सोमवार, 2 अगस्त 2010

अधर्म की वाटिका उजाड़ देते हैं हनुमान

रामायण में दो वाटिकाओं का वर्णन मिलता है। एक वाटिका राजा जनक की जहां श्रीराम और सीता ने एक-दूसरे को पहली बार देखा और वहीं से उनका प्रेम शुरू हुआ। दूसरी वाटिका रावण की लंका में अशोक वाटिका। दोनों वाटिकाओं की सुंदरता देखते ही बनती थी। अद्भूत वृक्ष और फल-फूल चारों ओर दिखाई पड़ते थे। फूलों की महक से वातावरण महकता रहता था। समान रूप से सुंदर दिखाई देने वाली वाटिकाओं में हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिका को पूरी तरह उजाड़ दिया गया। राजा जनक के यहां की वाटिका धर्म का प्रतीक है जहां श्रीराम और सीता स्वयं उपस्थित हो वहां धर्म और अध्यात्म की कोई सीमा ही नहीं हो सकती। वहीं रावण की वाटिका अधर्म और पाप की प्रतीक है। जिसे नष्ट कर हनुमान ने खेल-खेल में ही बता दिया कि अधर्म के मार्ग पर चलते हुए कितनी ही सुंदर वाटिका या जीवन बना लो वह ज्यादा दिन का नहीं है। उसे नष्ट होना ही है। वहीं धर्म का आचरण करते हुए सुंदर और निर्मल जीवन रहेगा वहां श्रीराम सीता सहित स्थाई रूप से निवास करेंगे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. HANUMAN JI MARA MARGDRASHAK HAI MAI HANUMAN JI KO AAPNA SAB KUCH MANTA HU AUR HANUMAN MARA BHAGWAN HAI OUR HANUMAN JI KO MAI AAPANA DIL ME RATKHA HU

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  2. धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
    ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
    धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
    अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है । अधर्म के लिए कर्म करना, अधर्म है ।
    कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
    राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
    जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
    धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, परोपकार, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
    धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
    राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
    by- kpopsbjri

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