भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मध्य रात्रि में, रोहिणी नक्षत्र तथा वृषभ लग्न में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उसी परम्परा का निर्वाह करते हुए प्रतिवर्ष जन्माष्टमी मनायी जाती है।
भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को रात्रि बारह बजे मथुरा नगरी के कारागार में वासुदेव जी की पत्नी देवकी के गर्भ से षोडश कला सम्पन्न भगवान श्रीकृष्ण जी का अवतार हुआ था।
जन्माष्टमी व्रत के ज्योतिषीय योग
भाद्रपद कृष्णपक्ष में आधी रात में अष्टमी तिथि हो चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में हो तो यह जयंती नामक अति शुभ योग बन जाती है। ‘जयंती योग’ से युक्त जन्माष्टमी अति पुण्यमयी होती है।
सूर्योदय से लेकर मध्यरात्रि पर्यन्त अष्टमी हो चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में हो तो यह व्रत अक्षय पुण्य का लाभ देने वाला होता है।
सूर्योदय के समय सप्तमी तिथि हो, मध्यरात्रि में अष्टमी व रोहिणी नक्षत्र हो अर्थात् सप्तमी विद्धा अष्टमी हो तो यह व्रत अगले दिन करें क्योंकि भगवान का जन्म अविद्धा तिथि एवं बेध रहित नक्षत्र रोहिणी में हुआ था।
सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि हो तदुपरांत नवमी तिथि हो, दिन सोमवार या बुधवार हो रोहिणी नक्षत्र हो तो यह व्रत अति पुण्यदायक फल प्रदान करता है। जो इस योग में जन्माष्टमी का व्रत करता है वह अपने कुल की पीढ़ियों का उद्धार कर देता है।
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मपत्रिका
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मपत्री में गुरु, चन्द्रमा, सूर्य, बुध, शनि, मंगल, शुक्र सभी उच्च राशियों में तथा स्वग्रही हैं। चतुर्थ भाव से दूसरे में बुध तथा बारहवें भाव में गुरु होने से ‘शुभ मध्यत्व’ योग हुआ। पंचम भाव के भी दोनों और सूर्य, शुक्र विद्यमान है, प्रबल चतुर्थ पंचम भाव श्रीकृष्णजी के ऐश्वर्य राज्य वैभव सुख-समृद्धि के कारक भाव एवं राशियां भी बलयुक्त हैं। उच्च राशि में मंगल, उच्च राशि के गुरु से केन्द्र में स्थित हैं यही मंगल धर्म युद्ध महाभारत में गीता का ज्ञान एवं विजयश्री का द्योतक है। पूर्ण पुरुषोत्तम विश्वम्भर प्रभु का भाद्रपद मास के अन्धकारमय पक्ष को अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि के समय प्रादुर्भाव होना निराशा में आशा का संचार स्वरूप है।
श्रीमद्भागवत् में कहा गया है-
‘‘निशीधे तमे उभूते जायमाने जनार्दने
देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णु: सर्वगुहाशय:।
आविरासीद् यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कल:।।’’
अर्थात् अर्धरात्रि के समय जब अज्ञानरूपी अंधकार का विनाश और ज्ञानरूपी चन्द्रमा का उदय हो रहा था उस समय देवरूपिणी देवकी के गर्भ से सबके अन्त:करण में विराजमान पूर्ण व्यापक प्रभु श्रीकृष्ण प्रकट हुए जैसे कि पूर्व दिशा में पूर्ण चन्द्रमा प्रकट हुआ हो।
इस दिन भगवान का प्रादुर्भाव होने के कारण यह उत्सव मुख्यतया उपवास, जागरण एवं विशिष्ट रूप से श्री भगवान की सेवा एवं श्रृंगार का है। दिन में उपवास, रात्रि में जागरण तथा षोडशोपचार से भगवान का पूजन, भगवत् कीर्तन इस उत्सव के प्रधान अंग हैं। श्रीनाथद्वारा, मथुरा एवं वृन्दावन में यह उत्सव बड़े विशिष्ट ढंग से मनाया जाता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में मन्दिरों में विशेष रूप से भगवान का श्रृंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में गली, मुहल्ले एवं घरों में भगवान की मूर्ति का श्रृंगार करके झूला झुलाया जाता है।
व्रत-उपवास विधि
प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। इस दिन केले के खम्भे, आम अथवा अशोक के पत्ते आदि से घर का द्वार सजाया जाता है। दरवाजे पर मंगल कलश स्थापित करें। सर्वप्रथम कलश की पूजा करें। कलश के साथ पञ्च देवों की पूजा करें, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की पूजा करें। इसी कलश को प्रतीक मानकर क्रमश: वासुदेव-देवकी, नन्द, यशोदा, बलदेव, रोहिणी मां एवं रोहिणी नक्षत्र की पूजा करें।
‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’’ इस मंत्र से से पूजन करके नव वस्त्र अलंकार से सुसज्जित करके भगवान को सजे हुए हिंडोले में प्रतिष्ठित करें। धूप-दीप, अन्न रहित नैवेद्य तथा प्रसूति के समय सेवन होने वाले सुस्वादु मिष्ठान्न, विभिन्न फलों, पुष्पों, नारियल, छुआरे, अनार, पंजीरी तथा मेवे से बने प्रसाद भगवान को अर्पित करें। इस प्रकार भगवान बाल मुकुन्द के मनोहर स्वरूप का ध्यान करें। आधी रात में भगवान का जन्मोत्सव मनाएं जैसे कि घर में किसी बालक ने जन्म लिया हो। मांगलिक गीत, स्तुति, वाद्य यंत्रों के साथ गाएं। रात्रि के बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतिस्वरूप खीरा काटकर भगवान का जन्म कराएं। जन्मोत्सव मनाएं। बालस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण जी को पंञ्चामृत से स्नान कराएं। केसर, कस्तूरीयुक्त चंदन का लेपन करें। सुन्दर वस्त्र, आभूषण धारण कराएं। पुष्प व रत्न मालाओं से अलंकृत करें, मधुर व्यंञ्जनों का भोग अर्पत करें।
जन्मोत्सव के पश्चात् कपूर आदि से प्रज्जवलित कर समवेत स्वर से भगवान की आरती स्तुति करें।
जन्माष्टमी व्रत का महात्म्य
विष्णुलोक की प्राप्ति
जो मनुष्य जन्माष्टमी का व्रत करता है वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है। व्रत के पूरे दिन में जितना खाली समय मिले उसमें ‘‘श्रीकृष्णाय नम:’’ मंत्र का ही मानसिक या वाचिक जप करना चाहिए।
संतान सुख
जिन स्त्रियों को संतान नहीं है उन्हें बालकृष्ण श्रीकृष्ण जी का प्रात:काल अवश्य पूजन एवं दर्शन करना चाहिए एवं मंत्र का जप भी करें-
ऊँ देवकी सुत गोविन्दं वासुदेव जगत्पते
देहि मे तनय कृष्णं त्वाहं शरणं गत:।।
इससे सुन्दर तथा स्वस्थ संतान प्राप्त होती है।
पति-पत्नी में स्थायी प्रेम
इस व्रत से भगवान प्रसन्न होते हैं। परिवार में सुख बढ़ता है। पति-पत्नी में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है। अंत में भजन भी करें-
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
राधे कृष्ण कृष्ण राधे राधे।
भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को रात्रि बारह बजे मथुरा नगरी के कारागार में वासुदेव जी की पत्नी देवकी के गर्भ से षोडश कला सम्पन्न भगवान श्रीकृष्ण जी का अवतार हुआ था।
जन्माष्टमी व्रत के ज्योतिषीय योग
भाद्रपद कृष्णपक्ष में आधी रात में अष्टमी तिथि हो चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में हो तो यह जयंती नामक अति शुभ योग बन जाती है। ‘जयंती योग’ से युक्त जन्माष्टमी अति पुण्यमयी होती है।
सूर्योदय से लेकर मध्यरात्रि पर्यन्त अष्टमी हो चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में हो तो यह व्रत अक्षय पुण्य का लाभ देने वाला होता है।
सूर्योदय के समय सप्तमी तिथि हो, मध्यरात्रि में अष्टमी व रोहिणी नक्षत्र हो अर्थात् सप्तमी विद्धा अष्टमी हो तो यह व्रत अगले दिन करें क्योंकि भगवान का जन्म अविद्धा तिथि एवं बेध रहित नक्षत्र रोहिणी में हुआ था।
सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि हो तदुपरांत नवमी तिथि हो, दिन सोमवार या बुधवार हो रोहिणी नक्षत्र हो तो यह व्रत अति पुण्यदायक फल प्रदान करता है। जो इस योग में जन्माष्टमी का व्रत करता है वह अपने कुल की पीढ़ियों का उद्धार कर देता है।
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मपत्रिका
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मपत्री में गुरु, चन्द्रमा, सूर्य, बुध, शनि, मंगल, शुक्र सभी उच्च राशियों में तथा स्वग्रही हैं। चतुर्थ भाव से दूसरे में बुध तथा बारहवें भाव में गुरु होने से ‘शुभ मध्यत्व’ योग हुआ। पंचम भाव के भी दोनों और सूर्य, शुक्र विद्यमान है, प्रबल चतुर्थ पंचम भाव श्रीकृष्णजी के ऐश्वर्य राज्य वैभव सुख-समृद्धि के कारक भाव एवं राशियां भी बलयुक्त हैं। उच्च राशि में मंगल, उच्च राशि के गुरु से केन्द्र में स्थित हैं यही मंगल धर्म युद्ध महाभारत में गीता का ज्ञान एवं विजयश्री का द्योतक है। पूर्ण पुरुषोत्तम विश्वम्भर प्रभु का भाद्रपद मास के अन्धकारमय पक्ष को अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि के समय प्रादुर्भाव होना निराशा में आशा का संचार स्वरूप है।
श्रीमद्भागवत् में कहा गया है-
‘‘निशीधे तमे उभूते जायमाने जनार्दने
देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णु: सर्वगुहाशय:।
आविरासीद् यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कल:।।’’
अर्थात् अर्धरात्रि के समय जब अज्ञानरूपी अंधकार का विनाश और ज्ञानरूपी चन्द्रमा का उदय हो रहा था उस समय देवरूपिणी देवकी के गर्भ से सबके अन्त:करण में विराजमान पूर्ण व्यापक प्रभु श्रीकृष्ण प्रकट हुए जैसे कि पूर्व दिशा में पूर्ण चन्द्रमा प्रकट हुआ हो।
इस दिन भगवान का प्रादुर्भाव होने के कारण यह उत्सव मुख्यतया उपवास, जागरण एवं विशिष्ट रूप से श्री भगवान की सेवा एवं श्रृंगार का है। दिन में उपवास, रात्रि में जागरण तथा षोडशोपचार से भगवान का पूजन, भगवत् कीर्तन इस उत्सव के प्रधान अंग हैं। श्रीनाथद्वारा, मथुरा एवं वृन्दावन में यह उत्सव बड़े विशिष्ट ढंग से मनाया जाता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में मन्दिरों में विशेष रूप से भगवान का श्रृंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में गली, मुहल्ले एवं घरों में भगवान की मूर्ति का श्रृंगार करके झूला झुलाया जाता है।
व्रत-उपवास विधि
प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। इस दिन केले के खम्भे, आम अथवा अशोक के पत्ते आदि से घर का द्वार सजाया जाता है। दरवाजे पर मंगल कलश स्थापित करें। सर्वप्रथम कलश की पूजा करें। कलश के साथ पञ्च देवों की पूजा करें, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी एवं सरस्वती जी की पूजा करें। इसी कलश को प्रतीक मानकर क्रमश: वासुदेव-देवकी, नन्द, यशोदा, बलदेव, रोहिणी मां एवं रोहिणी नक्षत्र की पूजा करें।
‘‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’’ इस मंत्र से से पूजन करके नव वस्त्र अलंकार से सुसज्जित करके भगवान को सजे हुए हिंडोले में प्रतिष्ठित करें। धूप-दीप, अन्न रहित नैवेद्य तथा प्रसूति के समय सेवन होने वाले सुस्वादु मिष्ठान्न, विभिन्न फलों, पुष्पों, नारियल, छुआरे, अनार, पंजीरी तथा मेवे से बने प्रसाद भगवान को अर्पित करें। इस प्रकार भगवान बाल मुकुन्द के मनोहर स्वरूप का ध्यान करें। आधी रात में भगवान का जन्मोत्सव मनाएं जैसे कि घर में किसी बालक ने जन्म लिया हो। मांगलिक गीत, स्तुति, वाद्य यंत्रों के साथ गाएं। रात्रि के बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतिस्वरूप खीरा काटकर भगवान का जन्म कराएं। जन्मोत्सव मनाएं। बालस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण जी को पंञ्चामृत से स्नान कराएं। केसर, कस्तूरीयुक्त चंदन का लेपन करें। सुन्दर वस्त्र, आभूषण धारण कराएं। पुष्प व रत्न मालाओं से अलंकृत करें, मधुर व्यंञ्जनों का भोग अर्पत करें।
जन्मोत्सव के पश्चात् कपूर आदि से प्रज्जवलित कर समवेत स्वर से भगवान की आरती स्तुति करें।
जन्माष्टमी व्रत का महात्म्य
विष्णुलोक की प्राप्ति
जो मनुष्य जन्माष्टमी का व्रत करता है वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है। व्रत के पूरे दिन में जितना खाली समय मिले उसमें ‘‘श्रीकृष्णाय नम:’’ मंत्र का ही मानसिक या वाचिक जप करना चाहिए।
संतान सुख
जिन स्त्रियों को संतान नहीं है उन्हें बालकृष्ण श्रीकृष्ण जी का प्रात:काल अवश्य पूजन एवं दर्शन करना चाहिए एवं मंत्र का जप भी करें-
ऊँ देवकी सुत गोविन्दं वासुदेव जगत्पते
देहि मे तनय कृष्णं त्वाहं शरणं गत:।।
इससे सुन्दर तथा स्वस्थ संतान प्राप्त होती है।
पति-पत्नी में स्थायी प्रेम
इस व्रत से भगवान प्रसन्न होते हैं। परिवार में सुख बढ़ता है। पति-पत्नी में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है। अंत में भजन भी करें-
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
राधे कृष्ण कृष्ण राधे राधे।