बुधवार, 8 दिसंबर 2010

भागवत १३७: साधु के वेश में किया रावण ने सीता का हरण

रामकथा में सीताहरण का प्रसंग हम पढ़ रहे हैं। पिछले अंक में हमने पढ़ा लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काट दी और रावण ने सीता के अपहरण की योजना बनाई। योजनानुरूप रावण का मामा मारीच स्वर्ण मृग के रूप में आश्रम के पास से निकलता है, सीता मृग को देखकर रामजी से कहती हैं कि मुझे यह स्वर्ण मृग चाहिए। जिद पर अड़ गईं सीताजी। भगवान ने भी धनुष बाण उठाया और उसके पीछे चल दिए।

जाते-जाते लक्ष्मण से कह गए कि सावधान रहना, ये आश्रम मत छोडऩा। ये वीरान है, बियाबान है कुछ हो न जाए। लक्ष्मण ने कहा-ठीक है। इधर मारीच को जैसे ही बाण लगा, उसने श्रीराम की आवाज में लक्ष्मण चिल्लाया। सीताजी ने सुना तो उन्होंने लक्ष्मणजी से कहा-यह तुम्हारे भैया की आवाज है, कहा-दौड़ो। लक्ष्मण बोल रहे हैं आपको कहां सुनाई दे रही है मुझे तो सुनाई ही नहीं दे रही। लक्ष्मण ने मना कर दिया क्योंकि राम ने आश्रम छोडऩे से मना किया था। सीताजी ने लक्ष्मणजी से कहा-नहीं आपको जाना पड़ेगा। लक्ष्मणजी ने कहा- ठीक है मां। लक्ष्मण रेखा खींचकर जाने लगे, तो बोले इसके बाहर मत आइएगा।
इधर लक्ष्मणजी गए उधर रावण आया और रावण ने जैसे ही पैर उठाया अग्नि जली। बोला- ये तो लक्ष्मण रेखा है। रावण ने साधु का भेष धरा और कहा भिक्षां देहिं। सीताजी ने कहा आ कर ले जाओ। रावण ने कहा-नहीं मैं भीतर नहीं आ सकता, यदि आप देना चाहें तो बाहर आइए। रावण को जल जाने का डर था। जैसे ही सीताजी बाहर निकलीं और रावण ने उनका अपहरण कर लिया। लंका ले जाते समय रावण का जटायु से युद्ध हुआ। जटायु को घायल करके रावण सीताजी को ले जाता है। इधर भगवान राम, लक्ष्मण को देखते ही बोले- तुम यहां क्यों आए? लक्ष्मण ने पूरी बात बताई। दोनों दौड़ कर आश्रम आए लेकिन तब तक रावण सीता माता का अपहरण कर चुका था।

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