शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

भागवत: १२१: जब रावण ने वरदान में पार्वती को ही मांग लिया

अभी तक हमने पढ़ा कि समुद्रमंथन के दौरान जब लक्ष्मी निकली तो सभी उन्हें पाने के लिए लालायित हो उठे। शंकरजी ने कहा सभी इसको मांग रहे हैं तो हम भी लाइन में लग जाएं। लक्ष्मीजी ने शंकरजी को देखा बोलीं आपकी तो नहीं होऊंगी मैं! चाहे जिसको चाहे जब टिका देते हो तो पता नहीं मुझे किसके पल्ले बांध दो? क्योंकि शिवजी का इतिहास तो आप भी जानते होंगे कि रावण ने जब शिवजी की स्तुति की तो शिवजी इतने प्रसन्न हुए कि रावण को अपना भक्त बनाकर जो भी मांगा वो सब दे दिया और जैसे ही प्रणाम करके रावण उठा तो दुष्ट रावण ने देखा कि शिवजी के पास पार्वती खड़ी थी और सुंदर थी पार्वती।

सौंदर्य रावण की सबसे बड़ी कमजोरी थी। रावण ने कहा आपने सब दे तो दिया भोलेनाथ एक चीज और चाहिए। उन्होंने कहा मांग-मांग क्या मांगता है। रावण ने पार्वती मांग ली। अच्छा मांग ली, तो वो भी ठीक है ले जा। ऐसा कहते हैं कि रावण पार्वतीजी को लेकर चल भी दिया। अब भोलेनाथ बड़े परेशान कि मैंने क्या कर दिया। इतने में नारदजी आए। नारदजी ने मार्ग में रावण को रोका और बोले इन्हें कहां ले जा रहा हो? रावण ने कहा-वरदान में भोलेनाथ ने दिया है।
नारद ने कहा तुझे पता है ये पार्वती नहीं है। ये तो पार्वती की प्रतिछाया है । पार्वती को तो पहले ही शिवजी ने पाताल में मय दानव के यहां छिपा रखा है। असली पार्वती चाहता है तो वहां जा।रावण भागा पाताल में और वहां ढूंढऩे लगा। एक सुंदर स्त्री आती हुई दिखी तो रावण वहीं रूक गया। रावण बोला-आपका परिचय, तो वो बोली मैं मंदोदरी हूं मय दानव की बेटी। रावण ने कहा चल तू ही चलेगी। पार्वती को भूलकर मंदोदरी से ही विवाह कर लिया। इसका नाम रावण है जो सिर्फ स्त्रियों पर टिकता है रिश्तों पर नहीं टिकता।

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