शुक्रवार, 7 मई 2010

वैभवपूर्ण ओरछा


ओरछा का वैभव पत्थरों में जैसे कैद हो गया है, समय यहाँ ठहरा हुआ लगता है और हम चले जाते हैं बरसों बरस पीछे, मध्यकाल के एक शहर में। जहाँ के मंदिरों और महलों की चमक को समय की धुंध भी धुँधला न सकी है। 16 से 17 वीं शताब्दी में बुंदेला शासकों द्वारा बनवाई गई ये इमारतें प्राचीन वैभव को बयाँ करती हैं।

ओरछा, 16 वीं शताब्दी में बुंदेला राजपूत रुद्र प्रताप के द्वारा बसाया गया था। उनके आगे के राजाओं ने शानदार इमारतें और भवन बनवाकर इसकी शान में चार चाँद लगा दिए। जिनमें राजा बीर सिंह जूदेव का नाम प्रमुख है। ये भवन बाहर से दिखने में जितने खूबसूरत हैं उतने ही अंदर से भी। भीतर से भी इनका सौंदर्य किसी मायने में कम नहीं है। मंदिरों और महलों में बुंदेला कला की खूबसूरत कलाकारी देखते ही बनती है। लक्ष्मीनारायण मंदिर और राजमहल की दीवारें और छतों की कलात्मकता यहाँ की समृद्धि की कहानी कहती है।

जहाँगीर महल
यह महल राजा बीर सिंह जूदेव ने 17 वीं शताब्दी में जहाँगीर के ओरछा आने के पहले बनवाया था। इसकी मजबूत दीवारों के साथ नाजुकी से बनी हुई छत्रियाँ कमाल का संतुलन बनाती हैं और इससे पूरी इमारत अत्यंत समृद्धिपूर्ण प्राभव देती है।

राज महल
चतुर्भुज के आकार का यह महल 17 वीं शताब्दी में मधुकर शाह ने बनवाया था। ऊपर की ओर शानदार छतरियाँ इसकी शोभा बढ़ाती हैं। अंदर धार्मिकता को लिए हुए शोख रंगों की अनोखी शिल्प कलाकृतियाँ हैं।

राय प्रवीन महल
राय प्रवीन राजा इंद्रमणि के दरबार में कवियित्री और संगीतकार थीं। शहंशाह अकबर उन पर मोहित हो गए और दिल्ली बुलवा लिया लेकिन राजा इंद्रमणि के लिए राय प्रवीण का प्यार देखकर अकबर नतमस्तक हो गए और उन्हें वापिस ओरछा भेज दिया। उनके लिए बनवाया हुआ यह महल आस-पास के पेड़ों और वातावरण को देखकर छोटा दो मंजिला बनाया गया है। शानदार फूलों के बगीचे और जल वितरण व्यवस्था देखते ही बनती है। मुख्य हॉल में छोटे-छोटे दरीचे बनाए गए हैं जिनसे छनकर आता प्रकाश यहाँ की सुंदरता को द्विगुणित करता है।

चतुर्भुज मंदिर
पत्थर के बड़े चबूतरे पर बना यह मंदिर कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर है। भगवान श्रीराम का यह मंदिर राम राजा मंदिर की याद दिलाता है। यहाँ बनी कमल की आकृति और अन्य आकृतियाँ इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाती हैं। मंदिर की ऊँची-ऊची दीवारें और शिखर इसे भव्यता प्रदान करते हैं।

लक्ष्मीनारायण मंदिर
राम राजा मंदिर से निकलने वाला रास्ता इस मंदिर तक जाता है। यह मंदिर किले और मंदिर के मिले-जुले रूप को दर्शाता है। यहाँ की दीवारों पर ओरछा की भव्य चित्रकला के नमूने अंकित हैं। मंदिर के तीन हॉल की दीवारों और छतों पर बने शिल्प धार्मिक कल्पनाओं पर आधारित भी हैं और इनमें सामान्य प्रतीक भी हैं। चित्रों के रंग आज भी उतने ही चटख हैं।

फूल बाग
एक सुंदर बगीचा जो बुंदेला राजाओं के सौंदर्यबोध से परिचित कराता है। बीच में बनी फव्वारों की कतार आपको आठ स्तंभों पर टिके महल के अहाते में ले जाती है। ओरछा नरेशों के लिए यह जगह ग्रीष्म अवकाश बिताने के लिए बनाई गई थी। चंदन कटोरा नामक रचना से भूमिगत भवन के हर हिस्से में पानी की फुहारें झरती हैं जो हल्की फुरहरी बारिश का अहसास कराती हैं।

सुंदर महल
यह छोटा सा महल है जो लगभग नष्ट हो चुका है पर मुस्लिम तीर्थयात्री अभी भी यहाँ आते हैं। जुझार के बेटे धुर्जबन ने दिल्ली की मुस्लिम लड़की से विवाह करने के लिए धर्म परिवर्तन कर लिया था। उसने अपना लगभग सारा जीवन ध्यान और प्रार्थना में यहीं बिताया था और संत के रूप में जाना गया। छत्रियाँ
बेतवा नदी के कंचन घाट पर राजाओं की याद में 14 छत्रियाँ बनवाई गई हैं।

शहीद स्मारक
महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद यहाँ 1926 से लेकर 1927 तक गुप-चुप तरीके से काम करते रहे थे।

राम राजा मंदिर
यह मंदिर अपनी खूबसूरत बनावट के लिए प्रसिद्ध है। भारत के कुछ अनोखे मंदिरों में से एक है। भारत में संभवतः यह ही एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान राम की पूजा एक राजा के रूप में की जाती है।

दिनमान हरदौल का महल
हरदौल बीर सिंह जूदेव का बेटा था। उसने अपने बड़े भाई जुझार के प्रति वफादारी सिद्ध करने के लिए प्रमाण के तौर पर प्राण त्यागे थे। तब से ही इन्हें पूजा जाने लगा। आज भी बुंदेलखंड के लोग गाँव के किसी चबूतरेनुमा स्थल को हरदौल बाबा का स्थान बनाकर पूजते हैं।

इन मुख्य स्थलों के अलावा यहाँ सिद्ध बाबा का स्थान, जुगल किशोर, जानकी मंदिर और हनुमान मंदिर भी दर्शनीय हैं।

कैसे जाएँ
हवाई मार्ग से
सबसे निकट का हवाई अड्डा ग्वालियर 119 किमी. दूर है जो दिल्ली तथा भोपाल से जुड़ा है।
रेल मार्ग से
निकट का रेल मुख्यालय झाँसी 16 किमी. दूर है जो दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-चेन्नई मुख्य लाइन्स पर है। सभी मेल और एक्सप्रेस झाँसी में रुकती हैं।
सड़क मार्ग से
ओरछा झाँसी-खजुराहो मार्ग के डायवर्जन पर है। झाँसी से यहाँ के लिए नियमित बस सेवा और टैक्सियाँ चलती हैं।

कब जाएँ
अक्टूबर से मार्च का समय यहाँ जाने के लिए उपयुक्त है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें