शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

पंजाब का इतिहास

यह जानकारी भारत के एक प्रांत के बारे में है। 
पंजाब (पंजाबी: ਪੰਜਾਬ) उत्तर-पश्चिम भारत का एक राज्य है जो वृहद्तर पंजाब क्षेत्र का एक भाग है। इसका दूसरा भाग पाकिस्तान में है। पंजाब क्षेत्र के अन्य भाग (भारत के) हरियाणा और हिमाचल प्रदेश राज्यों में हैं। इसके पश्चिम में पाकिस्तानी पंजाब, उत्तर में जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्व में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान राज्य हैं। राज्य की कुल जनसंख्या २,४२,८९,२९६ है एंव कुल क्षेत्रफल ५०,३६२ वर्ग किलोमीटर है। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है जोकि हरियाणा राज्य की भी राजधानी है। पंजाब के प्रमुख नगरों में अमृतसर,लुधियानाजालंधरपटियाला और बठिंडा हैं।
1947 भारत का विभाजन के बाद बर्तानवी भारत के पंजाब सूबे को भारत और पाकिस्तान दरमियान विभाजन दिया गया था। 1966 में भारतीय पंजाब का वुभाजन फिर से गो गई और नतीजे के तौर पर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश होंद में आए और पंजाब का मौजूदा राज बना। यह भारत का अकेला सूवे है जहाँ सिख बहुमत में हैं।
युनानी लोग पंजाब को पैंटापोटाम्या नाम के साथ जानते थे जो कि पाँच इकठ्ठा होते दरियाओं का अंदरूनी डेल्टा है। पारसियों के पवित्र ग्रंथ अवैस्टा में पंजाब क्षेत्र को पुरातन हपता हेंदू या सप्त-सिंधु (सात दरियाओं की धरती) के साथ जोड़ा जाता है। बर्तानवी लोग इस को "हमारा प्रशिया कह कर बुलाते थे। ऐतिहासिक तौर पर पंजाब युनानियों, मध्य एशियाईओं, अफ़ग़ानियों और ईरानियों के लिए भारतीय उपमहाद्वीप का प्रवेश-द्वार रहा है।
कृषि पंजाब का सब से बड़ा उद्योग है; यह भारत का सब से बड़ा गेहूँ उत्पादक है। ओर प्रमुख उद्योग हैं: वैज्ञानिक साज़ों, कृषि, खेल और बिजली सम्बन्धित माल, सिलाई मशीनें, मशीन यंत्रों, स्टार्च, साइकिलों, खादें आदि का निर्माण, वित्तीय रोज़गार, सैर-सपाटा और देवदार के तेल और खंड का उत्पादन। पंजाब में भारत में से सब से अधिक इस्पात के लुढ़का हुआ मीलों के कारख़ाने हैं जो कि फ़तहगढ़ साहब सुसत की इस्पात नगरी मंडी गोबिन्दगढ़ में हैं।

नामोत्पत्ति

'पंजाब' शब्द, फारसी के शब्दों 'पंज' (پنج) पांच और 'आब' (آب) पानी के मेल से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ 'पांच नदियों का क्षेत्र' है। ये पांच नदियां हैं: सतलुजव्यासरावीचिनाब और झेलम। धार्मिक आधार पर सन् १९४७ में हुए भारत के विभाजन के दौरान चिनाब और झेलम नदियां पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में चली गयीं।

इतिहास

Punjab map hi.svg
प्राचीन पंजाब किसी जमाने में विस्तृत भारत-ईरानी क्षेत्र का हिस्सा रहा है। बाद के वर्षों में यहां मौर्य, बैक्ट्रियन, यूनानी, शक, कुषाण, गुप्त जैसी अनेक शक्तियों का उत्थान और पतन हुआ। मध्यकाल में पंजाब मुसलमानों के अधीन रहा। सबसे पहले गजनवी, गौरी, गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक, लोदी और मुगल वंशो का पंजाब पर अधिकार रहा। पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में पंजाब के इतिहास ने नया मोड़ लिया। गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं से यहां भक्ति आंदोलन ने जोर पकड़ा। सिख पंथ ने एक धार्मिक और सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया, जिसका मुख्य उद्देश्य धर्म और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था। दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को खालसा पंथ के रूप में संगठित किया तथा इन्हें सदियों के दमन और अत्याचार के खिलाफ एकजुट किया। उन्होंने देशभक्ति, धर्मनिरपेक्षता और मानवीय मूल्यों पर आधारित पंजाबी राज की स्थापना की। एक फारसी लेख के शब्दों में महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब को 'मदम कदा' अर्थात नरक से 'बाग-ए-बहिश्त' यानी स्वर्ग में बदल दिया। किंतु उनके देहांत के बाद अंदरूनी साजिशों और अंग्रेजों की चालों के कारण पूरा साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। अंग्रेजों और सिखों के बीच दो निष्फल युद्धों के बाद 1849 में पंजाब ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया।
स्वतंत्रता आंदोलन में गांधीजी के आगमन से बहुत पहले ही पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष आरंभ हो चुका था। अंग्रेजों के खिलाफ यह संघर्ष सुधारवादी आंदोलनों के रूप में प्रकट हो रहा था। सबसे पहले आत्म अनुशासन और स्वशासन में विश्वास करने वाले नामधारी संप्रदाय ने संघर्ष का बिगुल बजाया। बाद में लाला लाजपतराय ने स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई। चाहे देश में हो या विदेश में, पंजाब स्वतंत्रता संग्राम में हर मोर्चे पर आगे रहा। देश की आजादी के बाद भी पंजाब के कष्टों का अंत नहीं हुआ और उसे विभाजन की विभीषिका का सामना करना पड़ा जिसमें बड़े पैमाने पर रक्तपात तथा विस्थापन हुआ। विस्थापित लोगों के पुनर्वास के साथ-साथ राज्य को नए सिरे से संगठित करने की भी चुनौती थी।
पूर्वी पंजाब की आठ रियासतों को मिलाकर नए राज्य 'पेप्सू' तथा पूर्वी पंजाब राज्य सघ-पटियाला का निर्माण किया गया। पटियाला को इसकी राजधानी बनाया गया। सन 1956 में पेप्सू को पंजाब में मिला दिया गया। बाद में 1966 में पंजाब से कुछ हिस्से निकालकर हरियाणा बनाया गया।
पंजाब देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में जम्मू और कश्मीर, उत्तर-पूर्व में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में हरियाणा तथा राजस्थान है।

जनसांख्यिकी

धर्म

धर्म"धर्मानुसार" लोगों की संख्याकुल %
कुल जनसंख्या२,४३,५८,९९९[1]१००%
सिख१,४५,९२,३८७५९.९१%
हिन्दू८९,९७,९४२३६.९४%
मुस्लिम३,८२,०४५१.५७ %
ईसाई२,९२,८००१.२० %
बौद्ध४१,४८७०.१७ %
जैन३९,२७६०.१६ %
अन्य८,५९४०.०४ %
सिख धर्म पंजाब का मुख्य धर्म है। राज्य के लगभग ६० प्रतिशत नागरिक सिख धर्म के अनुयायी हैं। पंजाब भारत के उन छ: राज्यों में से है जहां हिन्दुओंका बहुमत नहीं है। सिखों का प्रमुख धार्मिक स्थल, हरिमन्दिर साहिब, पंजाब के अमृतसर नगर में है, जोकि सिक्खों का पवित्रतम नगर है। अमृतसर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है।

भाषा

अंतरराष्ट्रीय सीमा के दोनों ओर के पंजाबों की भाषा पंजाबी है, परंतु लिपि भिन्न है। भारतीय पंजाब में जहां गुरुमुखी का प्रयोग होता है वहीं पाकिस्तानी पंजाब में शाहमुखी लिपि का प्रयोग होता है। भारतीय पंजाब की लगभग २५ % जनता हिन्दी बोलती है, विशेष तौर पर हरियाणा और राजस्थान से सटे इलाकों में। हिन्दी को लगभग पूरी जनसंख्या द्वारा समझा जाता है जबकि शहरों में रहने वाले धाराप्रवाह हिन्दी बोल भी सकते हैं।

ज़िले

पंजाब राज्य 20 ज़िलों में बंटा हुआ है। ये ज़िले है:
  • अमृतसर जिला
  • भटिण्डा जिला
  • फिरोजपुर जिला
  • फरीदकोट जिला
  • फतेहगढ़ साहिब जिला
  • गुरदासपुर जिला
  • होशियारपुर जिला
  • जालंधर जिला
  • कपूरथला जिला
  • लुधियाना जिला
  • मानसा जिला
  • मोगा जिला
  • मुक्तसर जिला
  • शहीद भगतसिंहनगर जिला
  • पटियाला जिला
  • रूपनगर जिला
  • संगरूर जिला
  • तरन तारन साहिब जिला
  • बरनाला जिला
  • मोहाली जिला

अर्थव्यवस्था

पंजाब का सन २००४ का अनुमानित कुल सकल घरेलू उत्पाद २७ अरब डॉलर है। यह एक विकसित रज्य है।

कृषि

पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां गेंहू की सबसे अधिक बिजाई की जाती है। अन्य मुख्य फसलों में चावलकपासगन्नाबाजरामक्काचना और फल शामिल हैं। प्रमुख उद्योगों में कपड़ा और आटा शामिल है। सड़क, रेल और जल यातायात मार्गों का पूरे क्षेत्र में जाल बिछा हुआ है।
पंजाब (पांच नदियों का क्षेत्र) पृथ्वी का सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र रहा है। यह गेहूं उत्पादन के लिए आदर्श क्षेत्र है। चावल, गन्ना, सब्जियों एंव फलों भी यहां अच्छा उत्पादन होता है। भारतीय पंजाब को भारत का "अन्न-भण्डार" कहा जाता है। यहां भारत के कुल गेहूं उत्पादन का ६०% और चावल का ४०% उत्पादन होता है। विश्व के परिदृश्य में इन फसलों का विश्व के कुल उत्पादन का १/३० वां अथवा ३% का योगदान करता है।
भारतीय पंजाब का आधारभूत ढांचा पूरे भारत में सर्वाधिक बेहतर में से है। यहां के निवासी औसत के आधार पर भारत के सर्वाधिक धनी लोग हैं।

महाराष्ट्र का इतिहास

महाराष्ट्र भारत का एक राज्य है जो भारत के दक्षिण मध्य में स्थित है। इसकी गिनती भारत के सबसे धनी राज्यों में सी की जाती है। इसकी राजधानी मुंबईहै जो भारत का सबसे बडा शहर और देश की आर्थिक राजधानी के रुप में भी जानी जाती है। और यहा का पुणे शहर भी भारत के बडे महानगरो मे गिना जाता है। यहा का पुणे शहर भारत का छटवां सबसे बडा शहर है।
महाराष्ट्र की जनसंख्या सन २००१ में ९६,७५२,२४७ थी, विश्व में सिर्फ़ ग्यारह ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या महाराष्ट्र से ज़्यादा है। इस राज्य का निर्माण १ मई,१९६०को मराठी भाषी लोगों की माँग पर की गयी थी। मराठी ज्यादा बोली जाती है। पुणे,औरंगाबादकोल्हापूरनाशिक और नागपुर महाराष्ट्र के अन्य मुख्य शहर हैं।

इतिहास

ऐसा माना जाता है कि सन १००० ईसापूर्व से पहले महाराष्ट्र में खेती होती थी लेकिन उस समय मौसम में अचानक परिवर्तन आया और कृषि रुक गई थी। सन् ५०० इसापूर्व के आसपास बम्बई (प्राचीन नाम शुर्पारकसोपर) एक महत्वपूर्ण पत्तन बनकर उभरा था। यह सोपर ओल्ड टेस्टामेंट का ओफिर था या नहीं इस पर विद्वानों में विवाद है। प्राचीन १६ महाजनपद, महाजनपदों में अश्मक या अस्सक का स्थान आधुनिक अहमदनगर के आसपास है। सम्राट अशोक के शिलालेख भी मुम्बई के निकट पाए गए हैं।
मौर्यों के पतन के बाद यहाँ यादवों का उदय हुआ (२३० ईसापूर्व)। वकटकों के समय अजन्ता गुफाओं का निर्माण हुआ। चालुक्यों का शासन पहले सन् 550-760 तथा पुनः 973-1180 रहा। इसके बीच राष्ट्रकूटों का शासन आया था।
अलाउद्दीन खिलजी वो पहला मुस्लिम शासक था जिसने अपना साम्राज्य दक्षिण में मदुरै तक फैला दिया था। उसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक (१३२५) ने अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर दौलताबाद कर ली। यह स्थान पहले देवगिरि नाम से प्रसिद्ध था औैर अहमदनगर के निकट स्थि्त है। बहमनी सल्तनत के टूटने पर यह प्रदेश गोलकुण्डा के आशसन में आया और उसके बाद औरंगजेब का संक्षिप्त शासन। इसके बाद मराठों की शक्ति में उत्तरोत्तर वुद्धि हुई और अठारहवीं सदी के अन्त तक मराठे लगभग पूरे महाराष्ट्र पर तो फैल ही चुके थे और उनका साम्राज्य दक्षिण में कर्नाटक के दक्षिणी सिरे तक पहुँच गया था। १८२० तक आते आते अंग्रेजों ने पेशवाओं को पूर्णतः हरा दिया था और यह प्रदेश भी अंग्रेजी साम्राज्य का अंग बन चुका था।
देश को आजादी के उपरांत मध्य भारत के सभी मराठी इलाकों का संमीलीकरण करके एक राज्य बनाने की मांग को लेकर बडा आंदोलन चला। आखिर १ मई १९६० से कोकणमराठवाडा, पश्चिमी महाराष्ठ्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र (खानदेश) तथा विदर्भ, संभागों को एकजुट करके महाराष्ट्र की स्थापना की गई। राज्य के दक्षिण सरहद से लगे कर्नाटक के बेलगांव शहर और आसपास के गावों को महाराष्ट्र में शामील करने के लिए एक आंदोलन चल रहा है।
Statue of Chatrapathi Shivaji at Bheemili beach
नासिक गजट २४६ ईसा पूर्व में महाराष्ट्र में मौर्य सम्राट अशोक एक दूतावास भेजा जो करने के लिए स्थानों में से एक के रूप में उल्लेख किया है जो बताता है और यह तीन प्रांतों और ९९,००० गांवों सहित के रूप में ५८० आम था की एक चालुक्यों शिलालेख में दर्ज की गई है। नाम महाराष्ट्र भी एक ७ वीं सदी के शिलालेख में और एक चीनी यात्री, ह्वेन त्सांग के खाते में दिखाई दिया। ९० ई. विदिश्री में सातवाहन राजा सताकरनी, दक्शिनापथा की "हे प्रभु, के वील्दर्र् का बेटा संप्रभुता 'की अनियंत्रित पहिया, तीस मील उत्तर पुणे, उसके राज्य की राजधानी के जुअनार, बना दिया। यह भी खाराविला, सातवाहन राजवंश, पश्चिमी क्षत्रपों, गुप्त साम्राज्य, गुर्जर, प्रतिहार, वकातका, कदाम्बस्, चालुक्य साम्राज्य, राष्ट्रकूट राजवंश और यादव के शासन से पहले पश्चिमी चालुक्य का शासन था। महाराष्ट्र ४ और ३ शताब्दी ई.पू. में मौर्य साम्राज्य का शासन था। लगभग २३० ईसा पूर्व महाराष्ट्र ४०० वर्षों के लिए क्षेत्र है जो शासन सातवाहन राजवंश के शासन के अंतर्गत आ गया। सातवाहन राजवंश के महानतम शासक था गौतमीपुत्र सताकरनी।
चालुक्य वंश ८ वीं सदी के लिए ६ वीं शताब्दी से महाराष्ट्र पर राज किया और दो प्रमुख शासकों ८ वीं सदी में अरब आक्रमणकारियों को हराया जो उत्तर भारतीय सम्राट हर्ष और विक्रमादित्य द्वितीय, पराजित जो फुलकेशि द्वितीय, थे। राष्ट्रकूट राजवंश १० वीं सदी के लिए ८ से महाराष्ट्र शासन किया। सुलेमान "दुनिया की ४ महान राजाओं में से एक के रूप में" राष्ट्रकूट राजवंश (अमोघावर्ह) के शासक कहा जाता है। १२ वीं सदी में जल्दी ११ वीं सदी से अरब यात्री दक्कन के पठार के पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य और प्रभुत्व था चोल राजवंश.कई लड़ाइयों पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य और राजा राजा चोल, राजेंद्र चोल, जयसिम्ह द्वितीय, सोमेश्वरा मैं और विक्रमादित्य षष्ठम के राजा के दौरान दक्कन के पठार में चोल राजवंश के बीच लड़ा गया था।
जल्दी १४ वीं सदी में आज महाराष्ट्र के सबसे खारिज कर दिया जो यादव वंश, दिल्ली सल्तनत के शासक आला उद दीन खलजी द्वारा परास्त किया गया था। बाद में, मुहम्मद बिन तुगलक डेक्कन के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की और अस्थायी रूप से महाराष्ट्र में दौलताबाद के लिए दिल्ली से अपनी राजधानी स्थानांतरित कर दिया। १३४७ में तुगलक के पतन के बाद, गुलबर्ग के स्थानीय बहमनी सल्तनत अगले १५० वर्षों के लिए इस क्षेत्र गवर्निंग, पदभार संभाल लिया है। बहमनी सल्तनत के अलग होने के बाद, १५१८ में, महाराष्ट्र में विभाजित है और पांच डेक्कन सल्तनत का शासन था। अहमदनगर अर्थात् निज़ाम्शा, बीजापुर के आदिलशाह, गोलकुंडा की कुतुब्शह्, बीदर और बरार की एमाद्शह्, बिदर्शह। इन राज्यों में अक्सर एक दूसरे के बीच लड़ा। संयुक्त, वे निर्णायक १५६५ में दक्षिण के विजयनगर साम्राज्य को हरा दिया।
इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजी आगे नागपुर के भोंसले, बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होल्कर, ग्वालियर के सिंधिया और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था जो मराठा साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहा। मराठों मुगलों को परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया।
ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो बंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सतारा और कोल्हापुर थे, सतारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा बुलाया वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा।[1]
ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बीजी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी बंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व बंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषाई तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और बंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, बम्बई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था।[2]
१९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी बम्बई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। १ मई १९६० को, बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और १०५, मानव का बलिदान निम्नलिखित अलग मराठी बोलने वाले राज्य महाराष्ट्र और गुजरात के नए राज्यों में पहले बंबई राज्य को विभाजित करके बनाई गई थी रहती है। मराठी के कुछ विलय के स्थानीय लोगों की मांग अर्थात् बेलगाम, कारवार और नीपानी अभी भी लंबित है कर्नाटक के क्षेत्रों में बोल रहा है।

भौगोलिक स्थिति

महाराष्ट्र का अधिकतम भाग बेसाल्ट खडकों का बना हुआ है। इसके पश्चिमी सीमा से अरब सागर है। इसके पड़ोसी राज्य गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, छतीसगड, मध्य प्रदेश, गुजरात है।

धर्म

हिन्दु धर्म

हिन्दु धर्मीयलोगों की राज्य में कुल आबादी ८२% है। हिन्दु धर्म मराठी लोगों के जीवन मे एक मेहत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गणेशोत्सव हिन्दुओं के बीच सबसे लोकप्रिय देवता है। विट्ठल के रूप में कृष्ण की पूजा की जाती है। श्रीकृष्ण भगवान की पूजा होती है। दशावतारों को भजने वाले ही लोग हैं। हिन्दू शिव परिवार के देवता जैसे शङ्कर और पार्वती को भी पूजते है। पार्वती के साथ ही देवीयों की पूजा करने में हिन्दू लोग मानते हैं। जिसमें माता सरस्वती, माता लक्ष्मी, काली माता, दुर्गा माता, माता भवानी, चण्डी ऐसी अनेक नामोंके देवियों का समावेश होता है।
Hindu pilgrims in Maharashtra
वारकरी मराठी हिन्दुओं का पारम्पारिक सम्प्रदाय है। १९ वीं सदी में लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू किया गया सार्वजनिक गणेशोत्सव बहुत लोकप्रिय है। भक्ती मार्गमें जाने का सन्देश देने वाले बहुत सन्त महाराष्ट्र के भूमी में हो गये, जैसे ज्ञानेश्वरसावता माळीतुकारामनामदेवचोखमेळा राष्ट्रसन्त तुकडोजी महाराज (संत के साथ ही दार्शनिक), संत गाडगेबाबा (संत के साथ ही दार्शनिक)। इतने सारे पूजा करने के प्रकार और उनमें अन्तर होते हुए भी व्यक्ती-व्यक्ती में वही शक्ती वास करती है और मानव में होने वाला भगवान भी पूजना है ऐसी धारणा से लोग इकठ्ठा बडेही प्रेमसे रहते हैं।

इसलाम

Haji Ali Darga
इस्लाम राज्य में दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। एक अनुमान के मुताबिक, १५ लाख अनुयायियों जनसंख्या का ९.८% मुसलिम शामिल हे। ईद उल फितर (रमजान ईद) और ईद उल अज़हा (बकरा ईद) राज्य में दो सबसे महत्वपूर्ण मुस्लिम त्योहार हैं। राज्य में मुसलमानों की भारी बहुमत सुन्नी हैं। महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी मराठवाड़ा, खानदेश और मुंबई के ठाणे इलाके में पाया जा सकता है। विदर्भ, पश्चिमी महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्रों में भी खासी मुस्लिम आबादी है। महाराष्ट्र की समुदाय के शहरी चरित्र जनगणना के अनुसार लगभग १८.८% मुंबई, (महाराष्ट्र की राजधानी) मे मुसलमान है। इसी तरह, नागपुर, महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी मे ११% मुस्लिम कि आबादी है। औरंगाबाद में मुसलमानों की आबादी ३९% है। मुसलमानों को मालेगांव और भिवंडी जैसे शहरों में भि पयेजा सक्थे है।

बुद्ध धर्म

बौद्ध धर्म महाराष्ट्र की कुल आबादी में लगभग ५% है। बौद्ध धर्म राज्य में तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। अधिकांश मराठी बौद्ध दलित बौद्ध आंदोलन के अनुयायी हैं।  उन्हें (दलेथ) पदानुक्रम में सबसे कम माना जाता है कि एक जाति आधारित समाज से बचने के लिए बौद्ध धर्म को दलितों के रूपांतरण के लिए कहा जाता है, जो बी आर अम्बेडकर से अपनी सबसे पर्याप्त प्रोत्साहन मिला।

जैनि धर्म

Jain temple, talegaon dabhade
जैन महाराष्ट्र में एक प्रमुख समूह हैं।  महाराष्ट्र क्षेत्र में २००१ के लिए जैन समुदाय की जनगणना १३०१८४३ था। जैन धर्म के लिए महाराष्ट्र पर सांस्कृतिक जड़ों, यह २५०० से अधिक साल पुराना धर्म हे, महाराष्ट्र में कुछ प्राचीन जैन मन्दिर अजन्थ घूफाओ मे पये जते है।

ईसाइ धर्म

Mount Mary Church, Bandra 10
ईसाइयों महाराष्ट्र की आबादी का १०५८३१३ कै लोग है।  ईसाइयों मे सबसे आधिक् कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट हैं। गोवा, मंगलौरियन, केरल और तमिल ईसाइयों मुंबई और पुणे के शहरी इलाकों में है। महाराष्ट्र में दो जातीय ईसाई समुदाय हैं :-
  1. पूर्व भारतीय -अधिकांश कैथोलिक, मुंबई में और ठाणे और रायगढ़ के पड़ोसी जिलों में ध्यान केंद्रित किया सेंट बर्थोलोमेव १ शताब्दी ईस्वी में इस क्षेत्र के मूल निवासी के लिए प्रचार किये थै।
  2. मराठी ईसाइयों - अधिकांश प्रोटेस्टेंट विशेष अहमदनगर और सोलापुर में पाया जते है। प्रोटेस्टेंट १८ वीं सदी के दौरान अमेरिका और अंगरेज़ी मिशनरियों द्वारा इन क्षेत्रों के लिए लाया गया था।
२० वीं सदी में कुछ महार, अहमदनगर और मीरा में अकाल की करन् ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गये। उन्होंने अहमदनगर में इंग्लैंड के चर्च द्वारा सुसमाचार का प्रचार के लिए अमेरिकी मराठी मिशन, चर्च मिशन सोसायटी और संयुक्त सोसायटी द्वारा ईसाई धर्म प्रचार के बाद परिवर्तित हुए। भागोबा पवार, यशोब पवार, लखिरम और यस्य्बा साल्वे ईसाई धर्म में महार जाति रोशन करने वाले प्रमुख महार नेता थे। बहरहाल, यह ईसाई रूपांतरण आंदोलन अम्बेडकर के उद्भव और बौद्ध धर्म के लिए बड़े पैमाने पर रूपांतरण द्वारा भारी पड़ रही थी।

सिखमत

Hazur Sahib interior
महाराष्ट्र में एक बड़ा सिख आबादी है, २१५,३३७ अनुयायियों का संकेत २००१ की जनगणना मे पाया गया था। नांदेड़, (औरंगाबाद के बाद) मराठवाड़ा क्षेत्र में दूसरा सबसे बड़ा शहर, सिख धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है और हजूर साहिब गुरुद्वारा के लिए प्रसिद्ध है हजूर साहिब ("गुरु की उपस्थिति"), भी हजूर साहिब वर्तनी, सिख धर्म में पाँच तक्थ्स (अस्थायी प्राधिकारी की सीटें) में से एक है। 10 वीं गुरू गोबिंद सिंह की मौत हो गई जहां गोदावरी नदी के तट पर स्थित है, यह है। परिसर के भीतर गुरुद्वारा सचखंड-खंड, "सत्य के दायरे 'में जाना जाता है।  हजूर साहिब गुरुद्वारा से एक पत्थर फेंक दूरी पर, अपने भव्य लंगर के लिए बहुत प्रसिद्ध है जो लंगर साहिब गुरुद्वारा वहाँ निहित है। सारे शहर में ऐतिहासिक महत्व के साथ 13 प्रमुख गुरुद्वारों है।

पारसि

महारश्त्र में दो पारसी समुदाय हैं।
  1. मुख्य रूप से मुंबई में पाया पारसी,१० वीं सदी के दौरान पश्चिमी भारत में आकर जो ईरानी पारसियों के एक समूह से उतरा, कारण ईरान में मुसलमानों द्वारा उत्पीड़न।
  2. इरानि, अपेक्षाकृत हाल ही में पहुँचने रहे हैं और दो ​​भारतीय पारसी समुदायों के छोटे का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उनके वंश सांस्कृतिक और भाषायी ईरान की पारसियों के करीब, यज़्द् और केरमान के पारसियों के लिए विशेष रूप से है। नतीजतन, उन प्रांतों की पारसियों की दारी बोली भी इरानि बीच सुना जा सकता है।

जूदाईस्म

बेने इज़राइल ("इसराइल के बेटे") मूल रूप से कोंकण क्षेत्र में गांवों से मराठी यहूदियों के एक मजबूत समुदाय हैं। जो देर से १७ वीं सदी में माइग्रेट हुए मुंबई, पुणे और अहमदाबाद शेहरो मे।  महान माइग्रेशन से पहले भारतीय स्वतंत्रता के बाद इस समुदाय के कम से कम ८०००० गिने गये थे।

त्योहार

आशाडी एकादशी सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक महाराष्ट्र भर में मनाया जाता है। यह भी ' वारी ' और पूरे महाराष्ट्र भर से तीर्थ के रूप में जाना जाता है, कर्नाटक और भारत के अन्य भागों में अपने गावों से पंढरपुर तक चलते हैं।
Ganesh utsav
भगवान गणेश की भक्ति हर साल के अगस्त से सितंबर में गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है।
कृष्ण को समर्पित त्योहार गोकुल अष्टमी हैं, जहां दही - हांडी भी कई स्थानों पर इस दिन को मनाया जाता है। भगवान कृष्ण की भक्ति भी दानव नरकसुर का हत्या के रूप में कार्थिक आमवस्य (या दीवाली) पर और नरका चतुर्दशी पर मनाया जाता है। एक बड़े पैमाने पर मनाया अन्य त्योहारों विजय्दशमि या दशहरा, नवरात्रि, होली, दीवाली, ईद (रमजान ईद) मनाते है। सिमोल्लघन महाराष्ट्र में दशहरा या विजयदशमि के दिन पर प्रदर्शन एक रस्म है। सिमोल्लघन एक गांव या एक जगह की सीमा या सीमा पार कर रहा है। प्राचीन समय में राजा को अपने प्रतिद्वंद्वियों या पड़ोसी राज्यों के खिलाफ लड़ने के लिए उनके राज्य की सीमा पार करने के लिए प्रयोग किया जाता है।[3]
वे दशहरा पर आयुध पूजा और युद्ध के मौसम शुरू करने के लिए प्रयोग किया जाता है। दशहरा पर, लोगों को उनके स्थानों (सिमोल्लघन) की सीमाओं के पार और आप्पाटा पेड़ और सोने के रूप में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच आदान प्रदान करथे है। इस दिन शमी वृक्ष और इसकी पत्तियों पूजा करते हैं।[4]
  शिव जयंती लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू कि गयी महाराष्ट्र में और महाराष्ट्र के बाहरी प्रदेशो मे एक बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

तंजावुर मराठी लोग

तंजावुर मराठी (तमिल: தஞ்சாவூர் மராத்தியர், मराठी: तंजावूर मराठी) मुख्य रूप से रायरु बुलाये जतेह है। एक मराठी भाषी जातीय भाषाई समूह हैं। भारत के तमिलनाडु राज्य के मध्य और उत्तरी भागों में रहने वाले। वे मराठी प्रशासकों, सैनिकों और तंजावुर मराठा साम्राज्य के शासन के दौरान चले गए जो नोबल्मान् के वंशज हैं। यह मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी के भाई वेन्कोजि राजे भोंसले द्वारा स्थापित किया गया था। वेन्कोजि महाराज बहादुर मराठों में से एक था। तंजावुर मराठी कुंभकोणम और तंजावुर के शहरों में कुल आबादी का 3% से अधिक के लिए मातृभाषा है। [5]

जिले

महाराष्ट्र में ३५ जिले हैं -

केरल का इतिहास

केरल (मलयालम: കേരളം, केरळम्) भारत का एक प्रान्त है। इसकी राजधानी तिरुवनन्तपुरम (त्रिवेन्द्रम) है। मलयालम (മലയാളം, मलयाळम्) यहां की मुख्य भाषा है। हिन्दुओं तथा मुसलमानों के अलावा यहां ईसाई भी बड़ी संख्या में रहते हैं। भारत की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भूभाग स्थित है, जिसे केरल के नाम से जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 38863 वर्ग किलोमीटर है और यहाँ मलयालम भाषा बोली जाती है। अपनी संस्कृति और भाषा-वैशिष्ट्य के कारण पहचाने जाने वाले भारत के दक्षिण में स्थित चार राज्यों में केरल प्रमुख स्थान रखता है। इसके प्रमुख पडोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक हैं। पुदुच्चेरी (पांडिचेरि) राज्य का मय्यष़ि (माहि) नाम से जाता जाने वाला भूभाग भी केरल राज्य के अन्तर्गत स्थित है। अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप का भी भाषा और संस्कृति की दृष्टि से केरल के साथ अटूट संबन्ध है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व केरल में राजाओं की रियासतें थीं। जुलाई 1949 में तिरुवितांकूर और कोच्चिन रियासतों को जोडकर 'तिरुकोच्चि' राज्य का गठन किया गया। उस समय मलाबार प्रदेश मद्रास राज्य (वर्तमान तमिलनाडु) का एक जिला मात्र था। नवंबर 1956 में तिरुकोच्चि के साथ मलबार को भी जोडा गया और इस तरह वर्तमान केरल की स्थापना हुई। इस प्रकार 'ऐक्य केरलम' के गठन के द्वारा इस भूभाग की जनता की दीर्घकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई। * केरल में शिशुओं की मृत्यु दर भारत के राज्यों में सबसे कम है और स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है (2001 की जनगणना के आधार पर)। * यह यूनिसेफ (UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा मान्यता प्राप्त विश्व का प्रथम शिशु सौहार्द राज्य (Baby Friendly State) है।
इन्हें भी देखें: केरल का परिचय

इतिहास

पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपना परशु समुद्र में फेंका जिसकी वजह से उस आकार की भूमि समुद्र से बाहर निकली और केरल अस्तित्व में आया। यहां 10वीं सदी ईसा पूर्व से मानव बसाव के प्रमाण मिले हैं।
केरल शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों में एकमत नहीं है। कहा जाता है कि "चेर - स्थल", 'कीचड' और "अलम-प्रदेश" शब्दों के योग से चेरलम बना था, जो बाद में केरल बन गया। केरल शब्द का एक और अर्थ है : - वह भूभाग जो समुद्र से निकला हो। समुद्र और पर्वत के संगम स्थान को भी केरल कहा जाता है। प्राचीन विदेशी यायावरों ने इस स्थल को 'मलबार' नाम से भी सम्बोधित किया है। काफी लबे अरसे तक यह भूभाग चेरा राजाओं के आधीन था एवं इस कारण भी चेरलम (चेरा का राज्य) और फिर केरलम नाम पडा होगा।
केरल की संस्कृति हज़ारों साल पुरानी है। इसके इतिहास का प्रथम काल 1000 ईं. पूर्व से 300 ईस्वी तक माना जाता है। अधिकतर महाप्रस्तर युगीन स्मारिकाएँ पहाड़ी क्षेत्रों से प्राप्त हुई। अतः यह सिद्ध होता है कि केरल में अतिप्राचीन काल से मानव का वास था। केरल में आवास केन्द्रों के विकास का दूसरा चरण संगमकाल माना जाता है। यही प्राचीन तमिल साहित्य के निर्माण का काल है। संगमकाल सन् 300 ई. से 800 ई तक रहा। प्राचीन केरल को इतिहासकार तमिल भूभाग का अंग समझते थे। सुविधा की दृष्टि से केरल के इतिहास को प्राचीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक कालीन - तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं।

भूगोल

विज्ञापनों में केरल को 'ईश्वर का अपना घर' (God's Own Country) कहा जाता है, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जिन कारणों से केरल विश्व भर में पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना है, वे हैं : समशीतोष्ण मौसम, समृद्ध वर्षा, सुंदर प्रकृति, जल की प्रचुरता, सघन वन, लम्बे समुद्र तट और चालीस से अधिक नदियाँ। भौगोलिक दृष्टि से केरल उत्तर अक्षांश 8 डिग्री 17' 30" और 12 डिग्री 47' 40" के बीच तथा पूर्व देशांतर 74 डिग्री 7' 47" और 77 डिग्री 37' 12" के बीच स्थित है।
भौगोलिक प्रकृति के आधार पर केरल को अनेक क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है। सर्वप्रचलित विभाज्य प्रदेश हैं, पर्वतीय क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, समुद्री क्षेत्र आदि। अधिक स्पष्टता की दृष्टि से इस प्रकार विभाजन किया गया है - पूर्वी मलनाड (Eastern Highland), अडिवारम (तराई - Foot Hill Zone), ऊँचा पहाडी क्षेत्र (Hilly Uplands), पालक्काड दर्रा, तृश्शूर-कांजगाड समतल, एरणाकुलम - तिरुवनन्तपुरम रोलिंग समतल और पश्चिमी तटीय समतल। यहाँ की भौगोलिक प्रकृति में पहाड़ और समतल दोनों का समावेश है।
केरल को जल समृद्ध बनाने वाली 41 नदियाँ पश्चिमी दिशा में स्थित समुद्र अथवा झीलों में जा मिलती हैं। इनके अतिरिक्त पूर्वी दिशा की ओर बहने वाली तीन नदियाँ, अनेक झीलें और नहरें हैं।
इन्हें भी देखें: केरल की नदियां एवं केरल की झीलें

जलवायु

भूमध्यरेखा से केवल 8 डिग्री की दूरी पर स्थित होने के कारण केरल में गर्म मौसम है। लेकिन वन एवं पेडपौधों एवं वर्षा की अधिकता के कारन मौसम समशीतोष्ण रहता है। यहाँ की धरती की उच्च-निम्न स्थिति भी जलवायु पर बड़ा प्रभाव डालती है। केरल की जलवायु की विशेषता है शीतल मन्द हवा और भारी वर्षा। प्रमुख वर्षाकाल इडवप्पाति अथवा पश्चिमी मानसून है। दूसरा वर्षाकाल तुलावर्षम अथवा उत्तरी-पश्चिमी मानसून है। प्रत्येक वर्ष करीब 120 से लेकर 140 दिन वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 3017 मिली मीटर मानी जाती है। भारी वर्षा से बाढ़ें आती हैं और जन-धन की हानि भी होती है। दूसरी ओर ऐसी वर्षा के कारण केरल में पर्याप्त कृषि होती है। बिजली का मुख्य उत्पादन भी इस कारण से पनबिजली द्वारा होता है।

अर्थ व्यवस्था

भारत के एक राज्य के रूप में केरल की आर्थिक व्यवस्था की अपनी विशेषताएँ हैं। मानव संसाधन विकास की आधारभूत सूचना के अनुसार केरल की उपलब्धियाँ प्रशंसनीय है। मानव संसाधन विकास के बुनियादी तत्त्वों में उल्लेखनीय हैं - भारत के अन्य राज्यों की तुलना में आबादी की कम वृद्धि दर, राष्ट्रीय औसत सघनता से ऊँची दर, ऊँची आयु-दर, गंभीर स्वास्थ्य चेतना, कम शिशु मृत्यु दर, ऊँची साक्षरता, प्राथमिक शिक्षा की सार्वजनिकता, उच्च शिक्षा की सुविधा आदि आर्थिक प्रगति के अनुकूल हैं।
वैश्वीकरण के प्रतिकूल प्रभाव ने कृषि तथा अन्य परम्परागत क्षेत्रों को बहुत कम कर दिया है। स्वातंत्र्य पूर्व तिरुवितांकूर, कोच्चि, मलबार क्षेत्रों का विकास आधुनिक केरल की आर्थिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि है। भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताएँ केरल की आर्थिक व्यवस्था को प्राकृतिक संपदा के वैविध्य के साथ श्रम संबन्धी वैविध्य भी प्रदान करती हैं। केरल में कृषि खाद्यान्न और निर्यात की जानेवाली फसलों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। शासन व्यवस्था तथा व्यापार के कारण निर्यात की जानेवाली फसलों बढ़ोतरी हुई है। कयर (नारियल रेशा) उद्योग, लकडी उद्योग, खाद्य तेल उत्पादन आदि भी कृषि पर आधारित हैं
आधुनिक केरल की आर्थिक व्यवस्था में आप्रवासी केरलीयों का मुख्य योगदान है। केरल की आर्थिक व्यवस्था के सुदृढ आधार हैं - वाणिज्य बैंक, सहकारी बैंक, मुद्रा विनिमय व्यवस्था, यातायात का विकास, शिक्षा - स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में हुई प्रगति, शक्तिशाली श्रमिक आन्दोलन, सहकारी आन्दोलन आदि।
इन्हें भी देखें: केरल में कृषि एवं केरल में उद्योग

उत्सव और त्यौहार

केरलीय जीवन की छवि यहाँ मनाये जानेवाले उत्सवों में दिखाई देती है। केरल में अनेक उत्सव मनाये जाते हैं जो सामाजिक मेल-मिलाप और आदान-प्रदान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। केरलीय कलाओं का विकास यहाँ मनाये जानेवाले उत्सवों पर आधारित है। इन उत्सवों में कई का संबन्ध देवालयों से है, अर्थात् ये धर्माश्रित हैं तो अन्य कई उत्सव धर्मनिरपेक्ष हैं। ओणम केरल का राज्योत्सव है। यहाँ मनाये जाने वाले प्रमुख हिन्दू त्योहार हैं - विषु, नवरात्रि, दीपावली, शिवरात्रि, तिरुवातिरा आदि। मुसलमान रमज़ान, बकरीद, मुहरम, मिलाद-ए-शरीफ आदि मनाते हैं तो ईसाई क्रिसमस, ईस्टर आदि। इसके अतिरिक्त हिन्दू, मुस्लिम और ईसाइयों के देवालयों में भी विभिन्न प्रकार के उत्सव भी मनाये जाते हैं।

कला व संस्कृति

केरल की कला-सांस्कृतिक परंपराएँ सदियों पुरानी हैं। केरल के सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले कलारूपों में लोककलाओं, अनुष्ठान कलाओं और मंदिर कलाओं से लेकर आधुनिक कलारूपों तक की भूमिका उल्लेखनीय है। केरलीय कलाओं को सामान्यतः दो वर्गों में बाँट सकते हैं - एक दृश्य कला और दूसरी श्रव्य कला। दृश्य कला के अंतर्गत रंगकलाएँ, अनुष्ठान कलाएँ, चित्रकला और सिनेमा आते हैं।
इन्हें भी देखें: केरल की रंग कलाएँकेरल की चित्रकला , केरल की वास्तुकलाकेरल में सिनेमा , केरल का संगीत , एवं केरल का भोजन

क्रीड़ा क्षेत्र

केरल में क्रीड़ा संस्कार कई शताब्दियाँ पहले रूपायित हुआ था। केरल के क्रीडा जगत के क्षेत्र में लोक क्रीडाएँ, आयोधन कलाएँ, आधुनिक क्रीडाएँ सब एक साथ विद्यमान हैं। 'कळरिप्पयट्टु' केरल की प्रान्तीय आयुधन कला है। पहले केरलीय गाँवों में खेल-कूद को विशिष्ट महत्व दिया जाता था किन्तु आधुनिक जीवन शैली तथा आधुनिक खेलों के चलते लोक क्रीडाएँ लुप्तप्राय हो गई हैं। लेकिन आज भी देशी मनोरंजन नौका विहार को महत्व दिया जाता है।
फुटबॉल, वॉलीबॉल, एथलेटिक्स इत्यादि आधुनिक खेल कूदों में केरल की भारत पर प्रभुता है। भारत की सबसे बड़ी धावक पी.टी. उषा केरल की सुपुत्री है।
इन्हें भी देखें: केरल का जलोत्सव , केरल में आधुनिक खेल कूद, एवं केरल की लोक क्रीड़ाएँ

पर्यटन

केरल प्रांत पर्यटकों में बेहद लोकप्रिय है, इसीलिए इसे 'God's Own Country' अर्थात् 'ईश्वर का अपना घर' नाम से पुकारा जाता है। यहाँ अनेक प्रकार के दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें प्रमुख हैं - पर्वतीय तराइयाँ, समुद्र तटीय क्षेत्र, अरण्य क्षेत्र, तीर्थाटन केन्द्र आदि। इन स्थानों पर देश-विदेश से असंख्य पर्यटक भ्रमणार्थ आते हैं। मून्नार, नेल्लियांपति, पोन्मुटि आदि पर्वतीय क्षेत्र, कोवलम, वर्कला, चेरायि आदि समुद्र तट, पेरियार, इरविकुळम आदि वन्य पशु केन्द्र, कोल्लम, अलप्पुष़ा, कोट्टयम, एरणाकुळम आदि झील प्रधान क्षेत्र (backwaters region) आदि पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण केन्द्र हैं। भारतीय चिकित्सा पद्धति - आयुर्वेद का भी पर्यटन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। राज्य की आर्थिक व्यवस्था में भी पर्यटन ने निर्णयात्मक भूमिका निभाई है।
इन्हें भी देखें: सूचना केन्द्र , केरल पर्यटन विभागकेरल के प्रशासक , एवं केरल आकर्षण केन्द्र

भाषा

केरल की भाषा मलयालम है जो द्रविड़ परिवार की भाषाओं में एक है। मलयालम भाषा के उद्गम के बारे में अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं। एक मत यह है कि भौगोलिक कारणों से किसी आदि द्रविड़ भाषा से मलयालम एक स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हुई। इसके विपरीत दूसरा मत यह है कि मलयालम तमिल से व्युत्पन्न भाषा है। ये दोनों प्रबल मत हैं। सभी विद्वान यह मानते हैं कि भाषाई परिवर्तन की वजह से मलयालम उद्भूत हुई। तमिल, संस्कृत दोनों भाषाओं के साथ मलयालम का गहरा सम्बन्ध है। मलयालम का साहित्य मौखिक रूप में शताब्दियाँ पुराना है। परंतु साहित्यिक भाषा के रूप में उसका विकास 13 वीं शताब्दी से ही हुआ था। इस काल में लिखित 'रामचरितम्' को मलयालम का आदि काव्य माना जाता है।
इन्हें भी देखें: अन्य भाषाएँ  एवं मलयालम भाषा

साहित्य

मलयालम का साहित्य आठ शताब्दियों से अधिक पुराना है। किन्तु आज तक ऐसा कोई ग्रंथ प्राप्त नहीं हुआ है जो यहाँ के साहित्य की प्रारंभिक दशा पर प्रकाश डालता हो। अतः मलयालम साहित्यिक उद्गम से सम्बन्धित कोई स्पष्ट धारणा नहीं मिलती है। अनुमान है कि प्रारम्भिक काल में लोक साहित्य का प्रचलन रहा होगा। ऐसी कोई रचना उपलब्ध नहीं जिसकी रचना 1000 वर्ष पहले की गई है। दसवीं सदी के उपरान्त लिखे गए अनेक ग्रंथों की प्रामाणिकता को लेकर भी विद्वान एकमत नहीं हैं। केरलीय साहित्य से सामान्यतः मलयालम साहित्य अर्थ लिया जाता है। लेकिन मलयालम साहित्यकारों का तमिल और संस्कृत भाषा विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। केरल के कुछ विद्वानों ने अंग्रेज़ी, कन्नड़, तुळु, कोंकणी, हिन्दी आदि भाषाओं में भी रचना लिखी हैं।
19 वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक मलयालम साहित्य का इतिहास प्रमुखतया कविता का इतिहास है। साहित्य की प्रारंभिक दशा का परिचय देने वाला काव्य ग्रंथ 'रामचरितम्' है जिसे 13 वीं शताब्दी में लिखा गया बताया जाता है। यद्यपि मलयालम के प्रारंभिक काव्य के रूप में 'रामचरितम्' को माना जाता है फिर भी केरल की साहित्यिक परंपरा उससे भी पुरानी मानी जा सकती है। प्राचीन काल में केरल को 'तमिऴकम्' का भाग ही समझा जाता था। दक्षिण भारत में सर्वप्रथम साहित्य का स्रोत भी तमिऴकम की भाषा प्रस्फुरित हुआ था। तमिल का आदिकालीन साहित्य 'संगम कृतियाँ' नाम से जाना जाता हैं। संगमकालीन महान रचनाओं का सम्बन्ध केरल के प्राचीन चेर-साम्राज्य से रहा है। 'पतिट्टिप्पत्तु' नामक संगमकालीन कृति में दस चेर राजाओं के प्रशस्तिगीत है। 'सिलप्पदिकारं' महाकाव्य के प्रणेता इलंगो अडिगल का जन्म चेर देश में हुआ था। इसके अतिरिक्त तीन खण्डों वाले इस महाकाव्य का एक खण्ड 'वञ्चिक्काण्डम' का प्रतिपाद्य विषय चेरनाड में घटित घटनाएँ हैं। संगमकालीन साहित्यिकों में अनेक केरलीय साहित्यकार हैं।

केरल के लोग

केरल के अधिकांश लोगों की मातृभाषा मलयालम है, जो द्रविड़ परिवार की प्रमुख भाषा है। यहाँ आर्य, अरबी, यहूदी तथा मिश्रित वंश के लोग भी रहते हैं। दूसरा प्रमुख वर्ग आदिवासियों का है। ये सभी वर्ग मिलकर आधुनिक केरलीय समाज का निर्माण करते हैं। एक राज्य के रूप में केरल की स्थापना 1961 से ही हुई। किन्तु वर्तमान केरल के अन्तर्गत जितने प्रदेश हैं उन प्रदेशों की जनगणना 1881 में ही तैयार हो पाई। प्रमाणों के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि 17 वीं सदी के प्रारंभ में केरल की जनसंख्या लगभग 30 लाख थी। 1850 में यह 45 लाख हो गई। 1881 से जनसंख्या लगातार बढ़ती रही। 1901 में जनसंख्या 64 लाख थी जो 1991 में 291 लाख हो गई। (6) 2001 की जनगणना के अनुसार केरल की जनसंख्या 31841374 है।
केरल के प्रमुख धर्म हैं हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म। बौद्ध, जैन, पारसी, सिक्ख, बहाई धर्मावलम्बी लोग भी यहाँ रहते हैं। हिन्दू समाज विविध जातियों से बना है। ईस्वी सन् 8 वीं सदी से केरल में जाति-व्यवस्था प्रचलित हुई थी। अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति तक विभिन्न श्रेणी के लोगों को जाति - व्यवस्था के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया। जाति व्यवस्था के कारण समाज में ऊँच - नीच की भावना तथा सामाजिक कुरीतियाँ प्रचलित हो गईं। 19 वीं शताब्दी के अंत में चलने वाले सामाजिक नवोत्थान अभियानों ने 20 वीं शताब्दी में तथा तत्पश्चात् स्वतंत्रता संग्राम में जाति व्यवस्था को किसी सीमा तक तोड़ा। वर्तमान केरलीय समाज में यद्यपि ऊँच - नीच का भेदभावना नहीं है, लेकिन जाति - व्यवस्था मौजूद है।
विभिन्न धर्मावलम्बी लोगों के देवालयों तथा उनके धार्मिक आचार - अनुष्ठानों ने केरलीय संस्कृति को पुष्ट किया है। साहित्य और कला के विकास में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण है। मन्दिरों से जुड़े उत्सवों ने केरलीय संस्कृति की शोभा बढ़ायी है।

राजनीति

केरल को भारत की राजनीतिक प्रयोगशाला कहा जा सकता है। चुनाव के द्वारा कम्यूनिस्ट पार्टी का सत्ता में आना और विभिन्न पार्टियों के मोर्चों का गठन तथा उनका शासक बनना आदि अनेक राजनीतिक प्रयोग पहली बार केरल में हुए। देश में मशीनी मतपेटी का प्रथम प्रयोग भी केरल में हुआ। केरल में 140 विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र और 20 लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। विधान सभा में एंग्लो - इंडियन समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित किया जाता है। केरल में अनेक राजनीतिक दल तथा उनके संपोषक संगठन भी हैं। यथा - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी, जनतादल (एस), मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (एम), केरल कॉग्रेस (जे) आदि। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के श्रमिक, विद्यार्थी, महिला, युवा, कृषक और सेवा संगठन भी सक्रिय हैं। ट्रेड यूनियनों की संख्या आवश्यकता से अधिक बढ़ रही है। 1973 में केरल की पंजीकृत ट्रेड यूनियनों की संख्या 1680 थी। यह 1996 में 10326 हो गई। यहाँ सरकारी नौकरी में रत 3000 लोगों के लिए एक ट्रेड यूनियन बनाई गई है।
केरल राज्य के आविर्भाव के बाद राज्य में 13 बार चुनाव हुए। बीस मत्रिमंण्डल तथा 12 मुख्यमंत्री हुए हैं। 5 अप्रैल 1957 को ई. एम. एस. नंपूतिरिप्पाड के नेतृत्व में प्रथम मंत्रिमण्डल सत्ता में आया। वर्तमान मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानन्दन ने 18 मई 2006 को शासन संभाला।

वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र

केरल के पास विज्ञान और प्रौद्योगिकी की समृद्ध परंपरा है। गणित, ज्योतिषी, ज्योतिष, आयुर्वेद, वास्तुकला, धातु विज्ञान आदि क्षेत्रों में केरलीयों ने उल्लेखनीय योगदान किया है। आधुनिक भारत के वैज्ञानिक क्षेत्र में केरल की उपस्थिति उल्लेखनीय है। वैज्ञानिक तकनीकी क्षेत्रों में भी केरल बहुत आगे है। केरल के अनेक वैज्ञानिक विदेशों में कार्यरत हैं। पुराने काल में ज्योतिष, मंत्र - तंत्र आदि विज्ञान के रूप में विकसित हुए थे। मलयालम का वैज्ञानिक साहित्य भी अत्यंत समृद्ध है।

गणित एवं ज्योतिष

भारतीय परम्परा के अनुरूप केरल में भी गणित, ज्योतिषी और ज्योतिष का विकास परस्पर सम्बद्ध था। गणित के क्षेत्र में प्राचीन केरल का योगदान विश्व प्रसिद्ध है। समकालीन गणितज्ञों द्वारा प्रयुक्त 'केरल स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स' शब्द इसका प्रमाण है। केरलीय गणित एवं ज्योतिषी का विकास आर्यभट की रचना 'आर्यभटीय' के आधार पर हुआ है और आर्यभट को कतिपय विद्वान केरलीय मानते हैं। केरलीय गणित एवं ज्योतिषी के विकास के परिणाम स्वरूप बनी प्रमुख पद्धतियाँ हैं ईस्वी सन् 7 वीं शती में हरिदत्त द्वारा आविष्कृत 'परहितम्' तथा ईस्वी सन् 15 वीं शती में वडश्शेरी परमेश्वरन द्वारा आविष्कृत 'दृगणितम्'।
प्राचीन केरलीय गणितज्ञों की सूची लम्बी है। उनमें से अनेक कृतियाँ ताड़पत्रों में आज भी उपलब्ध हैं। गणित के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्ध नाम हैं - वररुचि प्रथम, वररुचि द्वितीय, हरिदत्तन, गोविन्दस्वामी, शंकरनारायणन, विद्यामाधवन, तलक्कुलम गोविन्द भट्टतिरि, संगम ग्राम माधवन, वडश्शेरी परमेश्वरन, नीलकंठ सोमयाजी, शंकर वारियर, ज्येष्ठ देवन, मात्तूर नंपूतिरिमार, महिषमंगलम शंकरन, तृक्कण्डियूर अच्युतप्पिषारडी, पुतुमना पोमातिरि (पुतुमना सोमयाजी), कोच्चु कृष्णनाशान, मेलपुत्तूर नारायण भट्टतिरि आदि। आधुनिक गणित का इतिहास यह मानता है कि कलन (Calculus) का आविष्कारक आइज़ेक न्यूटन और लैबनीज़ न होकर केरल के गणित वैज्ञानिक हैं।

आयुर्वेद

आयुर्वेद दो हज़ार वर्ष पुरानी भारतीय चिकित्सा-पद्धति है। इस पद्धति का विकास स्वास्थ्य, जीवन-शैली एवं चिकित्सा की दृष्टि से हुआ था। इसमें जीवन के समस्त अंगों का अध्ययन तथा परिशीलन निहित है। केरलीय आयुर्वेद परम्परा अत्यन्त प्राचीन एवं समृद्ध है। यही कारण है कि विश्व भर में केरल अपनी आयुर्वेदिक चिकित्सा शैली के कारण प्रसिद्ध है। लेकिन आयुर्वेद मात्र रोग की चिकित्सा तक सीमित नहीं है यह एक विशिष्ट जीवन दर्शन को स्थापित करता है।
केरल की आयुर्वेद परंपरा अत्यंत प्राचीन है। यह आज भी विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। पर्यटन के क्षेत्र में भी आयुर्वेद पर आधारित पर्यटन (Health Tourism) केरल की विशेषता है। 'पंचकर्म चिकित्सा' जो कि पुनर्यौवन चिकित्सा कहलाती है, इसकेलिए सैकड़ों विदेशी पर्यटक प्रतिवर्ष केरल आते हैं। केरलीय वैद्य परम्परा में परम्परागत आयुर्वेद विद्यालयों के स्तानकों से लेकर परिवारिक परम्परा वाले देशज वैद्य शामिल है। यहाँ एक ऐसा परिवारिक परम्परा वाला वैद्यपरिवार बड़ा प्रसिद्ध है जिसे अष्टवैद्य के नाम से पुकारा जाता है।
केरल की आयुर्वेद चिकित्सा परंपरा सदियों से चलती चली आ रही है। केरलीय आयुर्वेद का सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ हैं वाग्भट का 'अष्टांगह्रदयम्' और 'अष्टांगसंग्रहम्'। केरलीय वैद्यों ने भी अनेक आयुर्वेद ग्रन्थ रचे हैं।देखें - केरल आयुर्वेद

आधुनिक विज्ञान

आधुनिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ नवीन वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी केरलीयों ने विशेष योग्यता प्राप्त की। विज्ञान की विविध शाखाओं में केरल के अनेक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए हैं। जैसे कि - के. आर. रामनाथन, सी. आर. पिषारडी, आर. एस. कृष्णन, जी. एन. रामचन्द्रन, गोपीनाथ कर्ता, यू. एस. नायर, के. आर. नायर, ई. सी. जी. सुदर्शन, एम. एम. मत्तायि, के. आई. वर्गीस, एम. एस. स्वामीनाथन, ताणु पद्मनाभन, पी. के. अय्यंगार, एम. जी. रामदास मेनन, के. के. नायर, एन. के. पणिक्कर, एन. बालकृष्णन नायर, के. के. नायर, के. जी. अडियोडी, जी. माधवन नायर आदि लब्ध प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की सूची बहुत लम्बी है।
आधुनिक विज्ञान के विकास में योग देने वाली संस्थाएँ हैं विश्वविद्यालय, वैज्ञानिक - प्रौद्योगिकी विद्यालय, वैज्ञानिक अनुसंधान प्रतिष्ठान आदि। 'केरल शास्त्र साहित्य परिषद' जैसी वैज्ञानिक संस्थाएँ भी जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने में सहायक बनी हैं।

केरल के जिले

केरल में 14 जिले हैं: