-अरुण कुमार बंछोर
लडका आज बहुत खुश था। लडकी भी। मौसम भी खुश था उन्हें खुश देखकर। वे दोनों नदी में पांव डाले बैठे थे। लडकी कंकड मारकर नदी की धार में व्यवधान डाल रही थी। मुस्कुरा रही थी। देखो वो मैं हूं। उसने शरारत से मुस्कुराकर लडके से कहा।
कहां? लडके ने पूछा।
वहां नदी के उस धार में।
देखना वहां.. ऐ.. ऐ.. [छप्पाक] वहां.. देखो, देखो! वो खिलखिला उठी।
हवाओं में संगीत घुल गया। लडका खुश था। उसने नदी की तरफ नहीं देखा। लडकी की ओर देखा। उसने कहा, मैं तो कबसे कहता था, तुम नदी हो। तुम मानती ही नहीं थी। लडके की आंखों में अभिसार घुल रहा था। लडकी नाराज हो गयी। उसने अपने हाथों से लडके का चेहरा घुमाया नदी की ओर। उंगली से इशारा किया, वहां देखो। वहां.. वहां.. उसने लडके की आंख को इस बार कंकडी में लपेटकर नदी में फेंका। छप्पाक्.. कंकडी डूब गई नदी में। नदी का प्रवाह रुका। जरा देर, फिर धीरे-धीरे सामान्य होने लगा। नदी फिर एक धार में बहने लगी। लडकी हंसने लगी- देखा, मैं नदी हो गयी। कैसी बही जा रही हूं.. है ना?, लडकी का बचपन उसकी हंसी में खिल उठा था। आओ चलें..। लडकी ने लडके से कहा। कहां? लडके ने आश्चर्य से पूछा। वहां। उसने नदी के बीचोबीच इशारा किया। अरे नहीं, भीग जायेंगे।
नहीं भीगेंगे। पागल हो क्या। नदी में उतरेंगे और भीगेंगे नहीं। कोई जादू है क्या?
है ना मेरे पास जादू। तुम चलो तो सही।
मैं तैरना नहीं जानता। डूबना तो जानते हो ना? डूबने में आना क्या होता है। तैरना न जानो तो डूबना ही है।
हा.. हा.. हा.. लडकी जोर से खिलखिला पडी। नदी के किनारे न जाने कौन से पेड थे, जिन पर नन्हें-नन्हें गुलाबी फूल लदे हुए थे। फूल धीरे-धीरे धरती पर गिर रहे थे। महक रहे थे। लडकी पर भी कुछ फूल गिरे थे। लडके पर भी। लेकिन लडकी जब जोर से खिलखिलाई तो उसकी खिलखिलाहट फूलों पर भारी पडने लगी। एक संगीत सा घुलने लगा फिजाओं में।
पगले हो तुम। लडकी ने लडके के गालों पर मीठी सी चपत लगाई। तैरना तो आसान होता है, डूबना मुश्किल होता है।
कितने प्यार से, कितनी खामोशी से, कितने स्नेह से, कितने अरमानों से कितनी मोहब्बत से डूबना है, यह जान पाना आसान नहीं। जो डूबना हो तो इतने सुकून से डूबो कि आसपास की लहरों को भी पता न चले.. लडकी गुनगुनाने लगी। उसने नदी में डूबे हुए पैरों से पानी को उछालना शुरू किया।
देखो, ये फालतू बातें किताबों में अच्छी लगती हैं। सच यही है कि अगर हम इस नदी में गये तो डूब जायेंगे.. किसी को बताने के लिए बचेंगे भी नहीं कि कितनी मोहब्बत से डूबे थे, कितने सुकून से। तुम जरा किताबें कम पढा करो। कवितायें तो बिल्कुल मत पढा करो। लडका भन्ना उठा था। वो लडकी को गंभीरता से ताकीद कर रहा था, लेकिन लडकी सुन नहीं रही थी।
अरे, सुनो। देखो नदी का पानी गुनगुना हो रहा है क्या? लडकी ने बात पलट दी। पानी.. गुनगुना? अब ये क्या नाटक है? लडके ने मन ही मन सोचा। लेकिन प्रत्यक्ष में उसने मुस्कुराकर कहा, हां कुछ हुआ तो है। क्या हुआ है? लडकी भांप गई लडके की चालाकी। पानी..! गुनगुना..। लडके ने शांति से जवाब दिया। काहे का पानी? लडकी ने बच्चों की तरह एक हाथ कमर पर रखकर दूसरे हाथ को हवा में लहराकर पूछा? अरे बॉटल का पानी। सुबह से रो-रो कर गर्म हो गया है। प्यास लगी है ना तुम्हें? लडके ने सफाई दी।
हो.. हो.. हो!!! लडकी फिर हंस पडी जोर से। मुझे प्यास लगी है?
मैं नदी हूं बुद्धू। न.. दी.. नदियां प्यास बुझाती हैं। उसकी प्यास कोई नहीं बुझाता। कोई नहीं? लडकी का स्वर मद्धिम पड गया। तो कौन सा पानी गर्म होने की बात कर रही थीं तुम? लडका उसे वर्तमान में लौटा लाया। नदी का।
गर्म नहीं, गुनगुना। लडकी वापस लौट आई। उधर देखो बुद्धू.. उधर। लडकी ने लडके को नदी के दूसरे छोर पर दूर निशाना बनाते हुए देखने को कहा। सूरज धीरे-धीरे नदी में उतर रहा था। इस समय गहरे सिंदूरी रंग के सूरज का थोडा सा हिस्सा नदी में डूबा था, बाकी बाहर था। लडका मुग्ध होकर देखने लगा। गजब! बहुत सुंदर है ये तो!
है ना? लडकी कुछ इस तरह खुश हुई मानो सूरज उसका ही हो। ये जलता हुआ सूरज जब नदी में उतर रहा है तो नदी का पानी भी तो थोडा सा गुनगुना होगा ना? क्या है.. तुम ये अपनी फालतू की कविताई बंद करोगी? अच्छा हुआ तुम साइंटिस्ट न हुई वरना ग्लोबल वार्मिग की दशा, दिशा और उसके कारण सब बदल जाते। हूं.. और? लडकी गंभीर होने लगी। और क्या? लडने ने पूछा। और क्या-क्या अच्छा हुआ, जो मैं न हुई? मतलब? मतलब अगर मैं पॉलीटिशियन होती तो? तो.. तो क्या संसद में कविताएं पढी जातीं। काम-धाम ठप्प। लडके ने उपहास करते हुए कहा। खेत, खलिहान, पगडंडी, अलाव, चूल्हा, रोटी, चिडिया, धान, मुस्कुराहटें, उगता हुआ सूरज, चमकीली रातें यह सब होता ना उन कविताओं में?
लडकी ने पांव पानी में से निकाल लिये। हां.. आं..। लडके को और कुछ कहते ना बना। अगर संसद में पढी जातीं ऐसी कविताएं जिनमें सुंदर जीवन की कामना होती तो बुरा क्या होता। कम से कम फेंकी तो न जातीं कुर्सियां। दी तो न जातीं गालियां। लडकी फिर मुस्कुरा दी। और..? लडकी ने पूछा।
और क्या? और क्या ना हुई तो अच्छा हुआ? तुम तो पीछे ही पड गई। फिलहाल तो यही सोच रहा हूं कि तुम लडकी न होतीं तो.. तो? तो मैं यहां तुम्हारी फिलॉसफी न झेल रहा होता। लडका जोर से हंस पडा।
हूं.. तो तुम मुझे इसलिए झेलते हो क्योंकि मैं लडकी हूं। ये लो इसमें क्या शक है। तुम लडकी ना होतीं तो मैं तुम्हें प्यार थोडी ना करता। मैं नॉर्मल लडका हूं यार। लडका शरारत से मुस्कुराया।
जानती हूं एक लडके का लडकी से प्यार करना तो नॉर्मल है। है ना? हां, और लडकी का लडके से प्यार भी। लडके ने कहा। लडके को अब तक लडकी के इजहारे मोहब्बत का इंतजार था। लडकी के सर पर फूल गिर पडा था, जिसे लडके ने जानबूझकर नहीं हटाया। -जो लडके नदी में डूबना नहीं चाहते। जो डूबना नहीं जानते, भला नदी कैसे उन्हें प्यार करेगी। बोलो तो? लडके ने चौंककर देखा लडकी की ओर। बोला कुछ नहीं।
नहीं समझे? नहीं? तो मत समझो! लडकी फिर खिलखिला पडी। उसने पर्स उठाया। वो चल पडी। लडका भी उसके पीछे-पीछे चल पडा। सूरज इत्मीनान से नदी में डूबता रहा।
लडका आज बहुत खुश था। लडकी भी। मौसम भी खुश था उन्हें खुश देखकर। वे दोनों नदी में पांव डाले बैठे थे। लडकी कंकड मारकर नदी की धार में व्यवधान डाल रही थी। मुस्कुरा रही थी। देखो वो मैं हूं। उसने शरारत से मुस्कुराकर लडके से कहा।
कहां? लडके ने पूछा।
वहां नदी के उस धार में।
देखना वहां.. ऐ.. ऐ.. [छप्पाक] वहां.. देखो, देखो! वो खिलखिला उठी।
हवाओं में संगीत घुल गया। लडका खुश था। उसने नदी की तरफ नहीं देखा। लडकी की ओर देखा। उसने कहा, मैं तो कबसे कहता था, तुम नदी हो। तुम मानती ही नहीं थी। लडके की आंखों में अभिसार घुल रहा था। लडकी नाराज हो गयी। उसने अपने हाथों से लडके का चेहरा घुमाया नदी की ओर। उंगली से इशारा किया, वहां देखो। वहां.. वहां.. उसने लडके की आंख को इस बार कंकडी में लपेटकर नदी में फेंका। छप्पाक्.. कंकडी डूब गई नदी में। नदी का प्रवाह रुका। जरा देर, फिर धीरे-धीरे सामान्य होने लगा। नदी फिर एक धार में बहने लगी। लडकी हंसने लगी- देखा, मैं नदी हो गयी। कैसी बही जा रही हूं.. है ना?, लडकी का बचपन उसकी हंसी में खिल उठा था। आओ चलें..। लडकी ने लडके से कहा। कहां? लडके ने आश्चर्य से पूछा। वहां। उसने नदी के बीचोबीच इशारा किया। अरे नहीं, भीग जायेंगे।
नहीं भीगेंगे। पागल हो क्या। नदी में उतरेंगे और भीगेंगे नहीं। कोई जादू है क्या?
है ना मेरे पास जादू। तुम चलो तो सही।
मैं तैरना नहीं जानता। डूबना तो जानते हो ना? डूबने में आना क्या होता है। तैरना न जानो तो डूबना ही है।
हा.. हा.. हा.. लडकी जोर से खिलखिला पडी। नदी के किनारे न जाने कौन से पेड थे, जिन पर नन्हें-नन्हें गुलाबी फूल लदे हुए थे। फूल धीरे-धीरे धरती पर गिर रहे थे। महक रहे थे। लडकी पर भी कुछ फूल गिरे थे। लडके पर भी। लेकिन लडकी जब जोर से खिलखिलाई तो उसकी खिलखिलाहट फूलों पर भारी पडने लगी। एक संगीत सा घुलने लगा फिजाओं में।
पगले हो तुम। लडकी ने लडके के गालों पर मीठी सी चपत लगाई। तैरना तो आसान होता है, डूबना मुश्किल होता है।
कितने प्यार से, कितनी खामोशी से, कितने स्नेह से, कितने अरमानों से कितनी मोहब्बत से डूबना है, यह जान पाना आसान नहीं। जो डूबना हो तो इतने सुकून से डूबो कि आसपास की लहरों को भी पता न चले.. लडकी गुनगुनाने लगी। उसने नदी में डूबे हुए पैरों से पानी को उछालना शुरू किया।
देखो, ये फालतू बातें किताबों में अच्छी लगती हैं। सच यही है कि अगर हम इस नदी में गये तो डूब जायेंगे.. किसी को बताने के लिए बचेंगे भी नहीं कि कितनी मोहब्बत से डूबे थे, कितने सुकून से। तुम जरा किताबें कम पढा करो। कवितायें तो बिल्कुल मत पढा करो। लडका भन्ना उठा था। वो लडकी को गंभीरता से ताकीद कर रहा था, लेकिन लडकी सुन नहीं रही थी।
अरे, सुनो। देखो नदी का पानी गुनगुना हो रहा है क्या? लडकी ने बात पलट दी। पानी.. गुनगुना? अब ये क्या नाटक है? लडके ने मन ही मन सोचा। लेकिन प्रत्यक्ष में उसने मुस्कुराकर कहा, हां कुछ हुआ तो है। क्या हुआ है? लडकी भांप गई लडके की चालाकी। पानी..! गुनगुना..। लडके ने शांति से जवाब दिया। काहे का पानी? लडकी ने बच्चों की तरह एक हाथ कमर पर रखकर दूसरे हाथ को हवा में लहराकर पूछा? अरे बॉटल का पानी। सुबह से रो-रो कर गर्म हो गया है। प्यास लगी है ना तुम्हें? लडके ने सफाई दी।
हो.. हो.. हो!!! लडकी फिर हंस पडी जोर से। मुझे प्यास लगी है?
मैं नदी हूं बुद्धू। न.. दी.. नदियां प्यास बुझाती हैं। उसकी प्यास कोई नहीं बुझाता। कोई नहीं? लडकी का स्वर मद्धिम पड गया। तो कौन सा पानी गर्म होने की बात कर रही थीं तुम? लडका उसे वर्तमान में लौटा लाया। नदी का।
गर्म नहीं, गुनगुना। लडकी वापस लौट आई। उधर देखो बुद्धू.. उधर। लडकी ने लडके को नदी के दूसरे छोर पर दूर निशाना बनाते हुए देखने को कहा। सूरज धीरे-धीरे नदी में उतर रहा था। इस समय गहरे सिंदूरी रंग के सूरज का थोडा सा हिस्सा नदी में डूबा था, बाकी बाहर था। लडका मुग्ध होकर देखने लगा। गजब! बहुत सुंदर है ये तो!
है ना? लडकी कुछ इस तरह खुश हुई मानो सूरज उसका ही हो। ये जलता हुआ सूरज जब नदी में उतर रहा है तो नदी का पानी भी तो थोडा सा गुनगुना होगा ना? क्या है.. तुम ये अपनी फालतू की कविताई बंद करोगी? अच्छा हुआ तुम साइंटिस्ट न हुई वरना ग्लोबल वार्मिग की दशा, दिशा और उसके कारण सब बदल जाते। हूं.. और? लडकी गंभीर होने लगी। और क्या? लडने ने पूछा। और क्या-क्या अच्छा हुआ, जो मैं न हुई? मतलब? मतलब अगर मैं पॉलीटिशियन होती तो? तो.. तो क्या संसद में कविताएं पढी जातीं। काम-धाम ठप्प। लडके ने उपहास करते हुए कहा। खेत, खलिहान, पगडंडी, अलाव, चूल्हा, रोटी, चिडिया, धान, मुस्कुराहटें, उगता हुआ सूरज, चमकीली रातें यह सब होता ना उन कविताओं में?
लडकी ने पांव पानी में से निकाल लिये। हां.. आं..। लडके को और कुछ कहते ना बना। अगर संसद में पढी जातीं ऐसी कविताएं जिनमें सुंदर जीवन की कामना होती तो बुरा क्या होता। कम से कम फेंकी तो न जातीं कुर्सियां। दी तो न जातीं गालियां। लडकी फिर मुस्कुरा दी। और..? लडकी ने पूछा।
और क्या? और क्या ना हुई तो अच्छा हुआ? तुम तो पीछे ही पड गई। फिलहाल तो यही सोच रहा हूं कि तुम लडकी न होतीं तो.. तो? तो मैं यहां तुम्हारी फिलॉसफी न झेल रहा होता। लडका जोर से हंस पडा।
हूं.. तो तुम मुझे इसलिए झेलते हो क्योंकि मैं लडकी हूं। ये लो इसमें क्या शक है। तुम लडकी ना होतीं तो मैं तुम्हें प्यार थोडी ना करता। मैं नॉर्मल लडका हूं यार। लडका शरारत से मुस्कुराया।
जानती हूं एक लडके का लडकी से प्यार करना तो नॉर्मल है। है ना? हां, और लडकी का लडके से प्यार भी। लडके ने कहा। लडके को अब तक लडकी के इजहारे मोहब्बत का इंतजार था। लडकी के सर पर फूल गिर पडा था, जिसे लडके ने जानबूझकर नहीं हटाया। -जो लडके नदी में डूबना नहीं चाहते। जो डूबना नहीं जानते, भला नदी कैसे उन्हें प्यार करेगी। बोलो तो? लडके ने चौंककर देखा लडकी की ओर। बोला कुछ नहीं।
नहीं समझे? नहीं? तो मत समझो! लडकी फिर खिलखिला पडी। उसने पर्स उठाया। वो चल पडी। लडका भी उसके पीछे-पीछे चल पडा। सूरज इत्मीनान से नदी में डूबता रहा।
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