रविवार, 8 जुलाई 2012

ठहाके

दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला बंतो अपने पति संता से बोली: आज मैंने दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला को देखा. संता: अच्छा. बंतो: वह इतनी सुंदर लग रही थी कि मैं बता नहीं सकती. संता: फिर क्या हुआ? बंतो - फिर क्या? नज़र लग जाती इसलिए मैं शीशे के सामने से हट गई.

रविवार, 1 जुलाई 2012

महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?

.भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद नील के बाद धृष्टकेतु थे। धृष्टकेतु के साथ चेदि, काशि और करूष एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहां ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रोपदी के पांच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान थे। इसके बाद युद्ध आरंभ हुआ। रथ से रथ और हाथी से हाथी भिड़ गए। कौरवों ने एकाग्रचित्त होकर ऐसा युद्ध किया की पांडव सेना के पैर उखड़ गए। पांडव सेना में भगदड़ मच गई भीष्म ने अपने बाणों की वर्षा तेज कर दी।सारी पांडव सेना बिखरने लगी। पांडव सेना का ऐसा हाल देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अगर इस तरह मोह वश धीरे-धीरे युद्ध करोगे तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर अर्जुन ने कहा केशव आप मेरा रथ पितामह के रथ के पास ले चलिए। कृष्ण रथ को हांकते हुए भीष्म के पास ले गए। अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म का धनुष काट दिया। भीष्मजी फिर नया धनुष लेकर युद्ध करने लगे। यह देखकर भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को बाणों की वर्षा करके खूब घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब देखा कि सब पाण्डवसेना कि सब प्रधान राजा भाग खड़े हुए हैं और अर्जुन भी युद्ध में ठंडे पढ़ रहे हैं तो तब श्रीकृष्ण नेकहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा।

जब कृष्ण कूद पड़े महाभारत के युद्ध में तो...

श्रीकृष्ण ने कहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा इतना कहकर कृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। उसके किनारे का भाग छूरे के समान तीक्ष्ण था। भगवान कृष्ण बहुत वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी कांपने लगी। वे भीष्म की ओर बढ़े। वे हाथ में चक्र उठाए बहुत जोर से गरजे। उन्हें क्रोध में भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे।
उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्मजी बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं। भगवान को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। जैसे आंधी किसी वृक्ष को खींच लिए चली जाए, उसी प्रकार वे अर्जुन को घसीटते हुए आगे बढऩे लगे।अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए , आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए।

शिव पूजा के इन 2 आसान उपायों से बरसती है शनि कृपा

पौराणिक प्रसंगों के मुताबिक शनि, शिव भक्ति से नवग्रहों में ऊंचा पद पाया। मान्यता यह भी है कि शनि, महादेव के आदेश का पालन कर प्राणियों को उनके कर्मों के मुताबिक दण्ड देते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में बताए शिव उपासना के कुछ आसान उपाय कुण्डली में शनि दशा या दोष से जीवन में आ रही तमाम परेशानियों से राहत व मुक्ति पाने में भी अचूक माने गए हैं। जानिए शिव भक्ति का ऐसा ही एक सरल उपाय - - शनिवार या सोमवार के दिन भगवान शिव को शिव षड़ाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय बोलते हुए जल से अभिषेक कर गंध, अक्षत, फूल चढ़ाएं। साथ ही खासतौर पर काले तिल अर्पित करें। शिव को सफेद मिठाई का भोग लगाकर घी के दीप से आरती कर शनि दशा के बुरे प्रभाव से मुक्ति की कामना करें। - इसी तरह दूसरा उपाय है कि ऊपर बताए तरीके से शिव की पूजा कर पूजा में पंचाक्षरी या कोई भी शिव मंत्र या स्तुति बोलकर 108 आंकडे के फूल हर रोज अर्पित करें। खासतौर पर शनिवार और सोमवार का दिन न चूकें। धार्मिक महत्व की दृष्टि से शनि दोष शांति का यह उपाय न केवल कलह और विवाद से मुक्त रखता है, बल्कि मानसिक सुख-शांति और सफलता की बाधाओं को दूर करने वाला है।

शिव पूजा के 3 खास संयोग!

हिन्दू धर्म के मुताबिक पूरी प्रकृति ही शिव का रूप है। वेदों में प्रकृति और मानव का गहरा संबंध बताया गया है। हिन्दू कैलेण्डर के पांचवे माह श्रावण यानी सावन माह में भी शिव आराधना का विशेष महत्व है। इस माह में खास तौर पर वर्षा के मौसम यानी जल तत्व की अधिकता होती है। इसलिए इस काल में शिव का जल से अभिषेक सुख, समृद्धि, संतान, धन, ज्ञान और लंबी उम्र के साथ तमाम भौतिक सुख देने वाला माना गया है। व्यावहारिक रूप से श्रावण या सावन माह में शिव की पूजा के रूप में प्रकृति की पूजा हो जाती है। यही नहीं, सावन माह में शिव भक्ति के पीछे खास धार्मिक और ज्योतिषीय पहलू भी बताए गए हैं। जहां धार्मिक दृष्टि से देवभक्ति के अहम काल चातुर्मास के चार माहों का पहला माह सावन होता है। वहीं, पुराण प्रसंगों में अनेक शिव लीलाओं का संबंध इस माह से बताया गया है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक इस माह में श्रवण नक्षत्र का शुभ योग बनता है, जिसके कारण यह माह सावन भी पुकारा जाता है। शिव भक्ति की इस अचूक घड़ी यानी सावन माह की शुरुआत इस बार 4 जुलाई से होगी। किंतु इस बार 4 जुलाई से पहले यानी 1 जुलाई से ही शिव भक्ति के 3 खास संयोग बने हैं। इससे 4 जुलाई से शुरू हो रहे सावन माह के पहले ही शिव भक्ति का रंग भक्तों पर चढ़ेगा। जानिए क्या बने हैं यह तीन शुभ संयोग - - आज (1 जुलाई) प्रदोष तिथि है। प्रदोष तिथि पर शाम को शिव भक्ति व पूजा तमाम सांसारिक सुखों को देने वाली व हर दोष व कलह मिटाने वाली मानी गई है। - 2 जुलाई चतुर्दशी तिथि भी शिव भक्ति को समर्पित है। इस दिन रात्रि में शिव भक्ति जीवन के हर दु:ख व कष्ट को दूर कर कामना पूरी करने वाली मानी गई है। - 3 जुलाई यानी आषाढ़ पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के रूप में गुरु पूजा व सेवा को समर्पित है। भगवान शिव जगतगुरु पुकारे जाते हैं। शिव ही साक्षात ज्ञान स्वरूप देवता माने गए हैं। इनकी उपासना से मिलने वाला ज्ञान, विवेक व बुद्धि जीवन की तमाम मुश्किलों का अंत करती है। इसलिए गुरु पूर्णिमा शिव के महागुरु के स्वरूप की पूजा की अचूक घड़ी है। इस तरह शिव भक्ति के पुण्य काल सावन माह के पहले बने इन 3 विशेष संयोगों में पूरी श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना, अभिषेक, जलाभिषेक व बिल्वपत्र चढ़ाने सहित उपासना के अनेक उपाय करना तमाम भौतिक सुखों को देने वाले साबित होंगे। इसलिए आज से ही शिव को मनाने के ये शुभ संयोग न चूक कर शिव भक्ति में रम सावन माह की शुरुआत करें। />