लैला-मजनू की मजार, जहां लगता है प्रेमियों का मेला
भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बिंजौर गांव में एक मजार पर दिन ढलते ही कव्वाली की धुनों के बीच सैकड़ों युगल अपने प्रेम के अमर होने की दुआ मांगते देखे जा सकते हैं। यहां हर साल एक मेला लगता है जिसमें आने वालों को पूरा यकीन है कि उनकी फरियाद जरूर कुबूल होगी।
लैला-मजनू की दास्तान पीढ़ियों से सुनी और सुनाई जा रही है। कहा जाता है कि लैला और मजनू एक दूजे से बेपनाह मोहब्बत करते थे लेकिन उन्हें जबरन जुदा कर दिया गया था। यहां के लोग इस मजार को लैला-मजनू की मजार कहते हैं। हर साल 15 जून को यहां सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचते हैं क्योंकि यहां इस दौरान मेला लगता है।
यह मजार राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में है। पाकिस्तन की सीमा से यह महज दो किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल भी यहां सैकड़ों की संख्या में विवाहित और प्रेमी जोड़े यहां पहुंचे। इस बार मेला मंगलवार को आरंभ हुआ और बुधवार तक चला।
यद्यपि इतिहासकार लैला-मजनू के अस्तित्व से इनकार करते हैं। वे इन दोनों को काल्पनिक चरित्र करार देते हैं। परंतु इस मजार पर आने वालों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो बस फरियाद लिए यहां चले आते हैं।
स्थानीय निवासी गौरव कालरा कहते हैं कि हर साल यहां सकड़ों जोड़े लैला-मजनू का अशीर्वाद लेने आते हैं। मैं नहीं जानता कि लैला मजनू थे या नहीं, लेकिन पिछले 10-15 वर्षो में यहां आने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।
यहां आने वाले सभी मजहबों के लोग होते हैं। कालरा ने बताया कि सिर्फ हिंदू और मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख एवं ईसाई भी इस मेले में आते हैं।
यहां आई नवविवाहिता युवती रेखा ने कहा कि हमने सुना है कि यह प्रेम करने वालों का मक्का है और यहां खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के लिए यहां एक बार जरूर आना चाहिए। इसलिए मैं भी अपने पति के साथ यहां आई हूं। इस मजार की लोकप्रियता और उत्सुकता को देखते हुए सरकार इस गांव में सुविधाएं बढ़ाने पर विचार कर रही है।
भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बिंजौर गांव में एक मजार पर दिन ढलते ही कव्वाली की धुनों के बीच सैकड़ों युगल अपने प्रेम के अमर होने की दुआ मांगते देखे जा सकते हैं। यहां हर साल एक मेला लगता है जिसमें आने वालों को पूरा यकीन है कि उनकी फरियाद जरूर कुबूल होगी।
लैला-मजनू की दास्तान पीढ़ियों से सुनी और सुनाई जा रही है। कहा जाता है कि लैला और मजनू एक दूजे से बेपनाह मोहब्बत करते थे लेकिन उन्हें जबरन जुदा कर दिया गया था। यहां के लोग इस मजार को लैला-मजनू की मजार कहते हैं। हर साल 15 जून को यहां सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचते हैं क्योंकि यहां इस दौरान मेला लगता है।
यह मजार राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में है। पाकिस्तन की सीमा से यह महज दो किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल भी यहां सैकड़ों की संख्या में विवाहित और प्रेमी जोड़े यहां पहुंचे। इस बार मेला मंगलवार को आरंभ हुआ और बुधवार तक चला।
यद्यपि इतिहासकार लैला-मजनू के अस्तित्व से इनकार करते हैं। वे इन दोनों को काल्पनिक चरित्र करार देते हैं। परंतु इस मजार पर आने वालों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो बस फरियाद लिए यहां चले आते हैं।
स्थानीय निवासी गौरव कालरा कहते हैं कि हर साल यहां सकड़ों जोड़े लैला-मजनू का अशीर्वाद लेने आते हैं। मैं नहीं जानता कि लैला मजनू थे या नहीं, लेकिन पिछले 10-15 वर्षो में यहां आने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।
यहां आने वाले सभी मजहबों के लोग होते हैं। कालरा ने बताया कि सिर्फ हिंदू और मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख एवं ईसाई भी इस मेले में आते हैं।
यहां आई नवविवाहिता युवती रेखा ने कहा कि हमने सुना है कि यह प्रेम करने वालों का मक्का है और यहां खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के लिए यहां एक बार जरूर आना चाहिए। इसलिए मैं भी अपने पति के साथ यहां आई हूं। इस मजार की लोकप्रियता और उत्सुकता को देखते हुए सरकार इस गांव में सुविधाएं बढ़ाने पर विचार कर रही है।
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