सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

ममता

सुबह जब मैं टहलने निकली तो एक सुअरी पर निगाह टिक गई। पता नहीं वह क्यों मिट्टी उछाल रही थी। पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। दो घंटे बाद फिर उत्सुकतावश मैं वहां गई तो देखा कि वह अपने बच्चे के साथ जा रही थी।
वहीं खडे कुछ बच्चे आपस में बातें कर रहे थे। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि आंटी, रात को सुअरी का बच्चा इस गहरी नाली में गिर गया था और ऊपर नहीं आ पा रहा था। पहले तो इसकी मां बहुत चिल्लाई, फिर अचानक इसने पैरों से मिट्टी खोद-खोदकर नाले में डालनी शुरू कर दी। सुबह तक मिट्टी काफी ऊपर आ गई तो उसका बच्चा मिट्टी के ढेर पर चढकर ऊपर आ गया। मैं अवाक् खडी सोचने लगी कि अपने बच्चे को मुसीबत में पाकर जानवर ने भी उसी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया जो इंसान दे पाता। मां तो मां ही होती है।

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