शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

'परिवर्तन मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि : डॉ. अजय सहाय

स्थानीय कलाकारों को लेकर सुखद अनुभव हुआ है 
नायक ,खलनायक ,लेखक ,निर्देशक साहित्यकार, कवि, रंगकर्मी, पटकथा जैसे अनेक कला किसी एक व्यक्ति में हो ऐसे बिरले ही होते है और यह सब कला है डॉ अजय मोहन सहाय में। छत्तीसगढ़ी फिल्मो का वे एक आधार स्तम्भ है। उन्होंने एक नहीं कई भाषाओं की फिल्मो में अभिनय कर सबके सामने एक चुनौती पेश की है। पांच भाषाओं में अभिनय करना भी एक रिकार्ड है। जितने अच्छे वे मधुमेह व् हृदयरोग विशेषज्ञ है उतने ही बेहतर कलाकार है। डॉ सहाय को कला विरासत में मिली है। माँ से कला मिली है तो पिता से शिक्षा। छालीवुड में डॉ सहाय एक ऐसे नायक खलनायक लेखक ,निर्देशक है जिन्होंने फिल्म उद्योग पर हर भूमिका में एकछत्र राज कर रहे हैं और अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। उनके स्वाभाविक अभिनय और प्रतिभा की
पराकाष्ठा ही थी कि लोगों के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं।
 उन्होंने जितने भी फिल्मों में रोल किया उसे देखकर ऐसा लगता है कि उनके द्वारा अभिनीत पात्रों का किरदार केवल वे ही निभा सकते थे। उनकी अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जितनी भी फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। रूपहले पर्दे पर डॉ सहाय ने जितने रोल किए उनमें वह हर बार नए तरीके से संवाद बोलते नजर आए। अभिनय करते समय वे उस रोल में पूरी तरह डूब जाते हैं। परिवर्तन धारावाहिक में स्थानीय कलाकारों को लेना वे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धी मानते है। समय की कदर नहीं करने वालों से डॉ सहाय काफी निराश होते हैं। वे कहते है कि जूनून से अच्छी फिल्म नहीं बनती। कहानी, संवाद,  निर्देशन, सब कुछ फिल्मो में होनी चाहिए। पैसों से ज्यादा समय की कीमत होती है। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है। पेश है बातचीत के संपादित अंश।
आपको फिल्मो में रुचि कैसे हुई
बचपन से ही रुचि रही है। स्कूलों में ड्रामा, नौटंकी देखकर मैंने भी इस क्षेत्र में कदम बढ़ाया। ढेरों पुरूस्कार जीते। और आज सबके सामने हूँ।
कला से लगाव का कारण क्या है
कला मुझे विरासत में मिली है। माँ अच्छी गायिका रही है और पिता स्वर्गीय आनंद मोहन सहाय से शिक्षा मिली है। साफ है मुझमे कला कूट कूट कर भरा हुआ है।
आप अपनी भूमिका में जान कैसे डालते है
मैं अपनी भूमिका को जीवंत बनाकर निभाता हूँ। नायक हो या खलनायक हर भूमिका में मैंने पूरी तरह से डूबकर किया है। मेरी कोशिश रहती है की मेरी हर कला को दर्शक पसंद करें।
अब तक की भूमिका में आपको सबसे बड़ी चूनौती कौन सी लगी?
विलेन की भूमिका निभाना शुरू में मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। बाप बड़े ना भैया सबसे बड़े रुपैया में जब मुझे विलेन की भूमिका मिली तो वो मेरे लिए एक कड़ी परीक्षा थी और मैंने स्वीकारा। उसमे सब कुछ था घृणा से प्रेम तक। मैंने पूरी तन्मयता से अभिनय किया। मुझे खुशी है लोगो ने बेहद पसंद किया।
आगे क्या विलेन की भूमिका ही निभाते रहेंगे। 
नहीं वो तो एक पड़ाव है ,आगे मंजिल तो बहुत है।
आपने कई प्रकार का अभिनय किया है। पहले  नायक थे फिर खलनायक की भूमिका  नजर आये। आपका पसंदीदा रोल
हर कला मुझे पसंद है। चाहे नायक हो या खलनायक। लेखन हो या निर्देशन। समय के साथ साथ सब अच्छा है। मैं हर भूमिका को पसंद करता हूँ।
कभी आपको इस क्षेत्र में निराशा हुई है
हुई है , समय की कदर नहीं करने वालों से मुझे घोर निराशा होती है। मुझे काम का नशा है और लोग जहां भी बुलाते है मै समय पर पंहुच जाता हूँ। और जब दिन भर बैठे होते है और सीन नहीं होता है तो बहुत ही दुख होता है । क्योकि मैं मधुमेह और हृदयरोग विशेषज्ञ हूँ। अपना कीमती समय छोड़कर जब लोकेशन पर जाता हूँ और डायरेक्टर समय की कीमत नहीं जानता तो निराशा होती है।
और आप बहुत उत्साहित कब महसूस किये हैं
विलेन की भूमिका में अपने आप को देखकर मैं बहुत ही रोमांचित हुआ था। जब अपना काम देखा तो मुझे लगा की विलेन की ही भूमिका करना चाहिए।
छत्तीसगढ़ी फिल्मे थियेटरों में क्यों नहीं टिक पाती
पैसे और जूनून से अच्छी फिल्मे नहीं बनती। कहानी अच्छी हो ,फिल्मांकन अच्छा हो, निर्देशन अच्छा हो तो फिल्मे जरूर चलेंगी। फिल्म नहीं चलने के लिए आप दर्शकों को दोष नहीं दे सकते। थियेटर नहीं है यह कहना गलत ,है अच्छी फिल्मे दे ,जनता जानती है सब कुछ। चंदा लेकर फिल्म बनाने वाले कभी सफल नहीं हो सकते।
रील लाइफ और रियल लाइफ में आप क्या अंतर पाते हैं?
रिफ्लेक्ट होता है। कही ना कही परछाई आ ही जाती है।
आपकी कोई ऐसी तमन्ना हो जो आप पूरा होते हुए देखना चाहते हैं?
एक बार अच्छी फिल्म बनाना चाहता हूँ। उसमे सभी लोकल कलाकार होंगे। यही तमन्ना है । फिल्म चली तो आगे भी बनाता रहूंगा। स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान करने की ख्वाहिश है।

मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है : डॉ अजय सहाय

0 विदेशों में शिविर लगाकर करते हैं इलाज , मिलता है प्यार
0 हर रोज नया इतिहास बनता है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में
0 इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ
0 झोला छाप डाकटरों पर होना चाहिए कार्रवाई

सक्षिप्त परिचय
नाम       -अजय मोहन सहाय
पेशा         मधुमेह ,ह्रदय रोग विशेषज्ञ
संस्थान    सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल
योग्यता    एमबीबीएस , एमडी सहित 18 डिगी
अवार्ड       शैक्षणिक साहित्य , डाक्टर में 50 से अधिक अवार्ड
            सीबी राय अवार्ड सीएम के हाथों
            हेल्थ केयर एक्सीलेंस अवार्ड
            दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान

मरीजों का इलाज सबसे बड़ी चुनौती होती है। डाकटरों को भगवान का दूत माना जाता है जो मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मरीज ठीक होकर हँसते हुए जाते है अगर मरीज की मौत हो जाए तो परिजनों का व्यवहार बदल जाता इससे काफी दुख होता है ,क्योकि डाक्टर अपना धर्म निभाता है। यह कहना है सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल के संचालक एवं मधुमेह ,हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ अजय मोहन सहाय का। वे
कहते है कि इलाज को व्यवसाय बनाये जाने से मरीज-डाकटर का रिश्ता कमजोर हुआ है। डॉ सहाय जितने अच्छे विशेषज्ञ है उतने ही अच्छे समाजसेवक भी है। गरीब मरीजों को भी ठीक कर दुआ बटोरते है। पैसा उनके लिए मायने नहीं रखता, सेवा को डॉ सहाय कर्म मानते हैं। सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल में हर रोज नया इतिहास बनता है। देश विदेश से मरीज आते है और हँसते हुए घर को लौटते हैं। पाकिस्तान में शिविर लगाकर इलाज करने वाले डॉ सहाय कहते हैं कि सुनने और देखने में फर्क होता है। पाकिस्तान के लोगो से उन्हें बहुत प्यार मिला और भाईचारा भी देखने को मिला। डॉ सहाय से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की।
0 डाकटरों को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है। मौजूदा परिवेश में डाकटर इसे कितना साकार कर पाते हैं ?
00 डाकटर मरीजों के इलाज में अपना सब कुछ झोंक देता है। मेरे लिए मरीजों का प्यार और भगवान का आशीर्वाद सच्ची दौलत है। मरीज अच्छा होकर हँसते हुए घर लौटे यही हम चाहतें है ,पैसा कोई मायने नहीं रखता।
0 कभी- कभी मरीजों के परिजनों के बिना वजह गुस्से का शिकार भी होना पड़ता?
00 हाँ , यह तो सहना पड़ता है। मरीज इलाज के लिए आता है और जब केस ज्यादा बिगड़ा हुआ होता है । चाह कर भी डाकटर उन्हें नहीं बचा पातेतो मरीज की मौत के बाद परिजनों का व्यवहार अचानक बदल जाता है। तब बहुत दुख होता है। हम अपना सेवा धर्म पूरी ईमानदारी से निभाते हैं । मौत शाश्वत सत्य है। एक चूक से बददुआ मिलाने लगती है जो तीर की तरह चुभती है।
0 क्या आप इस बात से सहमत है कि अस्पताल अब व्यवसाय का रूप ले लिया है?
00 डाक्टर तो भगवान का दूत होता है। आजकल डाक्टर सेवा देने वाले हो गए हैं और मरीज उपभोक्ता। यही कारण है कि डाक्टर और मरीज का रिश्ता कमजोर हो गया है। झोला छाप डाक्टरों के कारण यह स्थिति बनी है।
0 झोला छाप डाक्टरों पर शिकायतों के बाद कार्रवाई क्यों नहीं होती?
00 सरकार का मापदंड अलग अलग है। अच्छे और रजिस्टर्ड डाक्टरों पर जऱा सी चूक में कार्रवाई हो जाती है और सरकार झोला छाप डाकटरों पर कोई कार्रवाई नहीं करती क्योकि उनके खिलाफ कोई सबूत बही होता फिर वो रजिस्टर्ड भी नहीं होते। करोडो रुपया फूंककर डाक्टर बनने वाले पर तो सरकार की नजऱ हमेशा दुनिया भर के क़ानून लाड दिए गए है। उपभोक्ता फोरम भी जुर्माना ठोकने में पीछे नहीं होता।
0 मुख्यमंत्री बीमा योजना अस्पताल और मरीजों के लिए कितना कारगर है?
00 योजना सही है पर क्रियान्वयन गलत है। जागरूकता की कमी है। प्रक्रिया इत्तनी जटिल है कि अस्पताल को नुकसान उठाना पड़ता है। मरीज तो पूरा इलाज कराने के बाद कार्ड बता देते है पर उन्हें प्रक्रिया के बारे में पता नहीं होता है। कार्ड ना लो तो दुष्प्रचार करते हैं।
0 आपके अस्पताल में गरीबों के लिए क्या क्या सुविधाएं हैं?
00 गरीबों के लिए हमारे यहां कोई केश काउंटर नहीं है, उनके इलाज में हम देर नहीं करते। हमारी मंशा है कि गरीब मरीज ठीक होकर हँसते हुए घर जाए। उनकी दुआ ही मेरे लिए सबसे बड़ी दौलत है।
0 आप विदेशो में भी शिविर लगाकर मधुमेह की इलाज करते है। उसके बारे में बताएं?
00 हाँ मैंने नेपाल में भूकम्प पीडि़तों के लिए काम किया है। पाकिस्तान में 12 जगहों पर शिविर लगाकर इलाज किया। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 6 गरीब बच्चों का सफल इलाज किया है। काफी दुआ मिला।
0 पाकिस्तान के लोगो के मन में भारत के प्रति कैसा रवैया देखने को मिला?
00 देखने और सुनने में बहुत ही अंतर है। पाकिस्तान के लोगो के मन में भाई चारा है। सुनाने के विपरीत दिलों से भारत के लोगो से अलग नहीं है। बहुत ही यादगार पल रहा है पाकिस्तान का शिविर।
0 गाँवों में कोई डाकटर जाना नहीं चाहते इसके कारण क्या  है?
00 सरकार की व्यवस्था ठीक नहीं है। बिना साधन के डाकटर वहां कैसे जाकर अपना काम करेंगे। तनखा भी कम है और असुविधाएं नहीं है। पढ़े लिखे डाक्टरों पर बंदिश बहुत है लेकिन उनकी सुविधाओं की किसी को चिंता नहीं है।

मौत के मुंह से वापस लाया 
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ग्राम बेलहरी की 21 वर्षीय उमा कुर्रे को सहाय सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल से ना केवल जीवनदान मिली बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे भी सकुशल है। उमा को गंभीर अवस्था में जब अस्पताल लाया गया तब उसके तमाम अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। सारे डाक्टर जवाब दे चुके थे। सबके मना करने के बाद भी अ डॉ सहाय ने इलाज किया और उमा हँसते हुए घर के लिए विदा हुई और अस्पताल को दे गयी ढेर सारी दुआएं।

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राज्योत्सव में अपमानित होने से दुखी है भानुमति

० कलाकारों का सम्मान करे सरकार 
रायपुर। राष्ट्रीय सम्मान से नवाजी जा चुकी छत्तीसगढ़ की लोकगायिका भानुमति कोसरे राज्योत्सव २०१४ में अपमानित होने से दुखी है। उनका कहना है कि सरकार के नुमाईंदे राज्य के कलाकारों का सम्मान करना सीखे क्योकि वे सम्मान के ही भूखे होते है। दूरदर्शन रायपुर,भोपाल के लिए लोकगीत गए चुकी भानुमति बताती है कि परिवार वालों के विरोध के बाद भी वे इस क्षेत्र में  बनाई है। १५ छत्तीसगढ़ी फ़िल्में, कई एल्बम और स्टेज शो कर चुकी भानुमति लोकगायिका के लिए राष्ट्रीय एवार्ड से सम्मानित हो चुकी है। उनसे हमने हर पहलूओं पर बात की है पेश है बातचीत के संपादित अंश। 
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संक्षिप्त परिचय 
० नाम -   भानुमति कोसरे  
० कला-    लोकगायिका, फिल्म अभिनेत्री 
० चर्चित फिल्म - कारी,ऐसे होते प्रीत, पठौनी के चक्कर 
                           भुला जहां देबे, सजना मोर 
० आगामी फिल्म - छलिया, मया २ , सिधवा सजन 
० अवार्ड -  लोकगीत का राष्ट्रीय अवार्ड 
               बाबा साहेब आम्बेडकर कलाश्री , 
                केरल साहब आम्बेडकर कलाश्री 
० उपलब्द्धी - १५ छत्तीसगढ़ी फिल्मे, विज्ञापन , दूरदर्शन में काम 
पता -       भिलाईनगर , जिला -दुर्ग 

० आपको गाने का और अभिनय का शौक कैसे हुआ?
०० बचपन से ही मुझे गाने का शौक था। मै पंडवानी देख देखकर मुझे भी इच्छा हुई और मै गायिकाओं की कापी करने लगी। 
० परिवार का कितना सहयोग मिला?
०० कभी नही मिला। जब मै गाने की नक़ल करती थी तब मेरी दादी डांटती थी, बोलती थी - नाचबीन बनबे का। 
० फिर कैसे आ गयी इस क्षेत्र में , परिजनों ने रोका नहीं?
० ० सबसे पहले सोनहा बिहान के लिए गाना गई थी तब मुझे काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। लेकिन मैंने कदम पीछे नहीं हटाई और आगे बढ़ती चली गयी। 
० आप अपना प्रेरणाश्रोत और आदर्श किसे मानती है?
०० मेरी माँ तीरथ बाई मेरी प्रेरणाश्रोत रही है वे रेडियो के लिए गाती थी जब मै क्लास दो में थी तब से रेडियो सुनटी रही हूँ। 
० कितने फिल्मो में अकाम कर चुकी है और कौन सा फिल्म आपको अच्छी लगी?
०० मैंने १५ फिल्मो में काम की है और मया की डोरी मेरी सबसे अच्छी फिल्म उसमे मैंने विलेन की भूमिका की है। 
० कभी आपको निराशा महसूस हुई है/
०० हाँ! एक बार एक भावनात्मक डायलॉग बोलते समय मुझे काफी निराशा हुई थी। मुझे अकेली होने का एहसास हुई थी। बहुत पीड़ा हुई अपने पति की याद में मै रो पडी थी। 
० कभी उत्साह का कोई क्षण आया हो?
०० फिल्म छलिया में एक लड़की की  समय मै बहुत ही उत्साहित हुई थी। 
० छत्तीसगढ़ी फिल्मो में आपको कौन से कलाकार पसंद है?
०० प्रदीप शर्मा! उनके साथ काम करके मुझे बहुत ही अच्छा लगा था और सीखने को भी मिला था। उस फिल्म में वह मेरे पति की भूमिका में थे। 

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

यूँ ही आ गयी एक्टिंग में, डांस मेरा शौक है

मेरी आशिकी तुमसे ही की नायिका राधिका मैदान से ख़ास चर्चा 
- अरुण कुमार बंछोर
"मेरी आशिकी तुमसे ही की " नायिका राधिका मैदान कहती है कि एक्टिंग में तो मैं यूँ ही आ गयी। मेरा शौक तो डांस है और मैं डांसर ही बनाना चाहती थी। इसके लिए मैंने काफी तैयारी भी की थी। एक प्रश्न के उत्तर में राधिका हंसती हुई कहती है कि एकता कपूर के सीरियल में तो कई कई शादी होना तो सामान्य बात हैं, हो सकता है इतनी मुझे भी करनी पड़े। टीवी धारावाहिक की नायिका राधिका मैदान अपने निजी प्रवास पर रायपुर आई तो हमने उनसे कई पहलूओं पर बेवाक बात की।
0 आपको एक्टिंग का शौक कैसे हुआ?
00 एक्टिंग में तो मैं यूँ ही आ गयी। मैं एक्टिंग में नहीं आना चाहती थीं। पर अब धारावाहिक में काम करना अच्छा लग रहा है।
0 फिर किस क्षेत्र में कॅरियर बनाना चाह रही थी?
00 डांसिंग में ! डांस मेरा शौक भी है और पसंदीदा चाह भी। डांस की ट्रेनिंग लेने यूएस जाने का प्लान भी कर ली थी। लेकिन जाने से पहले सीरियल मिल गई , तो नहीं जा पाई।
0 कभी-कभी एक्टिंग में आपको आलोचना भी सहनी पड़ती होगी ?
00 हाँ जरूर ! जो जितना सफल होते है उतने ही उनके ज्यादा दुश्मन होते है।
0 आपको सीरियल कैसे मिला ?
00 आर्टिस्ट सलेक्शन क्रू के कुछ मेंबर्स ने फेसबुक पर मेरा फोटो देखा और सीरियल के ऑडिशन के लिए बुलाया।फिर मैंने आडिशन दिया। किरदार के चेहरे पर जो मासूमियत चाहिए थी, वह सलेक्शन टीम को मेरे चेहरे में नजर आई और मुझे रोल दे दिया गया।
0 आपने झलक दिखला जा में भी हिस्सा लिया था?
00 बहुत अच्छा अनुभव रहा। मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। जल्दी बाहर होने का भी मुझे ज्यादा दुख नहीं हुआ। आगे और कोशिश करूंगी।
0  इस क्षेत्र  में कभी निराशा हुई है ?
00 कभी नहीं! मैं कभी निराश नहीं होती।
0  और कभी ऐसा क्षण हो आया हो जब आप बहुत ज्यादा उत्साहित हुई हो?
00 हमेशा उत्साहित रहती हूँ। क्योकि मेरे परिवार मेरे साथ है।
0 आपको इसके लिए परिवार से कितना सहयोग मिलता है?
00 पूरा सहयोग मिलता है। एक लड़की होने के बाद भी मेरे माता-पिता ने मुझे कभी बंधन में नहीं रखा। यहां भी खूब मेहनत कर रही हूं। कभी-कभी तो पापा कहते हैं, ज्यादा शूटिंग करती हो, इतना काम करने की क्या जरूरत है। अगर अभी भी लगता है, तो वापस आ जाओ। मैं कॉलेज लाइफ मिस करती हूं, लेकिन मुझे कॅरियर बनाना है तो सब ठीक है।
0 ऐसा आपका कोई सपना जो आप पूरा होते हुए देखना चाहती हों?
00 अब और कोई तमन्ना नहीं है बस एक्टिंग में ही आगे जाना चाहती हूँ। पहले सोचती थी डांसिंग स्टार बनूंगी पर मौका मिला तो एक्टिंग में आ गई।अब इसी को कॅरियर बनाउंगी।