गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

भागवत १४४: कंस ने क्यों बंदी बनाया देवकी व वसुदेव को?

भागवत में हम दसवां स्कंध आरंभ कर रहे हैं। इसमें भगवान श्रीकृष्ण की कथा है। शुकदेवजी ने राजा परीक्षित से कहा कि- हे पाण्डुनन्दन। परीक्षित! राक्षसों के अत्याचार से पीडि़त और त्रस्त पृथ्वी गाय का रूप धारण कर ब्रह्माजी की शरण में गई। ब्रह्माजी उसको शंकरजी के समीप ले गए। शिवजी उस समय भगवान विष्णु की आराधना कर रहे थे। तदनानुसार ब्रह्माजी ने पृथ्वी को आश्वस्त करते हुए कहा कि भगवान विष्णु शीघ्र ही यदुकुल में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेकर अवतार धारण करेंगे।
हे राजन। यदुवंशियों में भजमान राजा के वंश में विदुरत के पुत्र राजा शूरसेन बड़े तेजस्वी थे। उनके दस पुत्र और पांच कन्याएं हुई। उनके ज्येष्ठ पुत्र का नाम वसुदेव था। वसुदेव का विवाह देवक की पुत्री देवकी से हुआ। शूरसेन ने मथुरा को अपनी राजधानी बनाया। देवकी के आठवें गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। कंस देवकी का चचेरा भाई था। देवकी के विवाह के समय कंस को आकाशवाणी सुनाई दी कि देवकी की आठवीं संतान उसका काल सिद्ध होगी। यह सुनकर कंस ने देवकी और उसके पति को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया।
कंस शुरु से ही अत्याचारी था। आठ वर्ष की आयु में इसने जरासंघ को पराजित कर दिया था। कंस ने अपने पिता को बंदी बना लिया तथा स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ हो गया। राज्य सम्भालते ही अपने राज्य में पूजापाठ, जप-तप आदि कर्म बंद करवा दिए। उसने कई राजाओं को जब जीत लिया तो फिर इंद्र को भी जीतने की लालसा हुई। इंद्र को जब विदित हुआ तो वह लुप्त हो गया था और इस प्रकार निरन्तर कंस का अत्याचार बढऩे लगा।

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