बुधवार, 8 दिसंबर 2010

क्यों वेदमाता है गायत्री?


शास्त्रों में लिखा है कि सर्वदेवानां गायत्री सारमुच्यते जिसका मतलब है गायत्री मंत्र सभी वेदों का सार है। इस मंत्र से माता गायत्री की आराधना की जाती है। माना जाता है कि यह मंत्र ब्रह्मदेव को आकाशवाणी से प्राप्त हुआ। यही कारण है की माता गायत्री को वेदमाता कहते हैं। किंतु वेदमाता गायत्री कहने के पीछे गहरे आध्यात्मिक अर्थ हैं। जानते हैं माता गायत्री के वेदमाता होने के पीछे रहस्यों को -
असल में वेद का अर्थ है - ज्ञान। इस ज्ञान के चार भेद है - ऋक्, यजु, साम और अथर्व। ज्ञान के ये चारों रूप भी प्राणियों की चार तरह की चेतना से जुड़े हैं। इनमें ऋक् - कल्याण, यज्ञ - पौरूष, साम - क्रीड़ा और अथर्व - अर्थ भाव से संबंधित है। बचपन, युवा, गृहस्थ और संन्सासी जीवन में क्रमश: क्रीडा, अर्थ, पौरूष और कल्याण अवस्था देखी जाती है। इस संसार का हर प्राणी इन चेतनाओं के दायरे में होता है।
इस तरह वेद यानि ज्ञान एक होकर भी हर प्राणी के मन में चार रूपों में रहता है। इसलिए वेदों को भी चार भागों में बांटा गया। ब्रह्मदेव के चार मुख भी इसी ज्ञान के प्रतीक है। ज्ञान के यही चार रूप उसी चेतना शक्ति के प्रेरक है, जो सृष्टि की शुरूआत में ब्रह्मदेव ने पैदा की। इस शक्ति को ही धर्मग्रंथों में गायत्री नाम दिया गया। यही कारण है कि वेदों की माता गायत्री मानी गई और वह वेदमाता के नाम से जगतप्रसिद्ध हुई।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें