गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

शवयात्रा में क्यों जाते हैं?


जीवन का अंतिम सच है मृत्यु। भागवत में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि आत्मा नश्वर है और शरीर नष्ट होने वाला है। जिस प्रकार हम कपड़े बदलते हैं उसी प्रकार आत्मा शरीर बदलती है। शरीर का अंत मृत्यु के साथ ही हो जाता है और मृत शरीर को पंचतत्व में विलीन करने के लिए शमशान पर ले जाते हैं। इस यात्रा को शवयात्रा कहा जाता है।
शवयात्रा में मृत व्यक्ति के रिश्तेदार, घर-परिवार के सदस्य, मित्र और समाज के अन्य लोग मौजूद रहते हैं। शवयात्रा को अंतिम यात्रा भी कहा जाता है। शव यात्रा का अर्थ है शव की यात्रा। इस यात्रा में मृत व्यक्ति से जुड़े हुए सभी लोग उसे देखने के लिए शामिल होते हैं। सभी जानते हैं कि शवयात्रा में दिखाई देने वाला मृत शरीर फिर बाद में हमेशा के लिए पंचतत्व में विलिन हो जाएगा।
मरने वाले व्यक्ति ने जीवनभर जिन लोगों के साथ समय बिताया और जिनके साथ सुख-दुख देखे, सभी के साथ उसकी यादें जुड़ी होती हैं। शवयात्रा में शामिल होने का भाव यही है कि मृत व्यक्ति को अंतिम बार देखना और उसे श्रद्धांजलि अर्पित करना। ताकि मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिल सके।
शास्त्रों के अनुसार शवयात्रा में जाना पवित्र कर्म माना गया है। इस यात्रा में शामिल होने वाले हर व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस पुण्य के प्रभाव से सभी के कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
शवयात्रा में शामिल होने पर यह ज्ञान भी हो जाता है कि सभी के जीवन का अंत ऐसा ही होना है। मृत्यु का भय सभी को रहता है और कोई मरना नहीं चाहता, ऐसे में इस यात्रा में शामिल होने वाले लोगों के मन से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है। व्यक्ति को जीवन का मूल्य समझ आता है और वह इसे खुश होकर जीता है। क्योंकि उसे मालूम है एक दिन उसके शरीर का भी अंत इसी प्रकार होना है।

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