गुरुवार, 20 मई 2010

आसमाँ है नीला क्यों....




जीवन में आज क्या बनाना है, क्या खाना है, कि‍से बर्थडे वि‍श करना है, ऑफिस जाकर आज यह काम करना है। सब कुछ एक रूटीन-सा हो जाता है। ऐसा करना है, ऐसा नहीं करना, हमारी सोच इन्हीं बंधनों में बँधकर रह जाती है। बस जो कहा गया है या जो होता चला आ रहा है वही करते जाओ। ऐसी स्थिति में हमारी क्रि‍एटि‍वि‍टी ही समाप्त हो जाती है।
खुद को क्रि‍एटि‍व बनाकर कामयाबी की ओर बढ़ने के लिए आवश्यक है कि दिमाग को थोड़ी देर आराम देकर खुला छोड़ दें। इस प्रक्रिया में आप पाएँगे कि आप भी इतने रचनात्मक हैं ये तो आपको खुद को ही पता नहीं था।

कैसे बने रचनात्मक:


'आसमाँ है नीला क्यों?
पानी गीला-गीला क्यों?
गोल क्यों है जमीन?
सोचा है... सोचा नहीं तो सोचो अभी।'
फिल्म 'रॉक आन!!' का जावेद अख्तर का यह गीत आपको याद ही होगा। बस इसी तरह अपनी सोच की उड़ान भरिए। अचानक सोचिए कि यदि आपको अपना नया नाम रखना हो तो क्या रखेंगी? आप रूटीन में जो भोजन बनाती हैं उसके अलावा क्या-क्या बनाया जा सकता है? गार्डन या टेरेस पर खड़े होकर सोचें कि यदि मैं पंछी होती तो कैसा होता? यार गिलास को गिलास ही क्यों कहते हैं क्या और कुछ नहीं कह सकते?
अपने जीवन का कोई खुशनुमा पल याद करें, और सोचें कि आपको इसमें फेरबदल करना पड़ता तो क्या करते। घर में फर्नीचर की सेटिंग बदलनी है तो इसके क्या-क्या विकल्प हो सकते हैं? इतना सोचना ही काफी नहीं है बल्कि नए आइडियाज को नोट भी करना है।
ये भी करें :
अपने दिमाग को पजल्स आदि के साथ भी थोड़ा व्यायाम कराएँ। कभी-कभी गेम खुद सोचकर बनाएँ। कभी दाएँ हाथ की जगह बाएँ हाथ से काम करने की कोशिश करें। आप ऐसा बिलकुल कर सकते हैं क्योंकि दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो बाएँ हाथ से ही काम करते हैं। ऐसे प्रयासों में आप अपने मस्तिष्क को नई ऊर्जा देंगे।

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