सोमवार, 25 जनवरी 2010

सबसे महान कौन?


एक बार देवर्षि नारद के मन में यह जानने की इच्छा हुई कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे महान कौन है? वे वैकुंठ लोक गए। उन्होंने वहां प्रभु से प्रश्न किया, हे प्रभु! इस पृथ्वी पर सबसे महान कौन हैं? प्रभु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, नारदजी! सबसे बडी तो यह पृथ्वी दिखती है। इसलिए हम पृथ्वी को इसकी संज्ञा दे सकते हैं। दूसरी ओर, उसे समुद्र ने घेर रखा है। इस कारण समुद्र उससे भी बडा सिद्ध हुआ। एक बार इस समुद्र को भी अगस्त मुनि ने पी लिया था। इस कारण समुद्र कैसे बडा हो सकता है? ऐसी स्थिति में अगस्त्य मुनि सबसे बडे हुए। लेकिन उनका वास कहां है? अनंत आकाश के एक सीमित भाग में, मात्र बिंदु के समान वे एक जुगनू की तरह चमक रहे हैं। इस प्रकार आकाश उनसे बडा साबित हुआ। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने इस आकाश को भी एक पग में ही नाप लिया था। इस तरह विष्णु ही सबसे महान सिद्ध होते हैं। फिर भी नारद विष्णु भी सर्वाधिक महान नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि वे हमेशा आपके हृदय में अंगुठे इतनी जगह में ही विराजते हैं। इसलिए सबसे महान आप सिद्ध हुए।

जी सर
साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- कल जो नया बाबू आया है, उसे मेरे पास भेजो। जी सर। थोडी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। क्या नाम है? संदीप। घर कहां है? प्रतापगढ। क्यों आज मंगलवार है? नहीं सर, आज बुधवार है। साहब अभी तक फाइल में ही नजरें गडाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। तुम मुझसे ज्यादा जानते हो? नहीं सर। मैंने आज सुबह अखबार में पढा था। अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते हैं। लेकिन सर, मेरी कलाई घडी में भी आज बुधवार है। गेट आउट फ्राम हियर। संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बडे बाबू मनोहरलाल को बुलवाया। बडे बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- क्यों बडे बाबू, आज मंगलवार है? जी सर। गुड, नाउ यू कैन गो।


अपना घर
इस क्षमा को अचानक क्या हो गया.. चेहरे पर उदासी क्यों? थोडी देर पहले तो बडी खुश थी अपने नये घर में आकर। सात वर्षीया बेटी को उदास देखकर मि. शर्मा पत्नी से बोले- पूछो तो जरा..।
अपने पुराने पडोसी दोस्तों को याद करके दु:खी हो रही है शायद। मिसेज शर्मा मुस्कराई। यहां भी कुछ दिनों में नये दोस्त बन जायेंगे। बन्टी ने तो आज ही दो दोस्त बना लिये। देखो- लॉन में कैसे उछल-कूद रहा है उनके साथ। इसे भी लॉन में भेज दो।
मिसेज शर्मा ने बेटी को पुकार कर कहा- अकेली क्यों बैठी हो बेटी बाहर बन्टी भइया के साथ खेलो न। बेटी बाहर न गयी। गुमसुम-सी पास आकर बोली- एक बात पूछूं मम्मी?
हां-हां, पूछो बेटी। यह घर किसका है? अपना है बेटी.. अपना नया घर।
मेरा भी? हां, हम सब का घर। मि. शर्मा सहर्ष बीच में बोल पडे।
बेटी कुछ पल उनका मुख ताकती रही। फिर पूछा- तो फिर पापा, गेट पर लगे पत्थर में मेरा नाम क्यों नहीं? बेटी के इस प्रश्न का जवाब किसी के पास न था। मि. शर्मा की आंखों में गेट पर लगा पत्थर नाच उठा।
काले चमचमाते पत्थर पर सबसे ऊपर उनका स्वयं का नाम अंकित था, फिर पत्नी का और अन्त में बेटे बन्टी का।

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