रविवार, 27 दिसंबर 2015

एंकरिंग से नायिका बनी मंदिरा

शाहरुख के साथ काम कर सके , उस लायक बनने की है तमन्ना

छालीवुड में एंकरिंग से फिल्मो में कदम रखने वाली नायिका मंदिरा नायक की तमन्ना शाहरुख के साथ काम करने लायक बनने की है। साथ ही वे फिटनेस के लिए लोगो को जागरूक करना चाहती है। मंदिरा छालीवुड में सभी प्रकार की भूमिका निभाना चाहती है ताकि उन्हें कटु अनुभव हो जाए। वे कहती है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में गुणवत्ता हो तो जरूर थियेटरों में चलेगी। मंदिरा दैनिक सन स्टार के दफ्तर आई तो हमने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करती थी फिर नाटकों में किया। जब जब टीवी देखता था तब तब मुझे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए । थियेटरों  की कमी को सरकार पूरा करे।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां होती है। फिल्मो में वो गुणवत्ता नहीं होती जो यहां के लोगो को चाहिए। प्रोड्यूसरों को इस और ध्यान देने की जरुरत है।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। नाटकों में भाग लेने के बाद लोगो ने मेरा अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया। माँ कुंती नायक ही मेरे प्रेरणाश्रोत है जो हर पल मेरे साथ होती है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चली हूँ। अब इसी लाईन पर काम करती  रहूंगी।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी  , लेकिन निगेटिव रोल पसंद है।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 आप इतने फिट कैसे हो पाई। राज क्या है?
00 मैंने हेल्थ को लेकर बहुत मेहनत की है। अपना काफी वजन कम किया है। अब फिटनेस के लिए लोगो को अभियान चलाकर जागरूक करूंगी। 
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। शाहरुख खान के साथ काम करने की तमन्ना है। इस लायक बन सकूँ यही मेरी इच्छा है। 

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में ही पहचाने : अरविन्द

छत्तीसगढ़ी फिल्मो को प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए

छत्तीसगढ़ी फिल्मो के चर्चित नाम है अरविन्द गुप्ता,जिन्होंने 25 से अधिक फिल्मो में अपने अभिनय से
निर्माता निर्देशकों का दिल जीत लिया है। उनका कहना है कि लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में ही पहचाने। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। अरविन्द कहतें हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो का भविष्य काफी
अच्छा है। दबंग देहाती में शानदार भूमिका निभाने वाले अरविन्द कहते हैं कि सरकार को भी छालीवुड की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे कलाकारों का भला हो सके।दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में नाटकों में भाग लिया करता था फिर थियेटर ज्वाइन किया। जब जब टीवी देखता था तब तब मुझे लगता था कि मुझे भी कुछ बनना चाहिए ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में बहुत सारी कमियां दिखती है। दूसरी और लोगो को छत्तीसगढ़ी फिल्मो के बारे में बताया जाना चाहिए। प्राइमरी स्कूल के सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मैंने कई फिल्मे कर ली है। थियेटर करने के बाद लोगो ने मेरा अभिनय देखा और फिल्मो में मौका दिया।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चला था। अब इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। लगातार काम करूंगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा , लेकिन निगेटिव रोल पसंद है।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 रिल और रियल लाइफ में क्या अंतर है?
00 रिल और रियल लाइफ में बहुत अंतर है। रील लाइफ निर्देशक के अनुसार होता है और रियल लाइफ अपने हिसाब से होती है।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है। मै चाहता हूँ कि लोग मुझे बेस्ट खलनायक के रूप में जानें। 

गॉडफादर जैसे रोल का मुझे इन्तजार है

 बार बार टूटता हूँ और सम्हालता हूँ: पुष्पेन्द्र सिंह 

छत्तीसगढ़ के जाने माने स्टार पुष्पेन्द्र सिंह में खूबियों का खजाना है। वे एक अच्छे कलाकार है तो उतने ही
अच्छे निर्माता निर्देशक और लेखक भी हैं। उन्हें अपने काम के प्रति जूनून है। उनका कहना है कि - कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती , लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। उनका सपना गॉडफादर जैसे रोल करने की है, जो किसी के जीवन पर आधारित हो। पुष्पेन्द्र सिंह मुम्बई में भी अपनी कला का लोहा मनवा रहे हैं। उन्होंने सीरियलों में 100 से ज्यादा एपिशोड कर चुके हैं। उनसे हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है।
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो की क्या संभावनाएं हैं?
०० जब तक टेक्नीकल क्षेत्र में एक्सपर्ट लोग नहीं होंगे तब तक ऐसी ही कमजोर फिल्मे बनती रहेंगी। यहां जिसे जो नहीं आता वही करते हैं । गायक निर्देशक बन जाता है। कोई भी फाइट मास्टर बन जाता है। कोई प्लानिंग नहीं होती जो पैसा नहीं लेते वही कलाकार यहाँ चलते है। तो आप अंदाज लगा ले कैसी फिल्मे बनेंगी। ० छत्तीसगढ़ी सिनेमा अच्छा व्यवसाय करे इसके लिए क्या कर सकते हैं?
०० यहां फिल्मे कमजोर बन रही है । फिल्मे नहीं चल पाती इसकी वजह भी हैं और वो सब जानते हैं कि पिछड़े हुए राज्य में टॉकीजों का विकास नहीं होना। छत्तीसगढ़ में मिनी सिनेमाघर दो सौ दर्शकों की क्षमता वाली टॉकिजों की बड़ी आवश्यकता है जहां छत्तीगसढ़ी फिल्मों के दर्शक आसानी से पहुंच सके। प्रचार प्रसार की कमी है। सिर्फ रायपुर में प्रचार के लिए पांच लाख चाहिए जो निर्माता नहीं करते।
० आप इस क्षेत्र में कैसे आये ?
०० मै थियेटर से आया हूँ। सलमा सुलतान की धारावाहिक सुनो कहानी में मुझे मौका मिला फिर मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। मैंने भारतभूषण के साथ काम किया है।
० फिल्मो की और रुझान कैसे हुआ?
०० मेरी कला मेरे पिताजी की देंन है। कृष्ण बनाकर मुझे खड़ा कर दिए थे वही  प्रेरणाश्रोत है। आगे बढ़ने में मेरी पत्नी का भी बहुत सहयोग है। जिसके कारण मैं कलाकार हूँ ।
० आपने बहुत सी फिल्मे कर ली आपकी राह कैसे आसान हुआ?
०० मै बार बार टूटता हूँ ,बार बार सम्हालता हूँ । मुझे ढर्रे पर जीना नहीं आता। यहां आलोचना करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे पर साथ देने वाले नहीं। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होप्ती , लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती। बस मै यही जानता हूँ।
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो के प्रदर्शन में कमी कहाँ होती है?
०० प्रचार प्रसार और विज्ञापन में कमी फिल्म नहीं चलने का सबसे बड़ा कारण है। थियेटर भी एक कारण हो सकता है। गाँव गाँव तक हम अपनी फिल्म नहीं पंहुचा पा रहे हैं। बेहतर प्रचार पसार हो और प्रदेश के सभी टाकीजों में फिल्म लग जाए तो लागत एक हप्ते में निकल आएगी। सरकार मदद नहीं करती और डिस्ट्रीब्यूशन भी सही नहीं है।
० क्या छत्तीसगढ़ में नायिकाओं की कमी है कि बाहर से लाना पड़ता है?
०० हाँ जरूर है। लडकिया बहुत है पर अच्छे घरों की लडकियां इस फिल्ड में आना नहीं चाहती क्योकि उन्हें वो सम्मान नहीं मिलता जो वो चाहतीं हैं। इसलिए कमी बनी हुई है।
० आपकी भविष्य की क्या योजना है?
०० मै साल में दो ही काम करूंगा पर अच्छा करूंगा। मैंने अपना ग्रुप तैयार किया है एसपी इंटरटेनमेंट के बैनर पर हमने काम शुरू किया है। इस क्षेत्र में काम करते रहेंगे।
० आपने सभी प्रकार की भूमिका का निर्वहन किया है वैसे आपको कैसा रोल पसंद है?
०० मुझे आज तक पसंद का रोल नहीं मिला। साइलेंट करेक्टर चाहिए ,पता नहीं कभी मिल पायेगा या नही।
० रील और रियल लाइफ में क्या अंतर पाते है?
०० बहुत अंतर है। रियाल लाइफ की घटना को रील लाइफ में ला सकते हैं पर रील को रियल में नहीं ला सकते।
० ऐसा कोई सपना जिसे आप पूरा होते हुए देखना चाहते हैं?
०० गॉडफादर जैसे रोल करने की तमन्ना है, जो किसी के जीवन पर आधारित हो। जैसे महात्मा गांधी। 

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

तमिलनाडू में पर्यटकों को उपलब्ध कराते हैं सभी सुविधाएं

अतिथि देवो भवः का निर्वाह करते हैं : मीणा
छत्तीसगढ़ सरकार अपना कार्यालय चलायें तो खुशी होगी

- अरुण कुमार बंछोर
रायपुर। तमिलनाडु के पर्यटन विभाग द्वारा राज्य में घूमने आए पर्यटकों के लिए टूर पैकेज की सुविधा है, जिसकी जानकारी आप यहां ऑनलाइन ले सकते हैं| सामान्य टूर पैकेज, रेल यात्रा पैकेज, विशेष पर्यटन और रद्दीकरण आदि की जानकारी भी यहां उपलब्ध है| आप भी तमिलनाडु भ्रमण की समयसीमा तय कर, टूर पैकेजों के खर्च की जानकारी घर बैठे ले सकते हैं | हम अतिथि देवो भवः का निर्वाह करते हैं। यहाँ कहना है तमिलनाडू राज्य पर्यटन विभाग कमिश्नर एवं पर्यटन विकास निगम के प्रबंध निदेशक श्री हर सहाय मीणा का। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार का वहां कार्यालय तो है पर बंद है वहां स्टाफ बैठाकर दफ्तर को फिर शुरू करें तो हमें खुशी होगी। श्री मीणा सरकारी दौरे पर रायपुर आये हैं। हमने उनसे हर पहलूओं पर बात की है।
० आपके राज्य में आने वाले पर्यटकों को सरकार क्या सुविधाएं उपलब्ध कराती है?
०० राज्य में घूमने आए पर्यटकों के लिए टूर पैकेज की सुविधा है। हमारे यहां अतिथि देवो भवः का निर्वाह करते हैं इसके लिए सरकार प्रतिबद्ध हैं।
० बाहर से आने वाले पर्यटकों को पर्यटन स्थलों की सम्पूर्ण जानकारी हो इसके लिए क्या व्यवस्था है?
०० राज्य के हर बस और रेलवे स्टेशनों पर सम्पूर्ण जानकारी उपलब्द्ध है। पर्यटकों को कही भी भटकना नहीं पड़ता है। पर्यटन विभाग की और से सभी भाषाओं के जानकार भी उपलब्ध कराये जाते हैं।
० तमिलनाडू को पर्यटन से कितनी आय हो जाती है?
०० देखिये आय मायने नहीं रखती, वैसे हमारा पर्यटन विकास निगम 1600 करोड़ कम मुनाफे में था। महत्वपूर्ण होता है कि कितने पर्यटक आये। हमने  पर्यटन स्थलों में मंदिरों, वन्य जीवन, भोजन, कला, संस्कृति, राज्य के संगीत से संबंधित संस्थानों को शामिल किया है।
० देश विदेश से कितने पर्यटक आते हैं और देश में स्थान क्या है?
०० तमिलनाडू का देशी पर्यटकों में पहला और विदेशी पर्यटकों में दूसरा स्थान हैं। 2014 में 3276 लाख देशी और 46 लाख 58 हजार विदेशी पर्यटकोण ने तमिलनाडू के पर्यटन स्थलों का भ्रमण किया है।
० छत्तीसगढ़ सरकार से पर्यटन को लेकर कोई अनुबंध या सहयोग है?
०० छत्तीसगढ़ सरकार से कोई मेलमिलाप नहीं है। दोनों अपने अपने पर्यटन स्थलों के लिए काम करते है। सहयोग हो सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार का चेन्नई में अपना दफ्तर है पर स्टाफ नहीं होने के कारण बंद पड़ा हुआ है। अच्छा होगा दफ्तर को खोल दिया जाए। इससे ये होगा की जो लोग छत्तीसगढ़ से तमिलनाडू जाते हैं उन्हें छत्तीसगढ़ दफ्तर से सारी जानकारी और सुविधाये मिल जाएगी।
० तमिलनाडू में पुरातात्विक स्थानो की भरमार है। सबसे आकर्षक जगह कौन सी मानते हैं?
०० चेन्नई में पर्यटन के कई आकर्षण हैं। चेन्नई के समुद्र तट पर स्थित रिसोर्ट बहुत सुंदर हैं। मनीला तट चेन्नई का गौरव है। ऐतिहासिक सेंट जाॅर्ज किले की यात्रा आपको प्राचीन समय में खींच ले जाती है। चेन्नई में कई मंदिर, चर्च और आध्यात्मिक केन्द्र हैं। यहां के पार्थसारथी मंदिर और कपिलेश्वर मंदिर का निर्माण 13 वीं सदी में हुआ था और यह द्रविड़ वास्तुकला का नमूना है।
० इतिहास और संस्कृति को भी तमिलनाडू सरकार ने पर्यटन में शामिल किया है?
०० हाँ ,राज्य की संस्कृति से सबको परिचय कराते हैं। सन् 1851 में निर्मित चेन्नई का राजकीय संग्रहालय मद्रास संग्रहालय के नाम से लोकप्रिय है। कोलकाता के बाद यह भारत का दूसरा सबसे पुराना संग्रहालय है और यह अपने आप में किसी खजाने से कम नहीं है। कला, पुरातत्व, मावन विज्ञान, मुद्रा शास्त्र और बहुत कुछ बेहतरीन कृतियों का यहां भंडार है।

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

कलेक्टर बनना चाहता है बाल कलाकार रज़ा खान

फिल्मो में काम करते रहेंगे 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो में अपने अभिनय का जादू बिखरने वाले बाल कलाकार रजा खान की दिली इच्छा आईएएस की परीक्षा पास कर कलेक्टर बनने की है। अगर ऐसा होता है तो भी वे फिल्मो में काम करते रहेंगे। फिल्म दबंग देहाती में बड़े कलाकारों के साथ काम करके रज़ा खान बेहद खुश है। छालीवुड के सुपर स्टार करन खान भी उनके अभिनय के कायल हैं। रज़ा से दैनिक सन स्टार ने बेबाक बात की है।
0 फिल्म दबंग देहाती में आपका क्या रोल है और कैसे कर पाएं है?
00 ये मेरी दूसरी फिल्म है मुझे इस फिल्म में अच्छा रोल दिया गया है। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। एक तो बड़े बड़े कलाकारो के साथ काम करने का मौका मिला है। इसका अपना अलग ही मजा है। करन खान के बारे में जितना सूना था उससे ज्यादा अच्छा है। बस अभी तो सीख रहा हूँ।
0 इसके पहले भी आपने करण खान के ही फिल्म में काम किया है?
00 हाँ फिल्म सिधवा सजन में मैंने उनके बचपन का किरदार निभाया है। उनके साथ काम करके मुझे बहुत ही अच्छा महसूस होता है।
0  पहली बार कैमरे के सामने आने से डर नहीं लगा?
00 नहीं इसके पहले हमेशा स्कूल के कार्यक्रमों में भाग लेता रहा हूँ।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। आईना के सामने खड़े होकर एक्टिंग किया करता था तब मेरे पिता मोहम्मद निजाम खान को लगा कि मै एक अच्छा कलाकार बन सकता हूँ ।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मेरे पिताजी ही मेरे प्रेरणाश्रोत है । करन खान ने मुझे मेरा काम देखा और मौका दिया है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 नहीं ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की नहीं सोचा है और ना ही अब मेरा यह उद्देश्य है। पर इस लाईन पर काम करटा रहूँगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहते हैं?
00 मेरी दिली इच्छा आईएएस की परीक्षा पास कर कलेक्टर बनने की है। फिर साथ साथ छालीवुड में भी कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अपनी मेहनत से एक अच्छा कलाकार कहलाना पसंद करूंगा। 

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

फिल्म को ही कॅरियर बनाउंगी : सुहानी

गायिका बनने की चाहत है , मेरा शौक भी है 
हिन्दी फिल्म मीराधा की नायिका सुहानी जेठलिया कहती है की गायन मेरा शौक है और चाहत भी,लेकिन अब
फिल्म को ही अपना कैरियर बनाउंगी। जब इंडस्ट्री में आ ही गयी हूँ तो पीछे नहीं हटूंगी। इस फिल्म में छत्तीसगढ़ के अमिताभ कहे जाने वाले अशोक मालू ने भी काम किया है। उनका कहना है कि मुझे हर तरह के रोल करने की इच्छा है मीराधा में नायिका हूँ ,और अपनी भूमिका के साथ बहुत ही मेहनत की है। दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलूओं पर बेबाक बात की।
0 फिल्म मीराधा में आपका क्या रोल है और कैसे कर पा रही है?
00 ये मेरी पहली फिल्म है मुझे नायिका का रोल दिया गया है। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। मैंने एक आधुनिक लड़की राधा का किरदार निभाया है। इस फिल्म में बहुत मेहनत की है।
0  क्या है इस फिल्म में दर्शकों के लिए?
00 इस फिल्म में एक सन्देश है जो दर्शकों को पसंद आएगा। इसमें सब कुछ है दो नायिका और एक नायक है । आप अपने जिंदगी को कैसे जी सकते है इस फिल्म में बेहतर तरीके से बताया गया है। इस फिल्म को लेकर हम आश्वस्त हैं।
0  पहली बार कैमरे के सामने आने से डर नहीं लगा?
00 जी नहीं बिलकुल डर नहीं लगा। हम सब ने इसमें एक साथ कैमरे का सामना किया है।
0 इस फिल्म की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। उम्मीद है कि और बॉलीवुड की अन्य फिल्मो की तरह ही चलेंगी। इसमें सब कुछ है। आप देखिये ,हमें तो पूरी उम्मीद है।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में भी एक्टिंग किया करती थी। कई नाटकों में भाग लिया था। वैसे मेरा रुझान गायन की तरफ ही रहा है।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है । मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मेरे पिता श्री सूर्यप्रकाश जेठलिया इस फिल्म के निर्माता है और मेरे प्रेरणास्रोत भी। मेरे लगन को देखकर उन्होंने मुझे फिल्म करने के लिए प्रोत्साहित किया। उनके ही कारण मैं फिल्म में अच्छे से रोल कर पाई हूँ।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 नहीं ! मेरा रुझान गायन की और ही था। एक्टिंग करने की कभी नहीं सोची थी । अब इसी लाईन पर काम करती रहूंगी, पीछे नहीं हटूंगी ।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 हाँ मै छाहती हूँ कि मीराधा खूब चले जनता मेरी एक्टिंग को सराहे। इस फिल्म में मैंने दो गाने गाये है।
0 कभी आपको निराशा हुयी और सबसे ज्यादा उत्साहित कब हुई थी?
00 निराश कभी नहीं हुई हूँ। पर फिल्म में पहले और आख़िरी दिन मुझे खूब खुशी हुई थी क्योकि इससे मेरे जीवन में एक नया मोड़ आया है। 

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और संस्कृति की कमी झलकती है

 पात्र के अनुसार कलाकारों का चयन हो - विनय अम्बष्ड 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो के खलनायक के रूप में तेजी से उभरे अम्बिकापुर के विनय अम्बष्ड का कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में मौलिकता और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की कमी झलकती है। यही नहीं कलाकारों का चयन
भी पात्रों के अनुसार होना चाहिए। विनय अम्बष्ड ने थियेटर से अपने कॅरियर की शुरुआत की थी और आज छत्तीसगढ़ी फिल्मों का एक जाना पहचाना नाम बन गया है। उन्होंने बॉलीवुड की दो फिल्मे कर छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया है। अब वे लगातार फिल्मे ही करते रहना चाहते हैं। दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलुओं पर बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। जब मै पांच साल का था तब पहली फिल्म देखा था ,तब से कुछ अलग करने की सोच ली थी। मन में लगन हो तो सब संभव है। मैंने थियेटर ज्वाइन किया और आज इस मुकाम पर हूँ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है?
00 क्योकि यहां की फिल्मो में अपनी संस्कृति और मौलिकता की कमी झलकती है। कलाकारों का चयन भी पात्रों के अनुसार नहीं होता क्योकि निर्माता सबसे पहले फाइनेंसर की तलाश में होता है। जो पैसा लगाता है वो कलाकार बन जाता है।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से सीखा है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। मै थियेटर से आया हूँ। मेरी पहली फिल्म एक हॉरर फिल्म है। सही मायने में मेरी पहली फिल्म सरपंच है जो बड़े परदे पर सफल रही है। पंकज कपूर मेरे आदर्श हैं। फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा ने मुझे छत्तीसगढ़ में अभिनेता के तौर पर पहचान दी है और अभी मेरे पास धर्मेन्द्र चौबे की करवट तथा बही तोर सुरता मा जैसे फिल्मे हैं।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चला था। इसी लाईन पर काम करता रहूंगा। लगातार काम करूंगा।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। मैं किसी भी भाषा की फिल्म हो जरूर करूंगा।
0 सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड की मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये , टाकिजों में छत्तीसगढ़ी फिल्म दिखाना अनिवार्य करे। छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।
0 आप फिल्मो में भूमिका को लेकर कैसा महसूस करते हैं ?
00 जब मैं कोई भूमिका निभाता हूँ तो पहले गंभीरता से मनन करता हूँ। उसमे पूरी तरह से डूब जाता हूँ।
0 रिल और रियल लाइफ में क्या अंतर है?
00 रिल और रियल लाइफ में बहुत अंतर है। रील लाइफ काल्पनिक होता है और रियल लाइफ में सच्चाई होती है।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहता हूँ। अब लगातार फिल्मो में ही काम करते रहने की तमन्ना है। 

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

फिल्म को ही कॅरियर बनाउंगी : अश्मिता बख्शी

 बॉलीवुड में महिला कलाकारों के साथ अन्याय नहीं होता
छोटे परदे की बहुचर्चित धारावाहिक नियति से बॉलीवुड में कदम रखने वाली अदाकारा अश्मिता बख्शी कहती है कि अब फिल्म को ही अपना कैरियर बनाउंगी। जब इंडस्ट्री में आ ही गयी हूँ तो पीछे नहीं हटूंगी। उनका कहना है कि बॉलीवुड में महिला कलाकारों के साथ अन्याय नहीं होता है बल्कि उनका अच्छे से ख्याल रखा जाता है। उनकी पहली हिन्दी फिल्म मकडज़ाल 11 नवम्बर को देशभर में रिलीज हो रही है जिसके प्रमोशन के सिलसिले में वह रायपुर में है। दैनिक सन स्टार ने उनसे हर पहलूओं पर बेबाक बात की।

0 फिल्म मकडज़ाल में आपका क्या रोल है और कैसे कर पा रही है?
00 ये मेरी पहली फिल्म है मुझे नायिका का रोल दिया गया है। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। एक अच्छी कहानी पर बनी है। मैंने इस फिल्म  मेहनत की है।
0  क्या है इस फिल्म में दर्शकों के लिए?
00 इस फिल्म में एक सन्देश है जो फिल्म की बजट से भी बड़ा है। मुझे दुख है की एक किस सीन के चलते फिल्म को ए सर्टिफिकेट दे दिया गया। जबकि इससे ज्यादा किस सीन फिल्मो में देखने को मिलता है। आप अपने जिंदगी को कैसे जी सकते है इस फिल्म में बेहतर तरीके से बताया गया है।
0  पहली बार कैमरे के सामने आने से डर नहीं लगा?
00 नहीं इसके पहले धारावाहिक कर चुकी हूँ। कैमरे के सामने आने से डर नहीं लगता बल्कि अच्छा ही महसूस होता है।

0 इस फिल्म की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। उम्मीद है कि और बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी। इसमें सब कुछ है। आप देखिये आपको कालेज के दिन याद आ जाएंगे।
0 कैमरे के सामने आने से पहले कितनी तैयारी करती है ?
00 हमने पहले वर्कशॉप किया था जिससे करेक्टर को समझने का मौका मिला और अपनी भूमिका आसान हो गयी।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। स्कूल में भी एक्टिंग किया करती थी।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से खीखा है । मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। धारावाहिक नियति में डायरेक्टर दिनेश जी ने मेरा काम देखा और मौका दिया है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 नहीं ! मैंने एमबीए की पढ़ाई की है फिर सीरियल में मौका मिला और काम करने लगी। अब मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चल रही हूँ। इसी लाईन पर काम करती रहूंगी, पीछे नहीं हटूंगी ।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 बॉलीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। अपनी मेहनत से एक अच्छी एक्ट्रेस बनना चाहती हूँ।

रविवार, 29 नवंबर 2015

दबंग देहाती में काम कर मै बहुत खुश हूँ : दिव्या

  छालीवुड में कुछ बनकर जरूर दिखाउंगी
छत्तीसगढ़ी फिल्म दबंग देहाती से छालीवुड में कदम रखने वाली दिव्या यादव यूँ तो कई शार्ट फिल्मे कर चुकी है यह उनकी पहली फीचर फिल्म है। वे कहती है कि पहली ही फिल्म में सुपर स्टार करण खान के साथ काम करने का अपना अलग ही मजा है। फिल्म की शूटिंग चल रही है और मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। अच्छा सोचकर इस लाईन में कदम रखी हूँ तो एक दिन छालीवुड में कुछ बनकर जरूर दिखाउंगी। दिव्या यादव से हमने कई मुद्दों पर बेबाक बात की है।
0 फिल्म दबंग देहाती में आपका क्या रोल है और कैसे कर पा रही है?
00 ये मेरी पहली फिल्म है मुझे दूसरी नायिका का रोल दिया गया है। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। एक तो बड़े कलाकार करन खान के साथ काम कर रही हूँ। इसका अपना अलग ही मजा है। करन खान के बारे में जितना सूना था उससे ज्यादा अच्छा है। बस अभी तो सीख रही हूँ।
0  पहली बार कैमरे के सामने आने से डर नहीं लगा?
00 नहीं इसके पहले कई शार्ट मूवी कर चुकी हूँ।
0 छालीवुड की क्या सम्भावनाये दिखती है?
00 बेहतर है। आने वाले समय में यहां की फिल्मे बॉलीवुड की तरह ही चलेंगी।यहां फिलहाल दर्शकों की कमी है। लोगो में अपनी भाषा के प्रति वो रूचि नहीं है जो होनी चाहिए और जो दर्शक है उनकी रुझान हिन्दी फिल्मो की ऑर है।
0 तो छालीवुड की फिल्मे दर्शकों को क्यों नहीं खीच पा रही है? 
00 जल्दी जल्दी फिल्मे आने से दर्शको का मन भंग हो जाता है। राजा छत्तीसगढ़िया को देखिये कैसी भीड़ खींच रही थी फिर मया 2 भी अच्छी चली । ऐसे ही फिल्मो की जरुरत है दर्शको को।

0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। आईना के सामने खड़ी होकर एक्टिंग किया करती थी।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 एक्टिंग मैंने खुद से खीखा है । मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है। करन खान ने मुझे मेरा काम देखा और मौका दिया है।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चल रही थी। इसी लाईन पर काम करती रहूंगी।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगी ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है।
0 सरकार को आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार छालीवुड को मदद करे। टाकीज बनवाए, नियम बनाये ताकि टाकिज मालिकों की मनमानी खत्म हो जाए।छत्तीसगढ़ी फिल्मो को सब्सिडी दें ताकि कलाकारों को भी अच्छी मेहनताना मिल सके।

0 आप फिल्मो में भूमिका को लेकर कैसा महसूस करते हैं ?
00 जब मैं कोई भूमिका निभाती हूँ तो पहले गंभीरता से मनन करती हूँ।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होता।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 छालीवुड में कुछ करके दिखाना चाहती हूँ। अपनी मेहनत से एक अच्छी एक्ट्रेस बनना चाहती हूँ। 

बुधवार, 18 नवंबर 2015

अभिनय में जीवंत पैदा करती है ये अभिनेत्रियां

छत्तीसगढ़ी फिल्मो की चर्चित माँ एक नजर में 
व्यक्ति के जीवन रुपी ईमारत की बुनियाद माँ है 7 ईमारत चाहे जैसी भी बने लेकिन सबसे पहले बुनियाद डालनी ही पड़ती है, उसी प्रकार किसी भी जीवन की उत्पत्ति के लिए माँ जैसी बुनियाद आवश्यक है माँ  को शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है किन्तु अगर मैं माँ  को परिभाषित करने की असफल कोशिश करता हूँ तो
पाता हूँ की  माँ  वो है जो सिर्फ और सिर्फ देना जानती है7 जब जीवन के हर क्षेत्र में मां का स्थान इतना अहम है तो भला हमारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा इससे कैसे वंचित रह सकता था।  छत्तीसगढ़ी सिनेमा में भी छह ऐसी चर्चित अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने मां के किरदार को सिनेमा में अहम बनाया है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जब भी मां के किरदार को सशक्त करने की बात आती है तो  उपासना वैष्णव ,पुष्पांजली शर्मा , श्वेता शर्मा ,उर्वशी साहू , उषा विश्वकर्मा और भानुमति कोसरे का नाम आता है जिन्होंने अपनी बेमिसाल अदायगी से मां के किरदार को छत्तीसगढ़ी सिनेमा में टॉप पर पहुंचाया। वैसे तो कई और अभिनेत्रियां है जिन्होंने छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ का किरदार निभाया है पर परदे पर इन छह को ज्यादा सराहा गया। आज हम जिन छह अभिनेत्रियों की बात कर रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ फिल्म एसोसिएशन ने बेस्ट अभिनेत्री के एवार्ड से सम्मानित कर चुके हैं।

पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खींच लाया 
अभिनेत्री पुष्पांजली ने मां की भूमिका निभाकर एक अलग अध्याय रचा है। उन्हें प्रकाश अवस्थी, अनुज शर्मा,
करण खान, चन्द्रशेखर चकोर जैसे तमाम बड़े नायको की माँ की भूमिका निभाने की वजह से ही छत्तीसगढ़ की निरुपा राय भी कहा जाता है। पुष्पांजली ने 71 फिल्मों में माँ की भूमिका निभाई है। मया के घरौंदा में उनकी भूमिका वाकई गजब थी। मां के रूप में जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया। पहुना, टूरी नंबर वन आदि में उनकी भूमिका दमदार थी। लेकिन पुष्पांजली खुद विदाई और मया 2 में अपनी भूमिका को सबसे अच्छी मानती है। पुष्पांजली को आज छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है। फिल्मों में उनकी एंट्री बड़े ही निराले ढंग से हुई। कभी अभिनय न तो की थी और ना ही कभी सोची थी। डायरेक्टर एजाज वारसी इन्हे फिल्मो में लेकर आये और डॉ अजय सहाय ने इनका हौसला अफजाई किया, जिसकी वजह से ही आज वे इस मुकाम को पा सकी है। वे कहती है कि मां के चरित्न को फिल्म में जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ। 80  से अधिक फिल्मो में काम कर चुकी पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खिंच लाया। माँ की भूमिका निभाना उन्हें बेहद पसंद है वैसे पुष्पांजली कई फिल्मो में भाभी की भूमिका भी निभा चुकी है। उनकी तमन्ना इस भूमिका को लगातार आगे भी जीते रहने की है।

अच्छे कामों से मिला श्वेता को मुकाम
बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री राखी की तरह अदा बिखेरने के कारण ही श्वेता शर्मा को छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कहा जाने लगा है। श्वेता हर तरह की भूमिका निभाने में माहिर है। करीब 15  माँ फिल्मो में माँ की भूमिका निभा चुकी श्वेता कहती है कि मन में लगन और दृढ़ इच्छा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। टीवी देख- देखकर मैंने भी फिल्मो में काम करने की सोची थी और आज सबके सामने हूँ। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उनकी एंट्री भी नाटकीय ढंग से हुई थी। कोरियोग्राफर मनोजदीप ने उन्हें मंच दिया और फिल्मो में काम करने को प्रोत्साहित किया ,बस फिर क्या था फिल्मो में आ गयी । कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद श्वेता ने अपने अभिनय को ऐसे निभाया कि हर तरफ उनके कामों की तारीफ़ होने लगी और उन्हें छत्तीसगढ़ी फिल्मो की राखी कही जाने लगा। निर्देशक एजाज वारसी ने ही पुष्पांजली की तरह इन्हें भी ब्रेक दिया और आज एक सफल अभिनेत्री है। श्वेता की भूमिका को लोगो ने कई फिल्मो में सराहा लेकिन श्वेता को खुद राजा छत्तीसगढिय़ा में अपनी भूमिका बहुत पसंद है। वो बताती है कि बिना तैयारी के शूटिंग में गयी थी और बेहतर ढंग से भूमिका निभा पाई।

लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति
राष्ट्रीय सम्मान से नवाजी जा चुकी छत्तीसगढ़ की लोकगायिका से अभिनेत्री बनी भानुमति कोसरे छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ और भाभी की भूमिका निभाती है। वे सम्मान की भूखी है , कहती है कि कलाकार को सम्मान चाहिए। उनका कहना है कि सरकार के नुमाईंदे राज्य के कलाकारों का सम्मान करना सीखे क्योकि वे सम्मान के ही भूखे होते है। दूरदर्शन रायपुर,भोपाल के लिए लोकगीत गा चुकी भानुमति बताती है कि परिवार वालों के विरोध के बाद भी वे इस क्षेत्र में  बनाई है। 15 छत्तीसगढ़ी फि़ल्में, कई एल्बम और स्टेज शो कर चुकी भानुमति लोकगायिका के लिए राष्ट्रीय एवार्ड से सम्मानित हो चुकी है। कारी, ऐसे होते प्रीत, पठौनी के चक्कर,  भुला झन देबे, सजना मोर, छलिया, मया 2, सिधवा सजन उनकी चर्चित फिल्मे हैं। भानुमति अपनी हर भूमिका में ऐसे रम जाती है जैसे वे असल जिंदगी हो। उनकी इसी कला के चलते निर्माता उन्हें पसंद करते है।

उपासना को निगेटिव रोल पसंद है 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो की सबसे सीनियर अदाकारा उपासना वैष्णव ने अब तक 85 फिल्मे की है जिसमे अधिकाँश फिल्मों में वे माँ की भूमिका में ही है। उसने हिन्दी,तेलुगु और भोजपुरी फिल्मे भी की है। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में उपासना बच्चों पर प्यार लुटाती हुई नजर आती है पर उसे खुद निगेटिव रोल पसंद है। मया फिल्म
में उन्होंने निगेटिव किरदार किया है जिसे दर्शकों ने खूब पसंद कियायह भूमिका उन्हें भी पसंद है। तँहू दीवाना महू दीवाना से वह खलनायिका के नाम से चर्चित हुई ,लकिन मोर डौकी के बिहाव में वह नायिका के रूप में सामने आई। क्षमानिधि मिश्रा ने इस रोल में उन्हें आजमाया और सफल रहे। उपासना कहती है कि रोल कोई भी हो उसे जीवंत बनाना ही उनका शौक है। अब वह कुछ हटकर रोल करना चाहती है। वे कहती है कि हमारी इमेज एक साफ सुथरी और आदर्श नायिका की होती है जिसे पूरी तरह भुला कर हमें एक ऐसा किरदार निभाना पड़ता है जो खलनायिका के गुण भी दिखा दें और दर्शक भी उसे पसंद करें ।

माँ की भूमिका पसंद है उर्वशी को 
`छत्तीसगढ़ी फिल्मो की चर्चित नाम है उर्वशी साहू जिन्होंने 19 फिल्मों में माँ और भाभी की भूमिका निभाई है। झन भुलाहू माँ-बाप ला उनकी एक बेहतरीन फिल्म है जिसमे उन्हें दर्शकों ने खूब सराहा। मोर डौकी के बिहाव में तो उन्होंने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। इस फिल के लिए उन्हें बेस्ट चरित्र अभिनेत्री का एवार्ड भी मिला। उर्वशी कहती है कि उसे सभी तरह के रोल पसंद है।

आदरणीय होती है माँ की भूमिका : उषा 
छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ की भूमिका निभाने वाली उषा विश्वकर्मा कहती है कि माँ की जो भूमिका होती है,
उसकी अकसर कदर नहीं की जाती और कभी-कभी तो उसे नीची नजऱों से देखा जाता है। उनका मानना था कि नौकरी-पेशा, बच्चे से ज़्यादा ज़रूरी है और यह भी कि बच्चों को सँभालना किसी सज़ा से कम नहीं। उषा 9 फिल्मे कर चुकी है जिसमे दगाबाज को वह अपनी सबसे बेहतर फिल्म मानती है। वे कहती है कि माँ की भूमिका बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है और आगे भी वह इस प्रकार की चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी। 

बुधवार, 4 नवंबर 2015

फिल्मों की आउट सोर्सिंग करनी होगी- प्रकाश अवस्थी

मया 2 से काफी उम्मीदें हैं,  छत्तीसगढ़ी फिल्मों की पायरेसी नहीं 
- अरुण कुमार बंछोर
छत्तीसगढ़ फिल्मों के सुपेर स्टार प्रकाश अवस्थी का कहना है कि थियेटर में प्रदर्शन के अलावा और किन- किन तरीकों से आय हो सकती है इस विषय पर विचार कर उसके आय के संसाधन बढ़ाने होंगे। उन्हें अपनी आने वाली फिल्म मया 2 से काफी उम्मीदें हैं। वे कहतें हैं कि ये अच्छी बात है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों की पायरेसी नहीं हो रही है। जबकि हिन्दी फिल्मों की पायरेटेड सीडी एक हफ्ते बाद बाजार में उपलब्ध हो जाती है। लेकिन क्षेत्र छोटा होने की वजह से वीडियो राइट्स से ज्यादा आमदनी भी नहीं होती है। इस क्षेत्र में और कारपोरेट कंपनियां आयेंगी तब हो सकता है कि प्रतिस्पर्धा में कुछ हो। मया, टूरा रिक्शा वाला, टूरा अनाड़ी तभो खिलाड़ी,दू लफाडू जैसी सुपर हिट फिल्मों में हीरो से सुपर स्टार बने प्रकाश अवस्थी इन दिनों पहली छत्तीसगढ़ी सीक्वल फिल्म मया टू का निर्माण कर रिलीज की तैयारी में जुटे है। वे इस फिल्म के निर्देशक भी हैं। छत्तीसगढ़ी के अलावा बंगला फिल्म,भोजपुरी और हिन्दी फिल्म अग्निशिक्षा में कार्य किया हैं। श्री अवस्थी से हमने हर पहलूओं पर बात की है। प्रस्तुत है बातचीत के अंश।
0 मया 2 आपकी दिवाली ने आ रही है उसमे दर्शकों के लिए ऐसा क्या है ?
00 मया टू में पारिवारिक स्टोरी के अलावा कामेडी के तड़के के साथ मसाला मूवी से लोगों को मनोरंजन होगा यह उम्मीद है।यह दो भाईयों की कहानी वाली एक बेहतरीन फिल्म है।
0 मया 2 में आपकी भूमिका क्या है?
00 मया 2 में मैं मुख्य भूमिका में हूँ। यह एक पारिवारिक कहानी है। दो भाई है जिसके प्यार और टकराव को लेकर बनाया गया है।
0 छत्तीसगढ़ी फिल्मो के अलावा भोजपुरी और उडिय़ा फिल्मो की भी यहां शूटिंग होने लगी है। वहां के कलाकार भी यहां की फिल्मो में काम कर रहे है। क्या यहां कलाकारों की कमी है?
00  छत्तीसगढ़ी सिनेमा में शौकिया तौर पर फिल्म बनाने वाले लोग बड़ी संख्या में आ रहे है। कई भाषाओं में क्षेत्रीय फिल्म निर्माण से छत्तीसगढ़ी फिल्मों की आउट सोर्सिंग हुई है भोजपुरी, और उडिय़ा से नया बाजार मिला है इसी तरह और भी तरीके ईजाद करने से इंडस्ट्रीज के सभी लोगों का भला होगा। यहां कलाकारों की कतई कमी नहीं है।
0 आपने भोजपुरी और बंगाली फिल्मे भी की है तो उस ओर रुझान कैसे हुआ?
00 श्रेय जी की फिल्म चिंगारी के जरिये मैं फिल्मो में आया था। उन्होंने मेरा काम कई फिल्मो में देखा था उन्होंने ऑफर दिया और मैंने काम शुरू कर दिया । मैंने चिंगारी की शूटिंग ख़त्म ही किया था तभी केडी ने मुझे टिपटॉप लैला अंगूठा छाप छैला के लिए ऑफर दिया। इस तरह भोजपुरी फिल्मो में एंट्री हुई।
0 छत्तीसगढ़ी फिल्मो के आपको सुपरस्टार मना जाता है , क्या यही मुकाम आप वहां भी बना पाएंगे?
00 दोनों ही जगहों का माहौल अलग अलग है। मन में दृढ़ इच्छा हो तो सब संभव है। मैंने बहुत कोशिश की है। सतीश जैन जी मेरे डायरेक्टर होते तो शायद मैं भी सुपर स्टार बन जाता।
0 आप किस तरह का रोल करना पसंद करते है?
00 मुझे सभी तरह का लीड रोल पसंद है। नेचुरल रोल ही करना चाहूँगा।
0 आगे की क्या योजना है.कौन सी फिल्म बनाएंगे?
00 आगे भी फिल्म बनाता रहूँगा। निर्देशन तो मैंने मजबूरी म किया है। मैं चाहता हूँ की और डायरेक्टर आये और फिल्म बनाये।
 0 सरकार से छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री को कैसी मदद की अपेक्षा करते हैं ?
00 छत्तीसगढ़ फिल्मों को थियेटरों की कमी से जूझना पड़ रहा है अगर सरकार सहूलियत दे और कारपोरेट सेक्टर प्रदेश में सौ-डेढ़ सौ नए सिनेमाघर बना दे तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों का रंग ही बदल जायेगा। उद्योगों की तरह रियायती दर में जमीन और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स के निर्माण की अनुमति से नहीं कंपनियां सिनेमाघरों के निर्माण के लिए आकर्षित हो सकती है।

सोमवार, 2 नवंबर 2015

एक ऐसा गाँव जहां 75 हजार से भी ज्यादा नीम पेड़ है

देश में सर्वाधिक नीम पेड़ों वाले टॉप 5 गाँवों में शामिल है गाँव सलोनी 
सन स्टार स्पेशल - अरुण कुमार बंछोर
रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गाँव है जहां आप जिधर भी जाओ सिर्फ नीम के ही पेड़ नजऱ आएंगे। इस गाँव को नीम गाँव भी कहा जाता है। सबसे मजेदार और गंभीर बात यह है कि इस गाँव के लोग कभी बड़े बीमारी से ग्रसित नहीं होते हैं। क्योंकि नीम को भारत में 'गांव का दवाखानाÓ कहा जाता है।

नीम में इतने गुण हैं कि ये कई तरह के रोगों के इलाज में काम आता है। यहाँ तक कि यह अपने औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेदिक मेडिसिन में पिछले चार हजार सालों से भी ज्यादा समय से इस्तेमाल हो रहा है। नीम को संस्कृत में 'अरिष्टÓ भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है, 'श्रेष्ठ, पूर्ण और कभी खराब न होने वाला।Óजी हाँ हम बात कर रहे है धमतरी जिले के गाँव सलोनी की ,जो देश में सर्वाधिक नीम पेड़ों वाले टॉप 5 गाँवों में शामिल है। लगभग 450 घरों वाले गाँव में 75 हजार से अधिक नीम पेड़ है। इसका श्रेय जाता है सरपंच वामन साहू को जिन्होंने हर तरफ नीम पेड़ का ही वृक्षारोपण कराया। सलोनी को हराभरा गाँव का भी दर्जा प्राप्त है। सन 2009 में तात्कालीन वन मंत्री विक्रम उसेंडी इस गाँव को देखकर हतप्रभ रह गए थे । मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी इस गाँव की सराहना कर चुके है।

छत्तीसगढ़ के सिहावा नगरी ब्लाक का गांव सलोनी में आप जहां भी जाएंगे नीम पेड़ ही आपका स्वागत करेगा। सड़क के दोनों और नीम पेड़ सुन्दरता का एक मिसाल है। गाँव की खाली जमीन पर एक दो नहीं बल्कि कई वृक्षारोपण है,जिसमे नीम का ही पेड़ है। नीम पेड़ के साथ साथ कहीं कही पर फलदार और औषधीय पौधे लगाए गए हैं। ये इस बात का प्रतीक है कि गाँव के ;लोग पर्यावरण के प्रति कितने जागरूक है। हमने सरपंच वामन साहू के साथ पूरे वृक्षारोपण का अवलोकन किया। उन्होंने बताया कि अपने 25 साल के राजनीतिक जीवन में उन्होंने सिफर पेड़ों से ही प्यार किया है। गाँव में पहले कुछ भी नहीं था। जब सड़कें बनी तब वन विभागों के अफसरों से आग्रह कर सड़क के दोनों किनारे पर नीम पेड़ का रोपण कराया। खुद उसकी देखभाल की। पहले अफसर कहते थे यहां पेड़ नहीं जी पाएंगे आज वही अफसर इस गाँव की तारीफ़ करते नहीं थकते हैं। क्योकि इस गाँव की जमीन पथरीली है जिसमे पेड़ पौधे कम ही जि़ंदा रह पाते है। ओर गाँव वालों की मेहनत और पर्यावरण के प्रति प्यार ने गाँव को हरा भरा बना दिया है।
नीम पेड़ ही क्यों ,फलदार पौधे क्यों नहीं लगाए। इसके जवाब में सरपंच साहू का कहना है कि नीम के अर्क में मधुमेह यानी डायबिटिज, बैक्टिरिया और वायरस से लडऩे के गुण पाए जाते हैं। नीम के तने, जड़, छाल और कच्चे फलों में शक्ति-वर्धक और मियादी रोगों से लडऩे का गुण भी पाया जाता है। इसकी छाल खासतौर पर मलेरिया और त्वचा संबंधी रोगों में बहुत उपयोगी होती है। वे कहते हैं कि आने वाले समय में पत्ते,नीम के फल हमारे गाँव के लिए अर्थ का जरिया बनेगा। सोच अच्छी है क्योकि नीम के पत्ते भारत से बाहर 34 देशों को निर्यात किए जाते हैं। इसके पत्तों में मौजूद बैक्टीरिया से लडऩे वाले गुण मुंहासे, छाले, खाज-खुजली, एक्जिमा वगैरह को दूर करने में मदद करते हैं। इसका अर्क मधुमेह, कैंसर, हृदयरोग, हर्पीस, एलर्जी, अल्सर, हिपेटाइटिस (पीलिया) वगैरह के इलाज में भी मदद करता है। नीम के बारे में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों में इसके फल, बीज, तेल, पत्तों, जड़ और छिलके में बीमारियों से लडऩे के कई फायदेमंद गुण बताए गए हैं।

 आजकल हमारी जिन्दगी में देसी नुस्खो का कोई खास स्थान तो नहीं है क्योंकि अमूमन सभी लोग अंग्रेजी दवाओं पर अधिक से अधिक निर्भर है शायद इसलिए कि वो जल्दी असर करती है 7 मेरा मानना है कि शायद ऐसा नहीं है आप अगर गौर से देखें तो हमारे आस पास पर्यावरण ने हमे बहुत से औषधियुक्त पौधे दिए है
जिनके इस्तेमाल से हम कुछ छोटी मोटी परेशानियो को बड़ी आसानी से दूर कर सकते है और नीम भी उनमे से एक है 7 साथ ही कुछ गंभीर बीमारीओं में भी समय के साथ उचित मार्गदर्शन में अगर हम औषधि युक्त पौधों का सेवन करते है तो उनसे निजात पाई जा सकती है 7
वामन साहू सरपंच सलोनी


शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

'परिवर्तन मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि : डॉ. अजय सहाय

स्थानीय कलाकारों को लेकर सुखद अनुभव हुआ है 
नायक ,खलनायक ,लेखक ,निर्देशक साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, पटकथा जैसे अनेक कला किसी एक व्यक्ति में हो ऐसे बिरले ही होते है और यह सब कला है डॉ अजय मोहन सहाय में। छत्तीसगढ़ी फिल्मो का वे एक आधार स्तम्भ है। उन्होंने एक नहीं कई भाषाओं की फिल्मो में अभिनय कर सबके सामने एक चुनौती पेश की है। पांच भाषाओं में अभिनय करना भी एक रिकार्ड है। जितने अच्छे वे मधुमेह व् हृदयरोग विशेषज्ञ है उतने ही बेहतर कलाकार है। डॉ सहाय को कला विरासत में मिली है। माँ से कला मिली है तो पिता से शिक्षा। छालीवुड में डॉ सहाय एक ऐसे नायक खलनायक लेखक ,निर्देशक है जिन्होंने फिल्म उद्योग पर हर भूमिका में एकछत्र राज कर रहे हैं और अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। उनके स्वाभाविक अभिनय और प्रतिभा की
पराकाष्ठा ही थी कि लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं।
 उन्होंने जितने भी फिल्मों में रोल किया उसे देखकर ऐसा लगता है कि उनके द्वारा अभिनीत पात्रों का किरदार केवल वे ही निभा सकते थे। उनकी अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जितनी भी फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। रूपहले पर्दे पर डॉ सहाय ने जितने रोल किए उनमें वह हर बार नए तरीके से संवाद बोलते नजर आए। अभिनय करते समय वे उस रोल में पूरी तरह डूब जाते हैं। परिवर्तन धारावाहिक में स्थानीय कलाकारों को लेना वे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी मानते है। समय की कदर नहीं करने वालों से डॉ सहाय काफी निराश होते हैं। वे कहते है कि जूनून से अच्छी फिल्म नहीं बनती। कहानी, संवाद,  निर्देशन, सब कुछ फिल्मो में होनी चाहिए। पैसों से ज्यादा समय की कीमत होती है। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है। पेश है बातचीत के संपादित अंश।
आपको फिल्मो में रुचि कैसे हुई
बचपन से ही रुचि रही है। स्कूलों में ड्रामा, नौटंकी देखकर मैंने भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया। ढेरों पुरूस्कार जीते। और आज सबके सामने हूँ।
कला से लगाव का कारण क्या है
कला मुझे विरासत में मिली है। माँ अच्छी गायिका रही है और पिता स्वर्गीय आनंद मोहन सहाय से शिक्षा मिली है। साफ है मुझमे कला कूट कूट कर भरा हुआ है।
आप अपनी भूमिका में जान कैसे डालते है
मैं अपनी भूमिका को जीवंत बनाकर निभाता हूँ। नायक हो या खलनायक हर भूमिका में मैंने पूरी तरह से डूबकर किया है। मेरी कोशिश रहती है की मेरी हर कला को दर्शक पसंद करें।
अब तक की भूमिका में आपको सबसे बड़ी चूनौती कौन सी लगी?
विलेन की भूमिका निभाना शुरू में मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। बाप बड़े ना भैया सबसे बड़े रुपैया में जब मुझे विलेन की भूमिका मिली तो वो मेरे लिए एक कड़ी परीक्षा थी और मैंने स्वीकारा। उसमे सब कुछ था घृणा से प्रेम तक। मैंने पूरी तन्मयता से अभिनय किया। मुझे खुशी है लोगो ने बेहद पसंद किया।
आगे क्या विलेन की भूमिका ही निभाते रहेंगे। 
नहीं वो तो एक पड़ाव है ,आगे मंजिल तो बहुत है।
आपने कई प्रकार का अभिनय किया है। पहले  नायक थे फिर खलनायक की भूमिका  नजर आये। आपका पसंदीदा रोल
हर कला मुझे पसंद है। चाहे नायक हो या खलनायक। लेखन हो या निर्देशन। समय के साथ साथ सब अच्छा है। मैं हर भूमिका को पसंद करता हूँ।
कभी आपको इस क्षेत्र में निराशा हुई है
हुई है , समय की कदर नहीं करने वालों से मुझे घोर निराशा होती है। मुझे काम का नशा है और लोग जहां भी बुलाते है मै समय पर पंहुच जाता हूँ। और जब दिन भर बैठे होते है और सीन नहीं होता है तो बहुत ही दुख होता है । क्योकि मैं मधुमेह और हृदयरोग विशेषज्ञ हूँ। अपना कीमती समय छोड़कर जब लोकेशन पर जाता हूँ और डायरेक्टर समय की कीमत नहीं जानता तो निराशा होती है।
और आप बहुत उत्साहित कब महसूस किये हैं
विलेन की भूमिका में अपने आप को देखकर मैं बहुत ही रोमांचित हुआ था। जब अपना काम देखा तो मुझे लगा की विलेन की ही भूमिका करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ी फिल्मे थियेटरों में क्यों नहीं टिक पाती
पैसे और जूनून से अच्छी फिल्मे नहीं बनती। कहानी अच्छी हो ,फिल्मांकन अच्छा हो, निर्देशन अच्छा हो तो फिल्मे जरूर चलेंगी। फिल्म नहीं चलने के लिए आप दर्शकों को दोष नहीं दे सकते। थियेटर नहीं है यह कहना गलत ,है अच्छी फिल्मे दे ,जनता जानती है सब कुछ। चंदा लेकर फिल्म बनाने वाले कभी सफल नहीं हो सकते।
रील लाइफ और रियल लाइफ में आप क्या अंतर पाते हैं?
रिफ्लेक्ट होता है। कही ना कही परछाई आ ही जाती है।
आपकी कोई ऐसी तमन्ना हो जो आप पूरा होते हुए देखना चाहते हैं?
एक बार अच्छी फिल्म बनाना चाहता हूँ। उसमे सभी लोकल कलाकार होंगे। यही तमन्ना है । फिल्म चली तो आगे भी बनाता रहूंगा। स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान करने की ख्वाहिश है।

मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है : डॉ अजय सहाय

0 विदेशों में शिविर लगाकर करते हैं इलाज , मिलता है प्यार
0 हर रोज नया इतिहास बनता है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में
0 इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ
0 झोला छाप डाकटरों पर होना चाहिए कार्रवाई

सक्षिप्त परिचय
नाम       -अजय मोहन सहाय
पेशा         मधुमेह ,ह्रदय रोग विशेषज्ञ
संस्थान    सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल
योग्यता    एमबीबीएस , एमडी सहित 18 डिगी
अवार्ड       शैक्षणिक साहित्य , डाक्टर में 50 से अधिक अवार्ड
            सीबी राय अवार्ड सीएम के हाथों
            हेल्थ केयर एक्सीलेंस अवार्ड
            दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान

मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है। डाकटरों को भगवान का दूत माना जाता है जो मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मरीज ठीक होकर हँसते हुए जाते है अगर मरीज की मौत हो जाए तो परिजनों का व्यवहार बदल जाता इससे काफी दुख होता है ,क्योकि डाक्टर अपना धर्म निभाता है। यह कहना है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल के संचालक एवं मधुमेह ,हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ अजय मोहन सहाय का। वे
कहते है कि इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ है। डॉ सहाय जितने अच्छे विशेषज्ञ है उतने ही अच्छे समाजसेवक भी है। गरीब मरीजों को भी ठीक कर दुआ बटोरते है। पैसा उनके लिए मायने नहीं रखता, सेवा को डॉ सहाय कर्म मानते हैं। सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में हर रोज नया इतिहास बनता है। देश विदेश से मरीज आते है और हँसते हुए घर को लौटते हैं। पाकिस्तान में शिविर लगाकर इलाज करने वाले डॉ सहाय कहते हैं कि सुनने और देखने में फर्क होता है। पाकिस्तान के लोगो से उन्हें बहुत प्यार मिला और भाईचारा भी देखने को मिला। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की।
0 डाकटरों को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है। मौजूदा परिवेश में डाकटर इसे कितना साकार कर पाते हैं ?
00 डाकटर मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मेरे लिए मरीजों का प्यार और भगवान का आशीर्वाद सच्ची दौलत है। मरीज अच्छा होकर हँसते हुए घर लौटे यही हम चाहतें है ,पैसा कोई मायने नहीं रखता।
0 कभी- कभी मरीजों के परिजनों के बिना वजह गुस्से का शिकार भी होना पड़ता?
00 हाँ , यह तो सहना पड़ता है। मरीज इलाज के लिए आता है और जब केस ज्यादा बिगड़ा हुआ होता है । चाह कर भी डाकटर उन्हें नहीं बचा पातेतो मरीज की मौत के बाद परिजनों का व्यवहार अचानक बदल जाता है। तब बहुत दुख होता है। हम अपना सेवा धर्म पूरी ईमानदारी से निभाते हैं । मौत शाश्वत सत्य है। एक चूक से बददुआ मिलाने लगती है जो तीर की तरह चुभती है।
0 क्या आप इस बात से सहमत है कि अस्पताल अब व्यवसाय का रूप ले लिया है?
00 डाक्टर तो भगवान का दूत होता है। आजकल डाक्टर सेवा देने वाले हो गए हैं और मरीज उपभोक्ता। यही कारण है कि डाक्टर और मरीज का रिश्ता कमजोर हो गया है। झोला छाप डाक्टरों के कारण यह स्थिति बनी है।
0 झोला छाप डाक्टरों पर शिकायतों के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती?
00 सरकार का मापदंड अलग अलग है। अच्छे और रजिस्टर्ड डाक्टरों पर जऱा सी चूक में कार्रवाई हो जाती है और सरकार झोला छाप डाकटरों पर कोई कार्रवाई नहीं करती क्योकि उनके खिलाफ कोई सबूत बही होता फिर वो रजिस्टर्ड भी नहीं होते। करोडो रुपया फूंककर डाक्टर बनने वाले पर तो सरकार की नजऱ हमेशा दुनिया भर के क़ानून लाड दिए गए है। उपभोक्ता फोरम भी जुर्माना ठोकने में पीछे नहीं होता।
0 मुख्यमंत्री बीमा योजना अस्पताल और मरीजों के लिए कितना कारगर है?
00 योजना सही है पर क्रियान्वयन गलत है। जागरूकता की कमी है। प्रक्रिया इत्तनी जटिल है कि अस्पताल को नुकसान उठाना पड़ता है। मरीज तो पूरा इलाज कराने के बाद कार्ड बता देते है पर उन्हें प्रक्रिया के बारे में पता नहीं होता है। कार्ड ना लो तो दुष्प्रचार करते हैं।
0 आपके अस्पताल में गरीबों के लिए क्या क्या सुविधाएं हैं?
00 गरीबों के लिए हमारे यहां कोई केश काउंटर नहीं है, उनके इलाज में हम देर नहीं करते। हमारी मंशा है कि गरीब मरीज ठीक होकर हँसते हुए घर जाए। उनकी दुआ ही मेरे लिए सबसे बड़ी दौलत है।
0 आप विदेशो में भी शिविर लगाकर मधुमेह की इलाज करते है। उसके बारे में बताएं?
00 हाँ मैंने नेपाल में भूकम्प पीडि़तों के लिए काम किया है। पाकिस्तान में 12 जगहों पर शिविर लगाकर इलाज किया। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 6 गरीब बच्चों का सफल इलाज किया है। काफी दुआ मिला।
0 पाकिस्तान के लोगो के मन में भारत के प्रति कैसा रवैया देखने को मिला?
00 देखने और सुनने में बहुत ही अंतर है। पाकिस्तान के लोगो के मन में भाई चारा है। सुनाने के विपरीत दिलों से भारत के लोगो से अलग नहीं है। बहुत ही यादगार पल रहा है पाकिस्तान का शिविर।
0 गाँवों में कोई डाकटर जाना नहीं चाहते इसके कारण क्या  है?
00 सरकार की व्यवस्था ठीक नहीं है। बिना साधन के डाकटर वहां कैसे जाकर अपना काम करेंगे। तनखा भी कम है और असुविधाएं नहीं है। पढ़े लिखे डाक्टरों पर बंदिश बहुत है लेकिन उनकी सुविधाओं की किसी को चिंता नहीं है।

मौत के मुंह से वापस लाया 
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ग्राम बेलहरी की 21 वर्षीय उमा कुर्रे को सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल से ना केवल जीवनदान मिली बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे भी सकुशल है। उमा को गंभीर अवस्था में जब अस्पताल लाया गया तब उसके तमाम अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। सारे डाक्टर जवाब दे चुके थे। सबके मना करने के बाद भी अ डॉ सहाय ने इलाज किया और उमा हँसते हुए घर के लिए विदा हुई और अस्पताल को दे गयी ढेर सारी दुआएं।

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राज्योत्सव में अपमानित होने से दुखी है भानुमति

० कलाकारों का सम्मान करे सरकार 
रायपुर। राष्ट्रीय सम्मान से नवाजी जा चुकी छत्तीसगढ़ की लोकगायिका भानुमति कोसरे राज्योत्सव २०१४ में अपमानित होने से दुखी है। उनका कहना है कि सरकार के नुमाईंदे राज्य के कलाकारों का सम्मान करना सीखे क्योकि वे सम्मान के ही भूखे होते है। दूरदर्शन रायपुर,भोपाल के लिए लोकगीत गए चुकी भानुमति बताती है कि परिवार वालों के विरोध के बाद भी वे इस क्षेत्र में  बनाई है। १५ छत्तीसगढ़ी फ़िल्में, कई एल्बम और स्टेज शो कर चुकी भानुमति लोकगायिका के लिए राष्ट्रीय एवार्ड से सम्मानित हो चुकी है। उनसे हमने हर पहलूओं पर बात की है पेश है बातचीत के संपादित अंश। 
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संक्षिप्त परिचय 
० नाम -   भानुमति कोसरे  
० कला-    लोकगायिका, फिल्म अभिनेत्री 
० चर्चित फिल्म - कारी,ऐसे होते प्रीत, पठौनी के चक्कर 
                           भुला जहां देबे, सजना मोर 
० आगामी फिल्म - छलिया, मया २ , सिधवा सजन 
० अवार्ड -  लोकगीत का राष्ट्रीय अवार्ड 
               बाबा साहेब आम्बेडकर कलाश्री , 
                केरल साहब आम्बेडकर कलाश्री 
० उपलब्द्धी - १५ छत्तीसगढ़ी फिल्मे, विज्ञापन , दूरदर्शन में काम 
पता -       भिलाईनगर , जिला -दुर्ग 

० आपको गाने का और अभिनय का शौक कैसे हुआ?
०० बचपन से ही मुझे गाने का शौक था। मै पंडवानी देख देखकर मुझे भी इच्छा हुई और मै गायिकाओं की कापी करने लगी। 
० परिवार का कितना सहयोग मिला?
०० कभी नही मिला। जब मै गाने की नक़ल करती थी तब मेरी दादी डांटती थी, बोलती थी - नाचबीन बनबे का। 
० फिर कैसे आ गयी इस क्षेत्र में , परिजनों ने रोका नहीं?
० ० सबसे पहले सोनहा बिहान के लिए गाना गई थी तब मुझे काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन मैंने कदम पीछे नहीं हटाई और आगे बढ़ती चली गयी। 
० आप अपना प्रेरणाश्रोत और आदर्श किसे मानती है?
०० मेरी माँ तीरथ बाई मेरी प्रेरणाश्रोत रही है वे रेडियो के लिए गाती थी जब मै क्लास दो में थी तब से रेडियो सुनटी रही हूँ। 
० कितने फिल्मो में अकाम कर चुकी है और कौन सा फिल्म आपको अच्छी लगी?
०० मैंने १५ फिल्मो में काम की है और मया की डोरी मेरी सबसे अच्छी फिल्म उसमे मैंने विलेन की भूमिका की है। 
० कभी आपको निराशा महसूस हुई है/
०० हाँ! एक बार एक भावनात्मक डायलॉग बोलते समय मुझे काफी निराशा हुई थी। मुझे अकेली होने का एहसास हुई थी। बहुत पीड़ा हुई अपने पति की याद में मै रो पडी थी। 
० कभी उत्साह का कोई क्षण आया हो?
०० फिल्म छलिया में एक लड़की की  समय मै बहुत ही उत्साहित हुई थी। 
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो में आपको कौन से कलाकार पसंद है?
०० प्रदीप शर्मा! उनके साथ काम करके मुझे बहुत ही अच्छा लगा था और सीखने को भी मिला था। उस फिल्म में वह मेरे पति की भूमिका में थे। 

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

यूँ ही आ गयी एक्टिंग में, डांस मेरा शौक है

मेरी आशिकी तुमसे ही की नायिका राधिका मैदान से ख़ास चर्चा 
- अरुण कुमार बंछोर
"मेरी आशिकी तुमसे ही की " नायिका राधिका मैदान कहती है कि एक्टिंग में तो मैं यूँ ही आ गयी। मेरा शौक तो डांस है और मैं डांसर ही बनाना चाहती थी। इसके लिए मैंने काफी तैयारी भी की थी। एक प्रश्न के उत्तर में राधिका हंसती हुई कहती है कि एकता कपूर के सीरियल में तो कई कई शादी होना तो सामान्य बात हैं, हो सकता है इतनी मुझे भी करनी पड़े। टीवी धारावाहिक की नायिका राधिका मैदान अपने निजी प्रवास पर रायपुर आई तो हमने उनसे कई पहलूओं पर बेवाक बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कैसे हुआ?
00 एक्टिंग में तो मैं यूँ ही आ गयी। मैं एक्टिंग में नहीं आना चाहती थीं। पर अब धारावाहिक में काम करना अच्छा लग रहा है।
0 फिर किस क्षेत्र में कॅरियर बनाना चाह रही थी?
00 डांसिंग में ! डांस मेरा शौक भी है और पसंदीदा चाह भी। डांस की ट्रेनिंग लेने यूएस जाने का प्लान भी कर ली थी। लेकिन जाने से पहले सीरियल मिल गई , तो नहीं जा पाई।
0 कभी-कभी एक्टिंग में आपको आलोचना भी सहनी पड़ती होगी ?
00 हाँ जरूर ! जो जितना सफल होते है उतने ही उनके ज्यादा दुश्मन होते है।
0 आपको सीरियल कैसे मिला ?
00 आर्टिस्ट सलेक्शन क्रू के कुछ मेंबर्स ने फेसबुक पर मेरा फोटो देखा और सीरियल के ऑडिशन के लिए बुलाया।फिर मैंने आडिशन दिया। किरदार के चेहरे पर जो मासूमियत चाहिए थी, वह सलेक्शन टीम को मेरे चेहरे में नजर आई और मुझे रोल दे दिया गया।
0 आपने झलक दिखला जा में भी हिस्सा लिया था?
00 बहुत अच्छा अनुभव रहा। मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। जल्दी बाहर होने का भी मुझे ज्यादा दुख नहीं हुआ। आगे और कोशिश करूंगी।
0  इस क्षेत्र  में कभी निराशा हुई है ?
00 कभी नहीं! मैं कभी निराश नहीं होती।
0  और कभी ऐसा क्षण हो आया हो जब आप बहुत ज्यादा उत्साहित हुई हो?
00 हमेशा उत्साहित रहती हूँ। क्योकि मेरे परिवार मेरे साथ है।
0 आपको इसके लिए परिवार से कितना सहयोग मिलता है?
00 पूरा सहयोग मिलता है। एक लड़की होने के बाद भी मेरे माता-पिता ने मुझे कभी बंधन में नहीं रखा। यहां भी खूब मेहनत कर रही हूं। कभी-कभी तो पापा कहते हैं, ज्यादा शूटिंग करती हो, इतना काम करने की क्या जरूरत है। अगर अभी भी लगता है, तो वापस आ जाओ। मैं कॉलेज लाइफ मिस करती हूं, लेकिन मुझे कॅरियर बनाना है तो सब ठीक है।
0 ऐसा आपका कोई सपना जो आप पूरा होते हुए देखना चाहती हों?
00 अब और कोई तमन्ना नहीं है बस एक्टिंग में ही आगे जाना चाहती हूँ। पहले सोचती थी डांसिंग स्टार बनूंगी पर मौका मिला तो एक्टिंग में आ गई।अब इसी को कॅरियर बनाउंगी।


मंगलवार, 29 सितंबर 2015

आशिक आवारा में मेरा किरदार कुछ हटकर है : निरहुआ

भोजपुरी फिल्मों के स्टार दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' इन दिनों अपनी आनेवाली फिल्म 'आशिक़ आवारा' में व्यस्त हैं। उनकी फिल्मो में वो सब कुछ होती है जो दर्शको को चाहिए। फिल्म बनाने के पहले वे इस पर गहन अध्ययन करते है। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश:
0 आशिक़ आवारा' के बारे में कुछ बताइये?
00 आशिक़ आवारा की शूटिंग अभी शुरू की गई है। फिल्म एक अलग कांसेप्ट पर बन रही है। इसमें मेरा किरदार मेरी अब तक की सभी फिल्मों से काफी अलग है।
0 आपका किरदार किस तरह का है?
00 मुझे अब तक दर्शकों ने साधारण किरदारों में देखा है। कभी गांव के सीधे-सादे लड़के के रूप में तो कभी गरीब लड़के की रूप में,  लेकिन इस फिल्म में मैं बिजऩेस आइकॉन बना हूं जो अपने काम को लेकर काफी गंभीर रहता है।
0 इस फिल्म में आप फिर एक बार आम्रपाली के साथ हैं। क्या आप मानते हैं कि आपकी जोड़ी हिट है? 
00 फिल्मों को मिले रिस्पांस और दर्शकों की प्रतिक्रिया को देखकर तो यही लगता है। दर्शक भी मुझे कई बार कहते हैं कि मेरी जोड़ी आम्रपाली के साथ उन्हें बहुत अच्छी लगती है।
 0 'आशिक़ आवारा' के निर्देशक सतीश जैन के बारे में क्या कहेंगे?
00 सतीश जैन ने 'आशिक़ आवारा ' से पहले 'निरहुआ हिंदुस्तानी', 'निरहुआ रिक्सावाला 2' बनाई है। 'आशिक़ आवारा' की कहानी इतनी अनोखी है कि मैंने फौरन हां कह दी।
0 आपकी आनेवाली फिल्मे कौन-कौन सी है?
00 आशिक़ आवारा' की शूटिंग पूरी करने के बाद 'मोकामा जीरो किलोमीटर' की शूटिंग करनेवाला हूँ। उसके बाद 5-6 फिल्में हैं जिसके बारें में जल्दी ही आप सबको पता चल जाएगा।

धर्मेन्द्र चौबे का थियेटर से फिल्मो तक का सफर

इतिहास बनाना ही मेरा मकसद है 
जिस दिन मरुँ लोग मेरे पीछे चले 
छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री में धर्मेन्द्र चौबे को कौन नहीं जानता वे एक जाना पहचाना नाम है। अभी हाल ही ने प्रदर्शित उनकी फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा सिनेमा घरों में काफी धूम मचा रही है। वे कहतें हैं कि इतिहास बनाना ही मेरा मकसद है और जिस दिन मरुँ लोग मेरे पीछे चले । थियेटर से कॅरियर की शुरुआत करने वाले धर्मेन्द्र अब तक 36 फिल्मो में अपनी अभिनय का लोहा मनवा चुके है। इसके अलावा वे निर्देशक, निर्माता और शानदार विलेन भी है । उनसे हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश।
0 फिल्म राजा छत्तीसगढिय़ा के शानदार प्रदर्शन की उम्मीद थी ?
00 यह फिल्म हमारी उम्मीदों पर खरा उत्तरी है। इसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। पूरे छत्तीसगढ़ के टाकीजों में धूम मचा रही है । इससे यही सन्देश जाता है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के अच्छे दिन आ गए हैं। इस फिल्म में हमारी कल्चर दिखती है फिर सबने अच्छी मेहनत की थी । जिसका परिणाम है।
0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 मुझे एक्टिंग का शौक बचपन से ही रहा है। 1996 में मै थियेटर से जुड़ा फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा । फिल्म देख- देखकर मैं कलाकारों की नक़ल किया करता था। एक्टिंग में रूचि बचपन से ही था पर मौका नहीं मिल रहा था। मैं बहुत कुछ करना चाहता हूँ इस क्षेत्र में ।
0 फिर मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 फिल्म छईंया भुईंया की शूटिंग देखने सुरेश निगम के साथ गया था ,जहां मुझे सतीश जैन जी ने पूछा - एक्टिंग में रूचि है ,जब मैंने हाँ कहा तो उसी फिल्म में मुझे काम दिया । जो सबको पसंद आया।
0 कभी आपने सोचा था की फिल्मो को ही अपना कॅरियर बनाएंगे ?
00 हाँ ! शुरू से ही मै एक्टिंग को कॅरियर बनाने की सोचकर चल रहा था।
0  छालीवुड फिल्मो में आपको कैसी भूमिका पसंद है या आप कैसे रोल चाहेंगे।
00  मैं हर तरह की भूमिका निभाना चाहूंगा ताकि मुझे सभी प्रकार का अनुभव हो। छोटे बड़े सभी रोल मुझे पसंद है। पर विलेन की भूमिका मुझे ज्यादा पसंद है।
0 सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?
00 सरकार अभिभावक की भूमिका में आये और छालीवुड को मदद करे।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 हमेशा उत्साहित रहता हूँ । इसके लिए कोई ख़ास समय की जरुरत नहीं होती ।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होता। हारने जैसे माहौल में भी ऊर्जा पैदा करता हूँ।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहती हैं?
00 इतिहास बनाना ही मेरा मकसद है । जिस दिन मरुँ लोग मेरे पीछे चले ।
0  आप फिल्म करवट बनाने जा रहे हैं । ये आईडिया कहाँ से मिला?
00 फिल्म मांझी देखकर। उस फिल्म का कांसेप्ट मुझे बहुत ही पसंद आया फिर सोचा की ऐसा मैं भी कुछ करूँ।



संगीत मेरा शौक नहीं इबादत है : अनिल

0 मुकेश की हूबहू आवाज निकालते है 
प्रशासनिक अधिकारी अनिल कोचर संगीत की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। मुकेश की आवाज में वे जब गाते है तो लोगो को पुराने दिन याद आ जाते हैं और वे अपने बीच मुकेश के होने का एहसास करते हैं। शासकीय सेवा में आने से पहले ही अनिल कोचर संगीत का जादू बिखेरने की राह पर चल पड़े थे। वे कहते हैं कि संगीत मेरा शौक नहीं इबादत है। आनंद जी कल्याण जी से सम्मानित होकर अनिल बेहद गौरान्वित महसूस करते हैं। टी सीरीज में उनका एल्बम मौजूद है। साथ ही दिशा टीवी में काव्यांजली में वे अपनी आवाज का जादू दिखा चुके हैं। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश।
0 आपको गाने का शौक कब से है ?
00 मुझे गाने का शौक बचपन से ही रहा है।  गाने में रूचि शुरू से ही था पर मौका नहीं मिल रहा था। मैं बहुत कुछ करना चाहता हूँ इस क्षेत्र में ।
0 आप मुकेश की आवाज में कैसे गा लेते हैं?
00 इसके लिए मैंने बहुत ही प्रेक्टिस की है और मेरी मेहनत का ही फल है कि आज मैं इस मुकाम पर हूँ।
0 सरकारी नौकरी में होते हुए भी आप गाने के लिए समय कैसे निकाल लेते हैं?
00 निकालना पड़ता है वह भी जीवन का एक हिस्सा है। मन में लगन हो तो सब कुछ संभव है।
0 आज के युवा पुराने गीतों को महत्त्व नहीं देते क्यों?
00 ऐसा नहीं है आज भी पुराने गानों के प्रति लोगो का रुझान है। पुराने गीत सदाबहार है और रहेंगे।
0 आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00  मैंने अपने से ही गाने की शुरुआत  की है और काफी संघर्ष भी किया है। मेरा कोई रोल मॉडल नहीं है।
0 कभी आपने सोचा था की गानों में इतना लोकप्रिय हो जाएंगे?
00 नहीं ! पर अब लगता है कि गाने ने मुझे ज्यादा लोकप्रिय बना दिया है।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 जब कल्याण जी ने मुझे बेहतर गाने और आवाज के लिए सम्मानित किया था।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00 कभी नहीं। मैं कभी निराश नहीं होता।
0 आपका कोई सपना है जो आप पूरा होते देखना चाहते हो ?
00 मेरा सपना है कि गानों में बॉलीवुड में छा जाऊं।



छत्तीसगढ़ की मनाली बॉलीवुड में मचाएगी धूम

0 आनंद जी और अनूप जलोटा से है प्रभावित 
आकाशवाणी और दूरदर्शन में एंकरिंग से अपनी कला की शुरुआत करने वाली गायिका मनाली सांखला आज लोगो के बीच एक जाना पहचाना नाम है। मशहूर संगीतकार आनंद जी और भजन गायक अनूप जलोटा से प्रभावित मनाली इन दोनों के ही नहीं बल्कि बॉलीवुड के तमाम दिग्गज संगीतकारों के चहेती बन गयी है। टी सीरीज में जसगीत का एल्बम जल्द ही आने वाली है। साथ ही हिन्दी फिल्मो में उनकी आवाज भी लोगो के कानों में गूंजेगी। मनाली को लता जी प्रेरणा मिली है तो आनंद जी उन्हें गाने की कला सिखातें हैं। मनाली सांखला को बॉलीवुड के सभी मनाली से हमने हर पहलूओं पर बात की है।
मनाली को गाने का शौक बचपन से ही रहा है। उनके पति दर्शन सांखला एक मशहूर टी वी एंकर और धारावाहिक काब्यांजली के होस्ट है। मनाली की आवाज जल्द ही टी सीरीज के एल्बमों में सुनने को मिलेगी। प्रभु इशू पर तीन एल्बम बनने जा रही है जो मनाली की आवाज में होगी। साथ ही टी सीरीज उनकी आवाज पर एक जसगीत का एल्बम बना रहां है। मनाली कहती है कि मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे बॉलीवुड के तमाम बड़े संगीतकारों का प्यार और साथ मिलता है। अनूप जलोटा जी मेरे सात गाने सुनकर बहुत प्रभावित हुए थे। आनंद जी मुझे गाने की कला बतातें है। मशहूर फिल्म निर्देशक मोंटी शर्मा मुझसे बहुत ज्यादा भरोसा करते हैं उनके आने वाली फिल्मो में मेरी आवाज सुनाई देंगी। बॉलीवुड की दुनिया में कदम रखकर मैं  बहुत ही गौरान्वित हूँ। मेरी कोशिश होगी की छत्तीसगढ़ का नाम मैं दुनिया के पटल पर फैला सकूँ। मनाली सांखला को बॉलीवुड के सभी बड़े गीतकार और संगीतकारों से सीखने का सौभाग्य मिला है। छत्तीसगढ़ की वह पहली महिला है जिसे तमाम दिग्गजों ने अपना प्यार और साथ दिया है।
मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है : दर्शन 
मशहूर टीवी एंकर दर्शन सांखला का कहना है कि मुझे अपनी पत्नी मनाली और उसकी कला पर गर्व है। उनकी आवाज में वो जादू है जो दुनिया भर के कलाप्रेमी को आकर्षित करने की क्षमता रखती है । बॉलीवुड के सभी छोटे बड़े संगीतकार उनकी आवाज से प्रभावित है। जल्द ही मनाली बॉलीवुड की शान बने यही मेरी तमन्ना है।