शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

फ्रीज में ना रखे गूंथा हुआ आटा

क्योकि वह आमंत्रित करता है भूतों को !!

गूंथे हुए आटे को उसी तरह पिण्ड के बराबर माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु के बाद जीवात्मा के लिए समर्पित किए जाते हैं। किसी भी घर में जब गूंथा हुआ आटा फ्रीज में रखने की परम्परा बन जाती है तब वे भूत-और पितर इस पिण्ड का भक्षण करने के लिए घर में आने शुरू हो जाते हैं जो पिण्ड पाने से वंचित रह जाते हैं। ऐसे भूत और पितर फ्रीज में रखे इस पिण्ड से तृप्ति पाने का उपक्रम करते रहते हैं। जिन परिवारों में भी इस प्रकार की परम्परा बनी हुई है वहां किसी न किसी प्रकार के अनिष्ट, रोग-शोक और क्रोध तथा आलस्य का डेरा पसर जाता है। इस बासी और भूत भोजन का सेवन करने वाले लोगों को अनेक समस्याओं से घिरना
पडता है। आप अपने इष्ट मित्रों, परिजनों व पडोसियों के घरों में इस प्रकार की स्थितियां देखें उनकी जीवनचर्या का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाएंगे कि वे किसी न किसी उलझन से घिरे रहते हैं।
आटा गूंथने में लगने वाले सिर्फ दो-चार मिनट बचाने के लिए की जाने वाली यह क्रिया किसी भी दृष्टि से सही नहीं मानी जा सकती। पुराने जमाने से बुजुर्ग यही राय देते रहे हैं कि गूंथा हुआ आटा रात को नहीं रहना चाहिए। उस जमाने में फ्रीज का कोई अस्तित्व नहीं था फिर भी बुजुर्गों को इसके पीछे रहस्यों की
पूरी जानकारी थी। यों भी बासी भोजन का सेवन शरीर के लिए हानिकारक है ही। भोजन केवल शरीर को ही नहीं,अपितु मन-मस्तिष्क को भी गहरे तक प्रभावित करता है। दूषित अन्न-जल का सेवन न सिर्फ आफ शरीर-मन को बल्कि आपकी संतति तक में असर डालता है। ऋषि-मुनियों ने दीर्घ जीवन के जो सूत्र बताये हैं उनमें ताजे भोजन पर विशेष जोर दिया है। ताजे भोजन से शरीर निरोगी होने के साथ-साथ तरोताजा रहता है और बीमारियों को पनपने से रोकता है। लेकिन जब से फ्रीज का चलन बढा है तब से घर-घर में बासी भोजन का प्रयोग भी तेजी से बढा है। यही कारण है कि परिवार और समाज में तामसिकता का बोलबाला है।
ताजा भोजन ताजे विचारों और स्फूर्ति का आवाहन करता है जबकि बासी भोजन से क्रोध, आलस्य और उन्माद का ग्राफ तेजी से बढने लगा है। शास्त्रों में कहा गया है कि बासी भोजन भूत भोजन होता है और इसे ग्रहण करने वाला व्यक्ति जीवन में नैराश्य,रोगों और उद्विग्नताओं से घिरा रहता है। हम देखते हैं कि प्रायःतर गृहिणियां मात्र दो से पांच मिनट का समय बचाने के लिए रात को गूंथा हुआ आटा लोई बनाकर फ्रीज में रख देती हैं और अगले दो से पांच दिनों तक
इसका प्रयोग होता है। आइये आज से ही संकल्प लें कि आयन्दा यह स्थिति सामने नहीं आए। तभी आप और आपकी संतति स्वस्थ और प्रसन्न रह सकती है और औरों को भी खुश रखने लायक व्यक्तित्व का निर्माण कर सकती है।

बुधवार, 5 नवंबर 2014

बहुत आदर्श है द्रौपदी

शास्त्रों में हैं कुछ ऐसी बातें जो कम ही लोग जानते हैं

महाभारत के अनुसार द्रौपदी राजा द्रुपद की बेटी और पांडवों की पत्नी थी। कौरवों द्वारा आयोजित किए गए जुए के खेल में द्रौपदी को दांव पर लगाया गया। पांडव दांव हार गए और उसके बाद दुशासन ने उसे भरी सभा में अपमानित किया। द्रौपदी के चरित्र के ये वो पहलू हैं, जिनके बारे में अधिकांश लोग जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि द्रौपदी का किरदार बहुत आदर्श है और उससे बहुत कुछ सीखा जाता है तो आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ बेहद रोचक कथाएं ......

गर्भ से नहीं हुआ था द्रौपदी का जन्म

महाभारत ग्रंथ के अनुसार एक बार राजा द्रुपद पांडवों से पराजित होने के कारण परेशान थे। जब से द्रोणाचार्य के कारण युद्ध में उनकी हार हुई, उन्हें एक पल भी चैन नहीं था। राजा द्रुपद चिंता के कारण कमजोर हो गए। वे द्रोणाचार्य को मारने वाले पुत्र की चाह में एक आश्रम से दूसरे आश्रम भटकने लगे। ऐसे ही भटकते हुए वे एक बार कल्माषी नाम के नगर में पहुंचे। उस नगर में ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले और स्नातक ब्राह्मण रहते थे। वहीं, उन्हें दो ब्राह्मण याज और उपयाज मिले। उन्होंने पहले छोटे भाई उपयाज से अपने लिए पुत्र प्राप्ति हवन करने के लिए प्रार्थना की। फिर उपयाज के कहने पर उन्होंने याज से प्रार्थना की। उसके बाद याज ने राजा द्रुपद के यहां पुत्र प्राप्ति के लिए हवन करवाया।
उस अग्रिकुंड से एक दिव्य कुमार प्रकट हुआ। वह कुमार अग्रिकुंड से निकलते ही गर्जना करने लगा। वह रथ पर बैठकर इधर-उधर घूमने लगा। उसी वेदी यानी हवनकुंड से कुमारी पांचाली का भी जन्म हुआ। पांचाली यानी राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी कमल की पंखुड़ी के जैसी आंखों वाली, नीले-नीले घुंघराले बालों व कोमल होंठो वाली थी। उसका रंग सांवला था। ऐसा लगता था मानों कोई देवांगना मनुष्य शरीर धारण करके सामने आ गई हो। इसके बाद ब्राह्मणों ने दिव्य कुमार व कुमारी का नामकरण किया। उन्होंने कहा यह कुमार असहिष्णु और बलवान व रूपवान होने के साथ ही कवच कुंडल धारण किए हुए है। इन पर अग्रि का प्रभाव दिखाई देता है। इसलिए इनका नाम धृष्टद्युम्र होगा। यह कुमारी कृष्ण वर्ण की हैं इनका नाम कृष्णा होगा।

द्रौपदी को क्यों मिले पांच पति

द्रौपदी पूर्व जन्म में एक बड़े ऋषि की गुणवान कन्या थी। वह रूपवती, गुणवती और सदाचारिणी थी, लेकिन पूर्वजन्मों के कर्मों के कारण किसी ने उसे पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया। इससे दुखी होकर वह तपस्या करने लगी। उसकी उग्र तपस्या के कारण भगवान शिव प्रसन्न हए और उन्होंने द्रौपदी से कहा तू मनचाहा वरदान मांग ले। इस पर द्रौपदी इतनी प्रसन्न हो गई कि उसने बार-बार कहा मैं सर्वगुणयुक्त पति चाहती हूं। भगवान शंकर ने कहा तूने मनचाहा पति पाने के लिए मुझसे पांच बार प्रार्थना की है। इसलिए तुझे दुसरे जन्म में एक नहीं पांच पति मिलेंगे। तब द्रौपदी ने कहा मैं तो आपकी कृपा से एक ही पति चाहती हूं। इस पर शिवजी ने कहा मेरा वरदान व्यर्थ नहीं जा सकता है। इसलिए तुझे पांच पति ही प्राप्त होंगे।

द्रौपदी का किरदार क्यों है महत्वपूर्ण
महाभारत के अनुसार द्रौपदी सुंदर होने के साथ ही बहुत बुद्धिमान स्त्री रही होगी। जब भी पांडव कमजोर पड़े या उन्हें कोई निर्णय लेने में संकोच हुआ। द्रौपदी ने हमेशा एक पत्नी का कर्तव्य निभाया। वो ये बखूबी जानती थी कि उसे कब कितना और कहां बोलना है।

द्रौपदी ने नहीं कहा अंधे का पुत्र अंधा
महाभारत के सभापर्व में मिले वर्णन के अनुसार इंद्रप्रस्थ में आकर राजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें हस्तिनापुर से दुर्योधन अपने बंधु-बांधवों सहित उपस्थित हुआ। इस यज्ञ में दूर-दूर देशों के राजा महाराजा भी आए हुए थे। यहां पर दुर्योधन को महल के निरीक्षण के समय तब उपहास का पात्र बनना पड़ा। एक दिन की बात है राजा दुर्योधन उस सभा भवन में भ्रमण करता हुआ स्फटिक मणिमय स्थल पर जा पहुंचा। वहां जल की आशंका से उसने अपने वस्त्र ऊपर उठा लिए। उसके बाद वह सभा में दूसरी ओर चक्कर लगाने लगा और एक स्थान पर वह गिर पड़ा। इससे वह मन ही मन बहुत लज्जित हुआ। फिर स्फटिक मणि के समान स्वच्छ जल से भरी सुशोभित बावली को स्थल मानकर वह वस्त्रों सहित जल में गिर पड़ा। इस दृश्य को देखकर भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव इस पर हंसने लगे। दुर्योधन उपहास नही सह सका। महाभारत के सभापर्व में इस घटना का इतना ही उल्लेख है। इस ग्रंथ में ये कहीं वर्णित नहीं है कि महारानी द्रौपदी राजा दुर्योधन को कहीं मिलीं और उन्होंने उनका उपहास किया।

अपनी इन विशेषताओं के कारण थी पतियों की प्रिय

एक पत्नी को किस तरह अपने पत्नी धर्म का पालन करना चाहिए। इसका द्रौपदी से अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता है। महाभारत में एक दृश्य है जहां सत्यभामा द्रौपदी से मिलने आई हैं और दोनों आपस में बातचीत कर रही हैं।
सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा कि सखी मैं देखती हूं कि तुम्हारे पति पांडव तुम्हारे वश में रहते हैं। वे सभी तुम्हारे अधीन है। सो आप ये रहस्य मुझे भी बताएं कि आपके पांच बलशाली पांडव पति आपका इतना सम्मान क्यों करते हैं। तब द्रौपदी बोली सत्यभामा तुम मेरी सखी हो इसलिए मैं तुम्हे बिल्कुल सच बताती हूं।
मैं अहंकार और क्रोध से दूर रहती हूं। मैं अपने मन पर काबू रखकर केवल पति की खुशी देखते हुए उनकी सेवा करती हूं। असभ्यता से खड़ी नहीं होती। उनसे कड़वी बातें नहीं कहती हूं। बुरी जगह पर नहीं बैठती, बुरे आचरण को अपने पास भी नहीं फटकने देती। उनके हर संकेत का अनुसरण करती हूं। चाहे कैसा भी पुरुष हो मेरा मन पांडवों के अलावा किसी पुरुष पर आकर्षित नहीं होता है। पतियों के भोजन किए बिना मैं भोजन नहीं करती हूं।
उनके नहाए बिना मैं नहीं नहाती। जब-जब पति घर आते हैं तो मैं खड़ी होकर आसन और जल देकर उनका सत्कार करती हूं। मैं बातचीत में किसी का तिरस्कार नहीं करती। समय पर भोजन बनाती हूं और सभी को प्रेम से खिलाती हूं। मेरे पति जिस चीज को नहीं खाते, नहीं पीते, सेवन नहीं करते हैं उनसे मैं भी दूर रहती हूं। मेरी सास ने मुझे जो भी धर्म बताएं हैं, मैं उनका पालन करती हूं। विपरित समय में अपने पति का हर संभव सहयोग करती हूं।

रिश्ता कोई भी हो करें पूरा विश्वास

कहते हैं किसी भी रिश्ते की बुनियाद विश्वास होता है। द्रौपदी का चित्रण हमें महाभारत में एक ऐसी पत्नी के  रूप में मिलता है। जो हर परिस्थिति में अपने पति पांडवों पर आंख मूंद कर विश्वास करती है। फिर चाहे पति द्वारा दांव पर लगाया जाना हो या जयद्रथ द्वारा अपहरण या कीचक का बुरी नजर डालना। द्रौपदी ने कभी अपना विश्वास नहीं डगमगाने दिया। एक बार की बात है पांडव द्रौपदी को आश्रम में अकेला छोड़कर धौम्य ऋषि के आश्रम चले गए थे। उस समय सिंधु देश का राजा जयद्रथ विवाह की इच्छा से शाल्व देश जा रहा था। जयद्रथ और उसकी सेना उस समय धौम्य ऋषि के आश्रम के पास से गुजरे।
जयद्रथ की नजऱ आश्रम के बाहर अकेली खड़ी द्रौपदी पर पड़ गई। वह उस पर मोहित हो गया। उसने द्रौपदी के पास जाकर पूछा हे सुंदरी तुम कौन हो? तुम्हारा पति कौन है या तुम कोई दिव्य कन्या हो। जब द्रौपदी ने अपना परिचय दिया और कहा कि मैं महाराज द्रुपद की पुत्री कृष्णा हूं और मेरे पति पांडव हैं। यह सुुनकर जयद्रथ बोला कि उन पांडवों के पास कुछ भी नहीं हैं।
वे अब वनवासी हो गए हैं। तुम मुझ से विवाह कर लो और महलों का सुख भोगो। द्रौपदी ने उसे धित्कारा और कहा वीर होकर ओछी बात करते हो तुम्हे लज्जा नहीं आती। अरे दुष्ट तू मेरे पति पांडवों को नहीं जानता वे तेरी सेना को आसानी से परास्त कर देंगे। यह सुनकर जयद्रथ बोला मेरे पास इतना सेना बल है कि मैं पाण्डवों को धूल चटा दूंगा।
अब तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं या तो सीधी तरह से रथ में बैठ जाओ या पांडवों के हार जाने पर मेरे सामने गिड़गिड़ाने को तैयार हो जाओ। द्रौपदी ने कहा मेरा बल मेरी शक्ति महान है। मुझे अपने ऊपर विश्वास है तुम्हारे जोर-जबरदस्ती करने पर भी मैं तुम्हारे सामने नहीं गिड़गिड़ाऊंगी। एक रथ पर एक साथ बैठकर श्रीकृष्ण और अर्जुन आएंगे। जब भीम तेरी तरफ गदा लेकर दौडग़े। जब नकुल और सहदेव तुझ पर टूट पड़ेंगे। तब तुझे पश्चाताप होगा। यह सुनते ही जयद्रथ द्रौपदी को घसीटने लगा।द्रौपदी ने उससे कहा मेरे कुरुवंशी पति शीघ्र ही मुझसे मिलेंगे और तुझे परास्त करेंगे।
जब पांडव फिर से आश्रम पहुंचे तो दासी ने उन्हें बताया कि जयद्रथ ने द्रौपदी का अपहरण कर लिया। यह सुनकर पांचों पांडव द्रौपदी की खोज में निकल पड़े। जब उन्होंने द्रौपदी को जयद्रथ के रथ पर बैठे देखा तो वे आग बबूला हो गए। उन्होंने जयद्रथ और उसकी सेना पर आक्रमण कर दिया। सारी सेना डरकर भाग गई। अपनी सेना का यह हाल देखकर जयद्रथ ने द्रौपदी को रथ से उतारा और भाग गया।
(sabhar -bhaskar.com )