बुधवार, 14 जुलाई 2010

हीरा की समझदारी


‘चाय वाला, चाय वाला, गरमा-गरम चाय’, एक हाथ में चाय की केतली पकड़े व दूसरे हाथ में प्लास्टिक के छोटे गिलासों को पकड़े हीरा चलती ट्रेन में आवाज़ लगा रहा था। ‘ओए छोटू! एक चाय देना’, पर्स में से पांच रुपए निकालते हुए एक महिला ने कहा। हीरा ने गर्म चाय गिलास में डाली तथा महिला को चाय देकर, पैसे लेकर उन्हें जेब में डाल लिए। आगे बढ़कर वह फिर आवाज़ें लगाने लगा ‘चाय चाय, गर्म चाय।’

रोज़ सुबह से लेकर देर शाम तक वह ट्रेनों में चाय बेचता था और बदले में ठेकेदार उसे 50 रुपए दिहाड़ी दिया करता था।
हीरा का परिवार बहुत गरीब था। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। ज्यादा शराब पीने से उसके पिता के दोनों गुर्दे खराब हो गए थे। ईलाज करवाने में उसके परिवार पर कर्ज़ भी काफी चढ़ गया था।

हीरा की मां लोगों के घरों में काम करके मुश्किल से परिवार का गुज़ारा करती थी। हीरा के दो भाई-बहन भी थे, उससे छोटे। परिवार को सहारा देने के लिए हीरा ने पढ़ाई बीच में ही छोड़कर चाय बेचने का काम शुरू कर दिया था। लेकिन उसका पढ़ने का मन बहुत करता था।
रोजमर्रा की तरह हीरा ट्रेन में आवाज़ें लगा रहा था।
चाय लेकर उस युवक ने सौ रुपये का नोट उसे पकड़ाया। ’खुले पैसे दो साहब, सुबह-सुबह बोहनी का टाईम है’, हीरा ने कहा। ‘खुले पैसे तो मेरे पास भी नहीं हैं’ युवक ने लापरवाही से कहा। ‘ठीक है साहब मैं पैसे खुले करवा कर लाता हूं’ कहकर हीरा अपने दूसरे साथी से पैसे खुलवाने के लिए डिब्बे में पिछली तरफ चला गया। दोनों आदमी चाय पीने लगे। अब तक ट्रेन की रफ्तार भी काफी धीमी हो चुकी थी।

स्टेशन नजदीक ही था। ब्रेड-पकौड़े वाले से पैसे खुले कराकर जब हीरा उन्हें पैसे वापस देने आया तो उसने देखा कि दरवाज़े के पास खड़े दोनों आदमी गायब थे। हीरा ने उन्हें सारे डिब्बे में तलाशा, लेकिन सब व्यर्थ। बिना पैसे वापस लिए आखिर दोनों कहां गायब हो गए, यह सोचते हुए हीरा अभी वापस मुड़ा ही था कि उसकी नज़र सीट के साथ रखे बैग पर पड़ी।

यह वही बैग था, जो उन आदमियों के पास था।
हीरा समझ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। बिना पैसे लिए बैग ट्रेन में ही छोड़कर उन दोनों का गायब होना, कही इस बैग में बम तो नहीं- यह सोचकर वह भीतर तक सिहर उठा। उसकी टांगे कांपने लगीं। वह समझ गया कि दोनों आदमी धीमी ट्रेन से पहले ही कूद कर भाग चुके हैं।

एक बार उसने सोचा कि शोर मचा दे लेकिन दूसरे ही पल उसने समझदारी से काम लिया कि शोर मचाने से डिब्बे में अफरा-तफरी मच सकती है। यात्री व बच्चे घायल हो सकते हैं। और यदि बम न हुआ तो लफड़ा अलग से। अब तक स्टेशन भी आ चुका था।

ट्रेन अभी पूरी तरह रुकी नहीं थी कि हीरा ने बाहर छलांग लगा दी। संतुलन बिगड़ने से वह गिर गया तथा उसकी कोहनियां व घुटने छिल गए। केतली व गिलास भी गिर गए। बिना चोट की परवाह किए वह स्टेशन पर बने पुलिस कार्यालय की तरफ भागा और वहां बैठे पुलिस इंस्पेक्टर को जल्दी से सारी बात बताई। सभी पुलिस वाले तुरंत उसके साथ डिब्बे की ओर दौड़े।

स्टेशन मास्टर ने भी सूचना दी। थोड़ी ही देर में जिला प्रशासन व पुलिस के अधिकारी स्टेशन पर पहुंची उनके साथ खोजी कुत्ते व बम निरोधक दस्ता भी था।
खोजी कुत्तें डिब्बे में चढ़े तथा सामान को सूंघने लगे।

उस बैग को सूंघकर कुत्ते भौंकने लगे। बम निरोधक दस्ते वाले समझ गए कि इसमें विस्फोटक सामग्री है। उन्होंने बड़ी सावधानी से बम को डिफ्यूज़ कर दिया। स्टेशन पर खड़े सभी लोगों की सांसे अटकी हुई थी।

अब तक टी.वी. चैनल व समाचार पत्रों के पत्रकार व कैमरामैन भी स्टेशन पर पहुंच चुके थे। लगभग दस मिनट के बाद जब बम निरोधक दस्ता डिफ्यूज़ बम व बैग को लेकर डिब्बे ले बाहर आया, तो सभी की जान में जान आई।

अफसरों ने हीरा की पीठ थपथपाई और उसे शाबाशी दी। एक डॉक्टर ने हीरा की मरहम पट्टी की। सभी टीवी चैनलों पर हीरा की बहादुरी की खबरें प्रसारित हो रही थीं। मुख्यमंत्री ने भी हीरा की बहादुरी से खुश होकर उसे दो लाख रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की।

अगले दिन सभी समाचार पत्रों में पहले पन्ने पर उसकी फोटो छपी थी। शहर के एक पब्लिक स्कूल ने हीरा की मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की। हीरा अब स्कूल जाने लगा। वह खुश था कि उसकी थोड़ी-सी समझदारी से बहुत से लोगों की जानें बच गईं और उसकी पढ़ाई भी दोबारा शुरू हो गई।

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