गुरुवार, 7 जनवरी 2010

कहानी

सारस का दयालु दोस्त

बूढ़ा थिआन जंगल में जहाँ रहता था वहाँ ज्यादा आबादी नहीं थी। बस दो-चार घर थे। पास एक बड़ा तालाब था जहाँ सर्दियों में कई तरह के पक्षी आते थे। इन पक्षियों को देखना थिआन को बहुत अच्छा लगता था। पिछले कई सालों में थिआन की सारस से अच्छी दोस्ती हो गई थी। थिआन आने वाले मेहमानों के भोजन का प्रबंध भी करके रखता ताकि उन्हें किसी तरह की तकलीफ ना हो। थिआन ने सोचा कि क्यों ना इस बार सारस के जाने के साथ शहर तक हो आऊँ और देखता आऊँ कि शहर में लोग एक-दूसरे के साथ किस तरह रहते हैं। जब सारस जाने को हुए तो थिआन भी उनके साथ घर से निकल पड़ा।

शहर पहुँचकर थिआन ने देखा कि वहाँ का नजारा बदल गया है। अब बहुत-सी नई इमारतें बन गई हैं और छोटी गलियाँ तो जैसे गायब ही हो गई हैं। थिआन को तभी एक भिखारी दिखाई दिया। थिआन ने उससे कहा- क्यों भाई, क्या तुम अपने कपड़े मुझसे बदलोगे? भिखारी इस बात पर चकित होकर पूछा- भला एक भिखारी के कपड़े लेकर वह क्या करेगा। थिआन ने बताया कि भिखारी के कपड़ों में उसे लोगों का व्यवहार परखने में आसानी होगी। भिखारी ने अपने फटे-पुराने कपड़े थिआन को दे दिए और थिआन के नए कपड़े लेकर चला गया। थिआन भिखारी बनकर शहर में घूमने लगा।

शहर में तीन दिनों तक घूमते-घूमते थिआन का बुरा हाल हो गया। इन तीन दिनों में उसे किसी ने कुछ नहीं दिया। थिआन के पास जो पैसे थे वह कपड़ों के साथ ही उसने भिखारी को दे दिए थे। शहर में घूमते थिआन पर किसी ने दया नहीं दिखाई। एक शाम गलियों में घूमते हुए भूखे थिआन की नजर कोने के एक रेस्तराँ पर पड़ी। थिआन ने जाकर रेस्तराँ के दरवाजे पर दस्तक दी। रेस्तराँ का मालिक बाहर आया। थिआन ने बताया कि वह पिछले तीन दिनों से भूखा है और उसके पास एक फूटा पैसा नहीं है।
रेस्तराँ मालिक थिआन को भीतर ले गया और भरपेट भोजन करवाया।

तीन दिनों बाद थिआन ने खाना खाया था। उसने रेस्तराँ मालिक को धन्यवाद दिया और अपनी राह ली। दूसरे दिन फिर से थिआन को किसी ने कुछ नहीं दिया। शाम को भूख सताने लगी और थिआन शाम को फिर से रेस्तराँ पहुँच गया। रेस्तराँ मालिक ने थिआन को दूसरे दिन भी अच्छे से भोजन कराया। तीसरी...चौथी और पाँचवीं शाम को भी ऐसा ही हुआ। और फिर तो यह हर रोज का नियम ही हो गया। थिआन ने इस तरह एक महीना उस रेस्तराँ में खाना खाते हुए बिताया। रेस्तराँ का मालिक कभी भी इस बात से परेशान नहीं हुआ कि कोई बिना पैसा चुकाए खाना खा रहा है बल्कि हर शाम वह थिआन का स्वागत करता।

एक दिन थिआन ने रेस्तराँ के मालिक से कहा कि कल मैं दूसरी जगह जा रहा हूँ पर तुमने इतने दिनों तक मेरी जो मदद की उसका मैं आभारी हूँ। मैं तुम्हें एक छोटा-सा उपहार देना चाहता हूँ। यह कहकर थिआन ने एक कागज पर तीन सारस का चित्र बनाया। इसके बाद थिआन ने ताली बजा-बजाकर एक गीत शुरू किया तो चित्र में दिखने वाले सारस नाचने लगे। यह आश्चर्यजनक दृश्य था। थिआन ने कहा कि इससे तुम्हारे रेस्तराँ में खूब लोग आएँगे और आमदनी भी अच्छी होगी। तुम बहुत दयालु हो और मुझे खुशी है कि तुम दूसरों के बारे में सोचते हो। रेस्तराँ मालिक बोला कि मैं आपके लिए और क्या कर सकता हूँ।

थिआन ने कहा कि अगर तुम मेरे लिए कुछ करना ही चाहते हो तो दूसरों की इसी तरह मदद करते रहना और यह व्यवहार दूसरों को भी सिखाना। यह कहकर थिआन ने विदा ली। इसके बाद रेस्तराँ मालिक के यहाँ तस्वीर में नाचते सारस देखने आने वालों की भीड़ बढ़ती गई। जल्दी ही रेस्तराँ मालिक शहर का अमीर व्यक्ति हो गया। बहुत अमीर हो जाने पर भी रेस्तराँ में थिआन की टेबल पर शाम को हमेशा खाना परोसा जाता रहा ताकि कोई भी जरूरतमंद आदमी किसी भी वक्त आए तो उसका स्वागत किया जा सके।



ठगों के साथ ठगी
एक ठग था। उसके चार पुत्र थे। उसके ये पुत्र भी अपने पिता के समान ही ठग विद्या में पारंगत थे। इस प्रकार कुल संख्‍या में वे पाँच होते थे। एक दिन पाँचों ठग बैठे-बैठे किसी को ठगने की योजना बना रहे थे। तभी उन्हें दूर से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया।
वह आदमी अपने साथ एक काला बैल लिए था। उस आदमी को देखकर ठगों ने उसी को ठगने का विचार किया। योजनानुसार एक ठग वहीं बैठ गया, और चारों ठग थोड़ी दर जाकर बैठ गए। जब काले बैल को लेकर वह व्यक्ति निकला, तब पहले वाले ठग ने पूछा कि - 'बैल कितने रुपए का है?' उस आदमी ने कहा कि - 'पाँच सौ रुपए का है।'
इस पर ठग ने कहा - यह तो बहुत बड़ी कीमत है। वाजिब दाम बताओ। हम अच्छे दाम पर बैल ले लेंगे।
उस आदमी ने कहा - 'आप कितने में लेना चाहते हैं?' तब ठग ने कहा - यह तो पाँच रुपए का बैल है। यदि तुम्हें पसंद हो तो दे दो। और यदि विश्वास नहीं है, तो आप उन चार लोगों से भी पूछ सकते हैं कि दाम वाजिब है या नहीं।'
तब बैल वाले ने सोचा 'चलो ठीक है। उन चार लोगों के पास ही चलते हैं। वह पाँचवाँ ठग उस बैल वाले को अपने इन चारों साथियों के पास ले आया।
चारों ठगों ने इन दोनों की बातें सुनी और कहा कि यह बैल पाँच रुपए से अधिक का नहीं है। इसलिए अच्‍छा है कि तुम अपना बैल पाँच रुपए में ही दे दो।
इस प्रकार सभी ने मिलकर और उसे अपनी बातों में लेकर उस व्यक्ति को पाँच रुपए में ही ठग लिया। जब बैल वाले का बैल चला गया और उसे इस बात का पता चला कि ये पाँचों ठग थे, तो उसे बहुत दुख हुआ। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने निर्णय लिया कि वह उन ठगों को अवश्य ठग कर ही रहेगा। वह स्वयं भी एक ठग था।
धोखा खाए हुए ठग ने बाजार से एक साड़ी और साज-श्रृंगार का सामान लिया। साड़ी पहनकर तथा संपूर्ण श्रृंगार कर वह उन ठगों के घर से थोड़ी दूरी पर जाकर रोने लगा। जब उसके रोने की आवाज इन ठगों ने सुनी, तो वे तुरंत उसके पास आए।
उन्होंने देखा कि एक सुंदर स्त्री रो रही है। उसे रोता हुआ देखकर उन्हें दया आ गई। उन्होंने पूछा - तुम रो क्यों रही हो?'
तो उस स्त्री बने ठग ने कहा कि मैं अब क्या करूँ क्योंकि मेरे पतिदेव ने मुझे छोड़ दिया है।
अब मैं कहाँ जाकर रहूँ। यह सुनकर एक ठग बोला कि अगर आपकी इच्छा हो तो आप हम लोगों के पास रहने लगें।
वह ठग इतना ही चाहता था। इस प्रकार वह स्त्री बना ठग उन पाँचों ठगों के पास रहने लगा।
एक दिन चारों ठग बाहर गए हुए थे। घर में केवल ठगों के पिता ही बचे थे। तो उस स्त्री बने हुए ठग ने कहा - आप लोग तो बिल्कुल गरीब हैं। आपके घर में कुछ भी नहीं है। सुनकर ठगों के पिता ने कहा - तू क्या जाने मेरे पलंग के चारों पाए के नीचे सोने से भरे हुए चार कलश रखे हुए हैं।
स्त्री ने कहा - 'ऐसी बात है।' ठग बोला - 'हाँ बिल्कुल ऐसी ही बात है।'
फिर क्या था। वह स्त्री का रूप बदलकर अपने वास्तविक रूप में आ गया। तुरंत बाहर आ गया। और एक लाठी ले आया। उसने ठगों के पिता की खूब मरम्मत की, और एक कलश निकालकर चल दिया। कुछ देर बाद वे चारों ठग आए। जब उन्होंने अपने पिता की यह हालत देखी, तो उन्होंने पूछा कि पिताजी यह सब किसने किया।

पिता ने कहा कि - यह सब उस स्त्री ठग ने ‍किया है जो काले बैल वाला है। उसने कहा भी है कि वह कल फिर आएगा।'

ठगों ने जैसे ही अपने पिता की बात सुनी, वे बहुत क्रोधित हुए और कहने लगे कि हम कल कहीं नहीं जाएँगे। बेचारे ठग दूसरे दिन घर पर ही रुके रहे। दूसरे दिन एक आवाज सुनाई दी। उसकी आवाज से लगता था कि वह आवाज किसी वैद्य की है।

अत: उन चारों ठगों ने सोचा कि उस वैद्य को बुलाया जाए और अपने पिताजी की दवाई कराई जाए। उन्होंने वैद्य को बुला लिया। वैद्य ने आते ही ठगों के पिताजी को देखा और कहा कि चोट बहुत गहरी है। इसके लिए कुछ जड़ी-बूटियों की आवश्यकता होगी, जो मेरे पास नहीं है। यदि आप चाहें तो उन जड़ी-बूटियों को ला सकते हैं।
ठग पुत्रों ने कहा - हम ला सकते हैं।

वैद्य ने उन्हें चारों दिशाओं में अलग-अलग भेज दिया। इस प्रकार वह अपनी दूसरी चाल में भी सफल हो गया। घर में अब ठगों के पिता के पास केवल वैद्य ही रह गया था। उसने वही प्रक्रिया दुहराते हुए ठग-पुत्रों के पिता की फिर से अच्छी मरम्मत कर डाली और पुन: एक सोने से भरे कलश को निकालकर ले गया।

कुछ देर बाद जब चारों ठग पुत्र आए, तो उन्हें देखते ही सारी वस्तु-स्थिति का पता चल गया। वे कहने लगे कि हम कल कहीं नहीं जाएँगे। देखते हैं कि काले बैल वाला ठग कैसा है? वे चारों बैठे ही थे कि तभी उन्हें सुनाई दिया कि काले बैल वाला आ गया हूँ। इतना सुनते ही वे चारों उसे पकड़ने के लिए दौड़े। परंतु वह तो घोड़े पर बैठा था। उसने ऐड़ लगाकर सरपट दौड़ लगा दी। चारों ठग कम नहीं थे। वे भी घोड़े का पीछा करने लगे। कुछ देर बाद जब थक गए, तो वापस अपने घर की तरफ लौट पड़े। जब घर आकर देखा तो एक कलश फिर से उखाड़ लिया गया था।

पिता ने बताया कि जिसका तुम लोग पीछा कर रहे थे, वह काले बैल वाला व्यक्ति नहीं था। बल्कि काले बैल वाले ने ऐसा पढ़ा-लिखाकर उसे भेजा था, ताकि तुम लोग यहाँ से भाग जाओ, और हुआ भी यही।
जब तुम चारों भाग गए, तो वह आया।
उसने मुझे पुन: खूब पीटा और एक कलश फिर से निकाल ले गया।' यह सुनकर ठग पुत्रों को बहुत गुस्सा आया और कहने लगे कि कल हम नहीं जाएँगे। दूसरे दिन चारों घर पर ही रहे, किंतु कोई नहीं आया। उसी रात उस मुहल्ले में कोई कार्यक्रम हो रहा था। ठगों ने सोचा कि चलो-चलकर देखते हैं कि कौन सा कार्यक्रम हो रहा है।

चारों वहाँ कार्यक्रम देखने पहुँच गए। इधर काले बैल वाले ने अवसर पाकर पुन: पिता की मरम्मत कर डाली। उसका चौथा कलश भी निकाल ले गया। ठग-पुत्र जब वापस आए तो उन्होंने देखा कि पिता की हालत बहुत गंभीर है। अब ठग-पुत्र थककर रोने लगे। उन्हें कुछ भी सूझ नहीं रहा था।

उनके पिता ने कहा कि बेटे वह काले बैल वाला अब कभी नहीं आएगा। अब तुम लोग भी कसम खाओ कि कभी किसी को ठगोगे नहीं। क्योंकि बुरे काम का अंत सदैव बुरा ही होता है। ठग पुत्रों ने उस दिन से कसम खाई कि वे अब किसी को नहीं सताएँगे।
सौजन्य से - देवपुत्र



सबसे अच्‍छा कौन?
ओमप्रकाश बंछोर
NDNDएक बार वीर वन में बंदरों ने सभी पशु-पक्षियों की एक विशाल सभा बुलाई जिसमें इस विषय पर चर्चा रखी गई कि दुनिया भर में सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी कौन सा है? दूर-दूर से पशु-पक्षी सभा में आए। काफी देर तक बहुत से वक्ताओं ने अपनी-अपनी राय जाहिर की।
गधा बोला - मेरे विचार से शेर सबसे सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली है। मेंढक बोला - व्हेल मछली सर्वश्रेष्ठ प्राणी है वह पानी के हर प्राणी से ताकतवर और विशालकाय है।
तोते ने अपनी राय दी कि खरगोश हम सबमें बुद्धिमान है उसने तो शेर तक को हरा रखा है इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है।
इस तरह लंबी चर्चा चली तब बंदर ने कहा - मेरे विचार में तो मनुष्य धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और मैं इस बात को सिद्ध कर सकता हूँ। सभी जानवर बोले - वो कैसे?
बंदर बोला - मनुष्य के पास विवेक है, भाषा ज्ञान है, ताकत है, बुद्धि है इसलिए उसी को सर्वश्रेष्ठ मानना उचित है।

सभी पशु-पक्षी इस बात पर सहमत हो गए किंतु कौओं का दल चुप था। बंदर ने कौओं के सरदार से कहा कि अगर वह इस निर्णय से सहमत नहीं हैं तो अपने विचार जरूर रखें क्योंकि यह खुला मंच है सबको बोलने की आजादी है। कौआ बोला - आप मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं परंतु हमारी राय में वह दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है। कौए के इतना कहते ही सारी सभा में खुसर-फुसर होने लगी। बंदर बोला - तुम स्वयं अधम हो इसलिए तुम्हें मनुष्य भी अधम लग रहा है किंतु सच यही है कि सर्वश्रेष्ठ तो मनुष्य ही है।

आखिर लंबे विवाद के बाद सभा खत्म हो गई और कौए के मत का सबने विरोध किया। कुछ दिनों पश्चात बंदर पेड़ पर आराम कर रहा था अचानक उसने देखा सामने से एक मनुष्य दौड़ता हुआ आ रहा है उसके पीछे शेर लगा है। आदमी ने पेड़ के नीचे आकर बंदर से कहा ‍िक शेर उसकी जान ले लेगा। बंदर बोला - 'भाई! घबराओ मत! तुम मेरा हाथ पकड़कर मेरे पास आ जाओ।'

मनुष्य पेड़ पर चढ़ गया और बंदर के पास जाकर थर-थर काँपने लगा। बंदर ने उसे सांत्वना दी और शेर से कहा वह अब उसकी शरण में है शेर का भला इसी में है कि वह वापस चला जाए। शेर बोला 'बंदर! क्यूँ अपनी मुसीबत मोल ले रहे हो? इस आदमी को नीचे धक्का दे दे यह मेरा शिकार है।'

बंदर बोला - 'शेर! मैं शरण में आए की जान खतरे में नहीं डाल सकता।' शेर बोला - अरे मूर्ख बंदर! यह मनुष्य की जाति है और मनुष्य स्वार्थी होता है अब तू अपनी खैर मना।'

शेर पेड़ के नीचे ही बैठा रहा रात होने लगी बंदर को नींद लग गई तभी शेर बोला - 'ओ मनुष्य! तू क्या सोच रहा है? तुम दोनों में से एक को तो मुझे खाना ही है। तू बंदर को नीचे धक्का दे दे।

मनुष्य बोला - नहीं, नहीं इसने मुझे बचाया है। मैं इसे कैसे धक्का दे सकता हूँ?
शेर बोला - 'देख मानव! बंदर का तो आगे-पीछे कोई नहीं, अगर तू नहीं रहा तो मेरे घर वालों का क्या होगा? तेरा मकान, दुकान सब खत्म हो जाएगा। तू अपने बारे में सोच।' इतना कहते ही मनुष्य का स्वार्थ जाग उठा उसने तुरंत बंदर को पेड़ से धक्का दे दिया। गिरते हुए बंदर की नींद खुली और उसने पेड़ की डाल पकड़ ली।

लटके हुए बंदर को देख शेर ने उससे कहा - बंदर! देखी मानव की जात? मैंने पहले ही कहा था कि यह तुझे धोखा देगा। अभी भी वक्त है तू इस आदमी को नीचे धक्का दे दे?' परंतु बंदर अपनी बात पर अटल रहा बोला - मैं इसे नीचे धक्का नहीं दूँगा किंतु शेर मेरे भाई मैं अब पशु-पक्षियों की सभा दोबारा बुलाऊँगा और उसमें कौए की बात पर विचार गोष्ठी रखूँगा। सचमुच स्वार्थी मनुष्य दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है।'


सारस का दयालु दोस्त
रोहित बंछोर
बूढ़ा थिआन जंगल में जहाँ रहता था वहाँ ज्यादा आबादी नहीं थी। बस दो-चार घर थे। पास एक बड़ा तालाब था जहाँ सर्दियों में कई तरह के पक्षी आते थे। इन पक्षियों को देखना थिआन को बहुत अच्छा लगता था। पिछले कई सालों में थिआन की सारस से अच्छी दोस्ती हो गई थी। थिआन आने वाले मेहमानों के भोजन का प्रबंध भी करके रखता ताकि उन्हें किसी तरह की तकलीफ ना हो। थिआन ने सोचा कि क्यों ना इस बार सारस के जाने के साथ शहर तक हो आऊँ और देखता आऊँ कि शहर में लोग एक-दूसरे के साथ किस तरह रहते हैं। जब सारस जाने को हुए तो थिआन भी उनके साथ घर से निकल पड़ा।

शहर पहुँचकर थिआन ने देखा कि वहाँ का नजारा बदल गया है। अब बहुत-सी नई इमारतें बन गई हैं और छोटी गलियाँ तो जैसे गायब ही हो गई हैं। थिआन को तभी एक भिखारी दिखाई दिया। थिआन ने उससे कहा- क्यों भाई, क्या तुम अपने कपड़े मुझसे बदलोगे? भिखारी इस बात पर चकित होकर पूछा- भला एक भिखारी के कपड़े लेकर वह क्या करेगा। थिआन ने बताया कि भिखारी के कपड़ों में उसे लोगों का व्यवहार परखने में आसानी होगी। भिखारी ने अपने फटे-पुराने कपड़े थिआन को दे दिए और थिआन के नए कपड़े लेकर चला गया। थिआन भिखारी बनकर शहर में घूमने लगा।

शहर में तीन दिनों तक घूमते-घूमते थिआन का बुरा हाल हो गया। इन तीन दिनों में उसे किसी ने कुछ नहीं दिया। थिआन के पास जो पैसे थे वह कपड़ों के साथ ही उसने भिखारी को दे दिए थे। शहर में घूमते थिआन पर किसी ने दया नहीं दिखाई। एक शाम गलियों में घूमते हुए भूखे थिआन की नजर कोने के एक रेस्तराँ पर पड़ी। थिआन ने जाकर रेस्तराँ के दरवाजे पर दस्तक दी। रेस्तराँ का मालिक बाहर आया। थिआन ने बताया कि वह पिछले तीन दिनों से भूखा है और उसके पास एक फूटा पैसा नहीं है।
रेस्तराँ मालिक थिआन को भीतर ले गया और भरपेट भोजन करवाया।

तीन दिनों बाद थिआन ने खाना खाया था। उसने रेस्तराँ मालिक को धन्यवाद दिया और अपनी राह ली। दूसरे दिन फिर से थिआन को किसी ने कुछ नहीं दिया। शाम को भूख सताने लगी और थिआन शाम को फिर से रेस्तराँ पहुँच गया। रेस्तराँ मालिक ने थिआन को दूसरे दिन भी अच्छे से भोजन कराया। तीसरी...चौथी और पाँचवीं शाम को भी ऐसा ही हुआ। और फिर तो यह हर रोज का नियम ही हो गया। थिआन ने इस तरह एक महीना उस रेस्तराँ में खाना खाते हुए बिताया। रेस्तराँ का मालिक कभी भी इस बात से परेशान नहीं हुआ कि कोई बिना पैसा चुकाए खाना खा रहा है बल्कि हर शाम वह थिआन का स्वागत करता।

एक दिन थिआन ने रेस्तराँ के मालिक से कहा कि कल मैं दूसरी जगह जा रहा हूँ पर तुमने इतने दिनों तक मेरी जो मदद की उसका मैं आभारी हूँ। मैं तुम्हें एक छोटा-सा उपहार देना चाहता हूँ। यह कहकर थिआन ने एक कागज पर तीन सारस का चित्र बनाया। इसके बाद थिआन ने ताली बजा-बजाकर एक गीत शुरू किया तो चित्र में दिखने वाले सारस नाचने लगे। यह आश्चर्यजनक दृश्य था। थिआन ने कहा कि इससे तुम्हारे रेस्तराँ में खूब लोग आएँगे और आमदनी भी अच्छी होगी। तुम बहुत दयालु हो और मुझे खुशी है कि तुम दूसरों के बारे में सोचते हो। रेस्तराँ मालिक बोला कि मैं आपके लिए और क्या कर सकता हूँ।

थिआन ने कहा कि अगर तुम मेरे लिए कुछ करना ही चाहते हो तो दूसरों की इसी तरह मदद करते रहना और यह व्यवहार दूसरों को भी सिखाना। यह कहकर थिआन ने विदा ली। इसके बाद रेस्तराँ मालिक के यहाँ तस्वीर में नाचते सारस देखने आने वालों की भीड़ बढ़ती गई। जल्दी ही रेस्तराँ मालिक शहर का अमीर व्यक्ति हो गया। बहुत अमीर हो जाने पर भी रेस्तराँ में थिआन की टेबल पर शाम को हमेशा खाना परोसा जाता रहा ताकि कोई भी जरूरतमंद आदमी किसी भी वक्त आए तो उसका स्वागत किया जा सके।

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