हैं। रितु टीना की प्राब्लम को समझ पा रही थी, उसने तुरंत ही टीना से कहा- ‘‘टीना ! यदि तू चाहे तो मैं स्कूल के बाद शाम को अपने स्कूल बैग के साथ एक-दो घंटे तेरे घर आ सकती हूं, इस बीच हम स्कूल में बाकी रह गए तुम्हारे काम को भी पूरा कर पाएंगे और परीक्षा की तैयारी भी कर सकेंगे। रितु की बात से टीना को बड़ा आश्चर्य हुआ, टीना को रितु के साथ अपने पूर्व व्यवहार के कारण यह उम्मीद नहीं थी कि रितु इस तरह से उसका साथ देगी। टीना की आंखों में आंसू थे, उसने हां में अपना सिर हिलाया। अगले दिन से रितु प्रतिदिन टीना के घर गई और अपने नोट्स देकर स्कूल न जा पाने के कारण बाकी रह गए उसके सारे कार्य को निपटाने में उसकी मदद की। साथ मिलकर पढ़ने से उनकी पढ़ाई से संबंधित बहुत सी दुविधाएं भी दूर हो गईं थीं। रितु की मदद से टीना इस बार अपनी परीक्षाएं पूरे विश्वास के साथ दे पाई और पहले की ही तरह पूरे नंबर भी प्राप्त किए। टीना को अपनी मार्कशीट देखकर स्वयं से ज्यादा गर्व अपनी सहेली पर हो रहा था। अब उसने तय कर लिया था कि वह भी अपनी आदत बदलेगी और समय पड़ने पर अपने दोस्तों का सदा साथ देगी।

अशफाक ने कहा थाः भारत मुक्त होकर रहेगा

देश की गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए हंसते−हंसते फांसी का फंदा चूमने वाले अशफाक उल्ला खान जंग−ए−आजादी के महानायक थे। अंग्रेजों ने उन्हें अपने पाले में मिलाने के लिए तरह−तरह की चालें चलीं लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। स्वतंत्रता संग्राम पर कई पुस्तकें लिख चुके इतिहासकार सर्वदानंदन के अनुसार काकोरी कांड के बाद जब अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया तो अंग्रेजों ने उन्हें सरकारी गवाह बनाने की कोशिश की और कहा कि यदि हिन्दुस्तान आजाद हो भी गया तो उस पर हिन्दुओं का राज होगा तथा मुसलमानों को कुछ नहीं मिलेगा। इसके जवाब में अशफाक ने ब्रितानिया हुकूमत के कारिन्दों से कहा कि फूट डालकर शासन करने की अंग्रेजों की चाल का उन पर कोई असर नहीं होगा और हिन्दुस्तान आजाद होकर रहेगा। अशफाक ने अंग्रेजों से कहा था− तुम लोग हिन्दू−मुसलमानों में फूट डालकर आजादी की लड़ाई को नहीं दबा सकते। हिन्दुस्तान में क्रांति की ज्वाला भड़क चुकी है जो अंग्रेजी साम्राज्य को जलाकर राख कर देगी। अपने दोस्तों के खिलाफ मैं सरकारी गवाह बिल्कुल नहीं बनूंगा। 22 अक्तूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मे अशफाक उल्ला खान अपने छह भाई बहनों में सबसे छोटे थे। अशफाक पर महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था लेकिन जब चौरी चौरा की घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो वह प्रसिद्ध क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल से जा मिले। बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की आठ अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में एक बैठक हुई और हथियारों के लिए रकम जुटाने के उद्देश्य से ट्रेन में ले जाए जाने वाले सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई गई। क्रांतिकारी जिस खजाने को हासिल करना चाहते थे, दरअसल वह अंग्रेजों ने भारतीयों से ही लूटा था। 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिडी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिंद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल मुकुंद और मन्मथ लाल गुप्त ने लखनऊ के नजदीक काकोरी में ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया। इस घटना से ब्रितानिया हुकूमत तिलमिला उठी। क्रांतिकारियों की तलाश में जगह−जगह छापे मारे जाने लगे। एक−एक कर काकोरी कांड में शामिल सभी क्रांतिकारी पकड़े गए लेकिन चंद्रशेखर आजाद और अशफाक उल्ला खान हाथ नहीं आए। इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के रूप में दर्ज हुई। अशफाक शाहजहांपुर छोड़कर बनारस चले गए और वहां एक इंजीनियरिंग कंपनी में 10 महीने तक काम किया। इसके बाद उन्होंने विदेश जाने की योजना बनाई ताकि क्रांति को जारी रखने के लिए बाहर से मदद करते रहें। इसके लिए वह दिल्ली आकर अपने एक मित्र के संपर्क में आए लेकिन इस मित्र ने अंग्रेजों द्वारा घोषित इनाम के लालच में आकर पुलिस को सूचना दे दी। यार की गद्दारी से अशफाक पकड़े गए। अशफाक को फैजाबाद जेल भेज दिया गया। उनके वकील भाई रियासत उल्ला ने बड़ी मजबूती से अशफाक का मुकदमा लड़ा लेकिन अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने पर आमादा थे और आखिरकार अंग्रेज जज ने डकैती जैसे मामले में अशफाक को फांसी की सजा सुना दी। 19 दिसंबर 1927 को अशफाक को फांसी दे दी गई जिसे उन्होंने हंसते−हंसते चूम लिया। इसी मामले में राम प्रसाद बिस्मिल को भी 19 दिसंबर 1927 को फांसी पर लटका दिया गया।