मंगलवार, 28 सितंबर 2010

भागवतः ७७ - ७९: कर्कश वाणी सभी दु:खों का कारण है


मनु महाराज के पुत्र उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने जब अपने पिता को सिंहासन पर बैठा देखा तो वह भी राजसिंहासन पर चढऩे का प्रयास करने लगा। पांच साल के बालक ने कोशिश की कि अपने पिता की गोद में बैठ जाए। उत्तानपाद ने सोचा इसको गोदी में बैठा लेता हूं लेकिन जैसे ही प्रयास करने लगे, उनकी दूसरी पत्नी सुरुचि अड़ गई। सुरुचि ने कहा ध्रुव तू पिता की गोद में नहीं बैठ सकता। उसने कहा- क्यों मां? वह बोली यदि तुझे पिता की गोद में बैठना है तो तुझे सुरुचि के गर्भ से जन्म लेना पड़ेगा, नहीं तो भगवान की पूजा कर फिर वही देखेंगे।
सौतेली मां ने ऐसी कर्कश वाणी बोली जिसे सुन ध्रुव परेशान हो गया। रोने लगा और चूंकि राजा उत्तानपाद सुरुचि के प्रभाव में थे तो पत्नी को मना भी नहीं कर सके, क्योंकि वो जानते थे कि अगर मैंने ध्रुव को गोदी में उठाया तो ये सारा घर माथे पर उठा लेगी। वह सुरुचि का स्वभाव जानते थे। ध्रुव रोते-रोते अपनी मां सुनीति के पास चला गया। उसने कहा मां से- मैं आज पिताजी की गोद में बैठने गया तो मां ने मुझे बैठने नहीं दिया और ऐसा कहा है कि जा तू भगवान को पा ले तो तू अधिकारी बनेगा। मां भगवान कहां मिलते हैं।
सुनीति ने कहा ध्रुव तू सौभाग्यशाली है कि तेरी सौतेली मां ने तुझसे यह कहा कि जा भगवान को प्राप्त कर। तेरा बहुत सौभाग्य है। तू भगवान को प्राप्त कर। वो यह सीखा रही है। पांच साल का बच्चा जंगल में चल दिया। ऐसा कहते हैं जब वो जंगल की ओर जा रहा था उसके मन में विचार आ रहा था कि भगवान कैसे मिलते हैं, भगवान कहां मिलेंगे, कैसे प्राप्त होंगे और चल दिया।
यहां एक बात ग्रंथकार कह रहे हैं घर-परिवार में सुरुचि ने कर्कश वाणी बोली और ध्रुव का दिल टूट गया। समाज में, परिवार में, निजी संबंधों में कर्कश वाणी का उपयोग न करें। ये बहुत घातक है । शब्दों का नियंत्रण रखिए। जीवन में कभी भी कर्कष वाणी न बोलिए। भक्त की वाणी हमेशा निर्मल होती है इसलिए ध्रुव चला जा रहा है और भगवान को ढूंढ़ रहा है। उसे मार्ग में नारदजी मिल गए।

कठिन तप से मिलते हैं भगवान

अब तक की कथा में आपने पढ़ा कि भगवान की खोज में निकले ध्रुव को मार्ग में नारदजी मिले। नारदजी ने ध्रुव को रोका और कहा बालक इस जंगल में कहां जा रहा है। नारदजी को देखकर ध्रुव कहते हैं कि मैं भगवान को प्राप्त करने जा रहा हूं। नारदजी हंसे, तू जानता नहीं है भगवान क्या होता है। बड़ा कठिन है जंगल में तप करना। ऐसे ही भगवान नहीं मिलते। नारदजी ध्रुव को डरा रहे हैं। ध्रुव ने कहा कि देखिए मुझे डराइए नहीं, अगर आप भगवान को प्राप्त करने का कोई रास्ता बता सकते हैं तो अच्छी बात है मुझे भयभीत क्यों कर रहे हैं।
जो भी स्थिति होगी मैं भगवान को प्राप्त करुंगा। बस मैंने सोच लिया है, मेरा हठ है। नारदजी बोले वाह, ठीक है क्या चाहता है? ध्रुव बोले आप मेरे गुरु बन जाओ। नारदजी को गुरु बना लिया। नारदजी ने उसे मंत्र दिया ऊं नमो भगवते वासुदेवाय, जा तू इसका जप करना, जितनी देर तू इसका जाप करेगा और अगर सिद्ध हो गया तो परमात्मा तेरे जीवन में उतर आएंगे। ध्रुव बैठ गए और ध्यान किया। उन्होंने ''ऊं नमो भगवते वासुदेवाय'' का जप शुरू कर दिया। छह महीने तक करते रहे। भगवान सिद्ध हो गए, सिंहासन डोल गया, भगवान को लगा कोई भक्त मुझे याद कर रहा है। अब मुझे जाना पड़ेगा।
भगवान प्रकट हुए और जैसे ही भगवान प्रकट हुए तो देखा कि ध्रुव तो बस ध्यान लगाए बैठा है। अपने हाथों से ध्रुव के गाल को स्पर्श किया। आंख खोली तो भगवान सामने खड़े हुए थे। ध्रुव ने भगवान को प्रणाम किया, धन्य हो गए। भगवान ने कहा बोल क्या चाहता है? बच्चा था ज्यादा बातचीत करना तो आती नहीं थी, पांच साल के बच्चे ने कह दिया बस जो आप दे दो। भगवान बहुत समझदार हैं उन्होंने कहा ठीक है तू वर्षों तक राज करेगा, तेरी अनेक पीढिय़ां सिद्ध हो जाएंगी। तेरे पुण्य प्रताप से वे धन्य हो जाएंगे, तेरा राज्य अद्भुत माना जाएगा। तुझे मनोवांछित की पूर्ति होगी जो तू चाहता है वो मिलेगा, तथास्तु कह कर भगवान चले गए।

दिव्य होता है संतों का जीवन

वरदान देकर जैसे ही भगवान गए तो ध्रुव को याद आया अरे ये मैंने क्या किया। भगवान मुझको मिले और मैंने ये मांग लिया और वो दे भी गए मुझे तो मांगना था आप मिलो। मुझे नहीं चाहिए धन-दौलत ये वैभव-संपत्ति, राज-राजतिलक, दास-दासी ये तो बहुत थे मेरे पास और ज्यादा दे गए। मुझे ये चाहिए ही नहीं। फिर ध्रुव ने सोचा जो मिला वही प्रसाद सही।

जैसे ही ध्रुव लौटे और ध्रुव के माता-पिता को सूचना मिली, नारदजी ने उन्हें बताया कि ध्रुव को परमात्मा प्राप्त हो गए हैं। आपका बेटा चैतन्य हो गया है तो पिता उत्तानपाद मां सुनीति, मां सुरुचि सब के सब दौड़ पड़े कि हमारे बेटे को भगवान मिल गए। बहुत दिव्यता आ गई। जिसके जीवन में परमात्मा उतर आएं फिर उसके जीवन में दिव्यता आ जाती है। लोग दौड़ते हैं ध्रुव के पीछे। छ: महीने पहले जिसको राजसिंहासन पर नहीं चढऩे दे रहे थे, जिसको पिता की गोद में बैठने से वंचित कर दिया गया। छह महीने बाद वो लौटा तो सारा राजनगर, सारा राजमहल, सारे रिश्तेदार आगे-पीछे घूम रहे हैं।
इसलिए तो आपने देखा होगा इस देश में हमारे अध्यात्म, धर्म, संस्कृति में लोग साधु-संतों के पीछे बहुत पागल हैं। बावरी हो जाती है लोगों की श्रद्धा और आस्था। कोई साधु आ जाए, कोई संन्यासी आ जाए दौड़ता फिरता है जमाना। ध्रुव के पीछे भी भागने लगे लोग। ध्रुव से कहा आओ सिंहासन पर बैठो। सब ने बड़ा सम्मान दिया। ध्रुव सोच रहे हैं कल तक मुझे कोई पूछता नहीं था आज सारा संसार आ गया। सब के सब आए ध्रुव बैठे और यहां ध्रुव प्रसंग की समाप्ति करते हुए शुकदेवजी परीक्षित से कह रहे हैं बहुत काल तक ध्रुव ने राज्य किया। ध्रुव के राज्य में अच्छा शासन रहा, सबकुछ अच्छा था।

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