शुक्रवार, 28 मई 2010

शेख चिल्ली ‍की चिट्‍ठी

-अरुण कुमार बंछोर

बच्चो, तुमने मियाँ ‍शेख चिल्ली का नाम सुना होगा। वही शेख चिल्ली जो अकल के पीछे लाठी लिए घूमते थे। उन्हीं का एक और कारनामा तुम्हें सुनाएँ।
मियाँ शेख चिल्ली के भाई दूर किसी शहर में बसते थे। किसी ने शेख चिल्ली को बीमार होने की खबर दी तो उनकी खैरियत जानने के लिए शेख ने उन्हें खत लिखा। उस जमाने में डाकघर तो थे नहीं, लोग चिट्‍ठियाँ गाँव के नाई के जरिये भिजवाया करते थे या कोई और नौकर चिट्‍ठी लेकर जाता था।
लेकिन उ‍न दिनों नाई उन्हें बीमार मिला। फसल कटाई का मौसम होने से कोई नौकर या मजदूर भी खाली नहीं था अत: मियाँ जी ने तय किया कि वह खुद ही चिट्‍ठी पहुँचाने जाएँगे। अगले दिन वह सुबह-सुबह चिट्‍ठी लेकर घर से निकल पड़े। दोपहर तक वह अपने भाई के घर पहुँचे और उन्हें चिट्‍ठी पकड़ाकर लौटने लगे।
उनके भाई ने हैरानी से पूछा - अरे! चिल्ली भाई! यह खत कैसा है? और तुम वापिस क्यों जा रहे हो? क्या मुझसे कोई नाराजगी है?
भाई ने यह कहते हुए चिल्ली को गले से लगाना चाहा। पीछे हटते हुए चिल्ली बोले - भाई जान, ऐसा है कि मैंने आपको चिट्‍ठी लिखी थी। चिट्‍ठी ले जाने को नाई नहीं मिला तो उसकी बजाय मुझे ही चिट्‍ठी देने आना पड़ा।
भाई ने कहा - जब तुम आ ही गए हो तो दो-चार दिन ठहरो। शेख चिल्ली ने मुँह बनाते हुए कहा - आप भी अजीब इंसान हैं। समझते नहीं। यह समझिए कि मैं तो सिर्फ नाई का फर्ज निभा रहा हूँ। मुझे आना होता तो मैं चिट्‍ठी क्यों लिखता?

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