शनिवार, 18 दिसंबर 2010

भागवत १४६: जब भगवान शेषनाग देवकी के गर्भ में आए

जब कंस ने देवकी के पहले पुत्र को जीवित छोड़ दिया तो भगवान नारद कंस के पास आए और उससे बोले- व्रज में रहने वाले नन्द आदि गोप, उनकी स्त्रियां, वसुदेव आदि वृष्णिवंशी यादव, देवकी आदि यदुवंश की स्त्रियां और नन्द, वसुदेव दोनों के सजातीय बंधु-बांधव और सगे-संबंधी सब के सब देवता हैं। उन्होंने कंस को यह भी बताया कि दैत्यों के कारण पृथ्वी का भार बढ़ गया है, इसलिए देवताओं की ओर से अब उनके वध की तैयारी की जा रही है।

जब देवर्षि नारद इतना कहकर चले गए तो कंस को विश्वास हो गया कि देवकी के गर्भ से विष्णु भगवान ही मुझे मारने के लिए पैदा होने वाले हैं। यह सोचकर उसने देवकी और वसुदेव को हथकड़ी-बेड़ी से जकड़कर कैद में डाल दिया । उसने यदुवंशियों से घोर विरोध ठान लिया। देवकी और वसुदेव ने भी यह मान लिया कि शायद ईश्वर की यही मर्जी है। यह तो भगवान की कृपा ही है कि उनका नाम स्मरण करने के लिए एकांतवास तो मिला। समय बीतता गया और देवकी ने छ: संतानों को जन्म दिया। उन सभी की कंस ने हत्या कर दी।
इधर जब भगवान के अवतरण का समय आने लगा तो धरती का भार अपने फन पर उठाने वाले भगवान शेष भगवान विष्णु के पास गए और कहा- हे परमात्मा। राम जन्म में आप मेरे बड़े भाई बने, तब मैं अनुज होने के कारण आपको वन जाने से नहीं रोक पाया। इसलिए हे कृपानिधान। आपके कृष्णावतार लेने पर मैं आपका अग्रज बनना चाहता हूं ताकि इस रूप में भी आपकी सेवा कर सकूं। तब भगवान ने इसकी सहर्ष स्वीकृति दे दी और भगवान शेष देवकी के सातवें गर्भ में आ गए।
जैसे ही भगवान देवकी के गर्भ में आए देवकी के शरीर से प्रकाश पूरी कोठरी में फैल गया। यह देख कंस और डर गया।

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