सोमवार, 31 मई 2010

एक विश्वयुद्ध : तंबाकू के विरुद्ध


किसी की युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए पहली आवश्यकता होती है शत्रु की साफ-साफ पहचान, उसकी ताकत एवं उसकी कमजोरियों का अंदाज, उसके मित्रों, हितैषियों एवं उससे सहानुभूति रखने वालों का लेखा-जोखा, शत्रु के प्रभाव क्षेत्र की भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं भावनात्मक परिस्थितियों का पर्याप्त ज्ञान होना भी युद्ध की रणनीतियों के निर्धारण के लिए जरूरी होता है।

तंबाकू-प्रयोग के विरुद्ध विश्वभर में युद्ध छिड़ा हुआ है। इस तंबाकू-युद्ध को सैकड़ों मोर्चों पर हजारों सैन्य टुकड़ियों द्वारा लड़ा जा रहा है, जिसकी संयुक्त कमान विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हाथों में है। विश्व के सभी देश विशेषतः (उनके स्वास्थ्य मंत्रालय) इसके क्षेत्रीय कमांडर हैं।

तंबाकू-उपयोग के विरुद्ध छुटपुट कार्रवाइयाँ तो एक शताब्दी पूर्व से जारी हैं। 1857 में इंग्लैंड के ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन ने अपने सैकड़ों सदस्य चिकित्सकों की धूम्रपान से होने वाली हानियों के विषय पर राय एकत्रित की थी। इसे ब्रिटिश डॉक्टर्स स्टडी कहा जाता है।

इस अध्ययन में डॉक्टर्स से पूछा गया था कि उनकी राय में उनके क्लिनिकल ऑब्जर्वेशंस के अनुसार धूम्रपान करने से कौन-कौन-से रोग होते हैं (या हो सकते हैं)? स्मरण रहे 1857 तक धूम्रपान से होने वाले दुष्प्रभावों के संबंध में किसी वैज्ञानिक खोज या अध्ययन के अते-पते नहीं थे। अधिकांश चिकित्सकों ने धूम्रपान को विभिन्न कैंसर, दिल, मानसिक तथा व्यवहारजनित बीमारियों, नपुसंकता आदि का संभावित कारण बताया।
150 वर्षों से तंबाकूरूपी दैत्य चुपचाप धीरे-धीरे मनुष्य जाति का आराम से भक्षण करता रहा है। इस दैत्य की साफ-साफ पहचान 1964 में हुई, जब अमेरिका के सर्जन जनरल टेरीलूथर ने अपनी ऐतिहासिक रिपोर्ट में यह सिद्ध कर दिया कि धूम्रपान निश्चित रूप से कैंसर, हार्ट अटैक, लकवा सहित कई गंभीर एवं जानलेवा बीमारियों का मूल कारण है।
ब्रिटिश फिजिशियंस-स्टडी के समय से उठाई गई शंकाओं, सिगरेट कंपनियों द्वारा किए गए उनके खंडनों के दौर इन 150 वर्षों में निरंतर चलते रहे। तंबाकू कंपनियों की सोची-समझी साजिश एवं चिकित्सा संगठनों की उदासीनता से एक धुँध बनी रही कि तंबाकू के विरुद्ध विभिन्न चिकित्सकों, उनके संगठनों द्वारा उठाई गई आवाजों में सच्चाई है भी कि नहीं! यदि है तो कहाँ तक!
टेरी लूथर की रिपोर्ट ने इस अनिश्चय की धुँध को पूरी तरह छाँट दिया। विश्व ने पहली बार तंबाकू के इच्छाधारी राक्षस को अपने संपूर्ण नग्न एवं भयावह रूप में देखा-पहचाना। इस सर्जन जनरल की रिपोर्ट में दुनिया के हर कोने में धूम्रपान के संबंध में हुए अध्ययनों एवं उनके निष्कर्षों व दुष्प्रभाव को संकलित व संपादित किया गया था। तंबाकू-उपयोग के विरुद्ध औपचारिक विश्वयुद्ध की शुरुआत टेरी लूथर की रिपोर्ट से कही जा सकती है।
सर्जन जनरल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद स्वास्थ्य जगत में हलचल मच गई तथा तंबाकू के विकराल दैत्य को काबू करने के लिए सभी देशों के बीच जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों में आम सहमति बनी कि इस समस्या से निपटने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी वैश्विक संस्था को ही नेतृत्व करना होगा। इस प्रकार आपसी सहमति के अनुसार तंबाकू-नियंत्रण की दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रयास सुसंगठित रूप में शुरू हुए।
इस दिशा में पहला महत्वपूर्ण पड़ाव रहा 1999 की "विश्व स्वास्थ्य संसद" जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया था कि तंबाकू नियंत्रण के उद्देश्य से एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाया जाए, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य राष्ट्रों पर बंधनकारी हो तथा उनका पालन करना अनिवार्य हो।

किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि को प्रभाव में लाने के लिए निश्चित कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। इसमें सबसे पहली थी अंतरराष्ट्रीय कानून का मसौदा क्या हो, इसके क्षेत्र क्या हो। इन बिंदुओं पर आम सहमति बनाने के उद्देश्य से 192 देशों के प्रतिनिधियों एवं अशासकीय सामाजिक संगठनों (एनजीओ) की (डब्ल्यूएचओ) मुख्यालय जेनेवा में 1999 से 2004 के बीच कई बैठकें हुईं।

मसौदे के एक-एक बिंदु पर घंटों बहस के बाद जो सर्वसम्मत दस्तावेज तैयार हुआ उसे एफसीटीसी (फेडरल कन्वेशन ऑन टोबैको कंट्रोल) कहा गया। इस (एफसीटीसी) संधिपत्र पर जब 40 देशों के अधिकृत प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर कर दिए, तब इसे औपचारिक संधि का रूप देने के लिए हरी झंडी मिल गई। जिस दिन 140वें देश की निर्वाचित संसदों ने इस (एफसीटीसी) की रेटीफाई कर दी तो उसी दिन से संधि लागू मानी गई जिसका विश्व के देशों को पालन करना अनिवार्य है।

यह भारत के लिए अत्यंत गर्व का विषय है कि कोई भी प्रधानमंत्री रहा हो, किसी भी पार्टी की सरकार केंद्र में राज्य कर रही हो अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर तंबाकू नियंत्रण की नीति गत दो दशकों में स्पष्ट एवं सुदृढ़ रही है। यही कारण है कि भारत में सरकार या एनजीओ द्वारा लिए गए हर कदम को बाकी विश्व अत्यंत आशाभरी निगाहों से देखता है तथा अपने देश की तंबाकू-समस्याओं का हल उनमें खोजने की चेष्टा करता है।

तंबाकू-नियंत्रण के वैश्विक परिदृश्य में 3-4 वर्ष में नया मोड़ आ गया, जब न्यूयॉर्कClick here to see more news from this city के मेयर (महापौर) श्री ब्लूमबर्ग ने कई करोड़ डॉलर तंबाकू नियंत्रण के उद्देश्य के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन को दान किए। इस उदाहरण को आदर्श मानते हुए 2008 में मेलिंडा बिल गेट्स फाउंडेशन ने भी कई लाख डॉलर तंबाकू नियंत्रण के लिए डब्ल्यूएचओ को दान देने का संकल्प लिया।

2008 में डब्ल्यूएचओ द्वारा विश्व तंबाकू निषेध पर दी गई थीम भी चित्रमय चेतावनी के महत्व पर आधारित है। 31 मई को अनेक बाधाएँ पार करते हुए भारत में चित्रमय चेतावनी लागू हो गई।

तंबाकू-नियंत्रण प्रयासों के परिणाम दिखाई पड़ना शुरू हो गए हैं। आमतौर पर समृद्ध एवं उन्नत देशों, जहाँ शिक्षा का प्रतिशत कहीं अधिक है तथा लोग स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हैं, में ये परिणाम अधिक शीघ्रता एवं स्पष्टता से दिखाई पड़े हैं।

विकासशील देशों की निचली पायदानों के देश या तंबाकू उत्पादन में अग्रणी देशों में तंबाकू नियंत्रण की राह अधिक कठिनाइयों से भरी है। फिर भी तंबाकू नियंत्रण का कारवाँ आगे बढ़ता ही जाता है।

कभी तेजी से कभी धीरे से बाधाओं को निरंतर पार करते हुए। तंबाकू उपयोग के इच्छाधारी दैत्य की मौत शुरू हो गई है। आवश्यकता इस बात की है कि किस प्रकार वह जल्दी पूर्ण मृत्यु को प्राप्त हो तथा हाथ-पैर पटकना बंद करे।

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