सोमवार, 3 मई 2010

रानी मुखर्जी की गुडि़या



  (अरुण कुमार बंछोर)
हैं..??? तुम लोग मुखर्जी हो? आश्चर्य से मिसेज शिप्रा माथुर का मुंह खुला रह गया।

अरे नाहीं नाहीं बहू जी ऊ तो गांव मां एकरा बाप इस्कूल लई गवा रहै तैं जब नाम पूछेन ई खुदै आपन नाम धर लिहिन, एकरा घर का नाम तो बिट्टी है

ओह! आप तो बहुत इंटेलिजेंट हैं।

गेहुएं रंग पर चमकदार आंखें और चमक गई। यही कोई सात-आठ बरस की उम्र, घुटनों से नीचे तक की जीर्ण-शीर्ण फ्राक जो स्वयं इस बात की गवाह थी कि किसी की उतरन है, नंगे पैर और हाथों में एक अपने से पुरानी गुडिया पकडे हुये थी। गुडिया काफी प्राचीन पद्धति से बनी हुई थी। कपडे को छडी की तरह लपेट-लपेटकर, फिर उसे बीच से पलटकर दोगुना करके उसके अंदर से फंसाकर दो छडीनुमा बाहें निकाल दी गई थीं। फिर उस चेहरे पर, यदि उसे चेहरा कहा जाये तो, काले रंग से बाल और आंखें तथा लाल रंग से होंठ और सिंदूर बनाने की चेष्टा की गई थी। किन्तु अनेक बार नहलाये जाने के कारण लाल और काले रंग का मिला-जुला एक अजीब सा गेरुए रंग का सम्मिश्रण, गुडिया को लगभग प्रेतनी जैसा स्वरूप प्रदान कर रहा था।

आप पढती हैं बेटे?

बच्ची यानी रानी मुखर्जी के बोलने से पहले ही उसकी मां ने जवाब दिया, बहू जी एकरा कल्लू मास्टर कहत रहा बिटीवा बहुत हुसियार है। एकरा सहर मा पढाएव तैं ई बहिनजी हुइ जइहैं। बिट्टी की मां को बिट्टी में भविष्य की बहिन जी नजर आ रही थी।

बिट्टी बहू जी का बारा का पहाडा तनिक सुना दे।

बारा का बारा, बारा दूनी चौबिस, बार तियांई छत्तिस..

बिट्टी भरतनाट्यम की मुद्रा में गर्दन हिला-हिला कर पहाडा सुनाने लगी।

बस बस बस। मिसेज माथुर ने जल्दी से पहाडा बंद कराया नहीं तो बिट्टी की मां के सामान्य से काफी अधिक लंबे और भयंकर पीले दांत पहाडे के हर स्टेप के साथ थोडा और अधिक निकलते आ रहे थे।

ठीक है, बच्ची तो हमें पसंद है पर गोद लेने का मतलब समझती हो?

हां जानित काहे नाहीं बहू जी! माने अब एकरा महतारी बाप तुंई लोग हम लोगन नाहीं। बिट्टी की मां का स्वर थोडा कांप गया, जिसे छुपाने की चेष्टा में वह फिर से हंसने लगी। फिर वही पीले दांत!

उनके चेहरे पर आये भाव में न जाने ऐसा क्या था कि बिट्टी की मां ने हंसना बंद कर दिया। हां, और तुम लोगों का इससे कोई लेन देना नहीं रहेगा।

मिसेज माथुर सारी बातें साफ कर लेना चाह रही थीं।

वैसे तो उनके एक बेटा था पर घर में एक लडकी विशेषत: राहुल के लिये एक साथी की कमी उन्हें बहुत अखरती थी। अब की रक्षाबंधन पर राहुल कितना उदास था। समझा बुझाकर अभिनव के घर खेलने भेजा तो वहां से थोडी ही देर में लौट आया था। आते ही रैकेट उधर फेंका और जूते पहने-पहने ही बेड पर लेट गया। पूछने पर पहले तो उल्टी सीधी बातें बनाता रहा फिर बाद में बताया कि उसकी मम्मी ने कहा कि बेटा अभिनव आज राखी की वजह से बिजी है, खेल नहीं पायेगा। राहुल के पापा ने भी माना कि वह फस्ट्रेटेड हो रहा है। फस्ट्रेटेड! पर क्यों? ऐसा क्या है जो हम उसे दे नहीं पा रहे हैं। कम्पनी न होने की वजह से शायद लोनली महसूस करता है, ऐसा श्रेया जी भी उस दिन कह रही थीं। राहुल की टीचर हैं, उनसे ज्यादा राहुल की साइकलॉजी कौन समझेगा! अकेला होने की वजह से दोस्त भी कितना ब्लैकमेल करते हैं! घर में ही एक साथी मिल जाये तो राहुल को दोस्तों की मनमानी तो नहीं सहनी पडेगी। लडकी भी उन्हें आकर्षित कर रही थी। मुखाकृति बडी मोहिनी है, यदि ढंग से रहेगी तो आने जाने वालों को भी मिसफिट नहीं लगेगी। घर के पास वाले कन्या विद्यालय में भरती हो जायेगी, वहां छुट्टी भी जल्दी हो जाती है थोडा घर के काम में भी हांथ बंटा लेगी और जब बडी होगी तो दस बीस हजार रुपये शादी में खर्च कर दिये जायेंगे।

बिट्टी हम लोगन से कब्बौ कब्बौ मिल तो सकती है?

अनाकर्षक, चेहरे को तरलता से बचाने की भरपूर कोशिश के बावजूद उसकी आवाज में कंपकंपाहट बढ गई थी।

हां हां कभी कभार, पर साथ ले जाने का कोई चक्कर नहीं होगा। उनकी मुद्रा से लग रहा था कि अभी से सब कुछ स्पष्ट कह देना ठीक होगा।

ई बहिन जी बन जायें बस हम लोगन का यहै ठीक है।

ठीक है फिर बच्ची को यहीं छोड दो और लिखा-पढी के बाद गांव चले जाना। तब तक तुम लोग नन्दू के साथ उसके क्वार्टर में रह सकते हो। मिसेज माथुर उस औरत से जल्द से जल्द पीछा छुडाना चाह रही थीं।

बिट्टी ने एक बार मां को देखा दूसरे ही पल मिसेज माथुर ने एक सुंदर सी बारबी डाल उसे इशारे से दिखायी। आश्चर्य चकित आंखें उस प्रलोभन को ठुकरा न पाई और मुग्ध भाव से वह उनके पीछे पीछे चल दी। इस बीच वह हडप्पाकालीन गुडिया उसके हाथों से छूट कर कहां गिर पडी थी, यह बेचारी बिट्टी बिल्कुल ही नहीं जान सकी।

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