शनिवार, 17 जुलाई 2010

पिता के पत्र

बच्चों के नाम पिता के पत्र
संस्कारों के बीज जो हमने तुम्हारे अंदर बोए थे, उन्हें आज पल्लवित होते, विकसित होते देखना एक पिता के लिए सबसे सुखद अहसास है।


प्रिय बेटी नयना,

‘फैमिली डे’ पर तुम्हारा कार्ड मिला। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है तुम्हारी। तुम हमारा कितना ख्याल रखती हो। तुमने कार्ड पर अपने नाम के साथ दामाद जी, भाई नितिन व संचिता भाभी का भी नाम लिखा और साथ में नन्हीं बेटियों मान्या, रम्या व भतीजी प्रिशा का नाम भी लिखा। यह काम तुम्हारे जैसी बेटी ही कर सकती है। वरना इतनी दूर मुम्बई में रहने वाले भइया-भाभी की ओर से शायद ही कोई बेटी कार्ड डालती हो और कार्ड भी वह जो अपने ही हाथों से तैयार किया गया हो।

मैं तो तुम्हें ऐसा भी नहीं कह सकता कि तुम मेरी हीरे जैसी बेटी हो क्योंकि हीरे का तो मोल होता है और मैं तुम्हारे स्नेह को दुनिया की किसी भी वस्तु से तौलना नहीं चाहता।

कई बार मन करता है कि मैं तुम्हारे पास बैठकर तुम्हें ढेरों आशीर्वाद दूं लेकिन एक तुम हो जो प्रशंसा का एक भी शब्द सुनना नहीं चाहती, बल्कि तुरंत किसी दूसरे काम में लग जाती हो।

मैं तुमसे काफी कुछ कहना चाहता था, लेकिन नहीं कह पाया। पहली बार पत्र के ज़रिए कह रहा हूं कि बेटियां तो सभी की अच्छी होती हैं लेकिन मुझे लगता है कि मेरी बेटी जैसी दुनिया में कोई बेटी नहीं। हां, उस दिन भी मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए थे, जब तुम तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा के हाथों सम्मानित होकर वापस घर आई थीं। उस दिन मैंने चुपके से अपनी आंखें धोई थीं। मुझे गर्व है अपनी होनहार बिटिया पर।

ढेरों आशीर्वाद

तुम्हारा पिता
******************************************************************************

समय से पहले यह दृश्य अगर आंखों में उतर आए, तो भी पिता अपनी भावनाओं को काबू करने में अक्षम ही रहेगा।


प्यारी बेटी गरिमा,

तुम आज इंजीनियरिंग कर रही हो, लेकिन मैं उस दिन को कभी नहीं भूलूंगा, जब तुमने मुझसे बड़ी मासूमियत से पूछा था, ‘पापा आप मुझसे गुस्सा हैं? मैं कल से स्कूल जाऊंगी, आप गुस्सा न हो।’ उस दिन तुम पहली बार स्कूल जा रही थी।

तुम्हारी मां ने बड़े से प्यार से स्कूल यूनिफार्म और जूते पहना, छोटा-सा बैग व पानी की बोतल तुम्हारे गले में लटकाई थी। मैं ऊपरी मंज़िल पर था, इसलिए तुम्हें गोद में उठाकर सीढ़ियां उतरने लगा। तुमने भी कमज़ोर बांहों से मेरी गर्दन जकड़ ली थी।

जैसे ही मैंने तुम्हें स्कूल रिक्शे में बैठाने का प्रयास किया, तो तुम रोने लगीं। तुमने बड़ी मासूमियत से कहा था ‘पापा नहीं भेजो, मैं नहीं जाऊंगी, पापा मत भेजो न!’
तुम्हारी आंखों को नम देखकर मैं यह भूल ही गया था कि तुम्हें मैं स्कूल भेजने आया हूं।

मेरे ज़ेहन में तुम्हारी विदाई का दृश्य घूमने लगा, जिससे मेरी आंखें भी नम हो गईं थी। मैं तुम्हें तुरंत गोद में उठाए ही वापस लौट आया और तुम्हें तुम्हारी मम्मी को सौंपकर गम्भीर होकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद तुम वापस मेरे पास आईं और मेरे गालों में अपनी पतली उंगलियां फिराती हुए बोलीं कि ‘पापा आप गुस्सा न हों, मैं कल से स्कूल जाऊंगी।’

मैं तुम्हारा मासूम चेहरा देखता ही रह गया था और आज तक नहीं बता सका कि मैं उस दिन तुम्हारे स्कूल न जाने से नहीं, अपनी कमज़ोरी के कारण रोया था।

तुम्हारा पापा

************************************************************************************

मेरे प्यारे बेटे,

तुम्हारी मां पिछले 15 वर्षो से अस्वस्थ है और तुम दोनों भाई-बहन भी भोपाल से बाहर रहते हो। तुम्हारी मां की देखभाल के लिए तीन महिला केयरटेकर लगी हुई हैं। ईश्वर की कृपा से आर्थिक स्थिति भी अच्छी है। तुम दोनों भी अपने-अपने परिवारों के साथ सुखी हो। अपनी मेहनत के दम पर तुम इंजीनियर और तुम्हारी बहन आज डॉक्टर है।

यहां मैंने आज से 25 साल पहले यह मकान बनवाया था, जो आज भी अच्छी स्थिति में है। बैंक की वरिष्ठ नागरिकों के मकानों के लिए रिवर्स मोर्टगेज स्कीम के तहत कम ब्याज पर मैंने 10 वर्षो के लिए लोन लिया था, ताकि इस बढ़ती महंगाई में हम अपने खर्च पूरे कर सकें। इस स्कीम की जानकारी तुमसे पहले तुम्हारी बहन को लगी थी।

लोन मिलने में थोड़ा समय ज़रूर लगा लेकिन अंतत: मिल गया। इस स्कीम को लेने की जानकारी तुम्हें देने में थोड़ी देर हो गई जबकि तुम्हारी बहन ने ही यह स्कीम बताई थी, इसलिए उसे इससे जुड़ी हर जानकारी पहले से ही थी। इस बात को लेकर तुम मुझसे आज तक नाराज़ हो और बातचीत भी नहीं करते। बाकी बातें मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूं।

बेटा, तुम यह समझते हो कि हम बेटी को तुमसे अधिक चाहते हैं और शायद यही तुम्हारी धारणा भी बन गई है, लेकिन यह सही नहीं है। मां-बाप को अपने सभी बच्चे बराबर प्यारे होते हैं। वे कभी भी अपने बच्चों में भेदभाव नहीं करते।

अत: मैं आशा करता हूं कि तुम इस ओर से अपना मन साफ करोगे। मैं आज तक जो तुमसे आमने-सामने बैठकर न कह सका, वह आज इस पत्र के ज़रिए कह रहा हूं। मुझसे बात करो बेटा, तुम्हारा यह अबोला मुझे तकलीफ देता है। मुझे उम्मीद है तुम मुझसे बात करोगे।

तुम्हारा पापा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें