सोमवार, 5 अप्रैल 2010

सलोनी ने सुनाई एक कहानी


एक समय की बात है। एक गाँव में एक छुटकी-सी लड़की रहती थी जिसका नाम सलोनी था। सलोनी को बचपन से ही कहानियाँ सुनने का बहुत शौक था। वह अपनी दादी से कहानियाँ सुनती थी। दादी कभी उसे खट्टी कहानी सुनाती तो कभी मीठी कहानी सुनाती। सलोनी जिस राज्य में रहती थी वहाँ के राजा को भी कहानियों का बहुत शौक था। राजा को कहानियाँ पढ़ने के लिए एकांत पसंद था और इसलिए महल में किसी को बिना आज्ञा घुसने की मनाही थी। राजा हमेशा नई-नई कहानियों की तलाश में रहता था। सलोनी ने दादी और अपनी सहेलियों से सुना था कि राजा को बहुत सारी कहानियाँ याद भी हैं।

सलोनी के मन में बड़ी इच्छा थी कि वह भी जाकर राजा को कहानी सुनाए और उनसे कहानियाँ सुने, पर एक छोटी-सी लड़की को राजा के महल में कौन जाने देता। फिर सलोनी को द्वारपाल पहचानते भी नहीं थे। सलोनी ने एक बार कोशिश भी की, पर द्वारपाल ने यह कहकर मना कर दिया कि बेटी, तुम्हें भीतर जाने देंगे तो हमारी नौकरी चली जाएगी। सलोनी को मालूम था कि नगर के सेठ और पंडित-पुजारी राजा को कहानियाँ सुनाने जाते हैं। उसने द्वारपाल से कहा कि दूसरों को तो तुम राजा के पास जाने देते हो, मुझे क्यों रोकते हो? द्वारपाल ने कहा- क्योंकि राजा जी उन्हें जानते हैं बेटी। तुम्हें अगर महाराज पहचानते तो हम तुम्हें भी भीतर जाने देते। तो सलोनी को महल में जाने नहीं मिला। सलोनी ने सोचा क्या राजा को दरबार में जाकर कहानी सुना दूँ, पर तभी खयाल आया कि वहाँ तो राजा इतने व्यस्त रहते थे कि वहाँ तो उन्हें कहानी सुनाई ही नहीं जा सकती है।

सलोनी ने तरकीब लड़ाई। उसने राजा के रसोइए को ढूँढ निकला। गणेश रसोइया राजा का खाना बनाता था। उसने भी राजा से कुछ कहानियाँ सुनी थीं। सलोनी ने पूछा तो गणेश ने हँसते-हँसते बताया कि राजा तो बहुत ही मजेदार कहानियाँ सुनाते हैं, उनके पास तो कहानियों का खजाना है खजाना।

सलोनी ने रसोइए से पूछा कि भैया क्या तुम मुझे महल के भीतर ले चल सकते हो, मैं राजा को एक कहानी सुनाना चाहती हूँ? रसोइए ने कहा- नहीं बेटा, राजा अगर गुस्सा हो गए तो मेरी तो नौकरी ही चली जाएगी। सलोनी उदास हो गई। सलोनी ने हार नहीं मानी, उसने राजा के पंडित से पूछा कि आप मुझे ले चलिए ना महल के अंदर ताकि मैं राजा को अपनी कहानी सुना सकूँ। पंडित ने कहा बेटी, राजा को कहानियाँ सुनने का शौक तो है, पर मुझसे द्वारपालों ने तुम्हारे बारे में पूछा तो मैं क्या कहूँगा? सलोनी उदास होकर बैठ गई। फिर भी उसके मन में विश्वास था कि कोई तो तरीका होगा, जिससे राजा को कहानी सुनाई जा सके।

सोचते-सोचते पूरा सप्ताह गुजर गया। गर्मियों के दिनों की शुरुआत हुई और एक दिन राजा की तरफ से घोषणा हुई कि राजा नई कहानी सुनना चाहता है और जो कोई भी राजा को नई कहानी सुनाएगा, उसे राजा की तरफ से मुँहमाँगा इनाम दिया जाएगा। सलोनी ने घोषणा सुनी तो खुशी से फूली नहीं समाई। उसे अपनी कहानी सुनाने का मौका मिल गया था।

दादी, मुझे राजा को कौन-सी कहानी सुनाना चाहिए सलोनी सोच में पड़ गई। उसने अपनी सहेलियों से पूछा। सलोनी की एक सहेली राधा राजा को परी की कहानी सुनाना चाहती थी। नगर में बड़े लोग भी थे जो राजा को कहानी सुनाने को उत्सुक थे। नगर के बड़े सेठ, पुजारी, सुनार, लुहार, दर्जी सभी ने अपनी कहानियाँ तैयार कर ली थीं। सभी को इनाम का लालच था, पर सलोनी को इनाम से ज्यादा राजा को अपनी कहानी सुनाने की चिंता थी। आखिर वह दिन भी आया, जब सभी को अपनी-अपनी कहानी सुनाना थी।

सभी लोगों ने अपनी-अपनी कहानी सुनाई पर राजा को मजा नहीं आया। सभी कहानिया पुरानी थी और राजा ने कहीं ना कहीं सुन रखी थी। इसके बाद सलोनी की बारी आई। सलोनी ने सोचा ‍कि राजा को पुरानी कहानी सुनाकर खुश नहीं किया जा सकता है। इसलिए उसने राजा को नई कहानी सुनाई। उसे राजा को कहानी सुनाने में जो मुश्किलें आईं उस घटना की कहानी बनाकर सुनाना शुरू की। राजा ने ऐसी सच्ची कहानी पहली बार सुनी थी।

उन्हें सलोनी की कहानी सुनकर दुख हुआ कि एक लड़की राजा को अच्छी कहानी सुनाना चाहती है और राजा के पास समय ही नहीं है। राजा ने उत्सुकता से पूछा फिर क्या लड़की राजा को कहानी सुना पाई? सलोनी बोली - आखिर में लड़की ने राजा को कहानी सुनाई और कहानी राजा को पसंद भी आई। सलोनी की कहानी खत्म हुई तो राजा ने कहा कि सचमुच ऐसी कहानी उन्होंने आज तक नहीं सुनी थी। उन्होंने सलोनी को एक रंग-बिरंगे फूलों वाली ड्रेस भी उपहार में दी।

राजा ने सलोनी से यह भी कहा कि वह महल आए ताकि राजा अपनी कहानियाँ सलोनी को सुना सके। इसके बाद सलोनी और राजा में मित्रता हो गई। इस तरह नई कहानी खत्म हुई।

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