शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

बिना घर के गृहमंत्री थे शास्त्री


ऐसे समय जब नेता सरकारी सुविधाएँ हासिल करने के लिए मारामारी करते रहते हैं। आपको यह जानकर अचरज होगा कि देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जब गृहमंत्री थे तो उनके पास अपना मकान तक नहीं था। वह इलाहाबाद में किराए के मकान में रहा करते थे। इस कारण लोग उन्हें 'बिना मकान का गृहमंत्री' कहा करते थे।

दो अक्टूबर को 1904 को वाराणसी के मुगल सराय कस्बे में एक किसान परिवार में शास्त्री जी का जन्म हुआ। उनके पिता शारदा प्रसाद एक गरीब अध्यापक थे। बाद में उन्होंने इलाहाबाद के राजस्व विभाग में र्क्लक के रूप में काम किया। उनकी माता का नाम राम दुलारी था। शास्त्री जी के बचपन का नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। जब वह एक वर्ष के थे तो उनके पिता का निधन हो गया।
उनका और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी माँ दुलारी देवी ने किया। उनके दादा हजारीलाल उन्हें प्यार से 'नन्हें' पुकारते थे। लालबहादुर बचपन से ही सच्चे, ईमानदार और जिम्मेदार प्रवृत्ति के थे। जिसकी झलक उनके जीवनकाल में देखने को मिलती है। उनकी आँखों में ईमानदारी की झलक दिखाई देती थी।

एक बार की घटना है। जब वह छह वर्ष के थे तो उनके मित्र एक बाग में फल तोड़ने के लिए उन्हें भी साथ ले गए। जब उनके मित्र फल तोड़ रहे थे तो बगीचे का चौकीदार आ गया। इस पर पेड़ पर चढ़े उनके सभी मित्र भाग गए लेकिन वह वहीं खड़े रहे। चौकीदार ने उन्हें पकड़ लिया और उन्हें पीटने लगा तो उन्होंने कहा कि मुझे मत मारों मैं अनाथ हूँ। मैंने कुछ नहीं किया है। मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। मैंने तुम्हारे बाग को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया है। इस पर चौकदार ने कहा कि मैं जानता हूँ कि तुम झूठ नहीं बोल रहे हो लेकिन तुम्हें अपने व्यवहार में सुधार करना चाहिए। जिससे दूसरों को कष्ट न पहुँचे।

रेलवे स्कूल में चौथी कक्षा तक पढाई के बाद शास्त्री ने बनारस के हरिश्चंद हाई स्कूल में शिक्षा आरम्भ की। अपनी पढ़ाई के लिए उन्हें गंगा नदी के पार जाना पड़ता था। एक बार नाव के किराए के लिए पैसे नहीं होने पर शर्मिंदगी से बचने के लिए अपने मित्रों को बिना बताए नाव के जाने के बाद उन्होंने गंगा नदी को तैरकर पार किया।

शास्त्री जी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नारे 'स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है' से इतना प्रभावित थे कि वह उनका भाषण सुनने के लिए बनारस से 50 मील दूर गाँव तक जा पहुँचे। तिलक के भाषण पर उनके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा। 1915 में महात्मा गाँधी का भाषण सुनने के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगा देंगे।

लाल बहादुर का जुड़ाव शुरू से ही गाँधी जी के अहिंसा आंदोलन के साथ रहा और वह अंत तक कांग्रेस से जुडे रहे। जब वह 17वर्ष के थे तो गाँधी जी के आह्‍वान 'युवाओं अंग्रेजों के सरकारी स्कूल, कॉलेजों का बहिष्कार करो' पर उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। जबकि उनकी माता और संबंधियों ने उन्हें स्कूल न छोड़ने की सलाह दी क्योंकि उनका काशी विद्या पीठ में चौथा वर्ष था और वह उन्नति की ओर अग्रसर थे। लेकिन वह विद्यालय नहीं गए। इस विरोध के कारण उन्हें गिरफ्तार करने के बाद चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। 1930 में जब गाँधी जी ने 'नमक सत्याग्रह' शुरू किया तो उसमें शास्त्री जी की मुख्य भूमिका रही। वह गाँधी जी के स्वातंत्र्य वीरों की सेना के एक महान सेनानायक थे।

1928 में काशी विद्यापीठ से लाल बहादुर को 'शास्त्री' की डिग्री मिली और तब से वह श्रीवास्तव की जगह शास्त्री कह कर पुकारे जाने लगे। वह 1921 में लाला लाजपतराय द्वारा गठित 'पीपुल्स सोसायटी' के सदस्य भी रहे। सोसायटी का उद्देश्य युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित करना था। बाद में उन्हें सोसायटी का अध्यक्ष बनाया गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।

1927 में शास्त्री जी का विवाह ललिता देवी से हुआ और उन्हें अपने ससुर से एक चरखा और कुछ गज खादी उपहार स्वरूप मिली।

लाल बहादुर शास्त्री को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। उनकी गुर नानक देव में विशेष रुचि थी। शास्त्री जी को पढ़ने के अलावा क्रिकेट देखने और लिखने का भी शौक था। उन्होंने मैडम क्यूरी की जीवनी का हिन्दी में अनुवाद भी किया और कई यूरोपीय लेखकों की दार्शनिक और सामाजिक किताबों का भी अध्ययन किया।

शास्त्री जी छोटे कद के एक साधारण और सरल बोलचाल वाले ईमानदार व्यक्ति थे। इसी तरह उनका पहनावा भी साधारण था। जो उनके व्यक्तित्व के अनुरूप दिखता था।

उन्होंने परिवहन, रेलवे, पुलिस और गृह मंत्रालय आदि मंत्रालयों में जिम्मेदारीपूर्वक मंत्री के रूप में काम किया। वह राज्यसभा के सदस्य रहे। उन्होंने परिवहन मंत्री के अपने कार्यकाल में देश की पहली महिला कंडक्टर की नियुक्ति की। लाल बहादुर शास्त्री ने पुलिस मंत्री रहते हुए लाठीचार्ज और फायरिंग को प्रतिबंधित किया। जिसके लिए उन्हें बहुत ख्याति मिली।

उन्होंने ही पुलिस को खाकी का ताज दिया। यह ताज पुलिस को कैसे मिला। इस पर एक घटना है। एक बार शास्त्री जी क्रिकेट मैच देखने कानपुर गए तो एक व्यक्ति ने पुलिस द्वारा पहनी गई लाल पगड़ी पर आपत्ति की। जिसके परिणामस्वरप उन्होंने उस व्यक्ति से वादा किया कि वह इस विषय पर ईमानदारी पूर्वक विचार करेंगे। कुछ समय बाद पुलिस को लाल की जगह खाकी पगड़ी दी गई जिसने आज टोपी का रूप ले लिया है।

शास्त्री जी के रेल मंत्री के कार्यकाल में यात्रियों को प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी की सुविधा प्राप्त हुई। उन्होंने रेलवे की तरक्की के लिए भरसक प्रयास किए। जब तमिलनाडु और महबूब नगर में रेल दुर्घटना हुई तो उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से तुरंत इस्तीफा दे दिया। प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने उनका इस्तीफा स्वीकार करने से मना कर दिया। लेकिन वह नहीं माने और उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार किया।

प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी की जुबान पर यही प्रश्न था कि नेहरू के बाद अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। कांग्रेस पार्टी ने लाल बहादुर शास्त्री को अपना नेता चुन इस प्रश्न को विराम दिया।

उनके चरित्र को देखते हुए सभी इस निर्णय पर एकमत थे कि शास्त्री जी ही ऐसे व्यक्ति है, जो देश का सही नेतृत्व कर सकते हैं। शास्त्री जी ने स्वयं पर कभी दबाव महसूस नहीं किया। वह कहते थे कि मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ न कि कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति। नेहरू जी के बाद उन्होंने भारतीय गणतंत्र के दूसरे प्रधानमंत्री के तौर पर कार्य करते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। उन्होंने सेना को ऐसे आधुनिक हथियार दिए जाने की वकालत की। जिन्हें वह युद्ध के समय केवल लड़ाई के लिए ही नहीं अपितु अपनी रक्षा के लिए भी प्रयोग कर सके।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें