गुरुवार, 23 सितंबर 2010

श्राद्ध विधि : ऐसे करें पितरों को तृप्त


आश्विन कृष्ण पक्ष में जिस दिन पूर्वजों की श्राद्ध तिथि आए उस दिन पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध विधि-विधान से करना चाहिए। किंतु अगर आप किसी कारणवश शास्त्रोक्त विधानों से न कर पाएं तो यहां बताई श्राद्ध की सरल विधि को अपनाएं -

- सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें।
- घर आंगन में रंगोली बनाएं।
- महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।
- श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं।
- ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं।
- पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें।
- ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें।
- ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें।

पितरों को कैसे भोजन मिलता है?

धर्मग्रंथों में श्राद्ध न करने वाले व्यक्ति को नास्तिक कहा गया है। पितरों की शांति न होने पर परिवार में पितृदोष उत्पन्न होता है।पितृदोष से अनेक प्रकार की व्याधियां तथा अशांति होती हैं। इसीलिए श्राद्ध कर पितरों को तृप्त किया जाता है।
यह उत्सुकता का प्रश्र होता है कि श्राद्ध में पितरों को चढ़ाए पदार्थ किस तरह पितरों तक पहुंचते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि माता-पिता को उनके गोत्र और नाम बोलकर जो भोजन अर्पण किया जाता है, वह उनको मिल जाता है। अगर मृत्यु के बाद देवयोनि मिली हो तो वह भोजन अमृत बनकर उनको मिलता है। इसी तरह गंधर्व लोक में जाने पर भोग रुप में, पशु योनि में घास के तिनके बनकर, नाग योनि में वायु बनकर, राक्षस योनि में मांस बनकर, पिशाच योनि में खून बनकर और मानव रुप में अनाज के रुप में मिलता है।
इस बारे में पुराणों में भी कहा गया है कि मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से बनकर मिलता है, इनके साथ मन, बुद्धि, प्रकृति और अहंकार आदि नौ तत्वों के साथ दसवें तत्व के रूप में भगवान पुरुषोत्तम निवास करते हैं। यही पितृ कहे जाते हैं।
सूक्ष्म रूप में रहने वाले पितर उन्हें अर्पित किए जाने वाले पदार्थों का सार शब्द, गंध, भावना जैसे सूक्ष्म रूप में ग्रहण करते हैं। इस प्रकार श्राद्ध के द्वारा हम भगवान को ही पूजते हैं। पितर श्राद्ध से संतुष्ट होकर आयु, प्रजा, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, राज्य एवं अन्य सभी सुख भी देते हैं।

क्या करें-क्या न करें श्राद्ध पक्ष में


धार्मिक दृष्टि से हर धार्मिक परंपरा, उत्सव, पर्व और व्रत-उपवास के शुभ फल तभी मिलते हैं। जब उनसे संबंधित शास्त्रों में बताए गए विधान और नियम का सही पालन किया जाए। इसी कड़ी में श्राद्ध पक्ष में पितरों के श्राद्ध के लिए कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग और निषेध बताया गया है।
- श्राद्ध में सात पदार्थ महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल।
- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकला तक संतुष्ट रहते हैं।
- सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है। - केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।
- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं।
- आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।
- चना, मसूर, बड़ा उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध निषेध है।

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