शनिवार, 10 अप्रैल 2010

प्रेरक व्यक्तित्व- सुरेश रैना

'डायरी पढ़कर मम्मी खूब रोई'

दोस्तो, जब मैं छोटा था तभी से क्रिकेट के प्रति मेरी दिलचस्पी थी। थोड़ा बड़ा हुआ तो मैंने अपना कीटबैग बना लिया था। मुझे अपना कीटबैग पीठ पर लटकाकर घूमना अच्छा लगता था। जब मैं लखनऊ के होस्टल में था तब मेरे पास एक स्कूटी थी। अपनी स्कूटी को लखनऊ की भीड़भरी सड़क से मैदान तक ले जाते हुए यही सोचता था कि स्कूटी एक गेंद है, जिसे मुझे बाउंड्री तक पहुँचाना है। ट्रैफिक में गाड़ी चलाते हुए गैप ढूँढकर चलते हुए भी मेरे दिमाग में क्रिकेट ही दौड़ता रहता था। क्रिकेट से मेरा लगाव धीरे-धीरे बढ़ता ही गया और आज नतीजा आपके सामने है कि मैं भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा हूँ।
मेरा आप सभी से यही कहना है कि आप जो भी बनना चाहते हैं उसके लिए दिल लगाकर मेहनत करो। आप जो चाहते हो आपको जरूर मिलेगा। दोस्तो, आज आप सभी मुझे भारतीय क्रिकेट टीम में खेलते हुए देखते हो, पर इसके लिए मैंने खूब कड़ी मेहनत की है। मैंने घर छोड़ा और होस्टल में रहा। परिवार से दूर रहकर मेहनत करना मुश्किल होता है, यह बोर्डिंग स्कूल में रहने वाले स्टूडेंट समझते होंगे। मुझे इस बात पर गर्व है कि बचपन में खेल को करियर बनाते हुए भी मैं पढ़ाई में अच्‍छा स्कोर करता था। इसकी वजह यह थी कि मेरे सभी भाई-बहन पढ़ाई में टॉप स्कोरर थे।
इसलिए उन्हें देखकर मुझे लगता था कि मुझे भी अच्छा स्कोर करना चाहिए। दोस्तो, मेरी बहन रेणु मेरी अच्छी दोस्त थी, वह हमेशा मुझे पढ़ाई की याद दिलाती रहती थी। उसका कहना था कि क्रिकेट और पढ़ाई के बीच बैलेंस बनाते आना चाहिए। आप सभी को जिस तरह मम्मी से ज्यादा प्यार मिलता है वैसे ही मेरी मम्मी मेरी सबसे बड़ी सपोर्टर थी। उन्होंने किसी भी बात के लिए मुझे कभी नहीं डाँटा, बल्कि वे हमेशा मुझे अच्छे काम पर शाबासी देती थीं।
दोस्तो, मुझे क्रिकेट खेलने के लिए मुझे पहले बैठकर अपना होमवर्क और पढ़ाई पूरी करना होती थी, तभी क्रिकेट खेलने की अनुमति मिलती थी। मैं जल्दी-जल्दी ध्यान लगाकर अपना होमवर्क कर देता था ताकि क्रिकेट खेल सकूँ। जब मैं क्रिकेट को अपना करियर बनाने के उद्देश्य से मुरादनगर (गाजियाबाद) से लखनऊ जा रहा था तो मेरे परिवार में सभी मुझे लेकर चिंतित थे कि यह भोला लड़का पता नहीं होस्टल में कैसे रह पाएगा, पर मैंने न केवल चुनौतियों का सामना किया, बल्कि अच्छा क्रिकेट खेलकर भी दिखाया। मैंने यह सीखा है कि किसी भी तरह की परिस्थिति हो, उससे घबराने की बजाय डटकर उसका मुकाबला करना चाहिए। जो मुकाबला करता है जीत उसी को मिलती है।
मैं मानता हूँ कि होस्टल की जिंदगी मेरे लिए बहुत कठिन थी, पर वहाँ मैंने बहुत कुछ सीखा। होस्टल में दूसरों के साथ कमरा शेअर करना, अपने कपड़े खुद धोना, अपनी तबीयत का ध्यान रखना, अपने सारे काम खुद करना ऐसी चीजें हैं जो बहुत सीखने का मौका देती हैं। घर पर तो ये सारी सुविधाएँ आपको मम्मी या पापा उपलब्ध करवा देते हैं, पर होस्टल में ऐसा नहीं होता। इसके अलावा होस्टल में सीनियर्स का भी सम्मान करना पड़ता है। जब मैं होस्टल में था तब कुछ सीनियर साथियों ने मेरी परेड भी ली, पर मैंने मैदान नहीं छोड़ा, क्योंकि मेरा लक्ष्य एक अच्छा क्रिकेटर बनना था।
एक बार मेरी यह डायरी मेरी मम्मी के हाथ लग गई थी और जब उन्होंने डायरी पढ़ी तो वे बहुत रोई थीं, क्योंकि मैंने यह डायरी में अपनी सारी तकलीफें लिखी थीं, जो होस्टल में मुझे हुई थीं। दोस्तो, जब मैं होस्टल में रहता था तो डायरी लिखता था। मैं हर रोज की मुश्किलें और अपना काम इस डायरी में नोट करता था। इससे हिसाब रहता था कि मैंने आज क्या-क्या सफलता पाई और क्या काम करना बाकी रह गया। मेरा मानना है कि आप सभी को भी डायरी लिखने की आदत डालना चाहिए।
डायरी से जुड़ा यह किस्सा यह भी है कि एक बार मेरी यह डायरी मेरी मम्मी के हाथ लग गई थी और जब उन्होंने डायरी पढ़ी तो वे बहुत रोई थीं, क्योंकि मैंने यह डायरी में अपनी सारी तकलीफें लिखी थीं, जो होस्टल में मुझे हुई थीं। पर बाद में उन्होंने खुश होकर मुझसे कहा था कि उन्हें अपने बेटे पर नाज है जो इतनी मुश्किलों के बावजूद क्रीज पर बना रहा और क्रिकेटर बनने में सफल हुआ।
आज सुरेश रैना को ऊँचे छक्के लगाते देखकर सभी को अच्छा लगता है, पर दोस्तो जिंदगी में सफल होने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। छोटे-छोटे काम दिल लगाकर करते जाओ तो एक दिन आप जो भी बनना चाहते हो वहाँ जरूर पहुँच जाओगे। अब बातें बहुत हुई, चलते-चलते कुछ काम की बातें यह कि इन छुट्‍टियों में बहुत सारी क्लासेस चल रही हैं और क्रिकेट कैंप भी आपका रास्ता देख रहे हैं। तो कुछ न कुछ रोचक जरूर करना।

आपका दोस्त
सुरेश रैना

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