शनिवार, 17 जुलाई 2010

सबसे बड़ा संदेश है कर्म


महाभारत कई मायनों में धर्म प्रधान होते हुए भी कर्म प्रधान ही है। स्वयं श्रीकृष्ण भी कर्म की प्रधानता अर्जुन को गीता उपदेश के समय समझाते हुए कहते है कि कर्म करो फल की चिंता मत करो।अर्जुन युद्ध के मैदान में जब अपने ही परिजनों को समक्ष देखकर घबरा जाते हैं तब श्रीकृष्ण उन्हें कहते हैं कि एक तरफ तो आप यह कहते हैं कि ये मेरे भाई-बंधु है, मुझे इनसे युद्ध नहीं करना चाहिए और मेरे बड़ों पर मैं अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाऊंगा तथा दूसरी तरफ तुम हे अर्जुन, जिन लोगों के विषय में नहीं सोचना चाहिए उनके विषय में तू सोचता है और ज्ञानियों की तरह बातें करते हो।

महाभारत जीवन जीने की शैली भी है
महाभारत का नाम सुनते ही मस्तिष्क में भयंकर संहारक युद्ध का नजारा आंखों के सामने घूमने लगता है। अधिकतर लोग समझते हैं कि महाभारत एक युद्धकथा है, जिसमें राज्य के लिए पांडवों और कौरवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। किंतु अगर बारिकी से देखा जाए तो महाभारत में श्रेष्ठ जीवन के कई सूत्र छिपे हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में कैसे जीया जाए। यह कथा एक संपूर्ण जीवन शैली है।महाभारत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास (वेद व्यास) ने की है। महाभारत के विषय में कहा जाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों के विषय में जो महाभारत में कहा गया है वह ही सब ओर है, और जो इसमें नहीं है वह कहीं नहीं है।इसे पांचवा वेद भी कहते हैं। महाभारत का नाम जय, भारत और उसके बाद महाभारत हुआ। इसमें एक लाख श्लोक हैं।यह बहुनायक प्रधान ग्रंथ है। जिसे किसी भी पात्र के दृष्टिकोण से देखा जाए वही नायक प्रतीत होता है। महाभारत के एक लाख श्लोकों को अठारह खंडों (पर्वों) में विभाजित किया हुआ है। इन पर्वों का नाम रखा गया है- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, अश्वमेद्य, आश्रमवाती, मौसल, महाप्रस्थानिक तथा अंतिम स्वर्गारोहण पर्व है।

चिकित्सा भी है महाभारत में
महाभारत केवल एक धर्म शास्त्र या कोई युद्ध कथा नहीं है। यह भारतीय जीवन शैली का प्रामाणिक लेख है। नीति और धर्म की शिक्षा का सबसे बड़ा ग्रंथ है। जीवन का सार जो भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के पहले अजरुन को दिया था, वह भी इसी ग्रंथ का एक हिस्सा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि महाभारत में चिकित्सा क्षेत्र का वह चमत्कार भी है, जिस पर अब लगभग सारे ही देशों में काम चल रहा है। वह है टेस्ट टच्यूब बेबी का। क्या आप जानते हैं हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों लाखों साल पहले ऐसे चमत्कार कर दिखाए हैं जो अब भी कई जगह आश्चर्य का विषय माने जाते हैं।
दुनिया के हर कोने में टेस्ट टच्यूब बेबी द्वारा बच्चों के प्रजनन पर प्रयोग चल रहे हैं। महाभारत में यह प्रयोग हजारों वर्ष पहले ही सफलता पूर्वक किया जा चुका है। महाभारत के रचियता और इस कथा के मुख्य पात्र महर्षि वेद व्यास ने यह प्रयोग किया था। वे चिकित्सा पद्धति के विख्यात विद्वान भी रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि महर्षि वेद व्यास ने दुर्योधन और उसके 99 भाइयों और एक बहन को इसी पद्धति से पैदा किया था। महाभारत में कथा आती है कि दुर्योधन की माता गांधारी को महर्षि वेद व्यास ने ही सौ पुत्र होने का वरदान दिया था। गांधारी जब गर्भवती हुईं तो दो साल तक गर्भस्थ शिशु बाहर नहीं आया। वह लोहे के एक गोले जैसा सख्त हो गया। गांधारी ने लोकापवाद के भय से इस गोले को फेंकने का निर्णय लिया। जब वह इसे फेंकने जा रही थी तभी वेद व्यास आ गए और उन्होंने उस लोहे के गोले के सौ छोटे-छोटे टुकड़े किए और उन्हें सौ अलग-अलग मटकियों में कुछ रसायनों के साथ रख दिया। एक टुकड़ा और बच गया था, जिससे दुर्योधन की बहन दुशाला का जन्म हुआ। इस तरह एक सौ एक मटकियों में सभी कौरवों का जन्म हुआ। महर्षि वेद व्यास ने ऐसे ही कई और चमत्कारिक प्रयोग किए हैं।

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