गुरुवार, 15 जुलाई 2010

कैसा जीवन जीना है

रामायण जीवन प्रबंधन का श्रेष्ठ ग्रंथ
आज के युग में हर क्षेत्र में प्रबंधन का महत्व बढ़ता जा रहा है। सामान्यत: प्रबंधन व्यवसाय से ही जोड़ा जाता है परंतु हमारे जीवन का भी प्रबंधन किया जाना चाहिए। जीवन प्रबंधन का मतलब है कि हमें कैसा जीवन जीना है, समाज में, हमारे परिवार में कैसे रहना है, यही मुख्य बिंदू रामायण में बखुबी बताए गए हैं। रामायण में श्रीराम के गुणों और उनके जीवन प्रबंधन के सूत्र से हम भी अपना जीवन स्तर ऊंचा बना सकते हैं-
1. आदर्श नेता- राम आदर्श नेता हैं। सोलह गुणों से परिपूर्ण। सभी को साथ लेकर चलना और सभी का सम्मान कैसे करना है, उन्हीं से सीखा जा सकता है।
2. धर्म प्रमुख - चार पुरुषार्थ में धर्म, अर्थ और काम की रामायण में खूब चर्चा है। उल्लेख है धर्म मूल है। अर्थ और काम भी धर्म का उल्लंघन किए बगैर हासिल हों तो उनका कोई मूल्य नहीं है।
3. भक्त प्रमुख- भक्त भगवान से भी बड़ा है। तभी तो भगवान अपने भक्तों के लिए स्वयं कष्टï सहने को तैयार रहते हैं।
4. शरणागति- जो भगवान की शरण आया उसे भगवान स्वीकार करते हैं। फिर वह चाहे किसी भी जाति, वर्ण या रूप का हो। भगवान सभी को समभाव से देखते हैं और सभी पर समान कृपा बरसाते हैं।
5. नारी प्रधानता- मान्यता है रामायण राम की कथा है, लेकिन वह सीता का चरित्र है। रामायण में नारियां एक से बढ़कर एक हैं। सभी गुणों से भरी हुईं। फिर चाहे सीता हो, मंदोदरी या तारा। आज की महिलाएं इनसे बहुत कुछ सीख सकती हैं।

तारकासुर के वध के लिए शिव विवाह
तारकासुर राक्षस के अत्याचारों से जब सभी देवता परेशान हो गए तब उन्होंने ब्रह्माजी की शरण ली। ब्रह्माजी ने कहा शिवजी से प्रार्थना करों क्योंकि शिव-पार्वती का पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है। लेकिन एक सबसे बड़ी समस्या है। वे समाधि में हैं। अगर उनकी समाधि किसी तरह टूट जाए और वे आपकी प्रार्थना स्वीकार कर लें तो उनका जो पुत्र होगा वह देवसेनापति होगा। वही आपकी समस्या का समाधान करेगा। देवताओं के कहने पर कामदेव ने उनकी समाधि भंग कर दी। लेकिन उसे अपना शरीर गंवाना पड़ा। पर देवताओं का काम आसान हो गया। सभी देवता शिवजी के पास गए। उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की कि तारकासुर हमें परेशान कर रहा है। अगर आप पार्वती से विवाह कर लें हमारी समस्या दूर होगी। देवताओं की प्रार्थना का असर शिवजी पर हुआ। देवताओं की प्रार्थना से ही शिव दूल्हा बने और उन्होंने पार्वती से विवाह किया। शिव-पार्वती के पुत्र हुए कार्तिकेय। कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने। उन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं को राक्षसों के भय से मुक्त कर दिया। श्रीरामचरितमानस में इसका उल्लेख है-
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहॉं सिव कृपानिकेता॥
पृथक पृथक तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥
अर्थ- विष्णु और ब्रह्मा सहित सभी देवता वहां गए जहां कृपा के धाम शिव थे। उन सबने शिवजी से अलग-अलग प्रार्थना की। तब शिव प्रसन्न हो गए।

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