बुधवार, 29 दिसंबर 2010

भागवत-१५३भागवत का सार छिपा है दसवें स्कंध में

भागवत में हम दशम स्कंध पढ़ रहे हैं। एक बार पुन: कुछ बातें याद करते चलें। इस ग्रंथ में हम विचार कर चुके हैं कि इसमें भगवान् का वाङमय स्वरूप है, शास्त्रों का सार है और जीवन का व्यवहार है। दशम स्कंध इस पूरे शास्त्र का प्राण है। हमने तीन अध्याय तक दशम स्कंध की कथा पढ़ी। भगवान् का जन्म हो गया। ऐसा कहते हैं कि दसवां स्कंध बोलते-बोलते शुकदेवजी खिल गए क्योंकि अब कथा शुकदेवजी नहीं, उनके भीतर बैठकर स्वयं श्रीकृष्ण कर रहे हैं।
इसलिए जिन प्रसंगों में हम प्रवेश कर रहे हैं वह हमारे ह्रदय को स्पर्श करेंगे। हमने सात दिन में दाम्पत्य के सात सूत्र जीवन में उतारने का संकल्प लिया है। हमने पहले दिन स्पष्ट विचार किया कि संयम का क्या महत्व है। दूसरे दिन संतुष्टि का महत्व जाना। तीसरे दिन संतान और चौथे दिन संवेदनशीलता और अब संकल्प का दिन है। आगे हम सक्षम होना और समर्पण को जान लेंगे।
दाम्पत्य यदि संकल्पित है तो बड़ा दूरगामी परिणाम देगा। दाम्पत्य में कुछ संकल्प लेने ही पड़ेंगे और जिनका दाम्पत्य बिना संकल्प के है वो लगभग उसको नष्ट ही कर रहे हैं। पहले स्कंध में हमने महाभारत से रहना सीखा। दूसरे स्कंध से आठवें स्कंध तक गीता से कर्म करना सीखा। नवें स्कंध में हमने रामायण से जीना सीखा और अब दस, ग्यारह और बारहवें स्कंध के माध्यम से हम भागवत में मरने की कला सीखेंगे। हमारे सामाजिक जीवन में पारदर्शिता, व्यावसायिक जीवन में परिश्रम, पारिवारिक जीवन में प्रेम और निजी जीवन में पवित्रता बनी रहे, इसके प्रसंग हम लगातार देख रहे हैं।

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