रविवार, 7 मार्च 2010

एक बच्चा कैसे खुश हुआ

ओमप्रकाश बंछोर
माँ बत्तख आश्चर्य से सोच रही थी कि क्या मुझसे अंडों को गिनने में कोई गलती हो गई? पर माँ बत्तख और ज्यादा कुछ सोचती इससे पहले सातवें अंडे से एक बच्चा बाहर निकल आया। यह सातवाँ बच्चा बाकी छः बच्चों से अलग था। भूरे पंख और आँखों पर पीलापन। बाकी छः नन्हे बत्तख बच्चों के बीच यह बड़ा अजीब लग रहा था। अपने इस अजीब से बच्चे को लेकर माँ बत्तख के मन में एक चिंता जरूर थी। माँ बत्तख जब अपने सातवें बच्चे को देखती तो उसे विश्वास नहीं होता कि यह उसी का बच्चा है। यह सातवाँ बच्चा बाकी के बीच बहुत अजीब दिखता था। इसकी आदतें भी अलग थी। खाना भी वह अपने बाकी भाइयों से ज्यादा खाता था और वह उनकी तुलना में उसका शरीर भी ज्यादा बड़ा था। दिन जैसे-जैसे बीत रहे थे सातवाँ बच्चा खुद को अलग-थलग पाने लगा। कोई भी भाई उसके साथ खेलना पसंद नहीं करता था। फार्म में बाकी सारे लोग उसे देखकर उसकी हँसी उड़ाते थे। हालाँकि माँ बत्तख अपने इस बच्चे को खुश करने की बहुत कोशिश करती थी, पर बाकी सभी लोगों के व्यवहार से वह उदास और दुखी रहने लगा। कभी-कभी माँ बत्तख कहती भी कि प्यारे बच्चे, तुम दूसरों से इतने अलग क्यों हो। यह सुनकर बच्चे को और भी बुरा लगता। कभी-कभी वह खुद से भी पूछता कि मैं दूसरों से इतना अलग क्यों हूँ। कोई भी तो मुझे पसंद नहीं करता है। उसे लगने लगा कि किसी को भी उसकी परवाह नहीं है।
फिर एक दिन सुबह वह बच्चा अपने फार्म से भाग निकला। एक पोखर के किनारे कुछ पक्षियों से उसने पूछा कि क्या तुमने कभी किसी भूरे पंख वाले बत्तख को देखा है। सभी ने मना करते हुए कहा कि हमने कभी तुम्हारे जैसा भद्दा बत्तख नहीं देखा। यह सुनकर भी उस बच्चे ने अपना धैर्य नहीं खोया। वह दूसरे पोखर गया। पर वहाँ भी उसे इसी तरह का जवाब मिला। यहाँ किसी ने उसे चेताया भी कि इंसानों से खबरदार रहना क्योंकि तुम उनकी बंदूक का निशाना बन सकते हो।
बच्चे को अहसास हुआ कि फार्म से भागकर उसने गलती की है। भटकते-भटकते एक दिन वह एक गाँव में किसी बूढ़ी महिला के पास पहुँच गया। महिला को दिखाई कम देता था। तो उसने इसे बत्तख समझकर अंडों के लालच में पकड़ लिया। पर इस बच्चे ने एक भी अंडा नहीं दिया। यह देखकर बुढ़िया के यहाँ रहने वाली मुर्गी ने बच्चे को बताया कि अगर बुढ़िया को अंडे नहीं मिले तो वह तुम्हारी गर्दन मरोड़ देगी। बच्चा यह सुनकर बहुत डर गया। फिर रात के वक्त वह बुढ़िया के यहाँ से भी भाग निकला।
एक बार फिर से वह अकेला था और उदास भी। उसे प्यार करने वाला कोई भी नहीं था। उसने खुद से कहा कि अगर कोई भी मुझे प्यार नहीं करता तो मैं सबसे छिपकर रहूँगा। यहाँ खाने को भी कोई कमी नहीं है। यह सोचकर उसने खुद को धीरज बँधाया। फिर वह जहाँ था वहाँ से उसने एक सुबह कुछ सुंदर हँसों को उड़ान भरकर दक्षिण की ओर जाते हुए देखा। सफेद और सुराहीदार गर्दन वाले पक्षियों को देखकर बहुत दिनों बाद बच्चे के चेहरे पर खुशी आई। उन पक्षियों को देखकर बच्चे ने सोचा कि मैं एक दिन के लिए भी अगर इनकी तरह सुंदर हो जाऊँ तो सब मुझे पसंद करने लगेंगे।
सर्दियाँ बहुत तेज हुई तो जहाँ यह नन्हा बच्चा रह रहा था, उस जगह दाना-पानी कम हो गया। खाने की कमी से यह बच्चा कमजोर हो गया। भोजन की तलाश में उसे बाहर निकलना पड़ा। तभी एक किसान की नजर उस पर पड़ी। किसान दयालु था और कुछ महीनों तक बच्चे को किसान ने अपने यहाँ रखकर पाला। कुछ महीने बीते तो वह काफी बड़ा हो गया था।
जब कठिन दिन बीत गए तो किसान ने उस पंछी को एक तालाब में ले जाकर छोड़ दिया। तालाब के पानी में जब उसने अपने-आप को देखा तो वह चकित रह गया। वह बावला हो गया- मैं सुंदर हूँ... मैं सुंदर हूँ...। वाकई वह अब बड़ा हो गया था और सुंदर भी। फिर जब दक्षिण गए हंस वापस उत्तर की तरफ लौटने लगे, तो इसने उन्हें देखा। उन्हें देखते ही इसे खयाल आया कि वह तो बिलकुल उड़ने वाले हंसों की तरह है।
हंसों ने भी अपने इस जोड़ीदार को पहचान लिया और उसे अपने साथ ले लिया। फिर किसी बूढ़े हंस ने उससे पूछा कि इतने दिनों वह कहाँ रहा तो वह बोला कि यह लंबी कहानी है। बाद में सुनाऊँगा। हंसों का यह झुंड एक तालाब के किनारे उतर गया। वहाँ इस सुंदर से हंस को देखकर बच्चे चिल्ला रहे थे कि देखो वह हंस कितना सुंदर लग रहा है। हंस ने यह सुना तो शरमाकर मुस्कुरा दिया। कहानी खत्म।

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