बुधवार, 29 अप्रैल 2015

गाँवो और कस्बों में भी बनाये थियेटर

तभी छत्तीसगढ़ी फिल्मो को दर्शक मिल पाएंगे : धनलक्ष्मी
रायपुर। छत्तीसगढ़ी फिल्मो में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुकी नायिका धनलक्ष्मी जुमनानी कहती है कि गाँवो और कस्बों में भी थियेटरों की व्यवस्था हो तभी छत्तीसगढ़ी फिल्मो को दर्शक मिल पाएंगे। रियल जिंदगी में काफी गुस्सैल धनलक्ष्मी बड़े परदे पर उतना ही सौम्य,सरल और प्यार की प्रतिमूर्ति नजऱ आती है।
मॉडलिंग से अपने कॅरियर की शुरुआत करने वाली यह नायिका हिन्दी फिल्मो में भी काम करने की ख्वाहिश रखती हैं। बॉलीवुड की  पादुकोण न केवल उनकी पसंद है बल्कि वे उनको फॉलो भी करती हैं। कई फिल्मो में मुख्य भूमिका निभा चुकी धनलक्ष्मी से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है।
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एक मुलाक़ात - अरुण कुमार बंछोर
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संक्षिप्त परिचय
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नाम             - धनलक्ष्मी जुमनानी
काम            - नायिका
कॅरियर          - मॉडलिंग से फिल्म
उपलब्धी        - छत्तीसगढ़ी फिल्मे चार
                - एल्बम 20 से अधिक
                - टेलीफिल्मे  7
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0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 बचपन से है, टीवी देखकर मेरे मन में एक्टिंग करने की इच्छा जाएगी और मै आज आप सबके सामने हूँ।
0 मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 निर्माता, निर्देशक एजाज वारसी ने मुझे फिल्मो में मौका दिए थे , लेकिन मेरे आदर्श मेरे माता-पिता ही है। राजनांदगांव के एक स्टूडियो संचालक ने मुझे इस लाईन में काम करने की प्रेरणा दी और मेरा हौसला अफजाई किया।
0 आप फिल्मो में नायिका की भूमिका निभाती है, तो आपको कैसा महसूस होता है?
00 मैं अपनी भूमिका में पूरी तरह डूबकर काम करती हूँ। भूमिका निभाते समय जीवंत अभिनय करती हूँ ,ताकि अपनी भूमिका के साथ न्याय कर सकूँ।
0 आपने जिन फिल्मो में काम की है। सबसे अच्छा फिल्म कौन सा लगा ?
00 अपने फिल्मो की तुलना करना तो मुश्किल है पर माटी मोर मितान में मै अपने किरदार में पूरा जीवन जिया है। इस फिल्म में मुझे बहुत शाबाशी मिल रही है। और मै भी अपने अभिनय से संतुष्ट हूँ।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 हाँ माटी मोर मितान फिल्म कर मै बहुत रोमांचित हुई हूँ। उससे मेरा हौसला और बढ़ा है।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00  हाँ एक बार मै मॉडलिंग में फाइनल राउंड के लिए सलेक्ट हो गयी थी पर घरेलू काम की वजह से नहीं जा पाई थी तब मुझे बहुत निराशा हुई थी।
0 फिल्मो में तो आप छाई हुई हैं, शादी के बारे में क्या सोची है?
00 शादी तो करूंगी पर अभी 3-4 साल शादी करने करने का इरादा नहीं है।
0 रील लाइफ और रीयल लाइफ में क्या अंतर है?
00 दोनों अलग-अलग चीज है। रियल लाइफ को रील लाइफ से नहीं जोड़ सकते।
0 फिल्मो में जो भूमिका निभातीे है तो क्या उसे अपने वास्तविक जिंदगी में भी अपनाती है?
00 हाँ जरूर ! कोशिश करती हूँ पर अंतर है। वास्तविक जीवन में मैं बहुत गुसैल हूँ किसी भी बात पर समझौता नहीं करती और फिल्मो में ऐसा नहीं कर सकती। क्योकि जो रोल मिलता है वही करना होता है। 

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

अशोक मालू - लोग इन्हें समझते हैं ‘बिग बी’

न्हें देखते ही लोग दौड़ पड़ते हैं और एकबारगी तो इनको अमिताभ बच्चन ही समझ लेते हैं। लोग हाथ आगे बढ़ाकर कहते हैं, आटोग्राफ प्लीज। फ्रेंच कट दाढ़ी, कानों को छूते बाल, काले फ्रेम वाला चश्मा और प्रिंस सूट पहने फोटो में नजर आ रहा यह व्यक्ति जब पहली बार किसी के सामने खड़े होता है तो ऐसा लगता है मानो सदी के महानायक अमिताभ बच्चन स्वयं खड़े हों। रायपुर के रवीनगर में रहने वाले थोक दवा maloo3.jpgव्यापारी अशोक मालू की यही पहचान है। पहली नजर में उन्हें देखकर अक्सर लोग धोखा खा जाते हैं और उन्हें अमिताभ बच्चन समझ बैठते हैं। अशोक के चेहरे और उनके कपड़े पहनने का अंदाज ही ऐसा है कि अक्सर लोगों को धोखा हो जाता है। इन दिनों उनके घर पर बिग बी के फैंस की भीड़ लगी रहती है। कोई उनसे ऑटोग्राफ लेने पहुंचता है तो कोई साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाना चाहता है। अशोक मालू कहते हैं कि वे बिग बी से मिलने के लिए प्रयासरत हैं। पूरी उम्मीद है कि एक बार अपने ‘आदर्श नायक’ से मिलने का मौका मिल जाएगा। अशोक की पत्नी किरण मालू और उनके परिजन भी उनके हूबहू अमिताभ की तरह नजर आने की बात सोचकर रोमांचित हो जाते हैं। अशोक मालू वर्ष 2011 से ही फ्रेंच कट दाढ़ी रख रहे हैं और उन्हीं के स्टाइल में कपड़े भी पहनते हैं। अमिताभ की तरह दिखने की दीवानगी ने ही उन्हें ‘रायपुर के अमिताभ’ के रूप में पहचान भी दिलाई है। अशोक अपने पास आने वाले बिग बी के प्रशंसकों का आभार भी जताते हैं। वे कहते हैं कि लोगों का प्यार और अमिताभ बच्चन के प्रति अगाध सम्मान देखकर वे अभिभूत हैं। हमने उनसे हर पहलूओं पर बेबाक बात की। प्रस्तुत है बातचीत के अंश -
प्र. आपको कब एहसास हुआ कि आपकी छबि अमिताभ बच्चन से मिलती है?
उ. सन 2008 में जब मै एक कालेज के प्रोग्राम में गया था तो मुझसे मेडिकल के छात्रों ने आटोग्राफ मांगा। तब मुझे एहसास हुआ की मेरा चेहरा अमिताभ जी से मिलता है। वह मेरी शुरुआत थी जो अब चरम पर है।
प्र. क्या आप बच्चन साहब को फॉलो करते हैं?
उ. कोशिश करता हूँ। वो महान शख्सियत हैफिर भी उनका आचरण, व्यवहार, चालढाल और कल्चर को अपनाने की कोशिश करता हूँ।
प्र. आपको ज्यादा खुशी कब मिलती है?
उ. जब लोग मुझे अमिताभ बच्चन के रूप में प्यार लुटाते हैं। मै जहां जाता हूँभीड़ जुट जाती है तब मुझे अपार स्नेह का एहसास होता है और बहुत ही खुशी मिलती है।
प्र. क्या आप कभी अमिताभ जी से मिले हैं?
उ. हाँ सन 1980 में मौका मिला थामुझे उनसे मिलने की बड़ी ख्वाहिश है। ‘कौन बनेगा करोड़पती’ के सेट पर भी गया था और करीब भी रहा। पर मैंने ऐसे समय में मंच पर जाना उचित नहीं समझा।
प्र. कोई सुखद क्षणजो आपको रोमांचित करता हो?
उ. हाँ जब लोग मुझे घेर लेते है और प्यार लुटाते हैआटोग्राफ मांगते है तब मुझे सुखद एहसास की अनुभूति होती है।
प्र. ऐसा कोई अनुभव बताइये, जब आपके सामने असमंजस की स्थिति बनी हो?
उ. सन 2011 में एक बार ऐसी स्थिति बनी थी। गायक शब्बीर कुमार आये थे ‘मुकतांश मंच पर’। जब हम स्टेज से उतरे तब लोगो ने मुझे घेर लिया फोटो खिचाने के लिए। साथ में मेरी पत्नी भी थी। मै फोटो खिचाने लगा और मेरी पत्नी थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद घर चली गई। उस समय मुझे मिश्रित हर्ष का अनुभव हुआ था।
प्र. अब आप छत्तीसगढ़ के अमिताभ कहे जाते है, बच्चो में आपकी क्या छबि है?
उ. बच्चे तो मुझे अमिताभ ही समझते है। रोज 20-25 बच्चे स्कूल से वापस आते समय रोड को छोड़कर मेरी शाप वाली गली से आते हैं, सिर्फ इसलिए कि हाथ मिला सकें। मुझे बहुत ही खुशी होती है।
प्र. ऐसा कोई तमन्ना है मन में जो करना चाहते हैं?
उ. हाँ मूक बधिरनि:शक्तजनों के लिए कुछ करना चाहता हूँ। ऐसी एक संस्था है ‘मनोहर बाल संस्थान’, वहां जाता रहता हूँ।
प्र. क्या आप फिल्मो में जाना चाहेंगे या मौका मिले तो काम करेंगे?
उ. नहीं फिल्मो में काम करने की इच्छा नहीं है। छत्तीसगढ़ी और हिंदी फिल्मो में काम करने का तो ऑफर मिला है, पर मै अमिताभ जी की छवि को भुनाना नहीं चाहता।
प्र. अमिताभ की स्टाइल में कब से है?
उ. 2008 में मेरी तबियत खराब हो गई थी। जिसकी वजह से कुछ दिन मैंने अपनी शेव नहीं बनवाई। तबीयत ठीक होने के बाद घर के लोगों ने कहा कि अब तो आप ठीक हो गए हो इसलिएअपनी शेव भी बना लो। शेव बनाते मैंने सोचा कि क्यों न दाढ़ी अमिताभ जैसी स्टाइल में बनाई जाए। इसके बाद मुझे यह बात महसूस हुई कि मेरी शक्ल अमिताभ से मिलती है। तब से लेकर आज तक मैं उसी स्टाइल में रहता हूं।
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मजेदार वाक्या
श्री मालू ने बताया कि कुछ दिन पहले वह किसी काम से रेलवे स्टेशन गए हुए थे। तब लड़कियों की एक टोली ने उनको दूर से देखा और उनकी गाड़ी का नंबर लिखकरआरटीओ से यह जानकारी प्राप्त की कि यह गाड़ी किसकी है? इसके बाद कुछ लड़कियांmaloo2.jpg श्री मालू से मिलने उनके ऑफिस पहुंच गई। उनमें से एक लड़की ने उनसे कहा कि क्या आपका कोई बेटा है? यदि हां तो मैं आपके बेटे से शादी करना चाहती हूँ। महानायक के हमशकल ने पूछा कि क्यों तुम मेरे बेटे से शादी करना चाहती हो? तब उस लड़की का कहना था कि मैं अमिताब बच्चन के परिवार की बहू तो नहीं बन सकतीलेकिन उनके ‘डुप्लीकेट’ के घर की बहू जरुर बनना चाहूँगी। ऐसे ही बहुत से वाक्ये उन्होंने बताए। शुक्रवार को ही उनके निवास पर 1977-78 में हलधर किसान पार्टी के विधायक रहे भोलू राम डहरिया उनके घर के बाहर 2 घंटे तक उनसे मिलने के लिए उनका इंतजार करते रहे। हालांकि भोलू राम की उम्र 70 से ज्यादा है,इसलिए उनकी आंखों की रोशनी भी थोड़ी कमजोर हो गई है। यही कारण है कि श्री मालू को वह असली अमिताभ समझ रहे थे और उनको किसी ने उनसे यह कह दिया था कि अमिताभ रायपुर आए हुए हैं तो वह उनसे मिलने पहुंच गए।
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अरुण कुमार बंछोर
(वरिष्ठ पत्रकार, रायपुर)

पुष्पांजली - छत्तीसगढ़ी फिल्मी पर्दे की दयालू माँ

मां के चरित्र को जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ – पुष्पांजली

मां दुनिया की सबसे अनमोल धरोहर है. मां जहां भी होती है खुशियों से हमारी झोली भर ही देती है. जब जीवन के हर क्षेत्र में मां का स्थान इतना अहम है तो भला हमारा छत्तीसगढ़ी सिनेमा इससे कैसे वंचित रह सकता था। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में भी ऐसी कई अभिनेत्रियां हैं जिन्होंने मां के किरदार को सिनेमा में अहम बनाया है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में जब भी मां के किरदार को सशक्त करने की बात आती है तो सबसे पहला नाम पुष्पांजली शर्मा का आता है जिन्होंने अपनी बेमिसाल अदायगी से मां के किरदार को छत्तीसगढ़ी सिनेमा में टॉप पर पहुंचाया। पुष्पांजली ने मां की भूमिका को निभाकर एक अलग अध्याय रचा। वे प्रकाश अवस्थीअनुज शर्माकरण खानचन्द्रशेखर चकोर जैसे तमाम बड़े नायको की माँ की भूमिका निभाने की वजह से ही उन्हें छत्तीसगढ़ की निरुपा राय भी कहा जाता है। 
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‘मया के घरौंदा’ में उनकी भूमिका वाकई गजब थी। मां के रूप में जब भी पर्दे पर आई लोगों ने उन्हें खूब प्यार दिया। पहुनाटूरी नंबर वन आदि में उनकी भूमिका दमदार थी। पुष्पांजली को आज छत्तीसगढ़ी सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा माना जाता है। फिल्मों में उनकी एंट्री बड़े ही निराले ढंग से हुई। कभी अभिनय न तो की थी और ना ही कभी सोची थी। निर्माता एजाज वारसी इन्हे फिल्मो में लेकर आये और डॉ अजय सहाय ने इनका होसला अफजाई कियाजिसकी वजह से ही आज वे इस मुकाम को पा सकी है। वे कहती है कि मां के चरित्र को फिल्म में जीवंत बनाने की पूरी कोशिश करती हूँ । 50 से अधिक फिल्मो में काम कर चुकी पुष्पांजली को किस्मत ने फिल्मो में खिंच लाया। माँ की भूमिका निभाना उन्हें बेहद पसंद है वैसे पुष्पांजली कई फिल्मो में भाभी की भूमिका भी निभा चुकी है। हमने उनसे हर पहलू पर बेबाक बात की है -

प्र. आपको एक्टिंग का शौक कब से है?
उ. बचपन से है,  पर फिल्मो में काम करने के बारे में नहीं सोची थी। मौका मिला तो आ गयी। या यूं कहूँ किस्मत ने खिंच लाया।
प्र. मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है?
उ. निर्माता एजाज वारसी मुझे फिल्मो में लेकर आये थे लेकिन मेरे प्रेरणाश्रोत डॉ अजय सहाय है ,जिन्होंने मुझे प्रेरणा दी और मेरा हौसला अफजाई किया। मेरे पीछे मेरी ताकत बनकर हमेशा खड़े रहे।
प्र. आप फिल्मो में माँ और भाभी की भूमिका निभाती हैतो आपको कैसा महसूस होता है?
उ. मुझे कोई भी रोल मिले मैं पूरी तरह डूबकर काम करती हूँ। माँ की भूमिका निभाते समय जीवंत अभिनय करती हूँ ताकि अपनी भूमिका के साथ न्याय कर सकूँ।
प्र. आपकी तुलना हिन्दी फिल्मो की निरुपा राय से की जाती हैक्यों?
उ. ये तो दर्शकों का प्यार है जो मुझे इस लायक समझा। निरुपा जी तो एक महान हस्ती रही हैं। जब मै माँ की भूमिका निभाती हूँ तो उसमे पूरी तरह से डूब जाती हूँ। उस समय अपने किरदार में पूरी तरह से रम जाती हूँ।
प्र. आपने 50 से अधिक फिल्मो में काम किया है। सबसे अच्छी फिल्म कौन सा लगी?
उ. अपने फिल्मो की तुलना करना तो मुश्किल है पर मया के घरौंदा में मै अपने किरदार में पूरा जीवन जिया है। इस फिल्म में मुझे बहुत शाबाशी मिली। और मै भी अपने अभिनय से संतुष्ट थी।
प्र. कोई ऐसा अवसर आया हो जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
उ. हाँ जब मया के घरौंदा में मुझे जब बहुत शाबाशी और तारीफ़ मिली तो मै बहुत रोमांचित हुई थी। उससे मेरा हौसला और बढ़ा ।
प्र. ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
उ. ऐसा अवसर कभी नहीं आया। मुझे जो किरदार मिलामैंने जी-जान लगाकर किया । मेरे कामो की हमेशा तारीफ़ ही हुई है। मै भी अपनी भूमिका से खूश रही।
प्र. रील लाइफ और रीयल लाइफ में क्या अंतर है?
उ. दोनों अलग-अलग चीज है। रियल लाइफ को रील लाइफ से नहीं जोड़ सकते।
प्र. फिल्मो में जो चारित्रिक भूमिका निभाते है तो क्या उसे अपने वास्तविक जिंदगी में भी अपनाते है?
उ. हाँ जरूर ! घर की मै बड़ी बहू हूँ अपने परिवार को बांधकर रखने की पूरी कोशिश करती हूँ। कभी किसी का दिल ना दुखे भले ही मुझे दुःख सहन करना पड़ेये मेरा प्रयास होता है। मै एक माँ की तरह अपने परिवार को वही स्नेह देती हूं जो फिल्मो में करती हूँ।
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अरुण कुमार बंछोर

मौजूदा दौर में महिला सशक्तिकरण की सख्त जरुरत

- अरुण कुमार बंछोर (रायपुर)
फिल्म निर्माण और राजनीति में कदम से कदम मिलाकर चलने वाली श्रीमती गायत्री केशरवानी कहती हैं कि मौजूदा दौर में महिला सशक्तिकरण की सख्त जरुरत है। Gaytrikeshar-1.jpgमहिला सक्षम होगी तो प्रदेश और देश का विकास होगा। भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय कार्यकर्ता श्रीमती केशरवानी वार्ड क्रमांक 46 से टिकट की प्रमुख दावेदार भी है। वे कहती हैं कि जनता के लिए काम करने में उन्हें एक सुखद अहसास की अनुभूति होती हैयही कारण है कि पार्षद का चुनाव लड़ना चाह रही हैं। अगर पार्टी ने इस योग्य समझा तो वे जनता की सेवा करने में हमेशा आगे रहेगी। फिल्म निर्माण में आगे बढ़ चुकी श्रीमती गायत्री केशरवानी कहती हैं कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के पिछड़ने के लिए वे निर्मातानिर्देशक ही दोषी हैजो सही तरीके से फिल्मों को पेश नहीं कर पा रहे हैं। गायत्री तीन फिल्में बना चुकी हैं जिनमें एक भोजपुरी फिल्म है और वह सुपरहिट रही है। तीसरी फिल्म मया-2’ आने वाली है। फिल्म और राजनीति दोनों में कदम से कदम मिलाकर चल रही गायत्री हिन्दी फिल्में भी बनाने की तमन्ना रखती है। उनसे सभी पहलुओं पर बेबाक बात की है। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश 

प्र० आप एक फिल्म निर्मात्री हैफिर पार्षद का चुनाव क्यों लड़ना चाहती हैं?
उ० जनसमस्या के निराकरण के लिए। मैं रोज देखती हूँ क्षेत्र में काफी समस्याएं हैइसके निराकरण के लिए हमें आगे आना ही होगा। फिर मैं कई संस्थाओं से जुडी हुई हूँजो समाजसेवा के क्षेत्र में काम कर रही है।
प्र० आपने वार्ड 46 से भाजपा टिकट की दावेदारी की हैवहां क्या करना चाहती हैं?
उ० बुनियादी समस्याओं का निराकरण करूंगी। मौका मिला तो मैं अपने वार्ड में काम करके दिखाउंगी। पेयजलसाफ़-सफाईसड़कये बुनियादी चीजे हैं जो सबको मिलना चाहिए।
प्र० आप एक महिला हैं और महिलाओं को आगे लाने के लिए आपने अभी तक कुछ किया है?
उ० महिलाओं को आगे लाने और उन्हें न्याय दिलाने की दिशा में हमने काफी कुछ किया है और आगे भी करती रहेंगी। महिला सशक्तिकरण बहुत ही जरूरी है। महिला सशक्त होंगी तो प्रदेश और देश का विकास होगा।
प्र० महिलाओं के लिए क्या करना चाहती है। आज भी बहुत सी महिलाये प्रताड़ित हैं और उन्हें न्याय नहीं मिल पाता?
उ० हम ऐसी ही महिलाओं के लिए काम कर रही हैं जिन्हे न्याय नहीं मिल पाता। हम उन्हें न्याय दिलाते है। प्रताड़ित महिलाये निर्भय होकर आगे आये हम उनके साथ खड़ी होंगी । उन्हें न्याय दिलाएंगे। दहेज़ उन्मूलन के क्षेत्र में भी हम काम कर रहे है। महिला उत्थान के लिए काम कर रही हूँ और करते रहना चाहती हूँ ।
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 प्र० आप फिल्म निर्मात्री हैये बताइए की छत्तीसगढ़ी फिल्म क्यों ज्यादा नहीं चल पाती?
उ० इसके पीछे कई कारण हैं पर सबसे बड़ा कारण है कि निर्माता निर्देशक कहानी को सही तरीके से पेश नहीं करते। फिल्म नहीं चलने के लिए निर्माता निर्देशक ही दोषी हैं ।
प्र० प्रमोशन और प्रचार प्रसार की कमी है ये आप मानती हैं?
उ० ऐसा नहीं है। प्रचार प्रसार तो होता है पर थियेटर नहीं मिल पाता। विडम्बना देखियेहिन्दी फिल्में थियेटर वाले पैसा देकर लाते हैं और छत्तीसगढ़ी फिल्में प्रदर्शन करने के लिए हम थियेटर वालो को पैसा देते हैं। मैंने तीन फिल्में बनाई हैं जिसमें से एक भोजपुरी फिल्म है जो सुपरहिट रही लहू के दो रंग। उसकी कहानी और कास्टिंग जबरदस्त थी। फिल्में अच्छी हो तो जरूर चलेंगी। अभी हमारी मया-2’ आ रही है। फिल्म बहुत ही अच्छी बनी है। मुझे उम्मीद है सुपरहित होगी।
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प्र० क्या हिन्दी फिल्म भी बनाने के तमन्ना है?
उ० जरूर बनाउंगी। मैं अपने बेटे को हिन्दी फिल्म में ही लांच करूंगी।
प्र० छत्तीसगढ़ी फिल्म का विकास हो, उसे महत्त्व मिले, इसके लिए सरकार का सहयोग मिल रहा है या नहीं?
उ० शासन से बात हुई है। जल्द ही खुशखबरी मिलाने वाली है। छत्तीसगढ़ में फिल्म निर्माण का अच्छा स्कोप हैजगह भी सुन्दर हैलोकेशन भी अच्छी हैइसे बढ़ावा तो देना ही चाहिए।
 
अरुण कुमार बंछोर

 (वरिष्ठ पत्रकार)

समाजसेवा ही उनके जीवन का ध्येय है और लक्ष्य भी


- अरुण कुमार बंछोर (रायपुर)
smita pande.jpgछात्र जीवन से ही राजनीति में उतरी राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय परिषद की अध्यक्ष स्मिता पांडे का कहना है कि समाजसेवा करना ही उनके जीवन का ध्येय है और लक्ष्य भी। उन्होंने वार्ड क्रमांक 50 से भाजपा टिकट के लिए अपना दावा किया है। वे कहती है कि अगर वे पार्षद बनी तो वार्ड के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। महिला उत्थान और जागरूकता के लिए काम कर रही स्मिता किआज भी महिलायें प्रताड़ित होने न्याय के लिए आगे नहीं आती है। उनसे सभी पहलुओं पर बेबाक से बात की। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के संपादित अंश 

प्र० आपने राजनीति को ही अपना कॅरियर क्यों चुना?
उ० बचपन से ही मुझे राजनीति से लगाव रहा है। छात्रजीवन से ही मैंने राजनीति शुरू कर दी थी। छात्र नेता के रूप में मैंने विद्यार्थियों के लिए कई लड़ाई लड़ी थी। सबको न्याय मिले यही मेरा मकसद होता था।
प्र० एकाध कोई संघर्षजो छात्रों के लिए की हो?
उ० कई है पर श्वेता हत्याकांड के खिलाफ जो हमने संषर्ष छेड़ा थाउसे आज भी याद किया जाता है। छोटी सी छात्रा के साथ अमानवीय हरकत के बाद जब उनकी ह्त्या कर दी गयी थी तब मैंने एकआंदोलन खड़ा किया था। जिससे सरकार भी परेशान हो गयी थी। 4000 लड़कियों को जुलूस के रूप में ले जाकर प्रशासन की नींद हराम कर दी थी।
प्र० समाजसेवा को ही अपना लक्ष्य क्यों तय किया?
उ० बचपन से ही मुझे समाजसेवा करने की ललक थी इसलिए इसे ही मैंने अपना लिया।
प्र० कोई तो आपके आदर्श होंगेजिन्हे देखकर आप आगे बढ़ रही है?
उ० मेरे दादा-दादी हैजिनसे मैंने समाजसेवा करना सीखा है। दादा दामोदर देशपांडे और दादी उषा देशपांडे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे चरखा से सूत कातते थे और कपड़ा भी बनाते थे। वो मेरे आदर्श हैं और प्रेरणाश्रोत भी।
प्र० आपने भाजपा से पार्षद के लिए टिकट माँगी हैआपका मुद्दा क्या होगा?
उ० साफ़-सफाईपेयजल और राशनिंग मेरा मुख्य मुद्दा होगा। पंकज विक्रम वार्ड जहां से मेरा वास्ता है वहां बुनियादी समस्याएं बहुत अधिक है। मई उन सबका निराकरण चाहती हूँ। पार्षद बनी तो अपने वार्ड का कायाकल्प कर दूंगी ये मेरा वादा है।
प्र० राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय के लिए आप क्या करती है?
उ० लोग अपनी समस्या लेकर आते है तो हम उन्हें न्याय दिलाने की पूरी कोशिश करते है। जेल,सरकारी दफ्तरया सार्वजनिक स्थानो में भी नज़र रखते है,  साथ अन्याय ना हो। 
प्र० महिलाये आज पहले की अपेक्षा ज्यादा प्रताड़ित हो रही हैक्या आपके पास ऐसा कोई प्रकरण आता है?
उ० आता तो है पर आज भी महिलाओं में जागरूकता की कमी है। महिलाये अपने परिवार के खिलाफ प्रताड़ना की शिकायत करती है तो केस वापस भी ले लेती हैऐसे में हम कुछ नहीं कर पाते। महिलायें जल्दी दबाव में आ जाती हैं। 
प्र० इसके लिए आगे आप क्या करना चाहेंगी?
उ० मैं महिला उत्थान के लिये काम करना चाहती हूँ। उनमे जागरूकता पैदा करना बहुत ही जरूरी है महिला यौन उत्पीड़न के खिलाफ मैं सतत संघर्ष करती रहूंगी। लोगो से मैं कहना चाहूंगी कि ऐसा कोई मामला दिखे तो परिषद को जरूर सूचित करे ताकि हम उन्हें न्याय दिला सकें। 
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 अरुण कुमार बंछोर
(वरिष्ठ पत्रकाररायपुर)

माँ ने जीवन चक्र के चाक पर मुझे शब्दों का कुम्हार बनाया - रश्मि प्रभा

ज के दौर में रश्मि प्रभा बहुत बड़ा नाम है। वे किसी परिचय के मोहताज नहीं है। rashmi prabha.jpgदेश के तमाम बड़े कवि उनके आदर्श और मार्गदर्शक है। उनकी माँ ही उनकी प्रेरणा है। वे कहती है कि कुम्हार जिस तरह निरंतर चाक पर मिटटी को आकार देता हैउस तरह मेरी माँ ने सोचने को धूलकण ही सहीदिया और लीक से हटकर एक पहचान दी। उनकी हर सम्भव कोशिश होती है कि व्यक्ति,स्थानसमयस्थिति को अलग अलग ढंग से प्रस्तुत करें,लोगों को सोचने पर विवश करें। उनका कहना है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि और इस नाम ने जीवन चक्र के चाक पर मुझे शब्दों का कुम्हार बनाया और निरंतर लिखने के लिए कई उतार-चढ़ाव दिए। यूँ सच पूछिये तो एक नाम से बढ़कर जीवन अनुभव होता है एक ही नाम तो कितनों के होते हैं नाम की सार्थकता सकारात्मक जीवन के मनोबल से होती है हवाओं का रूख जो बदले सार्थक परिणाम के लिए असली परिचय वही होता है। उनसे सभी पहलुओं पर बेबाक बात की। प्रस्तुत है बातचीत के अंश -

प्र. आपको इस क्षेत्र में रूचि कैसे हुई ?
उ. साहित्यिक माहौल तो बचपन से था - सौभाग्य कि प्रकृति के सौन्दर्य कवि सुमित्रानंदन पन्त ने मुझे 'रश्मिनाम दिया - पारिवारिक पृष्ठभूमि और इस नाम ने जीवन चक्र के चाक पर मुझे शब्दों का कुम्हार बनाया और निरंतर लिखने के लिए कई उतार-चढ़ाव दिए।
जि़न्दगी की धरती बंजर हो या उपजाऊ सामयिक शब्द बीज पनपते रहते हैंमिटटी से अद्भुत रिश्ता था तो रूचि बढ़ती गई।

प्र. आपके प्रेरणाश्रोत और आदर्श कौन है?
उ. कोई एक नाम लिख दूँ तो नाइंसाफी होगीक्योंकि हिंदी साहित्य के कई कवि लेखक ऐसे हैं - जिन्होंने मेरे परिवार से परे मेरे भीतर एक दिव्य ज्योति की प्राणप्रतिष्ठा की - सुमित्रानंदन पन्त,हरिवंश राय बच्चनरामधारी सिंह दिनकरजयशंकर प्रसादमैत्रेयी देवीशिवानीशिवाजी सामंत,आशापूर्णा देवीप्रेमचंदशरतचंद्र ..... आदर्शों की कमी नहीं - जिसमें मेरी माँ स्व. सरस्वती प्रसाद हैं।
कुम्हार जिस तरह निरंतर चाक पर मिट्टी को आकार देता हैउस तरह मेरी माँ ने सोचने को धूलकण ही सहीदिया और लीक से हटकर एक पहचान दी।

प्र. आपकी उपलब्धि क्या-क्या है?
उ. पहली उपलब्धि काबुलीवाले की 'मिन्नीहोनाजिस नाम से मुझे सबने पुकारामेरी दूसरी उपलब्धि पंत की 'रश्मिहोनाइस नाम ने मुझे एक उद्देश्य दिया कि मैं इस नाम का हमेशा मान रखूँ ! इससे परे हमें जानना होगा कि हम उपलब्धि कहते किसे हैं ! 4, 5 काव्य-संग्रहकुछ पुरस्कार .... मेरे ख्याल से किताबेंपुरस्कार - इन सबसे ऊपर की उपलब्धि है भीड़ में एक पहचान। और यह उपलब्धि मुझे मिली हैख़ुशी होती है जब कोई मुझसे अपनी किताब की भूमिका लिखने को कहता है.उनकी ज़ुबान पर मेरा नाम मेरी उपलब्धि है।

प्र. आप परिवार के बीच साहित्य के लिए समय कैसे निकल पाते है?
उ. परिवार यानि मेरे बच्चेशब्द - मेरे बच्चेमकसदउद्देश्य इन्हें इनका मुकाम देना तो इनके लिए मेरे पास समय होता ही होता है।

प्र. क्या आपको अपने परिवार से सहयोग या प्रोत्साहन मिलता है?
उ. जैसा कि मैंने आरम्भ में ही कहा कि परिवार में बचपन सेएक साहित्यिक वातावरण थामिटटी की सोंधी खुशबू सा आदान-प्रदान हमारी बातचीत में थामेरे बच्चे भी इससे अछूते नहीं रहेउनकी मोबाइल पर मेरे गीत का होनाउसे सुनना मेरे लिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन है।

प्र. गीतों से आपका क्या तात्पर्य है? आपके गीत कहीं ज्?
उ. मेरे गीतों को धुन में ढाला ऋषि कम्पोजर नेस्वर कुहू गुप्ता और श्रीराम इमानी ने दिए ज् अल्बम बनाने की ख्वाहिश थीपूरी नहीं हुई है पर नि:संदेहविश्वास हैवो सुबह कभी तो आएगी ...

प्र. भविष्य की क्या योजना है या कोई तमन्ना है?
उ. जीवन का कोई एक पहलु ही नहीं होताउसे देखने काहर व्यक्ति का अपना नजरिया होता हैज् मेरी हर सम्भव कोशिश होती है कि व्यक्तिस्थानसमयस्थिति को अलग अलग ढंग से प्रस्तुत करूँ,लोगों को सोचने पर विवश करूँ ज् वर्तमानभविष्य की यही ख्वाहिश है

प्र. सबसे सुखद क्षण कौन सा है?
उ. हर वह क्षण जिसमें मेरे बच्चों के चेहरे खिलखिलाते हैं और मुझे सुकून भरे शब्द दे जाते हैं

प्र. ऐसा कोई समय आया हो जब आपको बहुत निराशा मिली हो?
उ. निराशा जब भी होती हैव्यक्तिगत होती है - लेखन से जुडी हो या जि़न्दगी सेपर बहुत निराशा के पल में एक अदृश्य ताकत मुझमें शक्ति का संचार करती रहीइसलिए एक वक़्त के बाद मैंने उसे भुलाने की कोशिश की।

रश्मि प्रभा
संक्षिप्त परिचय
काव्य-संग्रह                             :  शब्दों का रिश्ता (2010)अनुत्तरित (2011)महाभिनिष्क्रमण से निर्वाण तक (2012)खुद की तलाश (2012), चैतन्य (2013)
संपादन                                      :  अनमोल संचयन (2010)अनुगूँज (2011)परिक्रमा (2011)एक साँस मेरी (2012)खामोशखामोशी और हम (2012)बालार्क (2013) , एक थी तरु (2014)वटवृक्ष (साहित्यिक त्रैमासिक एवं दैनिक वेब पत्रिका - 2011 से 2012)
ऑडियो-वीडियो संग्रह          :  कुछ उनके नाम (अमृता प्रीतम-इमरोज के नाम)
सम्मान                                     :  परिकल्पना ब्लॉगोत्सव द्वारा वर्ष 2010 की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री का सम्मान'द संडे इंडियन’ पत्रिका द्वारा तैयार हिंदी की 111 लेखिकाओं की सूची में शामिल नामपरिकल्पना ब्लॉगर दशक सम्मान -2003-2012, शमशेर जन्मशती काव्य-सम्मान – 2011, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता 2013 भौगोलिक क्षेत्र 5भारत - प्रथम स्थान प्राप्तभोजपुरी फीचर फिल्म साई मोरे बाबा की कहानीकारगीतकार

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अरुण कुमार बंछोर

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

मौका मिला तो हिन्दी फिल्मे भी करूंगी : श्वेता

 छत्तीसगढ़ी फिल्मो को बढ़ावा नहीं मिला




रायपुर।  मन में लगन और दृढ़ इच्छा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। टीवी देख- देखकर मैंने भी फिल्मो में काम करने की सोची थी और आज सबके सामने हूँ। यह कहना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मो में माँ और भाभी की भूमिका निभाने वाली श्वेता शर्मा  का। अपनी असल जिंदगी में भी भारी उतार चढ़ाव देखने वाली श्वेता कहती है कि सरकार का सहयोग मिले तो छत्तीसगढ़ी फिल्मो के भी दिन बाहर जाएंगे। छत्तीसगढ़ में भी अच्छी अच्छी जगहें हैं जहां फिल्मो की शूटिंग की जा सकती है। श्वेता से हमने हर पहलूओं पर बेबाक बात की है। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश।
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एक मुलाक़ात - अरुण कुमार बंछोर 
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0 आपने फिल्मो में आने की कैसे सोची?
00 टीवी प्रोग्राम देखकर। मुझे भी लगा की फिल्मो में काम करना चाहिए। जब तीवफी देखती थी तो मुझे लगता था कि ऐसा रोल तो मै भी कर सकती हूँ।
0 क्या आपने इसके लिए कोई ट्रेनिंग ली है ?
00 बिलकुल नहीं ली है। बचपन से ही डांस करती रही हूँ। जब 5 साल की थी तब से मना में इच्छा थी कि में भी अपनी कला का प्रदर्शन करूँ।
0  बिना प्रशिक्षण के यह कैसे संभव हो पाया ?
00 मन में लगन और दृढ़ इच्छा हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। टीवी देख- देखकर मैंने भी फिल्मो में काम करने की सोची थी और आज सबके सामने हूँ।
0 आपने अभी तक कितने फिल्मे की है? और कैसा अनुभव रहा है?
00 मैंने अभी तक 9 छत्तीसगढ़ी फिल्मे की है और अभी एक भोजपुरी फिल्मे कर रही हूँ। और अच्छा मौका मिले तो और अच्छा काम करूंगी।
0 छत्तीसगढ़ी फिल्मो में आप माँ और भाभी का ही रोल करती हैं, क्या कभी मन में नहीं आया की और भी अच्छा रोल करूँ ?
00 मै अपनी भूमिका से संतुष्ट हूँ। सभी बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला है। और छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में मैं खुश हूँ।
0 ऐसा कोई ख़ास भूमिका बताईये जिसमे आपको ज्यादा अच्छा लगा हो?
00 फिल्म गोहार रामराज में मै मंत्री जी की पत्नी की भूमिका में हूँ और फिल्म मोहनी में ठकुराइन बनी हूँ वो मुझे बहुत अच्छा लगा। मोहनी में तो मैंने खूब दबंगई की है और आखिऱी में अपने ही भाई को गोली मार देती हूँ।

0 छत्तीसगढ़ी फिल्मे ज्यादा क्यों नहीं ताकीजों में टिक पाती ?
00 कई कारण है कहानी अच्छी हो,फूहड़पन ना हो, तो फिल्मे चलेंगी। कई फिल्मे सुपर-डुपर रही हैं। फिर सरकार का सहयोग भी तो नही मिल पाता । यहां इतने अच्छे लोकेशन होने के बाद भी फिल्मो की शूटिंग नहीं होती। फिल्म टेटकूराम की शूटिंग बाहर हुई है।
0 क्या अपने बच्चों को भी फिल्मो में लाएंगी ?
00 नहीं ये बच्चे ही फैसला करेंगे ,की उन्हें आगे चलकर क्या करना है।

0 असल जिंदगी में आपने बहुत  है तो क्या ऐसी कोई फिल्म में भी काम की है?
00 हाँ फिल्म चुभन है जिसमे मैंने लीड रोल की है। उसमे एक महिला पर होने वाली अत्याछार का बखूबी से चित्रण किया गया है। मेरा काफी शोषण होता है और मै दो बार बिकती हूँ । वो एक अच्छे फिल्म बनी है, करना मुझे बहुत अच्छा लगा है। 

जल्द ही टीवी सीरियल में नजऱ आएगी छत्तीसगढ़ की सुमन चौधरी

अपने कामो से लोगो का दिल जीतना चाहती हूँ

रायपुर। छत्तीसगढ़ी फिल्मो की अभिनेत्री सुमन चौधरी जल्द ही टीवी सीरियलों में नजऱ आ सकती है। दो धारावाहिकों के लिए उन्हें प्रस्ताव मिला है। वे कहती है कि अपने कामों से वे लोगो के दिलों में जगह बनाना चाहती है। लोगो का प्यार ही उनकी पूंजी है। सुमन एल्बम से काम शुरू कर छत्तीसगढ़ी फिल्मो में आई थी और अब सीरियल की तरफ रुखा करना चाहती है। उनसे हमने हर पहलूओं पर बात की है। पेश है बातचीत के संपादित अंश।

संक्षिप्त परिचय
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नाम             - सुमन चौधरी
काम            - अभिनेत्री
कॅरियर          - एल्बम से फिल्म
उपलब्धी        - छत्तीसगढ़ी फिल्मे तीन
                - एल्बम 20 से अधिक
                - टेलीफिल्मे  5
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0 आपको एक्टिंग का शौक कब से है ?
00 बचपन से है, टीवी देखकर मेरे मन में एक्टिंग करने की इच्छा जाएगी और मै आज आप सबके सामने हूँ।
0 मौका कैसे मिला और आपके प्रेरणाश्रोत कौन है ?
00 कोरियोग्राफर मनोज दीप ने मुझे फिल्मो में मौका दिया, लेकिन मेरे आदर्श मेरे माता-पिता ही है। मनोज जी का ऑफर फिल्मो के लिए मिला तो मै मान गयी।
0 आप फिल्मो में अपनी भूमिका से संतुष्ट है?
00 मैं अपनी भूमिका में पूरी तरह डूबकर काम करती हूँ। भूमिका निभाते समय जीवंत अभिनय करती हूँ ,ताकि अपनी भूमिका के साथ न्याय कर सकूँ।
0 कोई ऐसा अवसर आया हो ,जब आप बहुत उत्साहित हुई हो?
00 हाँ फिल्मो में वापस आकर मै बहुत रोमांचित हुई हूँ। उससे मेरा हौसला और बढ़ा है।
0 ऐसा कोई क्षण जब निराशा मिली हो?
00  हाँ मैंने कुछ समय के लिए फिल्म लाईन से दूर हो गयी थी तब मुझे बहुत निराशा हुई थी।
0 अभी आपके पास क्या -क्या फिल्मे हैं?
00 अभी मेरे पास बहुत से ऑफर है लेकिन मैं सोच समझकर फिल्मे करना चाहती हूँ।
0 फिल्मो में जो भूमिका निभातीे है तो क्या उसे अपने वास्तविक जिंदगी में भी अपनाती है?
00 हाँ जरूर ! कोशिश करती हूँ पर अंतर है। फिल्मो में जो रोल मिलता है वही करना होता है। वास्तविक जिंदगी में अपने हिसाब से जीते हैं।
0 आपकी तमन्ना क्या है?
00 मेरी एक ही तमन्ना है कि मैं अपने कामों से लोगो का दिल जीतना चाहती हूँ और अपने तथा अपने माँ -बाप का नाम रोशन करना चाहती हूँ। 

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

मैंने कब कहा?

बिन्नी के फाइनल एग्जाम खत्म हो गए हैं। इन दिनों वह सुबह मम्मी के बिना जगाए ही जाग जाता है। फिर फटाफट ब्रश करता है और तैयार होकर अपने दादाजी के साथ पार्क चला जाता है। उसके फुर्तीलेपन से मम्मी खुश हैं।
इस साल बिन्नी क्लास 6 में जाएगा। वह नई क्लास में जाने की बात सोचकर काफी खुश है। उसका मन उत्साह से भरा हुआ है। वह दादाजी के साथ रास्ते में चला जा रहा है और सोच रहा है कि आने वाले दिनों में उसे मम्मी के साथ मिलकर कितने काम करने हैं। अपने कबर्ड और अलमारी साफ करनी हैं। पुरानी किताबों और कॉपियों को वहां से हटाना है। नई-नई किताबें, कॉपियां, बोतल, लंच बॉक्स, बैग और ड्रेस खरीदनी हैं। यह सब सोचकर उसका मन रोमांच से भर जाता है।  
वह मन-ही-मन प्लान करता है कि इस साल वो मम्मी से जिद करके सब कुछ अपने पसंदीदा ब्लू कलर का ही खरीदेगा। वह सोचता है, ‘कितना अच्छा लगेगा। बैग, पेंसिल बॉक्स, बोतल, लंच बॉक्स सबके सब नीले रंग के। जैसा नीला आसमान। कितना प्यारा लगता है! एकदम साफ-साफ, उसे देखकर मन को बहुत शांति मिलती है।’
बिन्नी इन्हीं ख्यालों में गुमसुम सा बिना कुछ बोले चला जा रहा था। तभी दादाजी ने कहा, ‘बिन्नी! आज तो हम बहुत जल्दी पार्क पहुंच गए।’
उसने जवाब दिया, ‘जी हां!’
इसके बाद पार्क में दादाजी अपने दोस्तों के साथ बातचीत करते हुए टहलने लगे। इधर बिन्नी अपने दोस्तों के साथ खेलने में मगन हो गया। उसे अपना प्यारा दोस्त आतिफ जो मिल गया था। बिन्नी ने आतिफ से कहा, ‘आतिफ, आज मेरे घर चलो।’
पहले तो आतिफ ने थोड़ा ना-नुकुर किया, फिर तैयार हो गया। दादाजी के साथ दोनों दोस्त घर पहुंचे। बिन्नी के घर पहुंचते ही आतिफ ने अपनी मम्मी को फोन करके बताया कि वह बिन्नी के घर आया हुआ है। दो घंटे खेलकर वापस घर लौट आएगा।
मिसेज वर्मा यानी बिन्नी की मम्मी दोनों दोस्तों को गरमागरम आलू का परांठा नाश्ते में देती हैं। दोनों खुश होकर खाते हैं। तभी बिन्नी की मम्मी ने आतिफ से पूछा, ‘आतिफ, तुम्हारा छोटा भाई कैसा है? लगता है, तुम्हें तो उसके साथ खेलने से फुर्सत ही नहीं मिलती है। तभी इतने दिनों बाद आए हो।’
आतिफ कहता है, ‘आंटी, मेरा तो कोई छोटा भाई है ही नहीं।’
मिसेज वर्मा आतिफ के जवाब को सुनकर चुप हो जाती हैं। वह बिन्नी की तरफ देखकर मुस्कराती हैं। कहती हैं, ‘अरे, मुझसे भूल हो गई। शायद, बिन्नी ने किसी और के बारे में बताया होगा।’
थोड़ी देर बाद आतिफ के पापा आते हैं और उसे लेकर चले जाते हैं और बिन्नी अपना मन पसंदीदा टीवी चैनल देखने में व्यस्त हो जाता है। पर उसकी मम्मी बिन्नी की फिजूल की बातें बनाने की हरकत से परेशान हो सोच में पड़ जाती हैं। उन्हें याद आता है कि अभी न्यू ईयर पर बिन्नी ने ट्यूशन वाली मैडम से कहा था कि वह केक लेकर आएगा। फिर पड़ोस की मिसेज शर्मा से उसने कहा कि इस बार समर वेकेशन में बिन्नी अपनी फैमिली के साथ काठमांडू जाएगा। वगैरह-वगैरह।
इसी ऊहापोह में वो बिन्नी के कमरे में जाती हैं और बोलती हैं, ‘बेटा, आज आतिफ ने मुझे गलत समझा होगा। अगर यह बात वह अपने मम्मी-पापा को बताएगा तो उसके पेरेंट्स शायद बुरा मान जाएं, हमसे नाराज हो जाएं। आतिफ तुमसे बात करना बंद कर दे। तुम्हारे साथ खेलना बंद कर दे, क्योंकि तुम मनगढंत और झूठी बातें किसी के बारे में बोल जाते हो।’
आज तो मम्मी और आतिफ की बातें सुनकर बिन्नी मन-ही-मन डर गया था। आज उसे अपनी गलत आदत समझ में आ गई थी। उसने तय किया कि आज के बाद वह इस तरह की बातें कभी किसी के बारे में नहीं कहेगा, जिससे कि किसी को शर्मिदा होना पड़े। वह धीरे से मम्मी के पास आकर कहता है, ‘सॉरी मम्मी। अब ऐसा नहीं करूंगा।’