बुधवार, 14 जुलाई 2010

देवी मां के मंदिर पहाड़ों पर ही क्यों?


 -अरुण कुमार बंछोर
ऊंचे पहाड़ों पर बसी मां वैष्णौदेवी, हिमाचल के ऊंचे पहाड़ों पर माता ज्वाला देवी, माता मैहरवाली मां शारदा, पावागड़ वाली माता....,ऐसे कितने ही प्रसिद्ध मंदिर हैं जो ऊंचे पहाड़ों पर बने हैं।भारत ही नहीं विश्वभर में जितने भी देवी मां के मंदिर हैं, अधिकांस किसी न किसी ऊंचे और प्रसिद्ध पहाड़ पर ही स्थापित हैं। ध्यान न दिया जाए तो यह एक सामान्य बात है किन्तु हर सामान्य में कुछ खास अवश्य होता है। मिट्टी या पत्थर के पहाड़ों में ऐसा क्या है, जो समतल भूमि पर नहीं? जब इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिये गहराई और बारीकी से शोध किया गया तो कई रौचक और महत्वपूर्ण जानकारी सामने आती है। तो आइये जाने देवी मां के पहाड़ों पर बसने के खास कारणों के बारे में-

एकांत साधना: यह बात सभी जानते हैं कि पहाड़ों पर एकांत होता है। सारी धरती पर इंसान ज्यादातर समतल भूमि पर ही बसे होते हैं। असुविधा की दृष्टि से लोगों ने घर बनाने के लिये पहाड़ी इलाकों की बजाय मेदानी क्षेत्रों को ही प्राथमिकता से चुना है। एकांत की खासियत ने ही देवी मंदिरों के लिये पहाड़ों को महत्व प्रदान किया है। कार्य चाहे सांसारिक हो या आध्यात्मिक उसकी सफलता का दारोमदार करने वाले ्रकी एकाग्रता पर ही निर्भर होता है। इस एकाग्रता की उपलब्धता पहाड़ों पर आसानी से होती है। मौन, ध्यान एवं जप आदि कार्यों के लिये एकांत की अनिवार्य आवश्यकता होती है।
प्राकृतिक सौन्दर्य: पहाड़ी क्षेत्रों पर इंसानों का आना-जाना कम ही रहता है, जिससे वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य अपने असली रुप में जीवित रह पाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि सौन्दर्य इंसान को स्फूर्ति और ताजगी प्रदान करता है। प्राकृतिक सौन्दर्य तो कृतिम सौन्दर्य से भी ज्यादा लाभदायक होता है।
ऊंचाई का प्रभाव: वैज्ञानिक विश्लेषणों में पाया गया है कि निचले स्थानों की बजाय अधिक ऊंचाई पर मानवी स्वास्थ्य अधिक उत्तम रहता है। कुछ दिनों तक लगातार ऊंचे स्थानों पर कई रोगों को नष्ट होते हुए देखा गया है। पहाड़ी स्थानों पर इंसान की धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं का तीव्र विकास होते हुए देखा गया है।

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