शनिवार, 9 जनवरी 2010

विशेष

खौफ के वो 77 दिन
समुद्री रास्तों पर लूट करने और लोगों को बंधक बनाने वालों को सारी दुनिया पाइरेट्स कहती है, लेकिन वे खुद को पाइरेट्स नहीं मानते। वे कहते हैं वी आर नॉट पाइरेट्स, वी आर सोल्जर्स। हम कहते तो उन्हें समुद्री डाकू ही हैं लेकिन उनका गेटअप ट्रेडिशनल डाकुओं से बिल्कुल अलग होता है। वे लैंड क्रूजर, मर्सडीज जैसी लग्जरी कारों में चलते हैं। वे भले ही सोमालिया जैसे गरीब देश के वासी हों लेकिन उनके घर किसी बंगले से कम नहीं होते। कुछ ऐसा ही कहना है कानपुर के पुलकित का जिसने सोमालिया पाइरेट्स की कैद में 77 दिन गुजारे। लुटेरों की कैद से रिहा होकर घर लौटे पुलकित के शब्दों में..

7 अक्टूबर 2009 को हमारा शिप सिंगापुर से चला था। हमारे शिप पर कुल 21 लोग थे। 15 अक्टूबर को अचानक हमारे शिप पर पाइरेट्स ने अटैक कर दिया। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते हमारा शिप हाईजैक हो चुका था। हथियारों से लैस बामुश्किल 15 लोगों ने हमें बंधक बना लिया था। वैसे मैंने पिछले कुछ दिनों से समद्री रास्तों पर पाइरेट्स के कहर के बारे में काफी सुन रखा था लेकिन इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि यह हमारे साथ भी हो सकता है।

हाइजैक करने के बाद वे लोग हमारे शिप को सोमालिया में ले गए। इसके बाद उन लोगों ने हमारा सारा सामान लूट लिया। कपड़े, हमारे पैसे, लगेज, इवेन लैपटाप और सीडीज भी लूट ली। कुल मिलाकर हर वो चीज जिसे वे ले सकते थे उन्होंने हमसे छीन लिया। यहां तक वाशिंग मशीन तोड़कर अंदर पड़े कपड़े हों या फिर टूथ पेस्ट और ब्रश भी। अब हम भी करते तो करते क्या। हमारे हाथ में कुछ रह भी तो नहीं गया था, सो सब कुछ उन्हें दे दिया। बस मन में यही था कि हमें कम से कम जिंदा तो छोड़ दें। उन्होंने सिर्फ सामान लूटा ही नहीं बल्कि बरबाद भी काफी किया।

पहले तो हमें लगा कि यह लूट-पाट ही इन पाइरेट्स का मकसद है लेकिन बाद में आभास हुआ कि यो तो सिर्फ ट्रेलर था। शिप पर मौजूद पाइरेट्स ने शिप को हाईजैक किए जाने की सूचना बड़ी ही खुशी के साथ अपने लीडर को दी। फिर क्या था कुछ देर बाद वह भी हमारे शिप पर आ गया। उसने हमारी शिपिंग कम्पनी से शिप को फ्री करने के बदले 7 मिलियन डॉलर रेनसम के रूप में मांगे। तब हमें इस बात का आभास हुआ कि इनके इरादे तो कुछ और ही हैं। इसके बाद शुरू हुआ उनके जुल्मों सितम का सिलसिला।

मैंने जब मचर्ेंट नेवी को अपने करियर के रूप में चुना था तो कभी नहीं सोचा कि मुझे यह दिन भी देखना पड़ेगा। सोचा था कि लाइफ एकदम मस्त हो जाएगी। लेकिन शिप पर बिताए वो 75 दिन मेरे लिए किसी सजा से कम नहीं थे। हमें दिन में तीन टाइम खाना और जूस वगैरह मिलता है लेकिन पाइरेट्स ने सब कुछ बंद कर दिया। हमें बस एक बार खाने को मिलता। जो चावल वो हमें खाने को देते उसमें इतनी स्मेल होती कि गले से नीचे उतारना जहर निगलने से कम नहीं होता। अब भूखे रहते तो कब तक रहते, सो उस तरह का खाना खाना हमारी मजबूरी बन गया। सबसे दर्दनाक तक होता जब हमें एक ही जगह पर स्टेचू बने रहना पड़ता। हमें टहलने की भी इजाजत नहीं थी। यातनाओं के इस दौर में कुछ ऐसी भी बुरी यादें जुड़ी हैं जिन्हें शायद जिंदगी भर नहीं भूल सकता। जब हमें पेशाब लगती तो वो ट्वॉलट जाने की इजाजत तक नहीं देते। कई दिनों तक तो हमें इसके लिए बॉटल का यूज करना पड़ता। फ्रेश होने जाना हो तो उन्हें बताकर जाते थे और अपनी जगह लौटकर फिर रिपोर्ट करते थे।

उन दिनों हमारे लिए हमारा शिप किसी नर्क से कम नहीं था, जबकि पाइरेट्स के लिए वह किसी स्वर्ग से कम न था। वे वहां खूब मस्ती करते। हमको परेशान करने में उन्हें और भी मजा आता था। जब हम सोने की कोशिश करते तो वो जोर-जोर से गाने बजाने लगते। खाना-पीना, सोना, जीना सबकुछ हराम हो चुका था। हम बस भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे कि किसी तरह से उन्हें रेनसम मिल जाए और हम इन चंगुल से आजाद होकर अपने घर पहुंच जाएं। कई बार तो समुद्र में कोई बड़ी मछली पकड़ में आती तो वो उसे कुक करवाते और पहले खुद खाते बाद में कुछ बचता तो हम लोगों को दे देते। रात में भी वे लोग काफी मस्ती करते थे। कई बार तो खाने के बाद चीजों को फैला देते थे। वोमेटिंग तक कर देते थे और बाद में हम लोगों को उठाकर हम लोगों से साफ करने को कहते थे।

पाइरेट्स नहीं, सोल्जर्स कहिए

कई बार किसी तरह हिम्मत बांधकर हमने उनसे बात भी की। हमने जब उनसे कहा कि वे फिशिंग करके भी अच्छा खासा कमा सकते हैं फिर यह काम क्यों करते हैं तो उनका जवाब था शिप हाईजैकिंग का बिजनेस अच्छा है। एक हाईजैक करने के बाद अच्छी रेनसम मिल जाती है। जिससे बिंदास जिंदगी जीते हैं। वे गरीब देश के जरूर हैं लेकिन उनके पास लैंड क्रूजर, मर्सडीज जैसी लग्जरी गाड़ियां हैं। बंगले हैं, उनके यहां के लोग उन्हें काफी अच्छा इंसान मानते हैं। वो उनकी हेल्प भी करते हैं। उनमें से एक ने तो खुद को पाइरेट्स मानने से इंकार करते हुए कहा कि वी आर नॉट पाइरेट्स, वी आर सोल्जर्स। हम अपने और अपने देश के लोगों के लिए यह सब कुछ करते हैं। खैर इस जुल्म सितम के बीच हमारे 75 दिन गुजर गए थे। अब तक हमारी शिपिंग कंपनी ने इन पाइरेट्स के साथ निगोसिएट करते हुए 2 मिलियन डॉलर रेनसम दे दिया था। हम सभी आजाद होकर अपने घर आ गए। अब बस भगवान से यही प्रार्थना है कि दोबारा इन पाइरेट्स के चंगुल में न फंसाए।

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